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गेहूं (wheat in hindi) की रोटी बनती है जिसे आप सभी रोज खाते होंगे। गेहूं से कई और भी तरह के स्वादिष्ट, खाद्य पदार्थ तैयार किए जाते हैं। इसकी भूसी (चोकर) जानवरों के लिए बहुत उपयोगी होती है। इसके अलावा क्या आप जानते हैं कि गेंहू का उपयोग रोगों को ठीक करने के लिए भी किया जाता है। जी हां, आप जिन गेहूं की रोटी का रोज भोजन करते हैं उसका औषधीय प्रयोग भी किया जाता है।
What is Wheat?
Wheat Called in Different Languages
Benefits and Uses of Wheat
How to Use Wheat?
Doses of Wheat
Side Effects of Wheat
Where is Wheat Found and Grown
आपके लिए यह जानकारी बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि गेहूं हर घर में होता है। आप भी गेंहू के औषधीय प्रयोग की जानकारी ले लीजिए ताकि बीमार होने की स्थिति में रोगों को ठीक करने में गेंहू का पूरी तरह इस्तेमाल कर सकें।
इसकी ऊंचाई 60 से 150 सेमी होती है। इसका तना खोखला और होता है और इसमें गांठें होती हैं। इसकी पत्तियां लंबी और संकरी होती हैं। पत्तियों पर धारियां बनी होती हैं। इसके फल पीले, खूनी लाल या भूरे रंग के होते हैं। ये फल गोलाकार, फूले हुए व दोनों सिरों पर चपटे होते हैं। इसके एक भाग में गहरी धारी बनी होती है।
आयुर्वेद के ग्रंथ भावप्रकाश निघण्टु में इसके तीन किस्मों के बारे में बताया गया है-
गेहूं (wheat in hindi) खाद्यान्न फसल होने के साथ साथ औषधीय गुणों से भरपूर अन्न है। इसका नियमित सेवन कई बीमारियों को दूर रखता है। खांसी, दर्द, गैस, हृदय रोग इत्यादि में गेहूं बहुत ही गुणकारी है। गेहूं की हरेक प्रजाति इन गुणों से भरपूर होती है।
गेहूं पोएसी (Poaceae) कुल का पौधा है। इसका वानस्पतिक (वैज्ञानिक) नाम ट्रिटिकम एस्टिवम (Triticum aestivum Linn) है। वनस्पति विज्ञान में इसे Triticum vulgare Villars, Triticum sativum Lam नामों से भी जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे Wheat (व्हीट), Common wheat (कॉमन ह्वीट), Common bread wheat( कॉमन ब्रेड व्हीट)आदि नामों से जाना जाता है। आइए हम जानते हैं कि हिंदी समेत अन्य भाषाओं में इसके क्या-क्या नाम हैं।
Wheat in –
गेहूं में आयुर्वेदीय गुणों का भरपूर भण्डार है। इसकी तासीर ठंडी होती है। यह चिकना होता है तथा गैस और पित्त को नियंत्रित करने में मददगार होता है। गेहूं ताकत बढ़ाने वाला, पोषण देने वाला और वीर्य बढ़ाने वाला होता है। गेहूं भूख बढ़ाने में सहायक (gehu benefits) होता है। छोटा गेहूं भी वीर्य बढ़ाने वाला, कफ को दूर करने वाला, और पुष्टिकारक होता है। यह छोटे-मोटे रोगों को दूर करने में मदद करता है। आइए गेहूं के इस्तेमाल से संबंधित पूरी जानकारी लेते हैंः-
छाती में दर्द होने पर गेहूं की चोकर को पीस लें। इसे पानी में मिलाकर हलका गुनगुना करके छाती पर लेप करें। छाती का दर्द जल्द शांत (gehu benefits) होता है।
गेहूं और अर्जुन की छाल की बराबर-बराबर मात्रा से चूर्ण बना लें। इसकी 2 से 4 ग्राम मात्रा को गुड़, घी तथा तेल में पकाकर खाने से हृदय के रोगों में लाभ होता है। इस योग के सेवन के बाद केवल दूध पीने से भी इन रोगों में लाभ होता है।
इसके अलावा, गेहूँ (gehu) तथा अर्जुन की छाल के चूर्ण को गाय के घी और बकरी के दूध में पकाएं। इसमें शहद और शक्कर के साथ मिलाकर सेवन करने से भी हृदय रोगों में लाभ होता है।
पुराने गेहूँ के चूर्ण से बने खाद्य पदार्थों का शहद के साथ सेवन करने से पेट संबंधी दिक्कतों, पेट का दर्द इत्यादि में लाभ होता है।
अपच और भूख न लगने जैसी परेशानी में इस तरह की बीमारियों का सामना कर रहे व्यक्ति को गेहूं के चोकर की रोटी बनाकर खिलाने से फायदा होता है।
गेहूं से बने आहारों का नियमित सेवन करना डायबिटीज में सुधार (ankurit gehu for diabetes) करने वाला होता है।
मूत्राशय की छोटी पथरी का इलाज करने के लिए गेहूं का प्रयोग किया जा सकता है। गेहूं और चने का काढ़ा बना लें। इसे 15-20 मिलीलीटर मात्रा में पिलाने से किडनी और मूत्राशय की छोटी पथरी गलकर (gehu benefits) निकल जाती है।
अंडकोष बढ़ने के कारण दर्द हो रहा हो तो, इसके निदान के लिए भेड़ का दूध लें। इसमें गेहूं और कुन्दरु के चूर्ण को गर्म करें। इसे अंडकोष पर लेप करने से दर्द शीघ्र शांत हो जाता है।
योनि में होने वाली खुजली, गांठ आदि की स्थिति में गेहूं का आटा और रेवतिका को घोल का प्रयोग करना चाहिए। इस घोल को गुनगुना कर योनि पर इसका लेप कर सेंकने से इन समस्याओं में लाभ होता है।
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गेहूं (gehu) के चूर्ण को बकरी का दूध और घी में मिलाकर गठिया या जोड़ों के दर्द वाले स्थान पर लेप के रूप में लगाएं। इससे गठिया में लाभ होता है।
जिनकी हड्डी टूटी हो, वे, अस्थि शृंखला (हड़जोड़), लाख, गेहूं और अर्जुन की छाल को बराबर-बराबर मात्रा में मिला लें। इससे तैयार चूर्ण की 5 से 10 ग्राम मात्रा में घी मिलाकर या पकाकर सेवन करने के बाद दूध पीने से लाभ होता है। हड्डियों के टूटने और इनके अपने स्थान से खिसकने की स्थिति में भी इस योग से लाभ होता है।
गेहूं के अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ बनाकर उनका सेवन करना कुष्ठ रोग में लाभ देता है।
घाव भरने में मटर, कलाय, मसूर, गेहूं और निर्गुण्डी के बीज का मिश्रण सहायक होता है। इस मिश्रण को पीसकर घाव पर लगाने से घाव का दर्द जल्द दूर होता है और इसका मवाद खत्म हो जाता है।
आग (gehu) से जले हुए स्थान पर गेहूं के आटे का लेप करने से जलने से होने वाली पीड़ा, सूजन तथा दाह खत्म होती है।
गेहूं के आटे का लेप बनाकर लगाने से खुजली, जलन तथा फुंसियां ठीक होती हैं।
गेहूं के पांच–छह पत्तों वाले अंकुरण (ज्वारे) का रस बहुत ही गुणकारी होटा है। यह अनेक रोगों में काम आता है। खासकर, कैंसर, डायबिटीज और बुखार में यह अधिक प्रभावी (gehu benefits) है। ज्वारे का रस निकालकर इसके 10 से 15 मिलीलीटर रस में 15 मिलीलीटर गिलोय का रस, 5 मिलीलीटर नीम पत्ती का रस और 5 मिलीलीटर तुलसी पत्ती का रस मिलाएं। इसे पिलाने से इन रोगों बहुत ही में तेजी से लाभ होता है।
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काम शक्ति (Sex Stamina) बढ़ाने के लिए भी गेहूं मददगार होता है। इसके लिए केवांच के बीज और गेहूं को दूध में पकाएं। इसे ठंडा कर उसमें घी मिलाकर पीने से काम शक्ति बढ़ती है और बच्चे पैदा करने की संभावना बढ़ जाती है।
गेहूं (gehu) से संबंधित इन चीजों का प्रयोग दवा बनाने के लिए किया जाता है:-
उपरोक्त अंगों के औषधि रूप में प्रयोग के विभिन्न तरीके ऊपर बताये गए हैं। उसके अनुसार चिकित्सक के परामर्श से औषधि बनाकर इसका सेवन किया जा सकता है।
गेहूं से बनी औषधियों के प्रयोग से सामान्य तौर पर किसी नुकसान की जानकारी नहीं है। फिर भी औषधि रूप में प्रयोग से पहले चिकित्सक सलाह अवश्य लेनी चाहिए।
गेहूं (gehu) एक खाद्यान्न फसल है। यह सीधा और शाक प्रकृति का पौधा होता है। गेहूं की खेती भारत के तकरीबन समस्त हिस्सों में होती है। विशेष तौर पर यह उत्तर भारत और दक्षिणी प्रायद्वीप के अलावा उत्तर-पश्चिमी भारत में समुद्र तल से 4300 मीटर तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है। इसकी खेती दिसंबर से अप्रैल के बीच होती है।
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