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आपने कई बार अश्वगंधा का नाम सुना होगा। अखबारों या टीवी में अश्वगंधा के विज्ञापन आदि भी देखे होंगे। आप सोचते होंगे कि अश्वगंधा क्या है या अश्वगंधा के गुण क्या है? दरअसल अश्वगंधा एक जड़ी-बूटी है। अश्वगंधा का प्रयोग कई रोगों में किया जाता है। क्या आप जानते हैं कि मोटापा घटाने, बल और वीर्य विकार को ठीक करने के लिए अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा अश्वगंधा के फायदे और भी हैं।
अश्वगंधा के कुछ खास औषधीय गुणों के कारण यह बहुत तेजी से प्रचलित हुआ है। आइए आपको बताते हैं आप अश्वगंधा का प्रयोग किन-किन बीमारियों में और कैसे कर सकते हैंः-
अलग-अलग देशों में अश्वगंधा कई प्रकार की होती है, लेकिन असली असगंधा की पहचान करने के लिए इसके पौधों को मसलने पर घोड़े के पेशाब जैसी गंध आती है। असगंधा की ताजी जड़ में यह गंध अधिक तेज होती है। वन में पाए जाने वाले पौधों की तुलना में खेती के माध्यम से उगाए जाने वाले अश्वगंधा की गुणवत्ता अच्छी होती है। तेल निकालने के लिए वनों में पाया जाने वाला अश्वगंधा का पौधा ही अच्छा माना जाता है। इसके दो प्रकार हैं-
इसकी झाड़ी छोटी होने से यह छोटी असगंध कहलाती है, लेकिन इसकी जड़ बड़ी होती है। राजस्थान के नागौर यह बहुत अधिक पाई जाती है और वहां के जलवायु के प्रभाव से यह विशेष प्रभावशाली होती है। इसीलिए इसको नागौरी असगंध भी कहते हैं।
इसकी झाड़ी बड़ी होती है, लेकिन जड़ें छोटी और पतली होती हैं। यह बाग-बगीचों, खेतों और पहाड़ी स्थानों में सामान्य रूप में पाई जाती है। असगंध में कब्ज गुणों की प्रधानता होने से और उसकी गंध कुछ घोड़े के पेशाब जैसी होने से संस्कृत में इसकी बाजी या घोड़े से संबंधित नाम रखे गए हैं।
बाहरी आकृति
बाजार में अश्वगंधा की दो प्रजातियां मिलती हैंः-
पहली मूल अश्वगंधा Withania somnifera (Linn.) Dunal, जो 0.3-2 मीटर ऊंचा, सीधा, धूसर रंग का घनरोमश तना वाला होता है।
दूसरी काकनज Withania coagulans (Stocks) Duanl, जो लगभग 1.2 मीटर तक ऊंचा, झाड़ीदार तना वाला होता है।
अश्वगंधा को लोग आम बोलचाल में असगंध के तौर पर जानते हैं, लेकिन देश-विदेश में इसको कई नाम से जाना जाता है। अश्वगंधा का का वानस्पतिक नाम (Botanical name) Withania somnifera (L.) Dunal (विथेनिआ सॉम्नीफेरा) Syn-Physalis somnifera Linn. है और इसके अन्य नाम ये हैंः-
Ashwagandha in:-
अश्वगंधा का इस्तेमाल पत्ते, इसके चूर्ण (Ashwagandha Powder) के लिए किया जाता है। कई रोगों में आश्चर्यजनक रूप से लाभकारी अश्वगंधा का औषधीय इस्तेमाल इस तरह से किया जाना चाहिएः-
2-4 ग्राम अश्वगंधादि चूर्ण (Ashgandha Churn benefits) का सेवन करें। इससे समय से पहले बालों के सफेदद होने की समस्या ठीक होती है।
2 ग्राम अश्वगंधा, 2 ग्राम आंवला (धात्री फल) और 1 ग्राम मुलेठी को आपस में मिलाकर, पीसकर चूर्ण कर लें। एक चम्मच चूर्ण को सबह और शाम पानी के साथ सेवन करने से आंखों की रौशनी बढ़ती है।
अश्वगंधा के पत्ते का चूर्ण (ashwagandha powder benefits) तथा पुराने गुड़ को बराबार मात्रा में मिलाकर 1/2-1 ग्राम की वटी बना लें। इसे सुबह-सुबह बासी जल के साथ सेवन करें। अश्वगंधा के पत्ते का पेस्ट तैयार करें। इसका गण्डमाला पर लेप करें। इससे गलगंड में लाभ होता है।
अश्वगंधा चूर्ण की 2 ग्राम मात्रा को असगंधा के ही 20 मिलीग्राम काढ़े के साथ सेवन करें। इससे टीबी में लाभ होता है।
अश्वगंधा की जड़ से चूर्ण बना लें। इस चूर्ण की 2 ग्राम लें और इसमें 1 ग्राम बड़ी पीपल का चूर्ण, 5 ग्राम घी और 5 ग्राम शहद मिला लें। इसका सेवन करने से टीबी (क्षय रोग) में लाभ होता है।
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असगंधा की 10 ग्राम जड़ों को कूट लें। इसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर 400 मिलीग्राम पानी में पकाएं। जब इसका आठवां हिस्सा रह जाए तो आंच बंद कर दें। इसे थोड़ा-थोड़ा पिलाने से कुकुर खांसी या वात से होने वाले कफ की समस्या में विशेष लाभ होता है।
असगंधा के पत्तों से तैयार 40 मिलीग्राम गाढ़ा काढ़ा लें। इसमें 20 ग्राम बहेड़े का चूर्ण, 10 ग्राम कत्था चूर्ण, 5 ग्राम काली मिर्च तथा ढाई ग्राम सैंधा नमक मिला लें। इसकी 500 मिलीग्राम की गोलियां बना लें। इन गोलियों को चूसने से सब प्रकार की खांसी दूर होती है।
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टीबी के कारण से होने वाली खांसी में भी यह विशेष लाभदायक है।
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अश्वगंधा की जड़ का चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा का जल के साथ सेवन करें। इससे सीने के दर्द में लाभ (ashwagandha powder benefits) होता है।
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अश्वगंधा चूर्ण के फायदे आप पेट के रोग में भी ले सकते हैं। पेट की बीमारी में आप अश्वगंधा चूर्ण का प्रयोग कर सकते हैं। अश्वगंधा चूर्ण में बराबर मात्रा में बहेड़ा चूर्ण मिला लें। इसे 2-4 ग्राम की मात्रा में गुड़ के साथ सेवन करने से पेट के कीड़े खत्म (ashwagandha ke fayde) होते हैं।
अश्वगंधा चूर्ण में बराबर भाग में गिलोय का चूर्ण मिला लें। इसे 5-10 ग्राम शहद के साथ नियमित सेवन करें। इससे पेट के कीड़ों का उपचार होता है।
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असगंधा चूर्ण की 2 ग्राम मात्रा को गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से कब्ज की परेशानी से छुटकारा मिलता है।
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2-4 ग्राम असगंधा की जड़ के चूर्ण (ashwagandha powder benefits) में मिश्री मिला लें। इसे गाय के दूध के साथ सुबह और शाम सेवन करने से ल्यूकोरिया में लाभ होता है।
अश्वगंधा, तिल, उड़द, गुड़ तथा घी को समान मात्रा में लें। इसे लड्डू बनाकर खिलाने से भी ल्यूकोरिया में फायदा होता है।
असगंधा के चूर्ण को कपड़े से छान कर (कपड़छन चूर्ण) उसमें उतनी ही मात्रा में खांड मिलाकर रख लें। एक चम्मच की मात्रा में लेकर गाय के ताजे दूध के साथ सुबह में भोजन से तीन घंटे पहले सेवन करें।
रात के समय अश्वगंधा की जड़े के बारीक चूर्ण को चमेली के तेल में अच्छी तरह से घोंटकर लिंग में लगाने से लिंग की कमजोरी या शिथिलता (ashwagandha ke fayde) दूर होती है।
असगंधा, दालचीनी और कूठ को बराबर मात्रा में मिलाकर कूटकर छान लें। इसे गाय के मक्खन में मिलाकर सुबह और शाम शिश्न (लिंग) के आगे का भाग छोड़कर शेष लिंग पर लगाएं। थोड़ी देर बाद लिंग को गुनगुने पानी से धो लें। इससे लिंग की कमजोरी या शिथिलता दूर होती है।
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अश्वगंधा के चूर्ण में गुड़ या घी मिला लें। इसे दूध के साथ सेवन करने से शस्त्र के चोट से होने वाले दर्द में आराम मिलता है।
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अश्वगंधा के पत्तों का पेस्ट तैयार लें। इसका लेप या पत्तों के काढ़े से धोने से त्वचा में लगने वाले कीड़े ठीक होते है। इससे मधुमेह से होने वाले घाव तथा अन्य प्रकार के घावों का इलाज होता है। यह सूजन को दूर करने में लाभप्रद होता है।
अश्वगंधा की जड़ को पीसकर, गुनगुना करके लेप करने से विसर्प रोग की समस्या में लाभ (ashwagandha ke fayde) होता है।
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अश्वगंधा चूर्ण में बराबर मात्रा में चोपचीनी चूर्ण या चिरायता का चूर्ण मिला लें। इसे 3-5 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम सेवन करने से खून में होने वाली समस्याएं ठीक होती हैं।
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2 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण तथा 1 ग्राम गिलोय सत् (जूस) को मिला लें। इसे हर दिन शाम को गुनगुने पानी या शहद के साथ खाने से पुराना बुखार ठीक होता है।
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अश्वगंधा से जुड़ी विशेष जानकारी – बाजारों में जो असगंधा बिकती है उसमें काकनज की जड़े मिली हुई होती हैं। कुछ लोग इसे देशी असगंध भी कहते हैं। काकनज की जड़ें असगंधा से कम गुण वाली होती हैं। जंगली अश्वगंधा का बाहरी प्रयोग ज्यादा होता है।
जड़ का चूर्ण – 2-4 ग्राम
काढ़ा – 10-30 मिलीग्राम
अधिक लाभ के लिए चिकित्सक के परामर्श के अनुसार सेवन करें।
गर्म प्रकृति वाले व्यक्ति के लिए अश्वगंधा का प्रयोग नुकसानदेह होता है।
अश्वगंधा के नुकसानदेह प्रभाव को गोंद, कतीरा एवं घी के सेवन से ठीक किया जाता है।
पूरे भारत में और खासकर सूखे प्रदेशों में अश्वगंधा का पौधा पाए जाते हैं। ये अपने आप उगते हैं। इसकी खेती भी की जाती है। ये वनों में मिल जाते हैं। अश्वगंघा के पौधे 2000-2500 मीटर की ऊंचाई तक पाए जाते हैं।
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