विटामिन डी के स्रोत और उपयोग

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आजकल ऑफिस हो या अपने आस-पास में लोगो से बात करेंगे तो एक जेनरल प्रॉबल्म जो सामने आती है वह है विटामिन डी। जो लोग ऑफिस जाते हैं उनके लिए विटामिन डी की कमी होना तो आम समस्या बन गई है यानि बड़े हो या बूढ़े हर कोई इस समस्या से ग्रस्त है। तो क्या आपने कभी ये सोचा है कि ऐसा क्यों हो रहा है?

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर में विटामिन्स का उत्पादन नहीं होता है। यानि शरीर को विटामिन्स की पूर्ती डायट से होती है। लेकिन विटामिन डी इनमें से अपवाद है। क्योंकि विटामिन डी की पूर्ती सूर्य की रोशनी और विटामिन से भरपूर फूड दोनों से की जा सकती है।

विटामिन डी क्या है?

विटामिन डी वसा में घुलनशील विटामिन होता है जो कोलेस्ट्रॉल के साथ जमा होता है। विटामिन डी न्यूट्रिएन्ट होता है जो हड्डियों, मांसपेशियों और प्रतिरक्षी तंत्र के लिए ज़रूरी होता है। विटामिन के जिस रूप की हमें ज़रूरत पड़ती है वह है विटामिन डी3 या कोलेकैल्सीफेरल (cholecaciferol), अल्फाकैल्सिफेरल (alphacalcidol), अरगोकैल्सीफेरल (ergocalciferol) ये विटामिन डी के ये नैचुरल सोर्स होते हैं जो शरीर को कैल्शियम और फॉस्फोरस सोखने में मदद करते हैं। कहने का मतलब ये है कि सही मात्रा में कैल्शियम, फॉस्फोरस और विटामिन डी लेने से शरीर सुदृढ़ और हड्डियां मजबूत होती हैं। हड्डियों से संबंधित बीमारियों यानि रिकेट्स और ऑस्टियोमैलेसिया (अस्थिमृदुता) जैसे बीमारियों में विटामिन डी लेने की सलाह दी जाती है।

वैसे तो शरीर जब धूप के संपर्क में होता है तब वह खुद ब खुद विटामिन डी का उत्पादन करने लगता है। लेकिन इसके लिए सूर्य के किरणों को त्वचा के अंदर तक जाने की ज़रूरत होती है। लेकिन सनस्क्रिन, कपड़ों के कारण, कम सूर्य का प्रकाश मिलने के कारण और बढ़ती उम्र के वजह से शरीर अपने ज़रूरत के अनुसार विटामिन डी नहीं बना पाता है, जिसके कारण विटामिन डी की कमी हो जाती है।

किस उम्र में कितने विटामिन डी की होती है जरुरत

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च  (Indian council of medical research) के अनुसार भारतियों के लिए RDA (Recommended Dietary Allowance) की मात्रा* उम्र के हिसाब से जो होना चाहिए वह निम्नलिखित है-

1-50 साल : 5 माइक्रोग्राम्स (200 IU)

50 साल या उससे ज्यादा : 10 माइक्रोग्राम (400 IU)

गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली माँ : 5 माइक्रोग्राम (200 IU)

सूर्य के किरणों के साथ संपर्क और विटामिन डी

कहने का मतलब ये है कि त्वचा कितनी देर तक धूप के संपर्क में  रहता है उस पर विटामिन डी का उत्पादन निर्भर करता है। अब हम उन तथ्यों पर आलोचना करेंगे जो विटामिन डी के उत्पादन पर असर करता है-

आप कहां रहते हैं: भूमध्यरेखा से कितनी दूर आप रहते हैं। यानि जितनी दूर आप रहेंगे उतनी ही किरणों की तीव्रता कम होती जाती है।

मौसम :  धूप की तीव्रता गर्मी के दिनों के तुलना में सर्दी के दिनों में ज्यादा होता है।

दिन का कौन-सा समय है बेस्ट: सुबह 11 बजे से 3 बजे का समय बेस्ट होता है।

त्वचा का रंग : त्वचा का रंग जितना गहरा होगा, उतनी देर उसको धूप में रहना होगा।

त्वचा कितना धूप के संपर्क में रहेगा :  शरीर का 70% सूर्य के किरणों के संपर्क में रहना चाहिए।

सनस्क्रीन : जितना सनस्क्रीन का इस्तेमाल करेंगे, उतना ही सूर्य के किरणों से संपर्क कम होगा।

प्रदूषण : जितना प्रदूषण का स्तर ज्यादा होगा, उतनी ही किरणें धरती तक कम पहुँचेंगी।

विटामिन के मूल खाद्य स्रोत

सच तो ये है कि विटामिन डी की पूर्ण आपूर्ति खाने से नहीं हो सकती है। कुछ विशेष तरह की मछलियां और विटामिन डी से भरपूर खाद्द विटामिन डी के मूल स्रोत होते हैं। इन स्रोतों में विटामिन डी की निम्न मात्रा* होती है।  चलिये आसानी के लिए एक लिस्ट शेयर करते हैं आपसे-

85 ग्राम पकाया हुआ सालमन= 444 IU

85 ग्राम पकाया हुआ तूना मछली= 229 IU

85 ग्राम पकाया हुआ चुन्नी मछली= 165 IU

240 एमएल पौष्टिक दूध= 116 IU

240 एमएल पौष्टिक संतरे का जूस= 100 IU

1 अंडा स्क्रैम्बल किया हुआ= 44 IU

30 ग्राम चेड्डार चीज़ =7 IU

100 ग्राम सफेद मशरूम= 7 IU

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पौष्टिक दूध या पौष्टिक जूस भारत में मिलना मुश्किल है। इसलिए ज़रूरी है कि हर दिन  विटामिन डी के ज़रूरत को पूरा करने के लिए विटामिन डी से भरपूर फूड लें। 

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संदर्भ

Lhamo Y, Chugh PK, Tripathi CD. Vitamin D Supplements in the Indian Market. Indian J Pharm Sci. 2016 Jan-Feb;78(1):41-7.

G R, Gupta A. Vitamin D deficiency in India: prevalence, causalities and interventions. Nutrients. 2014 Feb 21;6(2):729-75.

*यहां पर हर मात्रा आनुमानित मूल्य (approximate value) पर निर्धारित हैं।

 

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