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चौलाई (मरसा) के फायदे, उपयोग और सेवन का तरीका : Benefits of Cholai (chaulai) in Hindi

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चौलाई (मरसा) का परिचय (Introduction of Chaulai)

चौलाई (amaranth in hindi) एक बहुत ही उत्तम औषधि है। औषधि के लिए चौलाई (मरसा) के सभी भागों का प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में यह बताया गया है कि चौलाई की जड़, तने, पत्ते, फल और फूल का उपयोग करना फायदेमंद होता है। अधिकांश लोग चौलाई का सेवन साग (cholai ka saag) के रूप में करते हैं। अनेकों लोगों को यह जानकारी ही नहीं है कि चौलाई बीमारियों के उपचार के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है।

आप चौलाई (amaranth grain) का उपयोग कर दांतों के रोग, कंठ की बीमारियां, दस्त, पेचिश, ल्यूकोरिया, घाव, रक्त-विकार आदि में फायदा ले सकते हैं। आइए जानते हैं कि किन-किन रोगों में चौलाई का उपयोग किया जा सकता है और कैसे चौलाई से लाभ लिया जा सकता है।

चौलाई (मरसा) क्या है (What is Amaranth (Chaulai) in Hindi?)

यह (amaranth in hindi)  चौलाई के समान दिखने वाली चौलाई (मरसा) के वर्ग की सब्जी है। इसके पत्तों से बनी सब्जी बहुत ही स्वादिष्ट होती है। इसकी दो प्रजातियां होती हैं।

  1. रक्त-मारिष (लाल मरसा)-(Amaranthus tricolor Linn.)-
  2. श्वेत-मारिष (सफेद मरसा)-(Amaranthus blitum Linn. var. oleracea Duthie; Syn- Amaranthus oleraceus Linn.)-

चौलाई समस्त भारत में पाया जाता है और धीरे-धीरे बढ़ता है। यह सीधा, ऊँचा, गूदेदार सब्जी (cholai bhaji) है। इसके तने बेलनाकार, कठोर और अनेक शाखाओं वाले होते हैं जो लाल और हरे रंग के होते हैं। इसके पत्ते गोलाकार, आयताकार, रोमिल व लम्बे होते हैं। इसके फूल हरे रंग के, एकलिंगी और छोटे होते हैं। इसके फल गोलाकार अथवा चौड़े अण्डाकार और गोलाकार बीजयुक्त होते हैं।

लाल मरसा (रक्त-मारिष)

यह मधुर, नमकीन (लवण), कटु, शीत, गुरु, रूक्ष, पित्तशामक, वातकफवर्धक, रेचक, सारक, मलभेदक तथा विष्टम्भी होता है। इनको उबालकर रस निकालकर, घी मिलाकर सेवन करना होता है। यह बहुत लाभदायक होता है।

सफेद मरसा (श्वेत मारिष)

यह मधुर, कटु, शीत, रूक्ष, सर, गुरु, पित्तशामक, रेचक, वातश्लेष्मकारक, विष्टम्भकारक, रक्तपित्त, मद, विष तथा विषमाग्निशामक होता है। पौधे से प्राप्त ऐथेनॉलिक-सत् में मूत्रल-क्रिया प्रदर्शित होती है।

अनेक भाषाओं में चौलाई (मरसा) के नाम (Chaulai Called in Different Languages)

चौलाई का वानस्पतिक नाम Amaranthus tricolor Linn. (ऐमारेन्थस ट्राईकलर) Syn-Amaranthus gangeticus Linn; Amaranthusmangostanus Blanco है और यह Amaranthaceae (ऐमारेन्थेसी) कुल का है। चौलाई को देश या विदेश में अन्य कई नामों से जाना जाता है, जो ये हैंः-

Chaulai in –

  • Hindi (amaranth in hindi) – लाल मरसा, लाल साग, लाल चौलाई (मरसा), मार्ष
  • English – जोसेफ कोट (Joseph’s coat), तमपाला (Tampala), Chinese spinach (चाईनीज स्पिनिज)
  • Sanskrit – मारिष, रक्त, रक्तमारिष
  • Urdu – लाल साग (Lal sag)
  • Oriya – भाजी साग (Bhajji sag)
  • Kannada – दन्तु (Dantu)
  • Gujarati – अदबउदम्भी (Adbaudambho)
  • Tamil – सेरीकेरई (Serikkirai), केपुई केराई (Kepuei keeray)
  • Telugu – टोटाकुरा (Thrtakoora)
  • Bengali – डेंगुआ (Dengua), बन्सपतनतीया (Banspatanatiya)
  • Nepali – रातोलत्ते (Ratolatte)
  • Marathi – माठ (Math), रनमत (Ranmat)
  • Malayalam – छुवाना चीरा (Chuvana cheera)
  • Persian – किश्ताह (Kishtah)
  • Arabic – बुस्तान एबरज (Bustan abruz), दुग इलमीर (Dugg elamir)

चौलाई (मरसा) के औषधीय गुण से फायदे (Chaulai Benefits and Uses in Hindi)

चौलाई (cholai) के आयुर्वेदीय गुण-कर्म और प्रयोग के तरीके ये हैंः-

दांतों के रोग में फायदेमंद चौलाई का प्रयोग (Benefits of Chaulai in Cure Dental Disease in Hindi)

चौलाई (मरसा) को पीसकर दांतों पर रगड़ें। इसके साथ ही पौधे का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से मुंह के छाले और दांतों के दर्द की बीमारी में लाभ होता है।

कंठ के रोग में लाभदायक चौलाई का उपयोग (Chaulai Benefits in Throat Disease Treatment in Hindi)

कंठ से जुड़ी बीमारियों में भी चौलाई का इस्तेमाल लाभ पहुंचाता है। चौलाई पंचांग (chaulai plant) का काढ़ा बनाकर गरारा करें। इससे कण्ठ के दर्द और मुंह के छाले की परेशानी में लाभ होता है।

खांसी में खून आने की बीमारी में चौलाई (मरसा) का सेवन लाभदायक (Uses of Chaulai in Bleeding Problem in Cough in Hindi)

कई लोगों को खांसी के साथ खून की बीमारी होती है। इसमें भी चौलाई का प्रयोग फायदा पहुंचाता है। चौलाई पंचांग का काढ़ा बनाकर 15-30 मिली मात्रा में पिएं। इससे रक्तनिष्ठीवन (खांसी में बलगम के साथ खून आना) में लाभ होता है।

दस्त और पेचिश में असरदार चौलाई का इस्तेमाल (Chaulai Uses to Stop Diarrhea and Dysentery in Hindi)

दस्त के साथ-साथ पेचिश में भी चौलाई का उपयोग करना चाहिए। आप चौलाई के पौधे (amaranth grain) का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मिली मात्रा में पिएं। इससे पेचिश, दस्त आदि पेट के रोग में लाभ होता है।

चौलाई का सेवन ल्यूकोरिया में फायेदमंद (Benefits of Chaulai in Leucorrhea in Hindi)

जिन महिलाओं को ल्यूकोरिया से संबंधित परेशानी है। वे चौलाई का उपयोग कर लाभ ले सकती हैं। लाल चौलाई के जड़ के पेस्ट में मधु तथा मण्ड मिलाकर पिएं। इससे ल्यूकोरिया में लाभ होता है।

चौलाई से नाखून में सूजन का इलाज (Chaulai Benefits in Reducing Nail Inflammation in Hindi)

नाखून से सूज जाने पर चौलाई का प्रयोग असरदार होता है। आप लाल चौलाई की जड़ को पीसकर नाखून पर लगाएं। इससे नाखून में सूजन की समस्या का इलाज (cholai ka saag benefits) होता है।

घाव सुखाने के लिए करें चौलाई का सेवन (Chaulai Uses in Wound Healing in Hindi)

आप घाव को सुखाने के लिए भी चौलाई का उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए चौलाई का काढ़ा बना लें। इससे घाव को धोने से घाव जल्दी भरते हैं।

त्वचा विकार में चौलाई का उपयोग लाभदायक (Uses of Chaulai in Cure Skin Disease in Hindi)

अनेक त्वचा संबंधी विकारों में भी चौलाई का इस्तेमाल प्रभावशाली ढंग से काम करता है। इसके लिए चौलाई पंचांग को पीसकर लगाएं। इससे खुजली तथा दाद आदि त्वचा विकार ठीक होते हैं।

रक्तपित्त (नाक-कान से खून आना) में चौलाई का सेवन फायदेमंद (Benefits of Chaulai in Bleeding Problem in Hindi)

रक्तपित्त मतलब नाक-कान आदि अंगों से खून आने पर चौलाई का सेवन करना चाहिए। यह रक्तपित्त में लाभ (cholai ka saag benefits)  होता है।

चौलाई (मरसा) के उपयोगी भाग (Beneficial Part of Chaulai)

पंचांग (chaulai plant)

जड़

चौलाई (मरसा) के प्रयोग की मात्रा (How Much to Consume Chaulai?)

काढ़ा  – 15-30 मिली

अधिक लाभ के लिए चिकित्सक के परामर्श के अनुसार चौलाई का प्रयोग करें।

चौलाई (मरसा) कहां पाया या उगाया जाता है (Where is Chaulai Found or Grown?)

चौलाई (chaulai plant) की खेती पूरे विश्व में की जाती है। आमतौर पर चौलाई की खेती गर्मी और बरसात के मौसम में की जाती है।

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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