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क्या आपने कभी अतिबला (Atibala kanghi plant) का प्रयोग किया है? अगर आपका जवाब नहीं है तो यह जानकारी आपके लिए बहुत ही जरूरी है। क्योंकि अतिबला एक बहुत ही गुणी औषधि है। बहुत सालों से आयुर्वेदाचार्य अतिबला के इस्तेमाल से कई बीमारियों को ठीक करने का काम कर रहे हैं। आप भी अतिबला का उपयोग कर कई रोगों में लाभ पा सकते हैं। यह तीखी, कड़वी, पचने में हल्की, चिकनी, तथा वात-पित्त को संतुलित करने वाली होती है। यह मनुष्य की आयु, शरीर का बल, चमक तथा यौनशक्ति को बढ़ाती है।
इतना ही नहीं आयुर्वेद में यह भी बताया गया है कि अतिबला का अर्क बार बार पेशाब लगने की समस्या को खत्म करता है। इसकी छाल खून का बहाव रोकता है। अतिबला की जड़ दर्दनाशक और बुखार उतारने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। अतिबला के बीज कफ निकालने वाले होते हैं। अतिबला की जड़ का तेल दर्दनाशक होता है। अतिबला के जड़, फूल और पत्तों का चूर्ण (Atibala Powder) भी कई रोगों में काम आता है। इसके साथ ही अतिबला और भी कई प्रकार के रोगों में काम आती है। आइए सभी के बारे में जानते हैं।
अतिबला एक जड़ी-बूटी है। यह काफी वर्षों तक हरा-भरा रहने वाला, झाड़ीदार पौधा (atibala tree) होता है। इसके रोएं कोमल, सफेद जैसे और मखमली होते हैं। इसके तने गोल और बैंगनी रंग के होते हैं। अतिबला की मुख्य प्रजाति के अतिरिक्त निम्नलिखित दो अन्य प्रजातियों का प्रयोग भी चिकित्सा के लिए किया जाता है।
यह भी अतिबला की ही तरह काफी वर्षों तक हरा भरा रहने वाला, झाड़ीदार पौधा (atibala tree) होता है, लेकिन इसकी लंबाई अतिबला से दोगुनी होती है। इसके फल अतिबला की तरह ही होते है।
कई स्थानों पर इसका प्रयोग अतिबला के रूप में किया जाता है लेकिन यह अतिबला से कम गुण वाला होता है। अतिबला में मिलावट के लिए इसका प्रयोग होता है। यह सूजन को ठीक करता है। इसके साथ ही यह डायबिटीज में फायदेमंद, जीवाणु को समाप्त करने वाला, दर्दनाशक और घावों को ठीक करता है।
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यह अतिबला के समान दिखने वाला पौधा (Atibala kanghi plant) होता है जो समस्त भारत में खरपतवार के रूप में पाया जाता है। इसके फूल हल्की पीली और लाल रंग के या पीले रंग के होते है। फल कंघी के समान दांतों वाले होते हैं। इसका प्रयोग अतिबला के स्थान पर किया जाता है।
यह भी अतिबला से कम गुण वाला होता है। यह पेशाब लाने वाला, खून को रोकने वाला, कफ निकालने वाला, बल प्रदान करने वाला, सूजन को ठीक करने वाला तथा दर्द हरने वाला होता है।
अतिबला का लैटिन नाम ऐबूटिलॉन इन्डिकम (Abutilon indicum (Linn.) Sw., Syn-Abuliton asiaticum (Linn.) Sweet) है। यह Malvaceae (मालवेसी) कुल का पौधा (Atibala kanghi plant) कहा जाता है। इसे विभिन्न भाषाओं में निम्न नामों से पुकारा जाता है –
Atibala in –
अतिबला के औषधीय फायदे, प्रयोग की मात्रा और विधियां ये हैंः-
अतिबला के पत्तों का काढ़ा बनाकर ठंडा कर उससे आंखों को धोएं। इससे फायदा (होता है। इससे आँखों के अनेक रोगों में लाभ होगा।
अतिबला के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करें या देर तक मुंह में रख कर कुल्ला करें। इससे दाँतों का दर्द ठीक होता है। मसूड़ों की सूजन का भी समाप्त होती है।
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अतिबला के फूल के चूर्ण को 1-2 ग्राम की मात्रा में घी के साथ सेवन करें। इससे सूखी खांसी तथा खून वाली उल्टी में लाभ होता है। अतिबला के बीज तथा वासा के पत्तों का काढ़ा बनाकर 10-20 मि.ली. मात्रा में सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।
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अतिबला के पत्ते की सब्जी को घी के साथ सेवन करने से पेचिश में लाभ होता है।
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अतिबला की बीजों को कूट कर रात भर पानी में भिगो लें। इस पानी को 10-20 मि.ली. मात्रा में पीने से तथा अतिबला के पत्तों की सब्जी बनाकर खाने से बवासीर में लाभ होता है।
1-2 ग्राम अतिबला की जड़ के चूर्ण में शहद मिलाकर या अतिबला की जड़ के 20-30 मिली काढ़े का सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।
अतिबला के पत्तों का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।
10-20 मिली अतिबला की जड़ के काढ़ा का सेवन करने से पेशाब में होने वाली सभी प्रकार की परेशानियों में लाभ होता है। अतिबला के बीजों (Atibala atibala Seeds) को मोटा कूट कर रात भर पानी में भिगो कर रखें। इस पानी को 10-20 मिली की मात्रा में लें।
इसके साथ ही अतिबला के पत्तों के काढ़े की वस्ति (एक आयुर्वेदिक प्रक्रिया) तथा उत्तरवस्ति देने से मूत्राशय के सूजन ठीक होता है। इससे मूत्र मार्ग से होने वाले स्राव बंद होता है। इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से मूत्राशय की सूजन ठीक होती है।
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अतिबला बीज (बीजबन्द), तालमखाना, मुलेठी, वंशलोचन, शिलारस, सालिम, शुक्ति भस्म लें। इसके साथ ही प्रवाल भस्म, बहेड़ा, हरीतकी, शुद्ध शिलाजीत, इलायची तथा वंग भस्म लें। सभी का सूक्ष्म चूर्ण बना लें और उसमें मधु मिलाकर, 125 मि.ग्राम की वटी बना लें। 1-1 वटी सुबह और शाम सेवन करने से डायबिटीज में काफी लाभ होता है।
1-2 ग्राम अतिबला के पत्तों के चूर्ण (Atibala atibala powder) का सेवन करने से भी मधुमेह में लाभ होता है।
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अतिबला पत्तों तथा जड़ (Atibala atibala plant) का काढ़ा बना लें। इसे 20-30 मि.ली. की मात्रा में सेवन करने से पेशाब के रास्ते की पथरी चूर-चूर होकर बाहर निकल जाती है।
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1-2 ग्राम अतिबला की जड़ के चूर्ण में चीनी तथा मधु मिलाकर सेवन करने से रक्त प्रदर में बहुत लाभ होता है।
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अतिबला की जड़ का चूर्ण (1-2 ग्राम), चंदन कल्क (1-2 ग्राम), तुवरक तैल (2-5 मिली) तथा बाकुची तेल (2-4 मिली) लें। इसे मिलाकर सफेद दाग पर लेप करने से लाभ होता है।
अतिबला के पत्ते तथा फूल का लेप अथवा काढ़ा से घाव को धोने से तुरंत घाव भर जाता है।
1-3 ग्राम अतिबला की जड़ के चूर्ण (Atibala atibala powder) को सुबह और शाम सेवन करने से मिरगी में लाभ होता है।
अतिबला (Atibala atibala) के 7 पत्तों को पानी में पीस लें। इसका रस निकालकर चीनी मिला लें। इसका सेवन करने से पित्त के बढ़ने से होने वाले उन्माद या मैनिया या मानसिक रोगों में लाभ होता है।
अतिबला के 10-20 मि.ली. काढ़े में एक ग्राम सोंठ चूर्ण मिलाकर या जड़ को रातभर पानी में भिगो कर उस पानी को 10-20 मिली मात्रा में पीने से बुखार उतर जाता है।
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1-2 ग्राम अतिबला की जड़ के चूर्ण (Atibala atibala powder) में शहद मिलाकर या अतिबला की जड़ के 20-30 मिली काढ़े का सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है।
अतिबला (Atibala atibala) के पत्तों को कूट कर रात भर पानी में भिगो दें। उस पानी को 10-20 मि.ली. मात्रा में पिलाने से जलन शान्त होती है।
5-10 ग्राम अतिबला की जड़ के काढ़े, चूर्ण (2-3 ग्राम) या रस (5-10 मिली) में मधु तथा घी मिला लें। इसे एक वर्ष तक पाचन क्षमता के अनुसार सुबह और शाम सेवन करें। सेवन के कुछ घंटों बाद पर दूध तथा घी मिला शालि चावल खाएं। इससे बुद्धि बढ़ती है, शरीर को ताकत मिलती है और याददाश्त भी बढ़ती है।
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अतिबला की जड़ को बिच्छू का काटे हुए स्थान पर लगाने से दर्द और सूजन में आराम होता है।
अतिबला (Atibala atibala) का सेवन या प्रयोग चिकित्सक के परामर्शानुसार करें।
पत्ते
जड़
फूल
बीज
अतिबला (Atibala Plant) भारत के सभी गर्म प्रदेशों में अपने आप पैदा होने वाला पौधा (atibala tree) है। कुछ स्थानों पर इसकी खेती भी की जाती है।
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