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कुटकी (holarrhena antidysenterica) भारत की बहुत ही प्रचलित और प्राचीन औषधि है। यह भारत के पर्णपाती वनों में 1000 मीटर तक की ऊंचाई पर पाया जाता है। बरसों से कुटज का प्रयोग दस्त से लेकर घुटनों के दर्द के इलाज के लिए किया जा रहा है। सच कहा जाए तो हर मर्ज का इलाज छिपा है इस औषधि में। आप भी कुटज (holarrhena) का इस्तेमाल कर रोगों को ठीक कर सकते हैं।
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में कुटज (holarrhena antidysenterica) की बहुत चर्चा मिलती है। पेट खराब होने, बार-बार पतला शौच आने, शौच के साथ खून आने की बीमारी, पित्त, आम (आंव) आदि की स्थिति या फिर पेट में मरोड़ के साथ दस्त होने पर कुटज का सेवन बहुत की लाभकारी होता है। आइए जानते हैं कि किन-किन रोगों के लिए गुणकारी है यह औषधि।
यह स्वाद में कड़वा होता है। इस वृक्ष (kutaja plant) का पत्ता, छाल (kutaj chhal)और बीज बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक के बीमारियों के लिए बेहत उपयोगी है। कुटज को आमतौर पर करची, दूधी, इन्द्रजव, कड़वा इंद्र जौ आदि नामों से भी पुकारा जाता है। इसकी दो प्रजातियां होती हैं।_
श्वेत कुटज की भी दो प्रजातियाँ होती हैं जिन्हें
Wrightia tinctoria R. Br. तथा
Wrightia tomentosa Roem.& Schult. कते हैं।
कुटज का वानस्पितक नाम (Holarrhena antidysenterica (Linn.) Wall. ex A.DC.) है तथा श्वेत कुटज (Wrightia tinctoria R. Br.) का वानस्पतिक नाम Holarrhena antidysenterica (Linn.) Wall. ex A.DC. (हौलोरेना ऐन्टिडिसेन्ट्रिका) है।
Kutaj in:-
Shwet Kutaj in:-
अब तक आपने जाना कि कुटज क्या है और इसे कितने नामों से जाना जाता है। आइए जानते हैं कि भारत के जंगलों में पाया जाने वाले इस वृक्ष का (kutaja plant) औषधीय गुण क्या है, कुटज (holarrhena) के सेवन की विधि क्या है और आप कुटज का उपयोग कैसे कर सकते हैंः-
दांत के दर्द में कुटज के छाल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से लाभ (indrajav ke fayde) होता है।
नागरमोथा, अतीस, पान, कुटज (kurchi) की छाल तथा लाक्षा चूर्ण को बराबर बराबर (2-5 ग्राम) लें। इसे जल के साथ सेवन करने से दस्त पर रोक लगती है।
5-10 मिलीग्राम कुटज छाल के रस में 1 चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से दस्त में फायदा (indrajav ke fayde) होता है।
इद्रजौ की छाल के काढ़े (50 मिली) को गाढ़ाकर लें। इसमें 6 ग्राम अतीस का चूर्ण (kutaj churna)मिलाकर दिन में तीन बार पिलाएं। इससे कफ, वात व पित विकार के कारण होने वाले दस्त का उपचार होता है।
टीबी रोगी को दस्त होने लगे तो बराबर भाग में शुण्ठी तथा कुटज (holarrhena) बीज (इद्रजौ) के चूर्ण (6 ग्राम) लें। इसको चावल के धोवन के साथ खाने से पचाने वाली अग्नि सक्रिय होती है और दस्त रुक जाती है।
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40 ग्राम इद्रजौ की छाल को 400 मिलीग्राम पानी में उबाल लें। जब काढ़ा एक चौथाई रह जाए तो इसे छानकर इतना ही अनार का रस मिला लें। इसे आग पर गाढ़ा कर लें और छह ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ सुबह-शाम मिलाकर पिएं। इससे पेचिश में लाभ (indrajav ke fayde) होता है।
कुटज (kutaj) बीज को 50 मिलीग्राम जल में उबाल लें। इसे छानकर शहद मिलाकर दिन में तीन बार पिलाने से पित्तज विकार के कारण होने वाले दस्त (पित्तातिसार) में लाभ या इन्द्रजौ के फायदे होते हैं।
15 ग्राम कुटज की ताजी छाल को छाछ में पीसकर सेवन करने से रक्तज प्रवाहिका में लाभ (indrajav ke fayde) होता है।
10 ग्राम कुटज (kutaj) छाल को पीस लें। इसमें 2 चम्मच शहद या मिश्री मिलाकर सेवन करने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) में लाभ होता है।
कुटज छाल का काढ़ा बना लें। इसे 15-20 मिली मात्रा में 5 ग्राम गाय का घी तथा 1 ग्राम सोंठ मिला कर सुबह और शाम पिएं। इससे बवासीर में होने वाले खून के बहाव पर रोक लगती है।
कुटज (kutaj) की जड़ के छाल को फाणित के साथ सेवन करें या कुटज की जड़ और बन्दाल के जड़ के पेस्ट को छाछ के साथ सेवन करें। इससे बवासीर में लाभ होता है।
कुटज की छाल, इंद्रयव, रसौत तथा अतिविषा के चूर्ण (1-3 ग्राम) में शहद मिला लें। इसे चावल के धोवन के साथ रोगी को पिलाने से तुरंत खूनी बवासीर में लाभ होता है।
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5 ग्राम कुटज (kurchi) के जड़ की छाल को दही में घिस लें। इसे दिन में दो बार सेवन करने से पथरी टूट-टूट कर निकल जाती है। कुटज का इस्तेमाल (inderjo uses) करने से पथरी को निकालने में आसानी होती है।
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कुटज, रोहिणी, बहेड़ा, कैथ, शाल, छतिवन तथा कबीला के फूलों को बराबर भागों में लेकर चूर्ण बना लें। इसके 2-5 ग्राम चूर्ण में दो चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से कफ तथा पित्त से होने वाले डायबिटीज में लाभ ( indrajau for diabetes)होता है।
कुटज के फूल (kurchi flower) या पत्ते को चूर्ण बना लें। इसे 2-3 ग्राम मात्रा में सेवन करने से डायबिटीज में लाभ होता है।
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6 ग्राम इद्रजौ (कुटज बीज) को चार पहर (करीब 12 घंटे) भैंस के दूध में भिगोकर रखे। इसे पीसकर, इंद्रिय पर लेपकर पट्टी बांधे। कुछ देर बाद गुनगुने जल से धो दें। कुछ दिन तक नियमित रूप से ऐसा करने से लिंग की कमजोरी दूर होती है और लिंग में तनाव आता है।
10 ग्राम कुटज की छाल को जल में पीस लें। इसे दिन में तीन बार सेवन करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
कुटज (kurchi) की छाल का काढ़ा बनाकर घाव को धोने से घाव भर जाता है।
कुटज के बीज का पेस्ट बना लें। इसका लेप करने से घाव, कुष्ठ रोग सहित अन्य संक्रामक रोगों में लाभ होता है।
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कुटज की छाल को चावल के पानी में पीसकर लेप करें। इससे फफोले तथा फूसिंयों में लाभ होता है। इसकी ताजी छाल का प्रयोग (inderjo uses in hindi)अधिक लाभकारी होता है।
20-30 मिली कुटज (kurchi) की छाल के काढ़ा में कठगूलर (काकोदुम्बर), विडंग, नीम की छाल, नागरमोथा, सोंठ, मरिच तथा पिप्पली का पेस्ट मिलाएं। इसे पीने से सभी प्रकार के त्वचा रोगों में लाभ होता है।
कुटज का दूध अथवा इसके पत्ते या फिर इसके छाल का पेस्ट बना लें। इसे एक्जिमा, खुजली, त्वचा छिद्रों में होने वाली सूजन सहित अन्य त्वचा रोगों में लाभ होता है।
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कुटज की छाल के पेस्ट को घी में पकाएं। इस घी को 5-10 ग्राम की मात्रा में नियमित सेवन करें। इससे रक्तपित्त (नाक-कान से खून बहने की समस्या) में लाभ होता है।
बराबर मात्रा में इन्द्रजौ, कुटकी और मुलेठी से काढ़ा तैयार कर लें। इसे 10-30 मिली की मात्रा में चावल का धोवन और शहद मिलाकर पीने से बुखार ठीक होता है।
कुटज बीज, मंजिष्ठा तथा काञ्जी को घी में पका लें। इसे शरीर पर हल्के हाथों से मालिश करने से तेज बुखार और शरीर की जलन की समस्या से राहत मिलती है। इसके साथ ही अंगों में आराम महसूस होता है।
कुटज, चक्रमर्द के बीज, वासा, गुडूची, निर्गुण्डी, भृंगराज, सोंठ, कण्टकारी तथा अजवायन से काढ़ा बना लें। इसे 10-30 मिली की मात्रा में सेवन करने से ठंड लगकर बुखार की समस्या में लाभ होता है।
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कुटज के तने की छाल को पीसकर लगाने से पूरे शरीर की सूजन ठीक होती है।
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सांप के काटने पर होने वाले सूजन का उपचार करने के लिए कुटज फल को पीस लें। इसे काटने वाले स्थान पर लेप किया जाता है। इससे लाभ होता है।
कुटज (swetha kutaja) के पत्ते तथा छाल का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन करने से अपच एवं पेट फूलने की समस्या में लाभ होता है।
कुटज छाल (swetha kutaja) के चूर्ण से शरीर का उद्वर्तन करने से जलशोफ में लाभ होता है।
चूर्ण (kurchi bark) – 2-3 ग्राम
काढ़ा -25-50 मिलीग्राम
जड़
पत्ते
तना
फल
पञ्चाङ्ग या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
विशेष :
मलेरिया बुखार तथा मियादी बुखार (टॉयफॉयड) में यह औषधि बहुत प्रभावशाली है। इसके बीज पेट की गैस को दूर करने वाले,सेक्स स्टेमना बढ़ाने वाले और पौष्टिक होते हैं।
10 मिलीग्राम छाल के रस को चावलों के धुले हुई पानी (मांड) के साथ पीने से बवासीर, संग्रहणी आदि रोगों में विशेष लाभ होता है।
कुटज के वृक्ष (kutaja plant) उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दक्षिण भारत व महाराष्ट्र के पर्णपाती वनों में बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
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