Contents
आप कुटकी (kutki benefits) के बारे में शायद बहुत अधिक नहीं जानते होंगे। यह एक जड़ी-बूटी है। आयुर्वेद में कुटकी के बारे में विस्तार से अनेक अच्छी और महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। कुटकी का इस्तेमाल रोगों के इलाज के लिए किया जाता है। बरसों से आयुर्वेदाचार्य मरीज को स्वस्थ करने के लिए कुटकी का उपयोग करते आ रहे हैं।
पतंजलि के अनुसार, कुटकी (picrorhiza kurroa) पचने में हल्की, पित्त और कफ की परेशानी को ठीक करने वाली, भूख बढ़ाने वाली जड़ी-बूटी है। यह बुखार, टॉयफॉयड, टीबी, बवासीर, दर्द, डायबिटीज आदि में भी लाभ पहुंचाती है। इसके साथ ही कुटकी सांसों की बीमारी (सांसों का उखड़ना या फूलना), सूखी खाँसी, खून की अशुद्धता, शरीर की जलन, पेट के कीड़े, मोटापा, जुकाम आदि रोगों में भी मदद करती है।
और पढ़ें – सांसों की बीमारी में मंडुआ के फायदे
कुटकी का स्वाद कड़वा और तीखा होता है। इसलिए इसे कटुम्भरा भी कहा जाता है। प्राचीन काल से ही कुटकी का इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जा रहा है।
कुटकी (picrorhiza kurroa) का लैटिन नाम पिक्रोराइजा कुर्रोआ (Picrorhiza kurroa Royle ex Benth., Syn-Picrorhiza lindleyana Steud.) है और यह क्रोफूलेरिएसी (Scrophulariaceae ) कुल का है। देश-विदेश में कुटकी को अन्य अनेक नामों से भी जाना जाता है, जो ये हैंः-
Kutki in –
कुटकी (picrorhiza kurroa) का औषधीय प्रयोग, प्रयोग की मात्रा और विधियां ये हैंः-
कुटकी चूर्ण का काढ़ा बना लें। 10-15 मि.ली. काढ़े में गोमूत्र अर्क मिलाकर पीने से गले के रोगों में लाभ होता है।
और पढ़े: गले के रोग में वच के फायदे
कुटकी (katuka) के काढ़े से गरारा करने से मुंह का स्वाद ठीक होता है और मुँह के छाले ठीक होते हैं। देर रात तक जागने से होने विकार आदि (Exertion etc.) की स्थिति में कुटकी बहुत फायदा (kutki benefits) पहुंचाता है। कुटकी आदि औषधियों से बने काढ़े का 10-15 मि.ली. मात्रा में सेवन करें। इससे प्यास लगने, मुंह सूखने, शरीर की जलन और खाँसी आदि की परेशानी ठीक होती है।
1-2 ग्राम स्वर्ण गैरिक तथा कुटकी के बराबर मात्रा चूर्ण (kutki powder) में मधु मिला लें। इसका सेवन करने से हिचकी में लाभ होता है।
और पढ़े: हिचकी में चना के फायदे
दुरालभा, पिप्पली, कुटकी और हरीतकी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण (kutki powder) बना लें। इस 1-2 ग्राम चूर्ण में मधु एवं घी मिलाकर सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।
और पढ़ें – सूखी खांसी में बांस के फायदे
मुलेठी और कुटकी (katuka) से बने 2 ग्राम पेस्ट को मिश्री युक्त जल में घोल लें। इसे पीने से पित्तज विकार के कारण होने वाले हृदय रोग में लाभ होता है।
और पढ़ें: हार्ट ब्लॉकेज खोलने के उपाय
और पढ़े: पेट के रोगों में मेथी के फायदे
कुटकी (kitki) की जड़ के 3-5 ग्राम चूर्ण को बराबर मात्रा में मधु के साथ सेवन करें। इसे रोज दिन में तीन बार सेवन करने से किडनी (Kidney) विकारों में लाभ होता है।
यदि कब्ज भी हो तो दोगुनी मात्रा में गर्म जल के साथ दिन में 3-4 बार सेवन करना चाहिए।
दुरालभा, पिप्पली, कुटकी और हरीतकी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस 1-2 ग्राम चूर्ण में मधु एवं घी मिलाकर सेवन करने से सांसों के रोग जैसे दमा में लाभ होता है।
और पढ़ें – सांसों के रोग में शिरीष के फायदे
बराबर मात्रा में प्रियंगु, निर्गुण्डी बीज, कुटज बीज, अतिविषा, खस, लाल चंदन तथा कुटकी को पीस लें। इसके लेप को घाव पर लगाएं। इससे पित्तज विकार के कारण होने वाले कुष्ठ रोग के घाव ठीक होते हैं।
कुटकी(kitki) में पकाए गए तेल को साइनस के घाव पर लगाने से लाभ (kutki benefits) होता है। कुटकी की जड़ के पेस्ट का लेप हर प्रकार के घाव में लाभकारी होता है। कुटकी के आयुर्वेदिक गुण साइनस में सिरदर्द से राहत दिलाने में मदद करते हैं।
और पढ़े: सिरदर्द में बेर के फायदे
कुटकी(kitki) में पकाए गए तेल को साइनस के घाव पर लगाने से लाभ (kutki benefits) होता है। कुटकी की जड़ के पेस्ट का लेप हर प्रकार के घाव में लाभकारी होता है।
मिट्टी के नए बर्तन में कुटकी का काढ़ा बनाकर छानकर रख लें। 20 मिली काढ़ा में 10-12 ग्राम घी मिलाकर पीने से बुखार तथा शरीर की जलन की परेशानी ठीक होती है।
इंद्रयव, नागरमोथा तथा कुटकी का काढ़ा बनाकर ठंडा कर लें। इसमें मधु मिलाकर पीने से पित्तज विकार के कारण होने वाली बुखार में लाभ होता है।
कुटकी के 2 ग्राम चूर्ण में 1 ग्राम पिप्पली का चूर्ण मिला लें। इसे पीने से एक दिन रहने वाला बुखार, दमा तथा खांसी ठीक होती है।
और पढ़ें: वायरल बुखार के घरेलू इलाज
और पढ़ें – बुखार में कॉफ़ी के फायदे
हरीतकी, आंवला, बहेड़ा, अतिविषा, कूठ, निर्गुण्डी बीज, तगर और कुटकी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसे 1-2 ग्राम चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करें। इससे सांप के काटने से होने वाले नुकसान में कमी आती है।
कुटकी (katuki) के इस्तेमाल से ये नुकसान भी हो सकते हैंः-
कुटकी के प्रयोग से त्वचा में जलन उत्पन्न हो सकती है।
इसमें उपस्थित कुकुरबिटेसिन (Cucurbitacin) के कारण पेचिश की समस्या, पेट की गैस के परेशानी हो सकती है।
इसके साथ-साथ ठंड लगकर बुखार भी आ सकता है।
और पढ़ें – त्वचा विकार में चौलाई के फायदे
कुटकी का चूर्ण – 0.5-1 ग्राम (साधारण मात्रा)
पेट को साफ करने के लिए – 3-6 ग्राम (विरेचनार्थ)
औषधि के रूप में कुटकी का भरपूर लाभ लेने के लिए चिकित्सकीय परामर्श जरूर लें।
कुटकी (katuki) के पौधे (Kutki Plant) हिमालय में जम्मू-कश्मीर से सिक्किम तक 2700-4500 मीटर की ऊँचाई पर प्राप्त होते हैं।
पतंजलि दिव्य कुटकी चूर्ण खरीदने के लिए यहां क्लिक करें।
और पढ़ें – मासिक धर्म विकार में राई के फायदे
आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार, त्रिफला चूर्ण पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए बेहद फायदेमंद है.…
डायबिटीज की बात की जाए तो भारत में इस बीमारी के मरीजों की संख्या साल…
मौसम बदलने पर या मानसून सीजन में त्वचा से संबंधित बीमारियाँ काफी बढ़ जाती हैं.…
यौन संबंधी समस्याओं के मामले में अक्सर लोग डॉक्टर के पास जाने में हिचकिचाते हैं…
पिछले कुछ सालों से मोटापे की समस्या से परेशान लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती…
अधिकांश लोगों का मानना है कि गौमूत्र के नियमित सेवन से शरीर निरोग रहता है.…