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शालाकी (sallaki) एक बहुत ही उत्तम जड़ी-बूटी है, जिसका प्रयोग रोगों को ठीक करने में किया जाता है। शालाकी (sallaki) के पेड़ की छाल, राख के रंग की होती है और इसके पत्ते नीम के पत्ते की तरह होते हैं। प्रायः आयुर्वेद डॉक्टर शालाकी का प्रयोग जोड़ों के दर्द और सूजन की परेशानी को ठीक करने के लिए किया करते हैं। इसके अलावा भी शालाकी का इस्तेमाल अन्य कई तरह की बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार, शालाकी (shallaki) पचने पर आसान, स्वाद में तीखा, कड़वा और कसैला होता है। यह वात, पित्त, कफ को ठीक करने वाला है। यह टूटी हुई हड्डियों को जोड़ता है और दर्द, जलन, प्रदर, अनपच, कब्ज तथा बवासीर रोग में लाभकारी होता है। घाव, मोटापा, योनि विकार, खून की गर्मी, और पेचिश में भी उपयोगी (punarnava mandur benefits) होता है। शालाकी के प्रयोग सूजन और दर्द को ठीक करते हैं।
इसके पत्तों को हाथी बड़े चाव से खाते हैं, इसलिए इसे गजभक्ष्या भी कहते हैं। यह (Shallaki Plant) लगभग 18 मीटर तक ऊँचा, मंझोले से बड़े आकार का होता है। यह फैली हुई शाखाओं और ढेर सारे पत्तों वाला पेड़ है। इसका तना गोंदयुक्त और छाल धूसर, चिकनी और पतली होती है। छाल लालिमायुक्त पीली या हरा रंग लिए सफेद रंग की तथा कागज के समान छूटने वाली होती है।
शालाकी (shallaki) का लैटिन नाम बॉसवेलिया सेरेटा (Boswellia serrata Roxb. ex Colebr., Syn-Boswellia glabra Roxb.) है और यह Burseraceae (बरसरेसी) कुल का है। इसे देश और विदेशों में अनेक नामों से जाना जाता है, जो ये हैंः-
Shallaki in-
शालाकी (shallaki) का औषधीय प्रयोग, प्रयोग की मात्रा और विधियां ये हैंः-
शालाकी की छाल को पीसकर ललाट (Forehead) पर लगाएं। इससे सिरदर्द ठीक होता है।
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शालाकी के रस में चीनी एवं शहद मिलाकर काजल की तरह आँखों में लगाएं। इससे आँख आने की परेशानी में लाभ होता है।
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शालाकी की छाल को चबाने से दाँत दर्द और दाँतों का हिलना ठीक होता है। शालाकी की गोंद को बबूल की गोंद के साथ मिलाकर चूसें। इससे मुंह से आने वाली बदबू ठीक (punarnava mandur benefits) होती है।
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शालाकी की गोंद को गुनगुने जल में घिसकर लेप करें। इससे गण्डमाला यानी गले के गाँठों की परेशानी में लाभ होता है।
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घाव सुखाने में शालाकी (लोबान) का औषधीय गुण फायदेमंद (Shallaki Benefits in Wound Healing in Hindi)
कटे या खुले हुए घाव को सिलाई करने के बाद उस पर रेशम का पतला कपड़ा रख दें। इसके बाद लोबान (शालाकी) के फल का चूर्ण छिड़क कर ठीक से बांध दें। इससे घाव जल्दी ठीक (shallaki uses) हो जाता है।
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सिह्लक, शालाकी, गुग्गुलु तथा पद्मकाष्ठ के बारीक चूर्ण में घी मिला लें। इसे जला लें। इस धुआँ को सूंघने से सांस फूलने की समस्या में लाभ (punarnava mandur benefits) होता है। 2-4 ग्राम शालाकी चूर्ण में घी तथा शहद विषम मात्रा में मिला लें। इसे सेवन करने से सांस फूलना बंद होता है।
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शालाकी (sallaki) की छाल के काढ़े से सिफलिस के घाव को धोएं। इससे घाव ठीक होता है।
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शालाकी की गोंद को गुनगुने जल में घिसकर जोड़ों में लगाने से जोड़ों का दर्द ठीक (boswellia serrata) होता है।
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कटे या खुले हुए घाव को सिलाई करने के बाद उस पर रेशम का पतला कपड़ा रख दें। इसके बाद शालाकी के फल का चूर्ण छिड़क कर ठीक से बांध दें। इससे घाव जल्दी ठीक (boswellia serrata) हो जाता है।
शालाकी की छाल को पीसकर दाद में लगाने से दाद ठीक होता है।
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शालाकी के फूल का चूर्ण का 2-4 ग्राम सेवन करने से बुखार में लाभ (boswellia serrata) होता है।
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औषधि के रूप में शालाकी (sallaki) का प्रयोग करने के लिए चिकित्सक की सलाह लें।
बाजार में शालाकी के कैप्सूल (sallaki tablets) भी मिलते हैं। आप आयुर्वेद डॉक्टर की सलाह से इसका सेवन कर सकते हैं।
शालाकी से ये नुकसान हो सकते हैंः-
शालाकी कैप्सूल लेने से गैस और जलन की समस्या (shallaki side effects) हो सकती है।
गर्भावस्था में भी इसे लेने के पहले चिकित्सक की सलाह लें या फिर लेने से परहेज करें।
शालाकी (sallaki) भारत में मुख्यतः पश्चिमी हिमालय (Himalaya), उत्तराखण्ड एवं उत्तर प्रदेश के जंगलों में पाया जाता है।
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