कासनी बारहमासी पौधा (kasni plant) होता है। आयुर्वेद में कासनी जड़ी बूटी (kasni benefits in hindi) औषधि के रुप में प्रयोग में लाया जाता है। कासनी को चिकोरा भी कहा जाता है।
कासनी का फूल नीले रंग का होता है। और शायद आप सुनकर आश्चर्य हो जायेंगे कि कासनी को कॉफी के जगह पर भी इस्तेमाल किया जाता है और इसमें कैफीन भी नहीं होता है।
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कासनी या चिकोरा आयुर्वेद में चिकित्सा के क्षेत्र में औषधि के रुप में बहुत प्रयोग में लाया जाता है। कासनी की दो प्रजातियाँ पाई जाती हैं। 1. कासनी ग्राम्य (Cichorium intybus Linn.) 2. कासनी वन्य (Cichorium endivia Linn.)।
प्रकृति से कासनी कड़वा, गर्म तथा कफ पित्त कम करने वाला होता है। इसका प्रयोग लीवर की बीमारी, मूत्र संबंधी बीमारी तथा हृदय रोग में किया जाता है।
कासनी के बीज सांस संबंधी समस्या, कमर दर्द, सिर दर्द, पीलिया, प्लीहारोग तथा आंख में दर्द कम करने वाला होता है।
कासनी की जड़ मूत्र संबंधी समस्या, खून बढ़ाने वाला, जोड़ो का दर्द, आमवात या गठिया तथा सूजन दूर करने में सहायक होती है।
कासनी कड़वी, शक्ति बढ़ाने वाली, सूजन कम करने वाली, भूख बढ़ाने वाली तथा खाना हजम करने में सहायक होती है।
कासनी वन्य
कासनी कड़वी, रूखी और गर्म तासीर की होती है। यह पित्त को कम करने में भी सहायता करती है। यह सूजन कम करने वाली, पाचक, यकृत यानि लीवर को सही तरह से काम करने में सहायता करने के साथ-साथ प्लीहा यानि स्पलीन को बढ़ने से रोकती है।
कासनी की जड़ विरेचक यानि शरीर से अवांछित चीजें निकालने में सहायक, बुखार और खाने की इच्छा बढ़ाने में सहायक होती है।
कासनी के फल ठंडे तासीर के बुखार, सिरदर्द तथा पीलिया नाशक होते हैं।
कासनी के बीज हृदय को सेहतमंद बनाने तथा पेट के समस्या दूर करने में सहायक होता है।
कासनी वानास्पतिक नाम Cichorium intybus L. (चिकोरियम इन्टाईबस्) Syn-Cichorium balearicum Porta होता है। कासनी Asteraceae (ऐस्टरेसी) कुल का है। कासनी को अंग्रेजी में Chicory (चिकोरी) कहते हैं। लेकिन भिन्न-भिन्न भाषाओं में इसका नाम अलग है, जैसे-
Kasni in –
कासनी वन्य के नाम
कासनी के गुणों के आधार पर इसके फायदे भी अनगिनत है। चलिये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं-
अगर दिन भर काम करने के बाद सिर में दर्द होता है तो कासनी का इस तरह से इस्तेमाल करने पर लाभ मिलता है।
-कासनी बीज का चूर्ण (1-2 ग्राम) अथवा काढ़ा (10-20 मिली) का सेवन करने से सिर दर्द कम होता है।
-कासनी पत्ते के रस को माथे पर लगाने से या कासनी पत्ते के रस को चन्दन के साथ पीसकर मस्तक पर लगाने से सिरदर्द कम होता है।
खून की उल्टी से राहत दिलाने में कासनी बहुत काम आता है। 2 ग्राम कासनी के पत्तों को पीसकर, ठण्डे पानी के साथ सेवन करने से खून की उल्टी से राहत मिलती है।
मसूड़ों की परेशानी को कम करने में कासनी के बीजों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुखपाक तथा मसूड़ों के दर्द से राहत मिलती है।
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अगर खान-पान की गड़बड़ी होने के कारण उल्टी कम होने के नाम नहीं ले रहा तो कासनी का प्रयोग इस तरह से करने पर लाभ मिलता है-
-10-20 मिली कासनी बीज के काढ़े का सेवन करने से पित्त के कारण जो उल्टी होती है उससे राहत दिलाने में मदद मिलती है।
-कासनी के बीजों का काढ़ा बनाकर 15-20 मिली मात्रा में पिलाने से भी उल्टी से राहत मिलती है।
खान-पान में असंतुलन होने पर शरीर की सभी क्रिया असंतुलित हो जाती है। 5-10 मिली कासनी पत्ते का रस या 15-20 मिली कासनी पत्ते के काढ़े का सेवन करने से कामला या पीलिया में लाभ होता है। इस अवधि में रोगी को तक्र और चावल या दूध तथा चावल का सेवन करना चाहिए। घी तथा शक्कर का प्रयोग वर्जित होता है।
लीवर को स्वस्थ रखने के लिए कासनी के फूलों का शर्बत बनाकर पिलाने से लीवर से जुड़े रोगों में फायदा पहुँचता है।
मूत्र संबंधी समस्या मतलब मूत्र करते समय जलन और दर्द की परेशानी, रुक-रुक कर पेशाब होना, कम पेशाब होना आदि। कासनी के बीजों का काढ़ा बनाकर 15-20 मिली मात्रा में पिलाने से मूत्रकृच्छ्र तथा मूत्र संबंधी रोगों में फायदेमंद होता है।
मेनोपॉज के बाद के लक्षणों से सब परेशान रहते हैं। कासनी बीज का काढ़ा बनाकर, 20-25 मिली काढ़े में गुड़ मिलाकर पिलाने से मासिक धर्म संबंधी समस्याओं से राहत मिलती है।
कासनी की जड़ का काढ़ा बनाकर 15-20 मिली मात्रा में पिलाने से भी लाभ होता है।
अगर किसी बीमारी के कारण योनि में सूजन हुआ है तो कासनी के जड़ को महीन पीस लें। उस पेस्ट की पोटली बनाकर योनि में लगाने से योनि का दर्द तथा योनि का सूजन कम होता है। इसके प्रयोग से सफेद पानी निकलना बंद हो जाता है।
उम्र के बढ़ने के साथ अर्थराइटिस की समस्या से सब ग्रसित होने लगते हैं। कासनी के पत्तों को पीसकर लेप करने से संधिशूल तथा संधिशोथ में लाभ होता है।
हृदय को सेहतमंद रखने में कासनी बहुत काम आता है। कासनी के पत्तों को जौ के आटे के साथ पीसकर हृदय के जगह पर लेप करने से उन्माद या पागल तथा हृदय संबंधी बीमारियों में लाभ होता है।
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आजकल तनाव और काम के दबाव के कारण अनिद्रा की समस्या से सब परेशान रहते हैं। कासनी के पत्तों के साथ पित्तपापड़ा, गिलोय, नागरमोथा तथा खस मिलाकर काढ़ा बनाएं। 15-20 मिली काढ़ा का सेवन करने से प्यास, बेचैनी, निद्रा की समस्या, मूत्र करते वक्त जलन तथा बुखार में लाभ होता है।
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कासनी आँखों के बीमारी से राहत दिलाने में बहुत लाभकारी होता है। कासनी के पत्ते को वनफ्सा के फूलों के साथ पीसकर नेत्र के बाहर चारों तरफ लगाने से आराम मिलता है।
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अक्सर उम्र के बढ़ने के साथ अर्थराइटिस की समस्या होने लगती है। कासनी पञ्चाङ्ग को यव के आटे के साथ पीसकर जोड़ों में लगाने से आमवात या गठिया में लाभ होता है। कासनी का पेस्ट जोड़ो पर लगाने से आराम मिलता है।
आजकल के प्रदूषण भरे वातावरण में स्किन रैशेज से सब परेशान रहते हैं। कासनी के पत्तों को लाल चन्दन, गुलाब के अर्क तथा सिरके के साथ पीसकर लगाने से शीतपित्त में लाभ होता है।
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आयुर्वेद में कासनी के पञ्चाङ्ग का औषधि के रुप में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।
बीमारी के लिए कासनी के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए कासनी का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
चिकित्सक के परामर्श के अनुसार-
-3-6 ग्राम चूर्ण और
-10-20 मिली रस का सेवन कर सकते हैं।
कासनी की मूल उत्पत्ति स्थान कासान नामक नगर से माना जाता है। इसलिए इसे कासनी कहते हैं। आयुर्वेद के प्राचीन संहिताओं में इसका उल्लेख नहीं है। यह पश्चिमोत्तर भारत, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, दक्षिण भारत तथा उत्तराखण्ड में 1800 मी की ऊँचाई पर पाया जाता है।
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