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गुणों से भरपूर है वेत्र (बेंत) : Vetra Benefits and Side Effects in Hindi- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

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वेत्र का परिचय ( Introduction of Vetra)

बहुत लोगों को वेत्र नाम पता नहीं होगा लेकिन आपके जानकारी के लिए बता दें कि हिन्दी में वेत्र को बेंत कहते हैं। बेंत एक प्रकार की लंबी झाड़ी होती है जिसके तने मजबूत और लचीले होते हैं। अब बेंत नाम सुनते ही दिमाग में फर्नीचर, टोकरी, कलात्मक वस्तुएं आदि की तस्वीरें आ जाती हैं, लेकिन इसके सिवा बेंत का औषधीय गुण भी है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे। बेंत के औषधीय गुणों के बारे में जानने से पहले चलिये इसके बारे में विस्तार से जान लेते हैं।

वेत्र क्या है? (What is Vetra in Hindi?)

आयुर्वेद के अनुसार बेंत की छड़ी तथा फर्नीचर बनाने के साथ निद्रा के लिए उपयोगी तथा शीतल होता है। इसके अलावा अवसाद या डिप्रेशन को दूर करने में मदद करता है, इसलिए प्राचीनकाल में बेंत को सात्त्विक माना जाता था। बेंत की छड़ी अत्यन्त मजबूत तथा पित्तशामक व अल्प वातकारक होती है, इसलिए वात वाले रोगियों को बेंत की छड़ी का प्रयोग ना करके तुम्बरू या अन्य वातशामक काठ की छड़ी का प्रयोग करना चाहिए।

बेंत कांटेदार लता जैसे कोमल झाड़ी होते हैं। इसका तना अत्यधिक पतला, कोमल, नलिकाकार, लघु चपटे, कांटों से भरा होता है। तने की छाल अत्यन्त मजबूत होती है। इसके पत्ते  45-90 सेमी लम्बे, बांस के जैसे, एकान्तर, तीखे, नोंकदार, समानान्तर शिरा वाले तथा कांटेदार होते हैं। अंकुरयुक्त फूल आवरण के भीतर छोटे-छोटे वृंतयुक्त नर एवं मादा पुष्प होते हैं। इसके फल लगभग गोलाकार, 13 मिमी तक लम्बे, पतले कवच से युक्त, पाण्डुर पीले रंग के होते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल फरवरी से मई तक होता है।

बेंत प्रकृति से तिक्त, कड़वी,शीत, लघु तथा कफपित्त दूर करने वाला होता है। यह वातकारक होता है। बेंत का प्रमेह या डायबिटीज, कृमि तथा पित्त के बीमारी में औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके  आगे का भाग रुचिकारक होता है।

इसके फल एसिडिक, गर्म, गुरु, स्निग्ध, वातकारक, कफशामक, देखने की शक्ति बढ़ाने वाली, प्रमेह तथा कृमिशामक होते हैं।

बड़ा वेत्र शीतल होता है। यह भूतबाधा, पित्त, आमदोष तथा कफशामक होता है।

इसकी जड़ स्भंक, तीक्ष्ण, कटु, कफ दूर करने वाली, आमातिसारनाशक,लो प्रेशर में फायदेमंद, सूजन कम करने वाली, मूत्र संबंधी समस्या, शक्तिवर्द्धक, पित्तजविकार, जलन, प्यास, खांसी, सांस नली में सूजन, आमातिसार, कुष्ठ, विसर्प या हर्पिज, सूजन,जीर्णज्वर एवं सामान्य दुर्बलता दूर करने वाली होती है।

इसके पत्ते तीक्ष्ण, कटु, शीतल, शरीर के अवांछित पदार्थ निकालने में सहायक, पित्तज की बीमारी, खांसी, त्वचा संबंधी रोग एवं कण्डू या खुजली दूर करने वाले होते हैं।

इसके बीज तीखे और एसिडिक नेचर के होने के साथ-साथ कफनिसारक होते हैं।

विशेष  :  यद्यपि रामचरित मानस आदि ग्रन्थों में बेंत्र के संदर्भ में कहा गया है कि फूलहि फलहि न बेंत, जदपि सुधा वर्षहि जलज। मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिले विरंचि सम।।‘ परन्तु जब हमने बेंत के संदर्भ में शात्रीय दृष्टि से अन्वेषण किया तो इसकी 4 प्रजातियां 1. Calamusrotang Linn. 2. Homonoia riparia Lour. 3. Salix caprea Linn. तथा 4. Salix tetrasperma Roxb. प्राप्त हुई। उनमें से मुख्यतया बेंत के रूप में Calamus rotang Linn. का प्रयोग होता है। बेंत की चारों प्रजातियों में पुष्प होते हैं, परन्तु बेंत्र में जो कण्टक व झाड़ियां होती हैं उनकी तुलना में पुष्प नगण्य सा होता है। सम्भव है इसलिए तुलसीदास जी ने बेंत के पुष्प को पुष्प ना समझा हो।

अन्य भाषाओं में वेत्र के नाम (Name of Different Languages in Vetra)

वेत्र का वानस्पतिक नाम Calamus rotang Linn. (कैलेमस् रोटंग) Syn-Calamus monoecus Roxb.; Calamu roxburghii Griff.

है। वेत्र का कुल Arecaceae (ऐरेकेसी) है। वेत्र को अंग्रेजी में Common rattan (कॉमन रैटैन) कहते हैं। भारत के विभिन्न प्रांतों में वेत्र को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है।

Vetra in-

Sanskrit-वेत्र, अभनुष्पा, दीर्घपत्रक, गंधपुष्पा, इक्षुवालिका;

Hindi-बेंत;

Oriya-वेतस (Vetus);

Assamese-बेत (Bet);

Kannada-बेतासु (Betasu), हब्बे (Habbe);

Gujrati-नेतार (Netar);

Tamil-पाइरेम्पु (Perampu), अरिनि (Arini);

Telugu-बेथमु (Bethamu), पेपा (Pepa), जात्युरकुली (Jatyurkuli);

Nepali-वेत (Veit);

Malayalam-कुरॉल (Cural), निर्वन्नी (Nirvanni);

Marathi-वैथ (Vaeth)।

English-केन (Cane), चेयर-बॉटम केन (Chair bottom cane), स्लेंडर रैटैन (Slender rattan), वॉटर रैटैन (Water rattan);

Arbi-क्युस्साब ड्राकु (Qassab draku);

Persian-बेड (Bed)।

वेत्र के फायदे (Benefits and Uses of Vetra in Hindi)

जैसा कि हमने पहले ही कहा कि वेत्र या बेंत से चीजें बनाई जाती है लेकिन यह औषधी के रुप में भी प्रयोग में लाया जाता है। यह किन-किन बीमारियों के लिए फायदेमंद हैं इसके लिए आगे पढ़ना पढ़ेगा-

मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी रोग में वेत्र या बेंत के फायदे (Vetra Benefits for Dysuria in Hindi)

मूत्र संबंधी बीमारी में बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते वक्त दर्द या जलन होना, मूत्र रुक-रुक कर आना, मूत्र कम होना आदि। बेंत की जड़ को पीसकर चावल के धोवन के साथ पिलाने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।

मूत्राशय में पथरी की समस्या से दिलाये राहत बेंत (Vetra to Treat Bladder stone in Hindi)

अक्सर खान-पान की गड़बड़ी या किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के कारण मूत्राशय में पथरी की शिकायत होती है लेकिन बेंत का सही तरह से सेवन करने से लाभ होता है। बेंत का क्षार बनाकर 500 मिग्रा क्षार में शहद मिलाकर सेवन करने से मूत्राश्मरी में चूर्ण होकर अश्मरी या पथरी निकल जाती है तथा यह मूत्रल होता है।

और पढ़ेमूत्राश्मरी में कर्कोटकी के फायदे

प्रमेह या डायबिटीज करे नियंत्रित बेंत (Vetra to Control  Diabetes in Hindi)

अगर किसी भी तरह डायबिटीज को नियंत्रण नहीं पर पा रहे हैं तो बेंत का सेवन लाभ दो सकता है। पत्ते के रस को पीने से जलन कम होता है तथा प्रमेह या डायबिटीज से आराम मिलता है।

वैजाइना लूज में बेंत के फायदे (Vetra Benefits in Loose Vagina in Hindi)

अगर किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के कारण वैजाइना लूज हो गया है तो बेंत का घरेलू उपाय इस्तेमाल करने से फायदेमंद साबित होता है। बेंत की जड़ को कुट कर 10 ग्राम चूर्ण को 100 मिली जल में मिलाकर मन्द आंच पर पकाकर काढ़ा बनाकर, छानकर योनि को धोने से योनि शैथिल्य (लूज वैजाइना) में लाभ मिलता है।

प्रदर या ल्यूकोरिया में फायदेमंद बेंत (Benefits of Vetra in Leucorrhea in Hindi)

महिलाओं को अक्सर योनि से सफेद पानी निकलने की समस्या होती है। सफेद पानी का स्राव अत्यधिक होने पर कमजोरी भी हो जाती है। बेंत के कोमल डंठलों तथा जड़ को काटकर सुखाकर काढ़ा बनाकर पीने से प्रमेह तथा प्रदर में लाभ होता है।

रक्तपित्त (कान-नाक से खून बहना) में फायदेमंद वेत्र (Vetra Benefits for Haemoptysis ya Raktpitta in Hindi)

10-15 मिली बेंत जड़ के काढ़े में शहद मिलाकर पिलाने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

अवसाद या डिप्रेशन दूर करने में फायदेमंद वेत्र (Benefits of Vetra to Get Relief from Depression in Hindi)

आजकल के तनाव भरे जिंदगी में डिप्रेशन होना आम बात हो गया है लेकिन वेत्र का घरेलू इलाज बहुत फायदेमंद होता है। बेंत के फूलों का काढ़ा बनाकर पीने से अवसाद में लाभ होता है।

बुखार का कष्ट करे कम बेंत (Vetra Beneficial in Fever in Hindi)

वेत्र का औषधिपरक गुण बुखार के लक्षणों से आराम दिलाने में लाभकारी होता है। बेंत के जड़ का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से जीर्ण ज्वर का कष्ट कम होता है।

सूजन कम करें बेंत (Vetra to Treat in Hindi)

अगर किसी चोट के कारण या बीमारी के वजह से किसी अंग में हुए सूजन से परेशान है तो बेंत के द्वारा किया गया घरेलू इलाज बहुत ही फायदेमंद होता है। बेंत की कोमल शाखाओं का साग बनाकर बिना नमक मिलाए सेवन करने से सूजन कम होता है।

आमदोष में फायदेमंद वेत्र (Vetra Beneficial in Aamdosh in Hindi)

बेंत के पञ्चाङ्ग का काढ़ा बनाकर पीने से आमदोष (पाचन की कमजोरी के कारण जब खाना हजम नहीं होता तो उससे बने विषैले तत्व को आमदोष कहते हैं) से राहत मिलती है।

कुत्ते के विष का असर करे कम बेंत (Vetra for Dog Bite in Hindi)

बेंत के जड़ के साथ समान भाग में कूठ की जड़ मिलाकर कुट कर काढ़ा बनाकर पिलाने से कुत्ते के विष का असर कम होता है।

वेत्र का उपयोगी भाग (Useful Parts of Vetra)

आयुर्वेद में वेत्र के पञ्चाङ्ग का औषधि के रुप में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।

वेत्र का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए? (How to Use Vetra in Hindi)

बीमारी के लिए वेत्र के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए वेत्र का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 25-50 मिली काढ़े का सेवन करना चाहिए।

वेत्र कहां पाया और उगाया जाता है? (Where Vetra is Found and Grown in Hindi)

यह मध्य एवं दक्षिण भारत के शुष्क क्षेत्रों में लगभग 450 मी तक की ऊँचाई पर तथा श्रीलंका में भी प्राप्त होता है।

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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आचार्य श्री बालकृष्ण

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