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सारिवा एक प्रकार की लता (sariva plant) है। यह पेड़ों के ऊपर फैलती है। यह वर्षा ऋतु में हरी-भरी होती है। वर्षा की पहली बौछार से ही इसकी जड़ से नए अंकुरण होने लगते हैं। सारिवा का इस्तेमाल त्वचा और खून आदि के विकारों को दूर करने में काफी फायदेमंद होता है। इसके अलावा कई तरह के रोगों के इलाज के लिए सारिवा का प्रयोग (sariva herb) किया जाता है।
सारिवा (sariva herb) दमा, खांसी, बुखार आदि रोगों में काम आती है। इसकी जड़ बल बढाने वाली तथा कामोत्तेजक भी होती है। इसकी जड़ का उपयोग कमजोर पाचन, भूख न लगना, त्रिदोष (वात-पित्त-कफ), ल्यूकोरिया तथा दस्त आदि के उपचार के लिए भी किया जाता है। कई स्थानों पर सारिवा (Hemidesmus indicus) के स्थान पर Lonicara japonica का प्रयोग भी किया जाता है।
सारिवा चार प्रकार की होती हैं।
इसकी लताएं लम्बी और पतली होती हैं तथा ज्यादातर जमीन पर फैलती हैं। ये नीचे से ऊपर की ओर जाती हैं। ये लताएं रसीली और चिकनी होती हैं। इसकी शाखाएँ लम्बी, चिकनी तथा पतली होती हैं। शाखाओं की संख्या अधिक होती है। लताओं का रंग हरी छाया लिए हुए भूरे रंग का होता है। कभी इन लताओं पर स्पष्ट रोएँ होते हैं तो कभी नहीं भी होते हैं। इसकी जड़ 30 सेमी लम्बी और 3-6 मिमी मोटी होती हैं। जड गोलाकार, कठोर एवं चारों ओर सफ़ेद रंग की होती हैं। जड़ की त्वचा भूरे रंग की होती है जिसकी चौड़ाई में दरार देखने को मिलती है। जड़ की लम्बाई में धारियाँ बनी होती है।
कृष्ण सारिवा को जड़ रूप से कुटज कुल की वनस्पति माना जाता है। इसकी पत्तियां छोटी और अंडाकार तथा लम्बाई में गोल होती हैं। इसकी जड़ (indian sarsaparilla root) में सुंध नही होती।
यह अर्क कुल की वनस्पति है। इसकी पत्तियां जामुन की पत्तियों जैसी, चमकीले हरे रंग की होती हैं और तोड़ने पर दूधिया द्रव निकलता है।
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शैलपुत्री सारिवा की लताएं लम्बी, चिकनी और झाड़ीदार होती हैं। यह नीचे से ऊपर चढ़ती हैं। इसकी शाखाएं बहुत फैली हुई, पतली तथा कठोर होती है। इसके पत्ते अण्डाकार, चिकने, चमकीले तथा मोटी छाल वाले होते है। इसके फूल सफेद रंग के होते है। इसके फल भाला के आकार के, लम्बे, तथा पतले होते हैं. ये पत्ते आगे की और से नुकीले तथा आधार पर मोटे होते हैं।
सभी प्रकार की सारिवा का प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है। शैलपुत्री सारिवा का प्रयोग दक्षिण भारत में अधिक देखने को मिलता है। बाकि तीनों ही प्रजातियों का प्रयोग भारत में हर जगह किया जाता है.
सारिवा (sariva herb) एसक्लीपिएडेसी (Asclepiadaceae) कुल का पौधा (sariva plant) है। इसका वानस्पतिक (वैज्ञानिक) नाम हेमीडेस्मस इण्डिकस (Hemidesmus indicus (Linn.) R. Br. ex Schult) है। सारिवा को अंग्रेजी में Indian sarsaparilla (इण्डियन सार्सपरिला) कहते हैं। इसे फॉल्स सार्सपरिला (False sarsaparilla) व ईस्ट इंडियन सार्सपरिला (East Indian sarsaparilla) जैसे नामों से भी जाना जाता है। आइये, जानते हैं कि हिंदी समेत अन्य भाषाओं में सारिवा के नाम क्या क्या हैं: –
Sariva in –
सारिवा मीठी और चिकनी होती है। इसकी जड़ खून का थक्का जमाने वाली, खून को साफ़ करने वाली, सुगन्ध से युक्त होती है। सरिवा का प्रयोग सूजन को ठीक करने, भूख बढाने और कफ निकालने के लिए किया जाता है। आइए जानते हैं कि सारिवा का इस्तेमाल और किन-किन रोगों में किया जा सकता हैः-
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सिर के बाल खो चुके लोगों के लिए सारिवा वरदान है। इसकी जड़ के 2 ग्राम चूर्ण को दिन में तीन बार लेने से गंजेपन में लाभ (hemidesmus indicus medicinal uses) होता है। इस चूर्ण को जल के साथ लिया जाना चाहिए।
डैंडरफ से परेशान लोग मण्डूर, कमल, सारिवा, भृंगराज तथा त्रिफला को तेल में पका लें। इस तैल पाक से सर की मालिश करें। ऐसा करने से डैंडरफ दूर होता है।
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यदि मासिक धर्म चक्र में अनियमितता हो या ऐसी कोई अन्य समस्या हो तो सारिवा के काढ़ा में मधु मिला लें। इसे 15-30 मिली की मात्रा में पीने से इन समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
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दांतों में दर्द हो या दांतों में कीड़े लगते हों तो सारिवा के पत्तों को पीसकर दांतों के नीचे दबा लें। ऐसा करने से दांतों की परेशानियां खत्म होती हैं।
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दमा और वात के कारण हुई अन्य बीमारियों के उपचार के लिए सारिवा एक उत्तम औषधि है। दमा के इलाज के लिए सारिवा की जड़ और अडूसा के पत्ते के 4-4 ग्राम चूर्ण को मिला लें। इस मिश्रण में 2-4 ग्राम मात्रा में दूध मिलाएं। इस तरह तैयार मिश्रण का सुबह और शाम प्रयोग करने से लाभ (sogade beru) होता है।
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पेट दर्द की हालत में सारिवा की 2-3 ग्राम जड़ को पानी में घोल लें। इस घोल को पीने से पीने से पेट का दर्द शांत (hemidesmus indicus medicinal uses) हो जाता है। पाचन की गति धीमी (मन्दाग्नि) हो तो सारिवा की जड़ के 3 ग्राम चूर्ण को सुबह और शाम दूध के साथ सेवन करें। ऐसा करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है और पाचन-क्रिया तेज होती है।
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सारिवा की जड़ की छाल के 2 ग्राम चूर्ण और 11 नग काली मिर्च को 25 मिली जल के साथ पीस लें। इस मिश्रण को सात दिन तक लगातार पिलाने से आँखों एवं शरीर का पीलापन दूर (sogade beru) हो जाता है। इससे पीलिया के कारण भूख न लगने और बुखार आने की समस्या भी दूर हो जाती है।
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सारिवा की जड़ का 1-3 ग्राम चूर्ण सुबह और शाम सेवन करने से स्तन शुद्ध होते हैं। इसके सेवन से स्तन में दूध की मात्रा बढ़ती (sogade beru) है। जिन महिलाओं के छोटे बच्चे बीमार और कमजोर हों, उन्हें सारिवा की जड़ का सेवन करना चाहिए।
गर्भवती स्त्री को यदि गर्भपात का भय हो तो सारिवा की जड़ का सेवन फायदेमंद होता है। इसके लिए सारिवा की जड़ के 15-30 मिली फाण्ट (sogade beru juice) में दूध और मिश्री मिलाकर मिश्रण बना लें। इस मिश्रण के सेवन से गर्भपात की आशंका दूर हो जाती है। गर्भधारण से पहले ही इसका यह फाण्ट पिलाना शुरू कर देना चाहिए। गर्भधारण हो जाने के बाद से प्रसव के समय तक यह पिलाने से बच्चा निरोग और गौरवर्ण का उत्पन्न होता है।
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सारिवा की जड़ को केले के पत्ते में लपेटकर भूभल (गरम राख या रेत आदि) में रख दें। जब पत्ता जल जाय तो जड़ (indian sarsaparilla root) को निकाल कर भुने हुए जीरे और शक्कर के साथ पीस लें। इस मिश्रण में गाय का घी मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से मूत्र और वीर्य संबंधी विकार दूर हो जाते हैं।
लिंग में जलन होने की हालत में लिंग पर सारिवा की जड़ का लेप करने से जलन खत्म हो जाती है।
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सारिवा की जड़ के 5 ग्राम चूर्ण लें। इसे गाय के दूध के साथ दिन में दो बार सेवन करने से गुर्दे की पथरी ख़त्म होने लगती है।पेशाब में जलन होने की हालत में भी इसके सेवन से बहुत लाभ होता है।
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सारिवा की जड़ का 1-2 ग्राम चूर्ण लेकर इसे काढ़ा के रूप में 15-30 मिली तक सेवन करने से श्वेतप्रदर या ल्यूकोरिया में लाभ होता है।
सन्धिवात या गठिया (Arthritis) होने से हड्डियों के बीच जोड़ों में प्रायः दर्द रहता है। सारिवा की जड़ के 3 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करें। इससे गठिया में लाभ होता है।
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नवजात बच्चे कई बार कुछ समस्याओं के कारण जीवन से जूझने लगते हैं। ऎसी स्थिति में सारिवा की 1 ग्राम जड़ का चूर्ण तथा एक ग्राम वायविडंग चूर्ण मिलाकर पीस लें। यह मिश्रण खिलाने से मरणासन्न बच्चे भी नवजीवन पा जाते हैं।
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सारिवा की जड़ के 125 से 500 मिग्रा चूर्ण को घी में भून लें। इसे 5 ग्राम शक्कर के साथ मिलाकर कुछ दिन तक सेवन करने से शरीर की जलन ख़त्म (indian sarsaparilla) हो जाती है।
रक्तपित्त (नाक-कान से खून बहना) से पीड़ित व्यक्ति सारिवा, लालकमल तथा नीलकमल को अलग-अलग दूध के साथ पीस लें। इन तीनों को एक साथ मिला कर नाक में बूँद-बूँद कर देने से रक्त-पित्त (नाक-कान से खून बहना) जल्द ही शांत होता है।
सारिवा के निम्नलिखित अंगों का प्रयोग औषधि के लिए किया जाता है:-
सारिवा (indian sarsaparilla) के उपयोग से सामान्य तौर पर नुकसान की जानकारी नहीं है, फिर भी, इसका प्रयोग चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही किया जाना चाहिए।
सारिवा के पौधे (sariva plant) उत्तरी भारत, ख़ासकर पंजाब के जंगली क्षेत्रों में पाई जाती है। यह लाल मिट्टी वाली पहाड़ी भूमि में जहाँ कीचड़ हो, वहां अधिक मात्रा में पाई जाती है।
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