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सहजन (Sahajan) की सब्जी के बारे में तो आप जानते ही होंगे। यह एक मौसमी सब्जी है। आमतौर पर लोग सहजन का प्रयोग केवल उसकी सब्जी के लिए करते हैं क्योंकि लोगों को यह पता है कि सहजन का सेवन स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है। क्या आपको पता है कि सहजन का इस्तेमाल एक औषधि के रूप में भी किया जाता है? नहीं ना!
जी हां, आपने सही पढ़ा है। सहजन का उपयोग एक औषधि के रूप में भी किया जाता है। केवल सहजन (moringa in hindi) के फल की ही नहीं बल्कि सहजन के पत्ते, छाल आदि का इस्तेमाल भी बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जाता है। सहजन की छाल और पत्तों का लेप जलन कम करने वाला, सूजन नाशक और फोड़ों को नष्ट करने वाला है। सहजन के बीज का तेल दर्दनिवारक और सूजननाशक है।
सहजन के लिए यह कहावत मशहूर है- ‘‘सहजन अति फूले-फले, तबहुं डारपात की हानि।’’ सहजन की फली हरे रंग की तथा अंगुली के समान मोटी होती है। जंगली वृक्षों की फलियाँ और लगाए हुए वृक्षों की फलियाँ सब्जी (Drumstick vegetable) के रूप में प्रयोग की जाती हैं। यह स्वास्थ्यवर्धक आहार भी है और औषधि के रूप में प्रयोग भी की जाती है।
फूलों के रंग के भेद से शास्त्रकारों ने सहजन (Moringa in hindi) के सफेद और लाल दो भेद किए हैं। सफेद जाति कड़ुआ और लाल जाति मीठी होती है। कड़ुआ सहजन हर जगह मिल जाता है लेकिन मीठा सहजन कम ही पाया जाता है। सहजन के छोटे या मध्यम आकार के वृक्ष होते हैं। छाल और तना सुपाच्य होता है। जब वृक्ष फलियों से लद जाते हैं तो डालियां अक्सर टूट जाती हैं।
सहजन का लैटिन नाम मोरिङ्गा ओलिफेरा (Moringa oleifera Lam.), Syn-Moringa pterygosperma Gaertn. है और यह Moringaceae (मोरिंगेसी) कुल का है। सहजन को अन्य नामों से भी जाना जाता है, जो ये हैंः-
Sahijan/Drumstick in –
अब तक आपने जाना कि सहजन के कितने नाम हैं। आइए अब जानते हैं कि सहजन का औषधीय प्रयोग कैसे और किन बीमारियों में किया जा सकता हैः-
सहजन की छाल को जल में घिस लें। इसकी एक दो बूंद नाक में डालने से तथा सेवन करने से मस्तिष्क ज्वर यानी दिमागी बुखार या टॉयफाइड में लाभ होता है।
सहजन के 20 ग्राम ताजे जडों को 100 मि.ली. पानी में उबालें। इसे छानकर पिलाने से टॉयफॉयड ख़त्म हो जाता है।
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20 मि.ली. सहजन की जड़ रस में एक चम्मच मधु और 50 मि.ली. तेल को मिला लें। इसे गर्मकर, छानकर, कान में 2-2 बूंद टपकाने से कान का दर्द (Ear Pain) कम होता है।
सहजन की गोंद को तिल के तेल में गर्म कर छान लें। इसे कान में 2-2 बूंद टपकाने से कान दर्द में लाभ (drumstick benefits) होता है।
सहजन की छाल और राई को पीसकर लेप करें। इससे कान की जड़ में सूजन की परेशानी ठीक हो जाती है।
सहजन की जड़ का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से आवाज के बैठने (स्वरभंग) की परेशानी में लाभ होता है।
सहजन की गोंद को पानी में घोलकर गरारा करने से दांतों की बीमारियां (Dental Problems) दूर होती हैं।
सहजन और अदरक के रस को बराबर मात्रा में मिला लें। इसे 10-15 मि.ली. की मात्रा में रोज सुबह और शाम पिलाने से सांसों के रोग में लाभ होता है।
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सहजन के 8-10 फूलों को 250 मि.ली. दूध में उबाल लें। इसे सुबह-शाम पीने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है और पौरुष शक्ति (Stamina) में बढ़ोतरी होती है।
सहजन की की जड़ को पीसकर गर्म करके लेप करने से फाइलेरिया या हाथीपांव रोग में लाभ होता है।
सहजन की जड़ की छाल को जल में घिस ले। इससे लेप करने से दाद (Ring Worm) का नाश होता है।
सहजन की जड़ को कुचल कर सरसों के तेल में पकाकर लगाने से खुजली (Itching) में लाभ होता है।
सहजन की छाल को जल में घिसकर 10 ग्राम की मात्रा में सेवन करें। इससे सूजन कम होती है। (इसकी छाल को स्वदेशी पेन्सिलीन कहा जाता है।)
कुष्ठ रोगी को सहजन (shajan) तथा आम की गुठली का तेल लगाने से लाभ होता है।
सहजन छाल के पेस्ट को गुनगुना कर लेप करने से ग्रन्थियों को लाभ होता है।
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सहजन के पके रस (5-10 मि.ली.) में मधु मिलाकर सेवन करें। इससे लकवा (Paralysis), मासिक धर्म आदि में लाभ होता है।
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लिवर कैंसर की बीमारी के लिए सहजन की 20 ग्राम छाल का काढ़ा बना लें। इसे आरोग्यवर्धिनी वटी (2 गोली) के साथ दिन में तीन बार सेवन करे। इससे लिवर कैंसर जैसी समस्या में लाभ होता है।
सहजन के पत्ते (moringa leaves), लहसुन, हल्दी, नमक तथा काली मिर्च को बराबर मात्रा में एक साथ पीस लें। इसे कुत्ते के काटे गए स्थान पर लगाने से सूजन कम हो जाती है और बुखार ठीक हो जाता है।
इस पेस्ट की 10-15 ग्राम की मात्रा का सुबह-शाम सेवन करने से भी लाभ होता है।
कुटकी, देवदारु, वच, सहजन का अर्क की जड़ की छाल तथा दशमूल का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मि.ली. मात्रा में पिलाने से सभी प्रकार के रोगों का नाश होता है।
न्यूमोनिया, पसलियों का दर्द, पेट दर्द आदि में सहजन की छाल का लेप करने से लाभ होता है।
लीवर की समस्या, प्लीहा रोग, रक्तवाहिनी नसों की समस्या, स्नायु की कमजोरी, किसी अंग का सूनापन, पीवयुक्त फुन्सी और कुष्ठ रोग में सहजन की फलियों की सब्जी का सेवन करना बहुत लाभकारी है।
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औषधि के रूप में अधिक लाभ (drumstick benefits) लेने के लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्शानुसार सहजन (shajan) का इस्तेमाल करें।
काढ़ा – 50-100 मि.ली.
चूर्ण – 1-3 ग्राम
सहजन के वृक्ष हिमालय की तराई में जंगली अवस्था में बहुत पाए जाते हैं। इसके अलावा सहजन की खेती भी की जाती है। सहजन के पेड़ घरों के आस-पास या बाग-बगीजे में भी देखे जाते हैं।
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