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जटामांसी के फायदे और नुकसान

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जटामांसी का परिचय (Introduction of Jatamansi)

जटामांसी (Jatamansi herb) सहपुष्पी औषधीय पौधा होता है। जिसका प्रयोग तीखे महक वाला इत्र बनाने में किया जाता है। इसको जटामांसी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके जड़ों में जटा या बाल जैसे तंतु लगे होते हैं। इनको बालझड़ भी कहते हैं। आयुर्वेद के अनुसार जटामांसी के फायदे इतने होते हैं कि आयुर्वेद में इसको कई बीमारियों के लिए औषधि के रुप में प्रयोग में लाया जाता है। चलिये आगे जटामांसी के फायदे और गुणों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

जटामांसी के फायदे | Benefits of Jatamansi

जटामांसी क्या है? (What is Jatamansi in Hindi?)

जटामांसी का छोटा सुंगधित शाक होता है। इसकी दो प्रजातियाँ गन्धमांसी तथा आकाशमांसी होती है। बाजार में जो जटामांसी बिकती है, उसमें कई प्रकार की मिलावट रहती है। चरक-संहिता में धूपन द्रव्यों में जटामांसी का उल्लेख मिलता हे।

सांस, खांसी, विष संबंधी बीमारी, विसर्प या हर्पिज़, उन्माद या पागलपन, अपस्मार या मिर्गी, वातरक्त या गाउट, शोथ या सूजन आदि रोगों में जिस धूपन का इस्तेमाल होता है उसमें अन्य द्रव्यों के साथ जटामांसी का प्रयोग मिलता है। सुश्रुत-संहिता में व्रणितोपसनीय जटामांसी का उल्लेख मिलता है। सिर दर्द के लिए जटामांसी एक उत्कृष्ट औषधि है। यह बहुत ही स्वास्थ्यप्रद होता है।

यह 10-60 सेमी ऊँचा, सीधा, बहुवर्षायु, शाकीय पौधा होता है। इसका तने का ऊंचा भाग में रोम वाला तथा आधा भाग में रोमहीन होता है। भूमि के ऊपर जड़ से इसकी कई शाखाएं निकलती हैं। जो 6-7 अंगुल तक सघन, बारीक, जटाकार, रोमयुक्त होती हैं। इसके आधारीय पत्ता सरल, पूर्ण, 15-20 सेमी लम्बे, 2.5 सेमी चौड़े, अरोमिल होते हैं तथा तने के पत्ते का एक या दो जोड़े, 2.5-7.5 सेमी लम्बे, आयताकार होते हैं। इसके पुष्प 1, 3 या 5 गुलाबी व नीले रंग के होते हैं। इसके फल 4 मिमी लम्बे, छोटे-छोटे, गोलाकार, सफेद रोम से आवृत होता हैं। इसकी जड़ काष्ठीय, लम्बी तथा रेशों से ढकी रहती है। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से नवम्बर तक होता है।

जटामांसी का पौधा बहुवर्षीय होता है। लेकिन ये औषधीय जड़ी बूटी लुप्तप्राय: है जिसका आयुर्वेद में बरसों से औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता रहा है। जटामांसी प्रकृति से कड़वा, मधुर, शीत, लघु, स्निग्ध,  वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को हरने वाला, शक्तिवर्द्धक, त्वचा को कांती प्रदान करने वाला तथा सुगन्धित होता है। यह जलन, कुष्ठ, रक्तपित्त (नाक-कान खून बहना, विष, बुखार,अल्सर, दर्द, गठिया या जोड़ो में दर्द में फायदेमंद होता है। जटामांसी का  तेल केंद्रीय तंत्र और अवसाद (डिप्रेशन) पर प्रभावकारी होती है।

और पढ़ें: अरबी के फायदे कान के रोग में

अन्य भाषाओं में जटामांसी के नाम (Name of Jatamasi in Different Languages)

जटामांसी का वानस्पतिक नाम Nardostachys jatamansi (D.Don) DC. (नारडोस्टैकिस जटामांसी) Syn- Nardostachys grandiflora DC. और कुल : Valerianaceae (वैलेरिएनेसी) और अंग्रेज़ी नाम : Spikenard (स्पाइक्नार्ड) होता है। जटामांसी को भारत के अन्य प्रांतों में भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। चलिये इसके बारे में जानते हैं। जैसे-

Jatamansi in-

  • Name of Jatamansi in Sanskrit -जटामांसी, भूतजटा, जटिला, तपस्विनी, मांसी, सुलोमशा, नलदा;
  • Name of Jatamansi in Hindi-जटामांसी, बालछड़, बालचीर;
  • Name of Jatamansi in Urdu-बालछड़ (Balachhada);
  • Name of Jatamansi in Kashmir-भूतीजटा (Bhutijatta);
  • Name of Jatamansi in Kannada-जेटामावशा (Jetamavasha), जटामामसी (Jatamamsi);
  • Name of Jatamansi in Bengali-जटामांसी (Jatamansi);
  • Name of Jatamansi in Marathi-जटामांवासी (Jatamanvasi);
  • Name of Jatamansi in Gujrati-जटामांसी (Jatamansi), कालीच्छड़ (Kalichhad);
  • Name of Jatamansi in Telugu-जटामामंशी (Jatamamanshi);
  • Name of Jatamansi in Tamil-जटामाशी (Jatamashi);
  • Name of Jatamansi in Nepali-हस्वा (Haswa), नस्वा (Naswa), जटामांगसी (Jatamangsi);
  • Name of Jatamansi in Punjabi-बिल्लीलोटन (Billilotan);
  • Name of Jatamansi in Malayalam-जेटामांसी (Jetamanshi)।
  • Name of Jatamansi in English– इण्डियन नारा (Indian nara), मस्क रूट (Musk root), इण्डियन वैलेरियन   (Indian valerian);
  • Name of Jatamansi in Arbi-सुनबुल-उल-हिन्दी (Sumbul-ul-hind), सुनबुलुतिब-ए-हिन्दी (Sunbuluttib-e-hindi);
  • Name of Jatamansi in Parsi-सुनबुलुतीब (Sunbuluttib)।

जटामांसी के फायदे (Benefits and Uses of Jatamansi in Hindi)

आयुर्वेद में जटामांसी जड़ी बूटी को औषधि के रुप में बरसों से प्रयोग किया जा रहा है। बाजार में ये तेल, जड़ और पावडर (jatamansi powder patanjali) के रुप में पाया जाता है, लेकिन ये जड़ी-बूटी अभी लुप्त प्राय है। तो चलिये जटामांसी के बारे में विस्तार से जानते हैं कि ये किन-किन बीमारियों के लिए उपचार के रुप में प्रयोग किया जाता है।

गंजेपन और सफेद बालों के लिये फायदेमंद जटामांसी (Benefits of Jatamansi for Baldness in Hindi )

आजकल बालों की ऐसी समस्याएं आम हो गई है। प्रदूषण, असंतुलित आहार-योजना,  तरह-तरह के कॉज़्मेटिक्स के इस्तेमाल का सीधा प्रभाव बालों पर पड़ता है और फिर सफेद बाल या गंजेपन की समस्या से जुझना पड़ जाता है। इसके लिए घरेलू उपाय के तौर पर समान मात्रा में जटामांसी, बला, कमल तथा कूठ को पीसकर सिर पर लेप करने से बालों का गिरना कम हो जाता है और असमय बालों का सफेद होना भी कम होता है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

और पढ़ेगंजेपन में सारिवा के फायदे

सिरदर्द से दिलाये राहत जटामांसी (Benefits of Jatamansi for Headache in Hindi)

अगर आपको काम के तनाव और भागदौड़ भरी जिंदगी के वजह से सिरदर्द की शिकायत रहती है तो बांस काजटामांसी उपाय बहुत लाभकारी सिद्ध होगा। जटामांसी को पीसकर या इसके पाउडर (jatamansi powder patanjali) का मस्तक पर लेप करने से सिर का दर्द कम होता है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

और पढ़ें: सिरदर्द में मुलेठी के फायदे

बालों का झड़ना करे कम जटामांसी (Jatamansi for Hair loss in Hindi)

अगर हद से ज्यादा बाल झड़ने की समस्या हो रही तो जटामांसी का इस्तेमाल ऐसे करने से लाभ मिलता है।

समान मात्रा में जटामांसी, कूठ, काला तिल, सारिवा तथा नीलकमल को दूध से पीसकर मधु मिलाकर सिर पर लेप करने से बाल लंबे होते हैं और चमक आती है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

और पढ़ें : बालों का झड़ना रोकने के घरेलू उपाय

आँख संबंधी समस्याओं से राहत दिलाये जटामांसी (Benefits of Jatamansi for Eye diseases in Hindi)

आँख संबंधी बीमारियों में बहुत कुछ आता है, जैसे- सामान्य आँख में दर्द, रतौंधी, आँख लाल होना आदि। इन सब तरह के समस्याओं में जटामांसी से बना घरेलू नुस्ख़ा बहुत काम आता है।

पद्मकाठ, मुलेठी, जटामांसी तथा कालीयक को ठंडे जल में पीसकर छानकर उससे नेत्रों या आँखों को धोने से पित्त के कारण जो आँख संबंधी रोग होता है उसमें लाभ होता है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

और पढ़े: आँखों के रोग में लोध्रा के फायदे

मुँह की दुर्गंध जैसी समस्याओं से दिलाये राहत जटामांसी (Jatamasi Benefits for Bad Breath in Hindi)

जटामांसी चूर्ण (Jatamansi powder Patanjali) से दाँतों मांजने से मुँह की दुर्गंध दूर होती है। इसके अलावा जटामांसी का काढ़ा बनाकर गरारा करने से भी मुख से बदबू आना कम होता है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

हिचकी के उपचार में जटामांसी के फायदे (Benefits of Jatamansi for Hiccups in Hindi)

बार-बार हिचकी आने से परेशान हैं तो जटामांसी का इस्तेमाल ऐसे करने से राहत मिलती है। हल्दी, तेजपत्र, एरण्ड की जड़, कच्ची लाख, मन शिला, देवदारु, हरताल तथा जटामांसी को पीसकर वर्ति या बत्ती बनाकर घी में भिगो कर उसका धूम्रपान करने से श्वासनली में चिपका हुआ कफ पतला होकर बाहर निकालने में मदद मिलती है और हिक्का आने पर तथा श्वास में लाभ मिलता है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

और पढ़ेंहिचकी में नारियल के फायदे

खाँसी से दिलाये राहत जटामांसी (Jatamansi Benefits to Get Relief from Cough in Hindi)

मौसम बदला कि नहीं बच्चे से लेकर बड़े-बूढ़े सबको खांसी की शिकायत हो जाती है। मन शिला, हरताल, मुलेठी, नागरमोथा, जटामांसी तथा इंगुदी से धूमपान करने के बाद गुड़ युक्त गुनगुने दूध का सेवन करने से खांसी से राहत मिलती है। इसके अलावा जटामांसी का शर्बत बनाकर पिलाने से कफ संबंधी रोगों से राहत मिलती है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

हृदयरोग के खतरे को करे कम जटामांसी (Benefits of Jatamansi for Heart diseases in Hindi)

जटामांसी को पीसकर छाती पर लेप करने से छाती की होने वाली समस्याओं या बीमारियों और हृदय रोगों से राहत मिलती है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

और पढ़े: हृदय रोगों में मेथी के फायदे

उल्टी के उपचार में जटामांसी के फायदे (Jatamansi Plant Benefits for Vomiting in Hindi)

अगर मसालेदार खाना खाने या किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के वजह से उल्टी हो रही है तो जटामांसी का सेवन इस तरह से करने पर फायदा मिलता है। समान भाग में चन्दन, चव्य, जटामांसी, मुनक्का, सुगन्धबाला तथा स्वर्ण गैरिक का पेस्ट  (1-2 ग्राम) बनाकर सेवन करने से उल्टी होना बन्द हो जाती है[Go to: Benefits of Jatamansi]

और पढ़े: उल्टी में अतीस के फायदे

आध्मान (पेट फूलना) से दिलाये राहत जटामांसी (Nardostachys Jatamansi Benefits for Flatulance in Hindi)

अगर समय पर खाना नहीं होता या हमेशा बाहर का खाना खाते हैं तो पेट फूलने की समस्या होती है। 500 मिग्रा जटामांसी चूर्ण (Patanjali Jatamansi powder) को शहद के साथ मिलाकर चाटने से पेट फूलने की समस्या से राहत मिलती है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

जलोधर  के उपचार में जटामांसी के फायदे (Jatamasi Benefits for Ascitis in Hindi)

जलोधर रोग में पेट फूल जाता है और वह बड़ा दिखने लगता है, साथ ही वजन भी बढ़ जाता है।  जटामांसी तथा नमक को सिरके के साथ पीसकर उदर या पेट पर लगाने से जलोदर में लाभ होता है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

और पढ़े: जलोदर में केवांच के फायदे

वीर्यविकार या स्पर्म काउन्ट बढ़ाने में जटामांसी के फायदे (Nardostachys Jatamansi Benefits to Increase Sperm Count in Hindi)

आजकल की जीवनशैली और आहार का बुरा असर सेक्स लाइफ पर पड़ रहा है जिसके कारण सेक्स संबंधी समस्याएं होने लगी हैं। जटामांसी 10 भाग, दालचीनी तथा इलायची 8-8 भाग, कूठ, पोखरमूल, लौंग, कुंजन, सफेद मिर्च, नागरमोथा, सोंठ 6-6 भाग, बलसां 5 भाग केशर 4 भाग और चिरायता 10 भाग इन सबको मिलाकर अष्टमांश काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से वीर्य या स्पर्म संबंधी समस्या से राहत मिलती है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

और पढ़ेंटाइफाइड में लौंग फायदेमंद

गठिया के दर्द से दिलाये आराम जटामांसी (Jatamansi Powder Beneficial in Gout in Hindi)

यदि वातरक्त (गठिया) प्रभावित स्थान में लालिमा, पीड़ा तथा जलन हो तो पहले दूषित रक्त को बाहर निकालकर, समान भाग में मुलेठी, पीपल छाल, जटामांसी, क्षीरकाकोली, गूलर छाल तथा हरी दूब का लेप बनाकर लगाने से दर्द और जलन से राहत मिलती है। इसके अलावा जटामांसी, राल, लोध्र, मुलेठी, निर्गुण्डी के बीज, मूर्वा, नीलकमल, पद्माख और शिरीष पुष्प इन 9 द्रव्यों का चूर्ण बनाकर उसमें शतधौत घी मिलाकर लेप करने से वातरक्त (गठिया) में लाभ होता है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

कुष्ठ रोग में फायदेमंद जटामांसी (Jatamansi  to Treat Leprosy in Hindi)

जटामांसी, काली मिर्च, सेंधानमक, हल्दी, तगर, सेंहुड़ की छाल, गृहधूम, गोमूत्र, गोरोचन तथा पलाश क्षार को मिलाकर पीसकर लेप करने से कुष्ठ में लाभ होता है। इसके अलावा समान भाग में पूतिकरंज की गुद्दी, देवदारु, जटामांसी, शहद, मुद्गपर्णी तथा काकनासा को पीसकर लेप लगाने से मण्डलकुष्ठ में लाभ होता है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

त्वचा रोगों में फायदेमंद जटामांसी (Jatamansi Herbs Benefits for Skin Diseases in Hindi)

त्वचा संबंधी बीमारियों में जटामांसी को पीसकर त्वचा पर लगाने से विसर्प या हर्पिज़, कुष्ठ, अल्सर आदि रोगों में अत्यन्त लाभकारी होता है। जटामांसी, लाल चंदन, अमलतास, करंज छाल, नीम छाल, सरसों, मुलैठी, कुटज छाल तथा दारुहल्दी को समान मात्रा में लेकर अष्टमांश काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से चर्मरोगों में लाभ होता है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

और पढ़ें: त्वचा रोगों में अमलतास के फायदे

दाग धब्बे, झांइया और चेहरे की रौनक लौटाने में जटामांसी के फायदे (Jatamasi Beneficial in Pigmentation or Blemishes in Hindi)

अगर चेहरे के दाग-धब्बों, झाइंयों से परेशान हैं तो जटामांसी का प्रयोग लाभप्रद सिद्ध हो सकता है। जटामांसी में हल्दी मिलाकर उबटन की तरह चेहरे पर लगाने से व्यंग तथा झांई मिटती है और  त्वचा की कांति बढ़ती है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

और पढ़ें: मसूर की दाल से चेहरे को गोरा कैसे करे

मिरगी के इलाज में जटामांसी के फायदे (Jatamansi Benefits for Epilepsy in Hindi)

जटामांसी आदि द्रव्यों से बने 5-10 ग्राम महापैशाचिक घी का सेवन करने से उन्माद (पागलपन), अपस्मार (मिर्गी), बुखार में अत्यन्त लाभ होता है ।यह बुद्धि एवं यादाश्त बढ़ाने में तथा बच्चों के शारीरिक विकास में सहायक होता है। इसके अलावा जटामांसी के प्रंद का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से मिरगी में लाभ हाता है। और 500 मिग्रा जटामांसी को 5 मिली ब्राह्मीस्वरस, 500 मिग्रा वच तथा शहद के साथ मिलाकर देने से मस्तिष्क संबंधी रोगों में अत्यन्त लाभ होता है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

आक्षेपक या ऐंठन दूर करने में जटामांसी के फायदे (Jatamasni Benefits for Convulsion in Hindi)

जटामांसी 4 भाग, दालचीनी, कबाबचीनी, सौंफ तथा सोंठ 1-1 भाग व शक्कर या मिश्री 2 भाग मिलाकर सबका चूर्ण बनाकर 2-4 ग्राम मात्रा में सेवन करने से पेट दर्द, मोटापा से होने वाली बीमारी तथा आक्षेपक या शरीर के किसी अंग में ऐंठन आने पर उससे जल्दी राहत मिलती है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

योषापस्मार या हिस्टीरिया को दूर करने में मददगार जटामांसी (Jatamansi Herbs Benefits for Hysteria in Hindi)

अगर हिस्टीरिया के कष्ट से परेशान हैं तो जटामांसी का औषधीय गुण फायदेमंद साबित हो सकता है।

जटामांसी 8 तोला, अश्वगंधा 2 तोला तथा अजवायन 1 तोला को मिलाकर काढ़ा बनायें। काढ़े का 10-20 मिली मात्रा में पीने से योषापस्मार या हिस्टीरिया में लाभ होता है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

खून साफ करने में जटामांसी के फायदे ( Jatamansi Benefits to Purify Blood in Hindi)

जटामांसी औषधीय गुण खून को साफ करके त्वचा संबंधी बीमारियों से राहत दिलाने में मदद करती है। जटामांसी के 10-15 मिली शीत कषाय में शहद मिलाकर पिलाने से खून साफ होता है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

अतिस्वेद (अधिक पसीना या हाइपरहाइड्रोसिस) रोकने में जटामांसी के फायदे (Jatamasi Benefits for Hyperhidrosis in Hindi)

जटामांसी को पीसकर (Patanjali Jatamansi powder)  सम्पूर्ण शरीर पर लगाने से अत्यधिक पसीने का आना बन्द होता है तथा पसीने की वजह से होने वाली दुर्गंध कम होती है। [Go to: Benefits of Jatamansi]

विष के प्रभाव को कम करें जटामांसी (Jatamansi Benefits to Reduce the Effect of Posion in Hindi)

जटामांसी, केसर, तेजपत्ता, दालचीनी, हल्दी, तगर, चन्दन आदि को पानी से पीसकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से तथा 1-2 बूंद नाक में डालने तथा अञ्जन व लेप के रुप में प्रयोग करने से सूजन तथा स्थावर या जङ्गम-विष के कारण उत्पन्न विषाक्त प्रभाव कम होते हैं। [Go to: Benefits of Jatamansi]

Summary of Jatamansi Benefits by Acharya Balkrishna Ji (Patanjali):

जटामांसी का उपयोगी भाग (Useful Parts of Jatamansi)

आयुर्वेद में जटामांसी के प्रंद का प्रयोग औषधि के रुप में सबसे ज्यादा किया जाता है।

जटामांसी का सेवन कैसे करना चाहिए ?(How to Use Jatamansi in Hindi?)

बीमारी के लिए जटामांसी के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए जटामांसी का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें। चिकित्सक के परामर्शानुसार –

-2-4 ग्राम चूर्ण और

-50-100 मिली काढ़े का सेवन कर सकते हैं।

जटामांसी का सेवन ज्यादा करने के साइड इफेक्ट (Side Effects of Jatamasi in Hindi)

जटामांसी का अधिक मात्रा में  प्रयोग और सेवन घातक होता है। इसकी जड़ नर्व को कमजोर करती है और उससे संबंधित बीमारियों को आमंत्रित करती है।

जटामांसी कहां पाया और उगाया जाता है? (Where is Jatamansi Herb Found or Grown in Hindi?)

जटामांसी 3000-5000 मी की ऊँचाई पर हिमालय के जंगलों में, उत्तराखण्ड से सिक्किम तक तथा नेपाल एवं भूटान में भी पाया जाता है।

और पढ़ें:

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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आचार्य श्री बालकृष्ण

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