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आपने शायद कचनार (Kachnar tree benefits in Hindi) के पौधों के बारे में सुना होगा या देखा भी होगा। कचनार की छाल (Kachnar ki Chaal) के रेशों से रस्सी आदि बनाई जाती है। कई स्थानों पर काचनार की पत्तियों का साग बनाकर खाया जाता है। वास्तव में कचनार का प्रयोग (Kanchnar Guggul in Hindi)अनेक कामों के लिए किया जाता है, जैसे कचनार का फायदा लोगों की बीमारी को ठीक करने के लिए भी किया जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार, कचनार एक औषधि (kanchnar guggul in Hindi)है और बरसों से आयुर्वेदाचार्यों द्वारा कचनार का इस्तेमाल (kanchanar guggulu) एक औषधि के रूप में किया जा रहा है। कई प्राचीन ग्रंथों में कचनार गूगल के फायदे (kanchnar guggul ke fayde) की चर्चा की गई है। फूलों के रंगों में अंतर के अनुसार कचनार (kanchanar guggulu)की विभिन्न जातियां पाई जाती हैं। ऐसे में आप इसकी पूरी जानकारी ले लीजिए कि कचनार (kanchnar) का प्रयोग किस तरह किया जाना चाहिए या किस कचनार का उपयोग करने से आपको अधिक लाभ हो सकता है?
फूलों के रंगभेद के अनुसार कई प्रकार के कचनार (kanchanar guggulu) के वृक्ष (kachnar tree benefits in hindi) होते हैं। उनमें से तीन प्रकार के काचनारों का विशेष उल्लेख प्राप्त होता है।
लाल फूल वाला कचना (Bauhinia purpurea)
सफेद फूल वाला कचनार (Bauhinia racemosa)
पीला फूल वाला कचनार (Bauhinia tomentosa Linn.)
गुणों की बात की जाय तो तीनों कचनार (kachnar tree benefits in hindi) एक समान होते हैं लेकिन एक औषधी के रूप में प्रायः लाल या सफेद फूल वाले कचनार का ही प्रयोग (kanchanar guggulu) किया जाता है। इसलिए अगर कहीं लाल फूल वाला कचनार नहीं मिलता है तो दूसरे का प्रयोग किया जा सकता है।
काचनार लाल :
इसमें कुछ जामुनी लाल रंग के फूल आते हैं। अन्य कचनारों (kanchnar guggul in hindi)की अपेक्षा यह प्रायः सभी जगह मिल जाता है।
काचनार सफेद :
इसके फूल सफेद रंग के और सुगन्धित होते हैं।
काचनार पीला :
इसके फूल पीले रंग के होते हैं।
लाल फूल वाली प्रजाति को कांचनार (kanchnar), तथा सफेद फूल वाली प्रजाति को कोविदार कहा जाता है।
लाल फूल के आधार पर कचनार की दो प्रजातियां पाई जाती हैैं, जो ये हैंः-
सफेद फूलों के आधार पर कांचनार की मुख्यतयाः तीन प्रजातियां पाई जाती हैैं, जो ये हैंः-
इनके अतिरिक्त कचनार की एक और प्रजाति पाई जाती है जिसे Bauhinia semla Wunderlin कहते हैं। कांचनार (Bauhinia variegata Linn.) से मिलते-जुलते बहुत सारे पौधे पाए जाते हैं, लेकिन प्रायः कांचनार व कोविदार का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है।
कांचनार-व्रणशोधक, व्रणरोपक, स्तम्भक, मूत्रसंग्रहणीय, रक्तस्तम्भक, मेदोरोग, कुष्ठ, प्रमेह, रक्तपित्त, गंडमाला एवं लसीकाग्रंथिशोथ-नाशक होता है। कचनार के फल लघु, रूक्ष, ग्राही; पित्तविकार, प्रदर, क्षय, कास तथा रुधिर विकार को नष्ट करने वाले हैं।
कचनार का वानस्पतिक नाम बौहिनिया वैरीगेटा (Bauhinia variegata Linn., Syn-Bauhinia chinensis (DC.) Vogel, Bauhinia variegatavar.candida (Aiton) Corner), सेजैलपिनिएसी (Caesalpiniaceae), लेकिन इसे अन्य और भी नामों से जाना जाता है, जो ये हैंः-
Kachnar in-
अब तक आपने कचनार क्या है (kachnar tree benefits in hindi) और कचनार के नामों के बारे में जाना। आइए जानते हैं कि कचनार का आयुर्वेदीय गुण क्या है और इसका क्या प्रभाव होता है। यहां फूलों के रंगों के आधार पर कचनार की विशेषता बताई गई हैः-
लाल कचनार का इस्तेमाल इन बीमारियों में किया जा सकता हैः-और पढ़ें – गुर्दे की पथरी निकालने में अनार जूस फायदेमंद
लाल कचनार की छाल (kachnar ki chaal)को पीसकर मस्तक पर लगाने से सिर दर्द से आराम मिलता है।
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लाल कचनार की सूखी टहनियों की राख को या कोयलों को दांतों पर मंजन करें। इससे दांतों का दर्द ठीक होता है।
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कचनार वृक्ष (kanchanar guggulu)की छाल और अनार के फूल का काढ़ा बना लें। इसका कुल्ला करने से मुंह के छालों में लाभ होता है।
50 ग्राम कचनार वृक्ष (Kanchnar) की छाल को आधा लीटर पानी में उबालें। जब आधा पानी रह जाए तो इस पानी से कुल्ले करने चाहिए। किसी भी औषधि से ठीक न होने वाले छाले भी इससे ठीक (kanchanar guggulu benefits in hindi) हो जाते हैं।
इससे प्रसूति स्त्रियों को होने वाले छाले भी ठीक (kanchnar guggul ke fayde)हो जाते हैं।
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कांचनार फूल का काढ़ा बनाकर पीने से खांसी में लाभ होता है। इस काढ़े की 20 मिली मात्रा को दिन में दो बार पीना चाहिए।
इसके छाल (kachnar ki chaal) या फूल के 10-20 मिली काढ़ा को ठंडा करके शहद मिलाकर दिन में दो बार सेवन करें। इससे खून साफ होता है।
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कांचनार फूल का काढ़ा बनाकर पीने से अत्यधिक रक्तस्राव में लाभ होता है। इस काढ़े की 20 मिली मात्रा को दिन में दो बार पीना चाहिए।
कचनार की छाल (kachnar ki chaal)का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मसूड़ों के दर्द ठीक हो जाते हैं।
लाल कचनार की छाल के 20 मिली काढ़ा में 1 ग्राम सोंठ चूर्ण मिलाएं। इसे सुबह-शाम पिलाने से भी गले की गांठों में लाभ होता है।
250 ग्राम कचनार छाल के चूर्ण में 250 ग्राम चीनी मिलाकर रख लें। सुबह और शाम 5-10 ग्राम चूर्ण को पानी या दूध के साथ सेवन करें। इससे गण्डमाला रोग में लाभ होता है।
कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर गरारा करने से कंठ रोग ठीक होते हैं।
10-20 ग्राम कांचनार छाल को 400 मिली पानी में उबालें। जब काढ़ा एक चौथाई रह जाए तो 10-20 मिली की मात्रा में पिलाएं। इससे गंडमाला में लाभ होता है। लाल कचनार का रस मिलाकर गले में लगाने से भी गले के रोग में लाभ (kanchanar guggulu benefits in hindi) होता है।
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लाल कचनार (kachnar benefits)की 10-20 ग्राम जड़ों का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार पिलाने से पाचनतंत्र विकार ठीक होता है।
20 मिली कांचनार की जड़ के काढ़ा में 2 ग्राम अजवायन चूर्ण डालकर पिलाने से पेट की गैस की परेशानी में लाभ होता है।
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कचनार की जड़ (kachnar benefits) तथा पत्ते का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीएं। इससे पेट के कीड़े खत्म होते हैं।
कचनार की कलियों से बने गुलकन्द को 5-10 ग्राम की मात्रा में खाने से कब्ज का इलाज होता है।
2-5 ग्राम सूखे फूल के चूर्ण में बराबर मात्रा में चीनी मिलाकर खाने से कब्ज में लाभ होता है
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सुुबह 1-2 ग्राम कोविदार की जड़ के चूर्ण को छाछ के साथ सेवन करें। इसके पच जाने पर शाम को पचने वाला भोजन करें। इससे बवासीर में लाभ होता है।
1-2 ग्राम लाल कचनार तने के पेस्ट को दही के साथ सेवन करने से बवासीर में फायदा होता है।
कचनार की कलियों से बने गुलकन्द (kanchnar guggulu) को 5-10 ग्राम की मात्रा में खाने से बवासीर में लाभ होता है।
2-5 ग्राम सूखे फूल के चूर्ण में बराबर मात्रा में मक्खन और मिश्री मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
जामुन, रीठा और कचनार की छाल को पानी में उबालकर गुदा को धोने से खूनी बवासीर में फायदा होता है।
कांचनार फूल का काढ़ा बनाकर पीने से खूनी बवासीर की बीमारी में लाभ होता है। इस काढ़े की 20 मिली मात्रा को दिन में दो बार पीना चाहिए।
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लाल कचनार के तने की छाल को पीसकर गुदा में लगाने से गुदभ्रंश में लाभ होता है।
कोविदार के पत्ते का पेस्ट बनाएं। इसमें व्याघएरण्ड से प्राप्त आक्षीर मिलाकर सेवन करें। इससे पीलिया में फायदा होता है।
1-2 ग्राम लाल कचनार फूल की कली का चूर्ण बनाएं। इसका सेवन करने से ल्यूकोरिया में लाभ होता है।
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कचनार की जड़ को चावलों के धुले हुए पानी के साथ पीसकर घाव पर पट्टी के रूप में बांधें। इससे फोड़े जल्दी पक जाते हैं। घाव पर इसकी छाल को पीसकर लगाने से लाभ होता है।
कचनार के फूल या पत्ते के चूर्ण (2.5 ग्राम) अथवा 20 मिली छाल के काढ़ा बनाएं। इसमें प्रवाल भस्म (250 मिग्रा) तथा चीनी मिलाएं। इसे दिन में तीन बार सेवन करने से घाव में फायदा होता है। इसके सेवन के बाद दूध पिलाना चाहिए।
लाल कचनार का काढ़ा बनाकर घाव को धोने से घाव सुख जाता है।
2-5 ग्राम कचनार के सूखे फूल का चूर्ण बनाएं। इसे 1 चम्मच मधु के साथ मिलाकर दिन में तीन बार चाटने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
कोविदार के फूलों से बने सब्जी (उबाल कर घी में भूनकर अथवा जूस बनाकर) का सेवन करें। नाक-कान आदि अंगों से खून बहना बंद हो जाता है।
बराबर-बराबर मात्रा में खदिरसार, फूलप्रियंगु, कोविदार तथा सेमल के फूल का चूर्ण बनाएं। इसमें 1-2 ग्राम में मधु मिलाकर सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
कांचनार के फूल का काढ़ा बनाकर पीएं। इससे पेशाब में खून आने की परेशानी में लाभ होता है। इस काढ़े की 20 मिली मात्रा को दिन में दो बार पीना चाहिए।
कचनार की जड़ को चावलों के धुले हुए पानी के साथ पीसकर पट्टी के रूप में अर्बुद, रसौली, गुल्म या ट्यूमर पर बांधें। इससे ये जल्दी पक जाते हैं। इसकी छाल को पीसकर लगाने से भी लाभ होता है।
कचनार के फूल या पत्ते के चूर्ण (2.5 ग्राम) अथवा 20 मिली छाल के काढ़ा में प्रवाल भस्म (250 मिग्रा) मिलाएं। इसमें चीनी मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से भी अर्बुद, रसौली, गुल्म या ट्यूमर में फायदा होता है। इसके सेवन के बाद दूध पिलाना चाहिए।
पीले कचनार के पत्ते, छाल तथा बीजों को सिरके में पीसकर लेप करने से रसौली में लाभ होता है।
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सफेद कचनार का प्रयोग इन रोगों के लिए किया जा सकता हैः-
कचनार की छाल के चूर्ण (1-2 ग्राम) को चावल के धोवन के साथ पीने से गण्डमाला या कंठ के रोग में लाभ होता है।
2-5 ग्राम कचनार के सूखे फल का चूर्ण बना लें। इसे पानी के साथ दिन में 3-4 बार सेवन करने से मूत्र रोग जैसे रुक-रुक कर पेशाब आना या पेशाब में दर्द होने की समस्या ठीक होती है।
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1-2 ग्राम कचनार के फूल का चूर्ण का सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
काचनार की जड़ की छाल को पीसकर लगाने से घाव, सूजन एवं अन्य प्रकार के त्वचा रोगों में लाभ होता है।
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काचनार के पत्ते का काढ़ा बनाएं। इसे 10-20 मिली मात्रा में पीने से बुखार के कारण होने वाले सिर दर्द से आराम मिलता है।
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पीले कचनार का प्रयोग इन रोगों के लिए किया जा सकता हैः-
सफेद कचनार अथवा पीले कांचनार की छाल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से मुखपाक या मुख के छाले की बीमारी ठीक होती है।
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कचनार की जड़ तथा पत्ते का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीएं। इससे दस्त पर रोक लगती है।
पीले कचनार के पत्ते तथा फूलों को सुखा लें। इसका चूर्ण बनाकर रख लें। 5 ग्राम चूर्ण का सेवन कर बाद में 2 चम्मच सौंफ का अर्क पीएं। इससे पेचिश में लाभ होता है। इसके 10 ग्राम फूलों को जल में उबाल छान लें। इसे दिन में दो बार पिलाने से भी पेचिश में लाभ होता है।
2-5 ग्राम कचनार शुष्क फल चूर्ण को पानी के साथ दिन में 3-4 बार सेवन करने से पेचिश में फायदा होता है।
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20 ग्राम पीले कचनार की छाल को 400 मिली पानी में पकाएं। जब काढ़ा एक चौथाई बच जाए तो इसे 10-25 मिली पिलाने से आंतों के कीड़े मर जाते हैं।
पीले कंचनार की 10-20 ग्राम जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली सुबह-शाम पिलाने से लिवर की सूजन में लाभ होता है।
कचनार की जड़ तथा पत्ते का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीएं। इससे लिवर के दर्द से राहत (kanchanar guggulu benefits) मिलती है।
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पीले कचनार के पत्ते, छाल तथा बीजों को सिरके में पीसकर लेप करने से घाव के अन्दर के कीड़े भी मर जाते हैं।
5 मिली कांचनार की छाल के रस में 2 ग्राम जीरे का चूर्ण या 250-500 मिलीग्राम कपूर मिलाकर दिन में दो बार पिलाने से शरीर की जलन शांत हो जाती है।
सांप के काटने पर कचनार का प्रयोग करना फायदा पहुंचाता है। पीले कचनार के बीजों को पीसकर सांप के काटने वाले स्थान पर लेप के रूप में लगाएं। इससे सांप के काटने से होने वाले दर्द, जलन या सूजन में लाभ (kanchanar guggulu benefits) होता है।
कचनार का इस्तेमाल इतनी मात्रा में करना चाहिएः-
अधिक लाभ के लिए चिकित्सक के परामर्शानुसार प्रयोग करें।
कचनार का प्रयोग इस तरह किया जाना चाहिएः-
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