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Neem: करिश्माई ढंग से फायदा करता है नीम- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

नीम का परिचय (Introduction of Neem)

नीम के पेड़ (Neem Ka Ped) से शायद ही कोई अपरिचित हो। नीम को उसके कड़वेपन के कारण जाना जाता है। सभी लोगों को पता होगा कि कड़वा होने के बाद भी नीम स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक लाभदायक होता है, लेकिन नीम के फायदे क्या-क्या हैं या नीम का उपय़ोग किन-किन रोगों में कर सकते हैं, इस बात की पूरी जानकारी आपको नहीं होगी। नीम के गुणों के कारण इसे धरती का कल्प वृक्ष भी कहा जाता है। आमतौर पर लोग नीम का प्रयोग घाव, चर्म रोग में फायदा लेने के लिए करते हैं लेकिन सच यह है नीम के फायदे (benefits of neem tree in hindi) अन्य कई रोगों में भी मिलते हैं।

नीम के पत्ते का काढ़ा घावों को धोने में कार्बोलिक साबुन से भी अधिक उपयोगी है। कुष्ठ आदि चर्म रोगों पर भी नीम बहुत लाभदायक है। इसके रेशे-रेशे में खून को साफ करने के गुण भरे पड़े हैं। नीम का तेल टीबी या क्षय रोग को जन्म देने वाले जीवाणु की तीन जातियों का नाश करने वाले गुणों से युक्त पाया गया है। नीम की पत्तियों (Benefits of Neem Leaves In Hindi) का गाढ़ा लेप कैंसर की बढ़ाने वाली कोशिकाओं की बढ़ने की क्षमता को कम करता है। आइए जानते हैं कि आप किन-किन रोगों में नीम का उपयोग कर सकते है और नीम के नुकसान (neem ke nuksan) क्या होते हैं।

नीम क्या है? (What is Neem?)

नीम (Neem Ka Ped) भारतीय मूल का एक पूर्ण पतझड़ वृक्ष है जो 15-20 मीटर (लगभग 50-65 फुट) की ऊंचाई तक पहुंच सकता है। कभी-कभी 35-40 मीटर (115-131 फुट) तक भी ऊंचा हो सकता है। इसकी शाखाएं यानी डालियाँ काफी फैली हुई होती हैं। तना सीधा और छोटा होता है और व्यास में 1.2 मीटर तक पहुँच सकता है।

इसकी छाल कठोर तथा दरारयुक्त होती है और इसका रंग सफेद-धूसर या लाल, भूरा भी हो सकता है। 20-40 सेमी (8 से 16 इंच) तक लंबी पत्तियों की लड़ी होती है जिनमें, 20 से लेकर 31 तक गहरे हरे रंग के पत्ते (neem leaves) होते हैं। इसके फूल सफेद और सुगन्धित होते हैं। इसका फल चिकना तथा अंडाकार होता है और इसे निबौली कहते हैं। फल का छिलका पतला तथा गूदे तथा रेशेदार, सफेद पीले रंग का और स्वाद में कड़वा-मीठा होता है। इसकी गुठली सफेद और कठोर होती है जिसमें एक या कभी-कभी दो से तीन बीज होते हैं।

अनेक भाषाओं में नीम के नाम (Neem Called in Different Languages)

नीम का वानस्पतिक यानी लैटिन भाषा में नाम एजाडिरैक्टा इण्डिका (Azadirachta indica (L.) A. Juss.) तथा Syn- Melia indica (A. Juss.) Brantis है। यह कुल मीलिएसी (Meliaceae) का पौधा है। अंग्रेजी तथा विविध भारतीय भाषाओं में इसके नाम निम्नलिखित हैं।

Neem in –

  • Hindi – नीम, निम्ब
  • English – मार्गोसा ट्री (Margosa tree), नीम (Neem)
  • Sanskrit – निम्ब, पिचुमर्द, पिचुमन्द, तिक्तक, अरिष्ट, हिङ्गुनिर्यास, सर्वतोभद्र, मालक, अर्कपादप, छर्दन, हिजु, काकुल, निम्बक, प्रभद्र, पूकमालक, पीतसारक, गजभद्रक, सुमना, सुभद्र, शुकप्रिय, शीर्षपर्ण, शीत, धमन, अग्निधमन
  • Garhwali – बेटैन (Betain), निम (Nim)
  • Oriya – नीमो (Nimo), निम्ब (Nimb)
  • Urdu – नीम (Neem)
  • Kannada – निम्ब (Nimb), बेवू (Bevu)
  • Gujarati – लिम्बा(Limba), कोहुम्बा (Kohumba)
  • Telugu – वेमू (Vemu), वेपा (Vepa)
  • Tamil – बेम्मू (Bemmu), वेप्पु (Veppu)
  • Bengali – निम (Nim), निमगाछ (Nimgachh)
  • Nepali – नीम (Neem)
  • Punjabi – निम्ब (Nimb), निप (Nip), बकम (Bakam)
  • Marathi – बलन्तनिंब (Balantnimba)
  • Malayalam – वेप्पु (Veppu), निम्बम (Nimbam)
  • Arabic – अजाडेरिखत (Azadirakht), मरगोसा (Margosa), निम (Nim)
  • Persian – नीब (Neeb), निब (Nib), आजाद दख्तुल हिंद (Azad dakhtul hind)

नीम के औषधीय गुण और प्रयोग विधि (Medicinal Benefits of Neem in Hindi)

नीम को निम्ब भी कहा जाता है। कई ग्रन्थों में वसन्त-ऋतु (विशेषतः चैत्र मास मतलब 15 मार्च से 15 मई) में नीम के कोमल पत्तों (Neem Ke Patte Ke Fayde In Hindi) के सेवन की विशेष प्रंशसा की गई है। इससे खून साफ होता है तथा पूरे साल बुखार, चेचक आदि भयंकर रोग नहीं होते हैं। विभिन्न रोगों में नीम का प्रयोग (uses of neem in hindi) करने की विधि नीचे दी जा रही हैः-

बालों की समस्याओं में लाभकारी है नीम का प्रयोग (Benefits of Neem for Hair Problems in Hindi)

नीम के फायदे बालों के लिए बहुत ही लाभकारी है। बाल झड़ने से लेकर बालों के असमय पकने जैसी बालों की समस्याओं में इसका प्रयोग किया जा सकता है।

  1. नीम के बीजों को भांगरा के रस तथा असन पेड़ की छाल के काढ़े में भिगो कर छाया में सुखाएं। ऐसा कई बार करें। इसके बाद इनका तेल निकालकर नियमानुसार 2-2 बूँद नाक में डालें। इससे असमय सफेद हुए बाल काले हो जाते हैं। इस प्रयोग के दौरान केवल दूध और भात यानी पके हुए चावल ही खाने चाहिए।
  2. नीम के बीज के तेल को नियमपूर्वक 2-2 बूँद नाक में डालने से सफेद बाल काले हो जाते है। इस दौरान केवल गाय का दूध ही भोजन के रूप में लेना होता है। (सफेद बालों को काला करने के घरेलू उपाय)
  3. नीम के पत्ते (Neem Ke Patte) एक भाग तथा बेर पत्ता 1 भाग को अच्छी तरह पीस लें। इसका उबटन या लेप सिर पर लगाकर 1-2 घंटे बाद धो डालें। इससे भी बाल काले, लंबे और घने होते हैं।
  4. नीम के पत्तों को पानी में अच्छी तरह उबालकर ठंडा हो जाने दें। इसी पानी से सिर को धोते रहने से बाल मजबूत होते हैं, बालों का गिरना या झड़ना रुक जाता है। इसके अतिरिक्त सिर के कई रोगों में लाभ होता है।
  5. सिर में बालों के बीच छोटी-छोटी फुन्सियां हों, उनसे पीव निकलता हो या केवल खुजली होती हो तो नीम का प्रयोग बेहतर परिणाम देता है। ऐसे अरूंषिका तथा क्षुद्र रोग में सिर तथा बालों को नीम के काढ़े से धोकर रोज नीम का तेल लगाते रहने से तुरंत लाभ होता है।
  6. नीम के बीजों को पीसकर लगाने से या नीम के पत्तों (neem leaves) के काढ़े से सिर धोने से बालों की जुँए और लीखें मर जाती हैं।

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सिर का दर्द भगाए नीम का उपयोग (Benefits of Neem for Relief from Headache in Hindi)

सूखे नीम के पत्ते, काली मिर्च और चावल को बराबर मात्रा में मिलाकर बारीक चूर्ण बना लें। सूर्योदय से पहले सिर के जिस ओर दर्द हो, उसी ओर की नाक में इस चूर्ण को एक चुटकी भर नाक में डालें। इससे आधासीसी (अधकपारी) के दर्द यानी माइग्रेन में जल्द लाभ (neem ka upyog) होता है।

नीम तेल को ललाट पर लगाने से सिर का दर्द ठीक होता है।

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नीम का इस्तेमाल आँखोंं के रोगों के लिए फायदेमंद (Benefits of Neem for Cure Eye Problems in Hindi)

नीम का प्रयोग आँखोंं के दर्द, खुजली, लाली आदि सभी रोगों में भी काफी लाभकारी है।

  1. जिस आँख में दर्द हो, उसके दूसरी ओर के कान में नीम के कोमल पत्तों का रस गुनगुना कर 2-2 बूँद टपकाएं। दोनों आँखों में दर्द हो तो दोनों कान में टपकाएं। दर्द समाप्त हो जाएगा।
  2. नीम के पत्ते (neem leaves) और लोध्र के बराबर चूर्ण को पोटली में बाँधकर उस पोटली को पानी में डाल दें। इस पानी की 2-3 बूंदें आँखोंं में डालने से आँखोंं की सूजन तथा दर्द आदि रोग दूर होते हैं।
  3. यदि आँखोंं के ऊपर सूजन के साथ ही दर्द हो और अन्दर खुजली होती हो तो नीम के पत्ते तथा सोंठ को पीसकर थोड़ा सेंधा नमक मिला लें। इसे हल्का गर्म कर लें। एक कपड़े की पट्टी पर इसे रखकर आँखोंं पर बाँधें। 2-3 दिन में आँखोंं का यह रोग दूर हो जाता है। इस समय ठंडे पानी एवं ठंढ़ी हवा से आँखोंं को बचाना चाहिए। अच्छा होगा कि यह प्रयोग रात को करें।
  4. आधा किलोग्राम नीम के पत्तों को मिट्टी के दो बर्तनों के बीच में रख कंडो की आग में डाल दें। ठण्डा होने पर अन्दर की राख को 100 मिली नींबू रस में मिलाकर सुखा लें। इसे किसी एयरटाइट (जिसमें हवा ना जा सके) बोतल में भर कर रख लें। इस राख को काजल की तरह आँखोंं में लगाने से आँखोंं की खुजली तथा जलन में लाभ होता है।
  5. 50 ग्राम नीम के पतों को पानी के साथ महीन पीसकर टिकिया बनाकर सरसों के तेल में पकाएं। जब वह जलकर काली हो जाय तब उसे उसी तेल में मिलाकर उसमें दसवां भाग कपूर तथा दसवां हिस्सा कलमी शोरा मिला लें। इसे खूब घोंटकर कांच की शीशी में भर कर रख लें। इसे रात के समय आँख में काजल की तरह लगाएँ और सुबह त्रिफला के पानी से आँखोंं को धोएं। इससे आँखोंं की खुजली, जलन, लालिमा आदि दूर होती है और आँखोंं की रौशनी बढ़ती (neem ka upyog) है।
  6. नीम की 20 कोंपलें, जस्ता भस्म 20 ग्राम, लौंग 6 नग, छोटी इलायची 6 नग और मिश्री 20 ग्राम को मिला लें। इसे खूब महीन पीस छानकर काजल बना लें। इसे सुबह-शाम सलाई से आँखोंं में लगाने से आँखों के सभी प्रकार के रोग दूर होते हैं तथा आँखोंं की रौशनी भी बढ़ती है।
  7. दस ग्राम साफ रूई को फैला लें। इस पर नीम के 20 सूखे पत्ते (neem leaves) बिछाकर एक ग्राम कपूर का चूर्ण छिड़क कर रूई को लपेट कर बत्ती बना लें। इस बत्ती को 10 ग्राम गाय के घी में भिगोकर, जला लें। इससे काजल बना लें। इस काजल को रात के समय आँखोंं में लगाने से पानी गिरना, लाली आदि आँखोंं के रोग दूर होते हैं। यह बच्चों के लिए और भी गुणकारी है।
  8. वमनी अथवा सलाक रोग में आँखोंं की पलकें मोटी हो जाती हैं, खुजली होती है, बरौनी झड़ जाती है तथा पलकों के किनारे लाल हो जाते हैं। इस रोग में नीम के पत्तों के रस को पका कर गाढ़ा कर लें। इसे ठंडा करके काजल के रूप में लगाते रहने से लाभ होता है।
  9. नीम की बीज की मींगी का चूर्ण नित्य (1 या 2 सलाई) आँखों में काजल की तरह लगाने से मोतियाबिंद में लाभ होता है।
  10. नीम के फूलों को छाया में सुखाकर बराबर भाग कलमी शोरा मिलाकर महीन पीसकर कपड़े से छान लें। इसको आँखोंं में काजल की तरह लगाने से आँख की फूली यानी मोतियाबिन्द, धुंध, जाला इत्यादि रोगों में लाभ होता है और आँखोंं की ज्योति बढ़ती (neem ke fayde) है।
  11. रतौंधी में नीम के कच्चे फल का दूध आँखों में काजल की तरह लगाएं। निश्चित लाभ होगा।

नकसीर (नाक से खून बहना) में लाभकारी है नीम का प्रयोग (Uses of Neem to Stop Nasal Bleeding in Hindi)

नीम की पत्तियां और अजवायन को बराबर मात्रा में पीस ले। इसे कनपटियों पर लेप करने से नाक से खून बहना यानी नकसीर बन्द होता है।

कान का बहना रोके नीम का उपयोग (Uses of Neem in Ear Problems Treatment in Hindi)

नीम के फायदे से कानों की बीमारियों को भी ठीक किया जा सकता है।

  1. नीम के पत्ते (neem leaves) के रस में बराबर मात्रा में मधु मिला लें। इसे 2-2 बूँद सुबह-शाम कान में डालने से लाभ होता है। इसे डालने से पहले कान को अच्छी प्रकार साफ कर लें।
  2. कान से पीव निकलती हो तो नीम के तेल में शहद मिला लें। इसमें रूई की बत्ती भिगोकर कान में रखने से लाभ होता है।
  3. नीम तेल 40 मिली तथा 5 ग्राम मोम को आग पर गर्म करें। मोम गल जाने पर उसमें फूलाई हुई फिटकरी का 750 मिग्रा चूर्ण अच्छी तरह मिलाकर शीशी में रख लें। इस मिश्रण की 3-4 बूँद दिन में दो बार डालने से कान का बहना बन्द (neem ka upyog) होता है।
  4. नीम के पते के 40 मिली रस को 40 मिली तिल के तेल में पकाएं। तेल मात्र शेष रहने पर छान कर 3-4 बूँद कान में डालें। कान का बहना बंद हो जाएगा।

नीम का इस्तेमाल दांतों के रोगों में लाभदायक (Uses of Neem in Treating Dental Disease in Hindi)

अत्यंत प्राचीन काल से ही नीम दातुन यानी दाँतों को साफ करने के लिए नीम की दातुन का प्रयोग होता रहा है। नीम की दातुन करने से दांत संबंधित रोग नहीं होते हैं।

  1. नीम की जड़ की छाल का चूर्ण 50 ग्राम, सोना गेरू 50 ग्राम तथा सेंधा नमक 10 ग्राम, इन तीनों को मिला कर खूब महीन पीस लें। इसे नीम के पते के रस में भिगो कर छाया में सुखा दें। यह एक भावना हुई। ऐसी ही तीन भावनायें देकर और सुखाकर शीशी में रख लें। इस चूर्ण से दाँतों को मंजन करने से दाँतों से खून गिरना, पीव निकलना, मुंह में छाले पड़ना, मुंह से दुर्गन्ध आना, जी का मिचलाना आदि रोग दूर (neem ke fayde) होते हैं।
  2. 100 ग्राम नीम की जड़ को कूट कर आधा लीटर पानी में एक चौथाई शेष रहने तक उबालें। इस पानी से कुल्ला करने से दांतों के अनेक रोग दूर होते हैं।

टीबी (क्षय रोग) में लाभकारी है नीम का सेवन (Neem Benefits in TB Disease in Hindi)

नीम के तेल की 4-4 बूँदों को कैप्सूल में भरकर दिन में तीन बार सेवन करने से टी.बी. जैसे रोग में फायदा मिलता है।

दमा रोग में फायदेमंद नीम का प्रयोग (Neem Benefits in Asthma in Hindi)

3-6 बूँद शुद्ध नीम के बीज के तेल को पान में डाल कर खाने से दम फूलना आदि सांसों के रोगों में लाभ होता है।

नीम का सेवन करता है पेट के कीड़ों को खत्म (Neem Benefits in Cure Stomach Bugs in Hindi)

नीम के फायदे से पेट के रोगों को भी ठीक किया जा सकता है।

  1. नीम की छाल, इन्द्रजौ और वायबिडंग को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण की 1.5 ग्राम मात्रा में चौथाई ग्राम भुनी हींग मिला लें। इस मिश्रण को मधु में मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
  2. बैंगन या किसी और सब्जी के साथ नीम के 8-10 पत्तों को छौंक कर खाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
  3. नीम के पत्तों का रस निकालकर 5 मिली मात्रा में पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते है।

एसिडिटी में फायदा पहुंचाता है नीम का सेवन (Neem Benefits in Acidity Problem in Hindi)

  1. नीम की सींक, धनिया, सोंठ और शक्कर सभी 6-6 ग्राम को एक साथ मिला लें। इसका काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से खट्टी डकारें, अपच तथा अत्यधित प्यास लगने की समस्या दूर होते हैं।
  2. पित्त यानी एसिडिटी के कारण होने वाले बुखार में भी यह प्रयोग लाभकारी है।
  3. नीम पंचांग का महीन चूर्ण एक भाग, विधारा चूर्ण 2 भाग तथा सत्तू 10 भाग तीनों को मिलाकर रखें। उचित मात्रा में शहद के साथ सेवन करने से एसिडिटी में लाभ होता है।

पेट दर्द में नीम का उपयोग लाभदायक (Neem Benefits in Cure Stomach Pain in Hindi)

40-50 ग्राम नीम की छाल को जौ के साथ कूटकर 400 मिली जल में पकाएं व इसमें 10 ग्राम नमक भी डाल दें। आधा शेष रहने पर गुनगुना कर पिलाने से पेटदर्द में आराम होता है।

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नीम का इस्तेमाल दस्त में लाभदायक (Benefits of Neem Tree to Stop Dysentery in Hindi)

आप नीम के फायदे से दस्त पर भी रोक लगा सकते हैं।

  1. नीम की 50 ग्राम अंदर की छाल को मोटा कूट कर 300 मिली पानी में आधा घंटे उबालकर छान लें। इसी छनी हुई छाल को फिर 300 मिली पानी में उबालें। 200 मिली शेष रहने पर छानकर शीशी में भर लें और इसमें पहले छना हुआ पानी भी मिला दें। इस पानी को रोगी को 50-50 मिली दिन में 3 बार पिलाने से दस्त बन्द हो जाता है।
  2. 125-250 मिग्रा नीम की अंदर की छाल की राख को 10 मिली दही के साथ दिन में दो बार सेवन करें। इससे आमातिसार यानी आँव वाले दस्त में लाभ (neem ke fayde) होता है।
  3. रोज सुबह 3-4 पकी निबौलियां खाने से खूनी पेचिश ठीक होता है तथा भूख खुल कर लगती है।
  4. 10 ग्राम नीम के पते के साथ 1.5 ग्राम कपूर मिलाक लें। इसे पीसकर सेवन करने से हैजा में लाभ होता है।

उलटी में लाभकारी है नीम का सेवन (Benefits of Neem Tree to Stop Vomiting in Hindi)

  1. नीम की 7 सीकों को 2 बड़ी इलायची और 5 काली मिर्च के साथ महीन पीस लें। इसे 250 मिली पानी के साथ मिलाकर पीने से उलटी बन्द होती है।
  2. 5-10 मिग्रा नीम की छाल के रस में मधु मिलाकर पिलाने से उलटी तथा अरुचि आदि में लाभ होता है।
  3. 20 ग्राम नीम के पत्तों को 100 मिली पानी में पीसकर, छान लें। इसे 50 मिली मात्रा में सुबह-शाम पिलाने से उलटी तथा अरुचि में लाभ होता है।
  4. 8-10 नीम के कोमल पत्तों को घी में भूनकर खाने से भोजन से होने वाली अरुचि दूर होती है।

बवासीर में फायदेमंद नीम का प्रयोग (Benefits of Neem Tree in Piles Treatment in Hindi)

  1. 50 मिली नीम तेल, 3 ग्राम कच्ची फिटकरी तथा 3 ग्राम सुहागा को महीन पीसकर मिला दें। शौच-क्रिया में धोने के बाद इस मिश्रण को उंगली से गुदा के भीतर तक लगाएं। इससे कुछ ही दिनों में बवासीर ठीक होता है।
  2. नीम के बीजों तथा बकायन के बीजों की सूखी गिरी, छोटी हरड़, शुद्ध रसौत 50-50 ग्राम तथा घी में भूनी हींग 5 ग्राम लें। इन सबका महीन चूर्ण बना लें। इसमें 50 ग्राम बीज निकाले हुए मुनक्का को पीसकर 500 मिग्रा की गोलियां बना लें। 1-2 गोली को दिन में 2 बार बकरी के दूध या ताजे पानी के साथ सेवन करने से सब प्रकार के बवासीर में लाभ होता है। खून गिरना बंद होता है और दर्द भी समाप्त (neem ke fayde) होता है।
  3. छिलके सहित कूटी हुई सूखी निबौरी के 1-2 ग्राम महीन चूर्ण को सुबह खाली पेट सेवन करने से बवासीर के रोगी को बहुत लाभ होता है। इसे रात के रखे पानी के साथ सेवन करना है। इसके सेवन के दौरान घी का प्रयोग अवश्य करें, अन्यथा आँखोंं की रौशनी प्रभावित हो सकती है।
  4. नीम के बीज की गिरी, एलुआ और रसौत को बराबर मात्रा में मिलाकर खरल कर गोलियां बना लें। सुबह एक गोली छाछ के साथ सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।
  5. नीम के बीजों की गिरी 100 ग्राम और जड़ की छाल 200 ग्राम को पीस लें। इसकी 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर 4-4 गोली को दिन में 4 बार सात दिन तक खिलाएं। इसके साथ ही नीम के काढ़े से मस्सों को धोएं या पत्तों (uses of neem leaves) को पीस कर मस्सों पर बाँधें। बवासीर में निश्चित लाभ होगा।
  6. 100 ग्राम सूखी निबौली को 50 मिली तिल के तेल में तलकर पीस लें। बाकी बचे तेल में 6 ग्राम मोम, 1 ग्राम फूला हुआ नीला थोथा और इस चूर्ण को मिलाकर मलहम बना लें। इसे दिन में 2-3 बार बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से खत्म हो जाते हैं।
  7. नीम के बीज की गिरी 20 ग्राम, फिटकरी का फूला 2 ग्राम और सोना गेरू 3 ग्राम को पीस लें। इससे मलहम जैसा बना लें। यदि मलहम जैसा न बने तो उसमें थोड़ा घी या मक्खन अथवा गिरी का तेल मिला कर घोटना चाहिए। इसे लगाने से मस्सों का दर्द तत्काल दूर होता है। खून बहना बन्द होता है एवं मस्से मुरझा जाते हैं। इस प्रयोग में कपूर मिला कर एरंड के तेल में भी मलहम बनाया जा सकता है।
  8. 50 ग्राम कपूर तथा 50 ग्राम नीम के बीज के गिरी का तेल को मिला लें। इसे थोड़ी मात्रा में मस्सों पर लगाते रहने से लाभ होता है।

पीलिया में लाभ पहुंचाए नीम का सेवन (Benefits of Neem Tree in Fighting with Jaundice in Hindi)

  1. नीम पंचांग के एक ग्राम महीन चूर्ण में 5 ग्राम घी और 10 ग्राम शहद मिला लें। इसका सेवन करने से शरीर में खून की कमी को दूर होती है और पीलिया ठीक होता है। यदि घी और शहद किसी को अच्छा न लगता हो तो एक ग्राम पंचांग चूर्ण को गाय के पेशाब या पानी या गाय के दूध के साथ भी ले सकते हैं।
  2. नीम की सींक 6 ग्राम और सफेद पुनर्नवा की जड़ 6 ग्राम को पानी में पीस कर छान लें। कुछ दिनों तक पिलाते रहने से पीलिया में लाभ होता है।
  3. नीम का पत्ता, गिलोय का पत्ता, गूमा (द्रोणपुष्पी) का पत्ता और छोटी हरड़ (सभी 6-6 ग्राम) लेकर सभी को कूट लें। इसे 200 मिली पानी में पकाएं। 50 मिली शेष रहने पर छान लें। इसे 10 ग्राम गुड़ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से पीलिया में विशेष लाभ होता है। इस काढ़े के सेवन से पहले 200 मिग्रा शिलाजीत को 6 ग्राम मधु के साथ चाट लें।
  4. पित्त की नली में रुकावट होने से पीलिया रोग हो जाए तो 10-20 मिली नीम के पते के रस में, तीन ग्राम सोंठ का चूर्ण और 6 ग्राम शहद मिला लें। इसे तीन दिन सुबह खाली पेट पीने से लाभ होता है। दवा लेते समय घी, तेल, चीनी व गुड़ का प्रयोग नहीं करें। खाने में दही-भात लें।
  5. सुखे हुए नीम के पत्ते (uses of neem leaves) , नीम के जड़ की छाल, फूल और फल को बराबर मात्रा में लेकर महीन पीस लें। इस चूर्ण को एक ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार घी व शहद में मिलाकर अथवा गाय के पेशाब या गाय के दूध या पानी के साथ सेवन करें। पीलिया रोग ठीक होगा।
  6. 10 मिली नीम के पत्ते के रस में 10 मिली अडूसा के पत्ते का रस व 10 ग्राम मधु मिला लें। इसे रोज सुबह खाली पेट सेवन करने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
  7. 20 मिली नीम के पत्ते के रस में थोड़ी चीनी मिलाकर, थोड़ा गरम कर सेवन करें। दिन में एक बार तीन दिन तक सेवन करने से भी लाभ हो जाता है।
  8. नीम के 5-6 कोमल पत्तों को पीसकर, शहद मिलाकर सेवन करने से भी पीलिया, पेशाब संबंधित रोग तथा पेट के रोगों में भी लाभ होता है।
  9. 10 मिली नीम के पत्ते के रस में 10 ग्राम मधु मिलाकर 5-6 दिन पीने से पीलिया में बहुत लाभ होता है।

डायबिटीज में फायदेमंद नीम का उपयोग (Neem Leaf Benefits in Gonorrhea in Hindi)

  1. प्रमेह रोग को ही डायबिटीज भी कहते हैं। नीम के पत्तों को पीसकर टिकिया बनाकर थोड़े से गाय के घी में अच्छी तरह तल लें। टिकिया जल जाने पर, घी को छानकर रोटी के साथ सेवन करने से प्रमेह रोग में लाभ होता है।
  2. 10 मिली नीम के पत्ते के रस में मधु मिलाकर प्रतिदिन सेवन करें। प्रमेह रोग मतलब डायबिटीज में फायदा होता है।
  3. 20 मिली नीम के पत्ते के रस में एक ग्राम नीला थोथा अच्छे से मिलाकर सुखा लें। इसे कौड़ियों में रखकर जला कर भस्म करें। 250 मिग्रा भस्म को गाय के दूध के साथ दिन में दो बार सेवन करें। प्रमेह यानी डायिबटीज में लाभ होगा।
  4. 40 ग्राम नीम के छाल को मोटा-मोटा कूट कर 2.5 लीटर पानी डाल लें। इसे मिट्टी के बरतन में पकाएं। 200 मिली शेष रहने पर छान कर दोबारा पकाएं और 20 या 25 ग्राम कलमी शोरा चूर्ण चुटकी से डालते जायें और नीम की लकड़ी से हिलाते जाएं। सूख जाने पर पीस-छानकर रख लें। 250 मिग्रा की मात्रा रोजाना गाय के दूध की लस्सी के साथ सेवन कराने से डायिबटीज में जल्द लाभ हो जाता है।

पथरी की बीमारी में नीम के पत्तों का प्रयोग असरदार (Neem Leaf Benefits in Cure Kidney Stone in Hindi)

नीम के पत्तों की 500 मिग्रा राख को कुछ दिनों तक लगातार जल के साथ सेवन करें। इसे दिन में 3 बार खाने से पथरी टूटकर निकल जाती है।

दो ग्राम नीम के पत्तों को 50 से 100 मिली तक पानी में पीस-छानकर डेढ़ मास तक पिलाते रहने से पथरी टूटकर निकल जाती है। इसे सुबह, दोपहर तथा शाम लेना होता है।

नीम के उपयोग से सुखते हैं स्तनों के घाव (Neem Uses in Healing Nipple Wounds in Hindi)

50 मिली सरसों के तेल में 25 ग्राम नीम के पत्ते को पकाकर घोट लें। नीम के पत्ते के काढ़े से घाव को धोकर पोछ लें। उसके वाद राख मिला तेल लगा दें तथा कुछ सूखी राख ऊपर से लगाकर पट्टी बाँध दें। 2-3 दिन में काफी आराम हो जाता है। इसके बाद रोज नीम के काढ़े से धोकर नीम तेल लगाते रहें। घाव तुरंत भरकर सूख जाएगा।

योनि का दर्द मिटाए नीम का उपयोग (Neem Benefits in Relief from Vaginal Pain in Hindi)

  1. कई बार स्त्रियों को योनि में दर्द हो जाता है। नीम की गिरी को नीम के पत्ते के रस में पीसकर गोलियां बना लें। गोली को कपड़े के भीतर रखकर सिल लें (इसमें एक डोरा लटकता रहे)। रोज एक गोली योनिमार्ग में रखने से दर्द में आराम होता है।
  2. नीम के बीजों की गिरी, एरंड के बीजों की गिरी तथा नीम के पत्ते का रस को बराबर मात्रा में मिला लें। इसकी बत्ती बनाकर योनि में डालने से योनि का दर्द ठीक होता है।
  3. नीम के छाल को अनेक बार पानी में धोकर, उस पानी में रूई को भिगोकर रोज योनि में रखें। धोने से बची हुई छाल को सुखाकर जलाकर उसका धुँआ योनि के मुंह पर दें। इसके साथ ही नीम के पानी से बार-बार योनि को धोएं। इन प्रयोगों से ढीली योनि सख्त हो जाती है।

मासिक धर्म विकार में लाभदायक नीम का सेवन (Neem Uses in Cure Menstrual Problems in Hindi)

मोटी कूटी हुई नीम की छाल 20 ग्राम, गाजर के बीज 6 ग्राम, ढाक के बीज 6 ग्राम, काले तिल और पुराना गुड़ 20-20 ग्राम लें। इन्हें मिट्टी के बर्तन में 300 मिली पानी के साथ पकाएं। 100 मिली शेष रहने पर छानकर सात दिन तक पिलाएं। मासिक विकारों में लाभ होता है। इसे गर्भवती स्त्री को नहीं देना चाहिए।

प्रदर रोग (ल्यूकोरिया) में फायदेमंद नीम का सेवन (Neem Uses in Leucorrhea Treatment in Hindi)

नीम की छाल और बबूल की छाल बराबर-बराबर मात्रा में लेकर 10-30 मिली काढ़ा बनाएं। 10-20 मिली काढ़े का सुबह-शाम सेवन करने से सफेद प्रदर यानी ल्यूकोरिया रोग में लाभ होता है।

10 ग्राम नीम के छाल के साथ बराबर गिलोय को पीसकर दो चम्मच मधु मिला कर दिन में तीन बार पिलाएं। इससे मासिक के दौरान अधिक रक्तस्राव होने में लाभ होता है।

और पढ़ें: बबूल की छाल के लाभ

सूतिका रोग में नीम का इस्तेमाल लाभदायक (Neem Benefits after Post Delivery Problems in Hindi)

नीम प्रसव के दौरान या बाद में होने वाले परेशानियों को दूर करता है।

  1. प्रसव के दौरान ज्यादा दर्द हो रहा हो तो 3-6 ग्राम नीम के बीज के चूर्ण का सेवन लाभकारी होता है।
  2. प्रसव के बाद रुके हुए दूषित खून को निकालने के लिए 10-20 मिली नीम के छाल के काढ़े को 6 दिन तक सुबह-शाम पिलाना चाहिए।
  3. नीम की 6 ग्राम छाल को पानी के साथ पीस लें। 20 ग्राम घी मिलाकर कांजी के साथ पिलाने से प्रसव के बाद होने वाले रोगों में लाभ होता है।
  4. नीम की लकड़ी को प्रसूता के कमरे में जलाने से नवजात बच्चे के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा होता है।

नीम के प्रयोग से सिफलिस रोग में फायदा (Neem Benefits in Cure Syphilis in Hindi)

उपदंश या सिफलिस एक प्रकार का यौन रोग होता है। इसमें भी नीम से लाभ होता है। 20 ग्राम नीम छाल को मोटा कूट कर 1 लीटर खौलते हुए पानी में डालकर, रात भर रहने दें। सुबह छानकर 50 मिली की मात्रा में रोगी को पिलाएं और शेष पानी से लिंग के घाव को साफ करें। इस प्रयोग के दौरान केवल घी, खांड और गेहूं की पतली रोटी खाने को दें।

और पढ़ेंयौन रोग में प्याज के फायदे

नीम करता है गर्भ-निरोधक का काम (Neem Benefits as Contraceptive in Hindi)

नीम के शुद्ध तेल में रूई का फाहा गीला करके सहवास से पहले योनि के भीतर रखने से गर्भ स्थापित नहीं होता।

10 ग्राम नीम के गोंद को 250 मिली पानी में गलाकर कपड़े से छान लें। इस पानी में 45 सेमी लम्बा और 45 सेमी चौड़ा साफ मलमल का कपड़ा भिगोकर छाया में सुखा लें। सूखने पर 0.3 सेमी व्यास के गोल-गोल टुकडे काटकर साफ शीशी में भर लें। सहवास से पहले एक टुकड़ा योनि के अन्दर रख लें। इससे गर्भ नहीं ठहरता। एक घंटे बाद निकालकर फेंक दें।

गठिया रोग में नीम से फायदा (Benefits of Neem in Gout Disease in HIndi)

  1. नीम के पत्ते 20 ग्राम, कड़वे परवल के पत्ते 20 ग्राम को 300 मिली पानी में पकाएं। एक चौथाई कप शेष रहने पर शहद मिला कर सुबह-शाम सेवन करने से खून की शुद्धि होती है और वात दोष शांत होता है। इससे गठिया रोग में लाभ होता है। इसके साथ ही नीम के पत्तों (uses of neem leaves) को कांजी या छाछ में उबालकर तथा पीसकर जोड़ों पर लेप करते रहना चाहिए।
  2. 20 ग्राम नीम के अन्दर की छाल को पानी के साथ खूब महीन पीसकर दर्द के स्थान पर गाढ़ा लेप करें। सूख जाने पर लेप उतार कर दुबारा लेप करें। इससे 3-4 बार में ही जोड़ों के दर्द में आराम होता है।
  3. 10-20 बूँद नीम के छाल के अर्क का 2-4 दिन तक सेवन करें। इसके दो घंटे के बाद ताजी बनी हुई रोटी को घी के साथ खाएं। इससे लकवा व गठिया में लाभ होता है व कई प्रकार के अन्य दर्द भी दूर होते हैं।
  4. नीम के बीज के तेल की मालिश करने से आमवात यानी गठिया में लाभ होता है।
  5. नीम के बीज के तेल की कुछ बूँदों को पान में लगाकर खिलाने से तथा रास्नादि काढ़े में इसकी 30 बूँदें डाल कर पिलाएं। इससे ऐंठन तथा कई तरह के वात-विकार दूर हो जाते हैं।

नीम के इस्तेमाल से हाथीपाँव रोग में लाभ (Benefits of Neem in Elephantiasis in Hindi)

नीम की छाल और खदिर 10-10 ग्राम को 50 मिली गोमूत्र में पीसकर छान लें। इसमें 6 ग्राम मधु मिलाकर सुबह, दोपहर तथा शाम पिलाने से हाथीपाँव या फाइलेरिया रोग में लाभ होता है।

नीम के प्रयोग से चेचक में लाभ (Benefits of Neem in Chicken Pox in Hindi)

  1. नीम की सात लाल कोमल पत्तियां और सात दाने काली मिर्च को मिला लें। इनका एक महीने तक नियमपूर्वक खाने से एक साल तक चेचक निकलने का डर नहीं रहता।
  2. नीम के बीज, बहेड़े के बीज और हल्दी को बराबर मात्रा में लें। इसे ठण्डे पानी में पीस-छानकर कुछ दिनों तक पीने से चेचक निकलने का डर नहीं रहता है।
  3. तीन ग्राम नीम की कोंपलों को 15 दिन तक लगातार खाने से छह मास तक चेचक नहीं निकलती। अगर निकलती भी है तो आँखें खराब नहीं होती।
  4. चेचक के दानों में अगर बहुत गर्मी हो तो नीम की 10 ग्राम कोमल पत्तियों को पीस लें। इसका रस बहुत पतला कर लेप करना चाहिए। चेचक के दानों पर कभी भी मोटा लेप नहीं करना चाहिए।
  5. नीम के बीजों की 5-10 गिरी को पानी में पीसकर लेप करने से चेचक के दानों की जलन शांत होती है।
  6. चेचक के रोगी को अधिक प्यास लगती हो तो नीम की छाल को जलाकर उसके अंगारों को पानी में डालकर बुझा लें और इस पानी को छानकर रोगी को पिलाने से प्यास बुझ जाती है। अगर प्यास इससें भी शान्त न हो तो एक लीटर पानी में 10 ग्राम कोमल पत्तियों (uses of neem leaves) को उबाल लें। जब आधा पानी रह जाये, तब छान कर पिलाएं।
  7. प्यास के अतिरिक्त यह चेचक के विष एवं तेज बुखार को भी हल्का करता है। इससे चेचक के दाने भी जल्दी सूख जाते हैं।
  8. यदि चेचक खुलकर न निकले और रोगी बेचैन हो, छटपटाने और रोने लगे तो नीम की हरी पत्तियों का रस 10 मिली सुबह, दोपहर तथा शाम को पिलाना चाहिए।
  9. जब चेचक ठीक हो जाये तो नीम के पत्तों के काढ़े से नहाना चाहिए।
  10. जब चेचक के दानों के खुंड सूखकर उतर जाते हैं तो उनकी जगह पर छोटे-छोटे गड्ढे दिखाई देते हैं और आकृति बिगड़ जाती है। इन स्थानों पर नीम का तेल अथवा नीम के बीजों की मगज को पानी में घिसकर लगाया जाए तो दाग मिट जाते हैं।
  11. चेचक के रोगी के अगर बाल झड़ जाये तो सिर में कुछ दिनों तक नीम का तेल लगाने से बाल फिर से जम जाते हैं।
  12. 10 ग्राम नीम के काढ़े में 5 नग काली मिर्च का चूर्ण बुरककर, रोज सुबह कुछ दिन सेवन करने से चेचक जैसे रोगों से छुटकारा मिलता है।

नीम के इस्तेमाल से कुष्ठ रोग में फायदा (Uses of Neem in Leprosy Treatment in Hindi)

नीम मनुष्य के शरीर में उत्पन्न होने वाले अनेक रोगों में लाभकारी है, लेकिन इसका मुख्य काम कुष्ठ, त्वचा रोग और खून के रोगों को ठीक करना है। त्वचा रोगों को दूर करने के लिए संसार में इसके जैसा कोई दूसरी औषधि नहीं है। कुष्ठ रोगी को निम्न नियमों का पालन करना चाहिए।

  • कुष्ठ रोगी को बारह महीने नीम के पेड़ (neem ka ped) के नीचे रहना चाहिए।
  • नीम की लकड़ी की दातुन करनी चाहिए।
  • बिस्तर पर नीम की ताजी पत्तियाँ बिछानी चाहिए।
  • नीम की पत्तियों के काढ़े से नहाना चाहिए।
  • नीम के तेल में नीम की पत्तियों की राख मिलाकर जहाँ पर भी सफेद दाग हो गया हो वहाँ पर रोज लगाना चाहिए।
  • रोज सुबह 10 मिली नीम के पत्ते का रस पीना चाहिए।
  • पूरे शरीर में नीम के पत्ते का रस व नीम के तेल की मालिश करनी चाहिए।
  • भोजन के बाद दोनों समय 50-50 मिली नीम का मद पीना चाहिए।
  • कुष्ठ रोग की चिकित्सा करने के लिए निम्न प्रयोग लाभकारी हैंः-
  1. एक-एक किलो नीम की छाल और हल्दी तथा दो किलो गुड़ को मिट्टी के बड़े मटके में भरें। इसमें 50 लीटर पानी डालकर मुंह बन्दकर घोड़े की लीद से मटके को ढक दें। 15 दिन बाद निकाल कर अर्क निकाल लें। 10-20 मिली की मात्रा में सुबह-शाम सेवन कराने से शरीर को गलाने वाले कुष्ठ में लाभ होता है। दवा सेवन के बाद खाने में बेसन की रोटी घी के साथ सेवन कराएं।
  2. नीम पंचांग का 10 ग्राम चूर्ण ब्रह्मचर्य पूर्वक नियमित रूप से खैर के 20 मिली काढ़े के साथ सेवन करें। इससे कुष्ठ आदि चर्म रोगों में बहुत लाभ होता है।
  3. नीम के पंचांग एक-एक भाग लेकर सूखा चूर्ण बना लें। इसमें त्रिकटु व त्रिफला के प्रत्येक द्रव्य और हल्दी का चूर्ण 1-1 भाग मिलाकर सुरक्षित रखें। 2 से 3 ग्राम तक शहद, घी या गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से खाँसी, विष, डायबिटीज-पिडका एवं कुष्ठ आदि रोग ठीक होते हैं।
  4. कुष्ठ रोगी को पहला दिन नीम के बीजों की 1 गिरी, दूसरे दिन 2 गिरी, इसी प्रकार क्रमशः 1-1 गिरी बढ़ाते हुए सौ गिरी तक खिलाएं। इसे घटाते हुए वापस 1 गिरी पर आ जाएं। इसके बाद सेवन बन्द कर दें। इस प्रयोग के दौरान रोगी को चने की रोटी और घी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं देना चाहिए। कुष्ठ रोग में यह तरीका परम लाभदायक है।
  5. पांच ताजे नीम के पत्ते और हरा आँवला 10 ग्राम (हरे आँवले के अभाव में छह ग्राम सूखे आँवले) लें। सुबह सूर्योदय के पहले ही ताजे पानी में पीस-छान कर पीएं। इसके साथ ही केले के क्षार, हल्दी व गाय के पेशाब के साथ पीसकर सफेद दागों यानी सफेद कुष्ठ पर लगाते रहने से लाभ होता है।
  6. गोरखमुंडी के फूल, कच्ची हल्दी और गुड़ को बराबर भाग कूटकर मटके में भर लें। इसमें 10 गुना पानी डालकर अच्छी तरह मुंह बन्द कर 15 दिन घोड़े की लीद में दबाकर रख दें। इसके बाद अर्क निकाल लें। 10 मिली की मात्रा में सुबह-शाम 3-4 महीने तक सेवन करने से पूरे शरीर का सफेद कुष्ठ ठीक हो जाता है। सेवन के समय में दूध, दही तथा छाछ का सेवन नहीं करें। नमक का प्रयोग कम करें। यह उपाय सफेद कुष्ठ के अतिरिक्त अन्य कुष्ठ पर भी लाभकारी है।
  7. नीम के पत्ते , फूल तथा फल को बराबर भाग लेकर पानी के साथ महीन पीस लें। 2 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से सफेद कुष्ठ में लाभ होता है।

नीम के उपयोग से चर्म रोगों में लाभ (Neem Benefits in Cure Skin Problems in Hindi)

  1. नीम की जड़ की ताजी छाल और नीम के बीज की गिरी 10-10 ग्राम को अलग-अलग नीम के ताजे पत्ते के रस में पीस लें। इसे अच्छी तरह मिला लें। मिलाते समय ऊपर से पत्तों का रस डालते जायें। जब मिलकर उबटन की तरह हो जाये, तब प्रयोग में लायें। यह उबटन खुजली, दाद, वर्षा तथा गर्मी में होने वाली फुन्सियां, शीतपित्त (पित्त निकलना) तथा शारीरिक दुर्गन्ध आदि त्वचा के सभी रोगों को दूर करता है।
  2. छाजन (एक प्रकार का एक्जिमा), दाद, खुजली, फोड़ा, पैंसी, उपदंश यानी सिफलिस आदि रोग होने पर 100 वर्ष पुराने नीम पेड़ (neem ka ped) की सूखी छाल को महीन पीस लें। रात में 3 ग्राम चूर्ण को 250 मिली पानी में भिगो दें और सुबह छानकर शहद मिलाकर पिलाएं। सभी प्रकार के चर्मरोग दूर होंगे।
  3. एक्जिमा सूखा हो या पीव वाला। नीम के पत्ते के रस में पट्टी को तर कर बाँधने से और बदलते रहने से लाभ होता है। नीम के पत्तों को पीसकर लगाने से भी लाभ होता है।
  4. असाध्य/दुसाध्य छाजन में 10 ग्राम छाल के साथ बराबर मात्रा में मंजिष्ठादि काढ़े के द्रव्य तथा पीपल की छाल, नीम तथा गिलोय मिला काढ़ा बना लें। रोज नियमपूर्वक 10-20 मिली की मात्रा सुबह-शाम एक महीने तक पिलाने से पूर्ण लाभ होता है।
  5. नीम के 8-10 पत्तों को दही व शहद के साथ पीसकर लेप करने से दाद तथा घावों में लाभ होता है।
  6. नीम के पत्ते के रस में कत्था, गन्धक, सुहागा, पित्त-पापड़ा, नीलाथोथा व कलौंजी बराबर भाग मिलाकर खूब घोट-पीसकर गोली बना लें। गोली को पानी में घिसकर दाद पर लगाएं। इससे चर्म रोग में लाभ होता है।
  7. नीम के अन्दर की छाल को रात भर पानी मे भिगो दें। सुबह इस पानी को छान कर चार ग्राम आँवले के चूर्ण के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से पुराना शीतपित्त (पित्त निकलने की परेशानी) ठीक हो जाता है।

घाव में नीम से फायदा (Neem Uses in Wounds Healing in Hindi)

  1. हमेशा बहते रहने वाले जख्म को नीम के पत्तों के काढ़े से अच्छी प्रकार धो लें। इसके बाद नीम के छाल की राख को उसमें भर दें। 7-8 दिन में घाव पूरी तरह ठीक हो जाता है।
  2. 10 ग्राम नीम की गिरी तथा 20 ग्राम मोम को 100 ग्राम तेल में डालकर पकाएं। जब दोनों अच्छी तरह मिल जायें तो आग से उतार कर 10 ग्राम राल का चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह हिलाकर रख लें। यह मलहम, आग से जले हुए और अन्य घावों के लिए लाभदायक है।
  3. आग से जले हुए स्थान पर नीम के तेल को लगाने से जल्द लाभ होता है। इससे जलन भी शांत हो जाती है।
  4. 50 मिली नीम के तेल में 10 ग्राम कपूर मिला कर रख लें, इसमें रूई का फाहा डुबोकर घाव पर रखने से घाव सूख कर ठीक हो जाता है। इससे पहले घाव को फिटकरी मिले हुये नीम के पत्ते का काढ़े से साफ कर लें।
  5. भगन्दर एवं अन्य स्थानों के घावों पर नीम के तेल में कपूर मिला लें। इसकी वर्त्ती (बत्ती) बनाकर अन्दर रखें एवं ऊपर भी इसी तेल की पट्टी बाँधने से लाभ होता है।
  6. इस उपचार से कंठमाला गलगंड (घेंघा रोग) आदि में भी लाभ होता है।
  7. छह ग्राम नीम के पंचांग के चूर्ण को रोज नियमपूर्वक सेवन करने से पुराने भगन्दर में लाभ होता है।
  8. वर्षा ऋतु में बच्चों के फोड़े-फुंसियां निकल आती हैं। ऐसी अवस्था में नीम की 6-10 पकी निबौली को 2-3 बार पानी के साथ सेवन करें। इससे फुन्सियां खत्म हो जाती हैं।
  9. रक्तार्बुद रोग में शरीर में पकने और बहने वाली गाँठे निकल आती हैं। नीम की लकड़ी को पानी में घिसकर लगभग एक इंच यानी 2.5 सेमी मोटा लेप करने से रक्तार्बुद रोग में लाभ होता है।

बुखार में नीम से लाभ (Neem is Beneficial in Fever in Hindi)

  1. 20-20 ग्राम नीम, तुलसी तथा हुरहुर के पत्ते तथा गिलोय और छह ग्राम काली मिर्च को मिला लें। इसे महीन पीसकर पानी के साथ मिलाकर 2.5-2.5 ग्राम की गोली बना लें। 2-2 घंटे के अन्तर पर 1-1 गोली गर्म पानी से सेवन करें। बुखार जल्द ही ठीक हो जाएगा।
  2. नीम की छाल 5 ग्राम और आधा ग्राम लौंग या दाल चीनी को मिलाकर चूर्ण बना लें। इसे दो ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ लेने से साधारण वायरल बुखार, मियादी टायफायड बुखार एवं खून विकार दूर होते हैं।
  3. नीम की छाल, धनिया, लाल चन्दन, पद्मकाष्ठ, गिलोय और सोंठ का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में सेवन करने से सब प्रकार के बुखार में लाभ होता है।
  4. 20 ग्राम नीम के जड़ की अन्दर के छाल को मोटा-मोटा कूट लें। इसमें 160 मिली पानी मिलाकर मटकी में रात भर भिगोकर सुबह पकाएं। एक चौथाई यानी 40 मिली पानी शेष रहने पर छानकर गुनगुना पिलाने से बुखार में लाभ होता है।
  5. 50 ग्राम नीम के जड़ की अन्दर के छाल को मोटा-मोटा कूट लें। इसे 600 मिली पानी में 18 मिनट तक उबाल कर छान लें। तेज बुखार में जब किसी दवाई से लाभ न हो तो इस काढ़े को 40 से 60 मिली की मात्रा में बुखार चढ़ने से पहले 2-3 बार पिलाने से लाभ होता है।
  6. नीम की छाल, सोंठ, पीपलामूल, हरड, कुटकी और अमलतास को बराबर भाग लें। इसे एक लीटर पानी में आठवाँ भाग शेष बचने तक पकाएं। इस काढ़े को 10-20 मिली मात्रा में सुबह-शाम सेवन करें। बुखार समाप्त हो जाएगा।
  7. नीम की छाल, मुनक्का और गिलोय को बराबर भाग मिला लें। 100 मिली पानी में काढ़ा बना कर 20 मिली की मात्रा में सुबह, दोपहर तथा शाम को पिलाने से बुखार में लाभ होता है।
  8. नीम के कोमल पत्तों में आधा भाग फिटकरी की भस्म मिलाकर पीस लें। आधे-आधे ग्राम की गोलियां बना लें। एक-एक गोली मिश्री के शरबत के साथ लेने से सब प्रकार के बुखार विशेषकर तेज बुखार में बहुत लाभ होता है।

और पढ़ें: बुखार की दवा है गिलोय

रक्त विकार (खून साफ करने के लिए) में  नीम से फायदा (Neem Purifies Blood in Hindi)

नीम के जड़ का छाल खून साफ करने वाले में सर्वश्रेष्ठ होता है। जब प्लेग फैला हुआ हो, उस समय नीम के सेवन से प्लेग का दुष्प्रभाव नहीं होता। नीम एक योगवाही द्रव्य है, जो शरीर के छोटे-छोटे छिद्रों में पहुंचकर वहाँ के हानिकारक जन्तुओं को नष्ट करता है।

  1. नीम का काढ़ा या ठंडा रस बनाकर 5-10 मिली की मात्रा में रोज पीने से खून के विकार दूर होते हैं।
  2. 10 ग्राम नीम के पत्ते का काढ़ा बनाकर सेवन करने से खून की गर्मी में लाभ होता है।
  3. 20 मिली नीम के पत्ते का रस और अडूसा के पत्ते का रस में मधु मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से खून साफ होता है।
  4. नीम के पंचांग को पानी में कूट-छानकर 10-10 मिली की मात्रा में 15-15 मिनट के अंतर से पिलाएं। इसके साथ ही प्लेग की गाँठों पर इसके पत्तों की पुल्टिस (गीली पट्टी) बाँधें तथा आसपास इसकी धूनी करते रहने से प्लेग में लाभ होता है।

लू की जलन में नीम से लाभ (Neem Benefits in Heat Stroke in Hindi)

10 ग्राम नीम पंचांग का चूर्ण तथा 10 ग्राम मिश्री को मिला लें। इसे पानी के साथ पीस-छानकर पिलाने से शरीर की गर्मी निकल जाती है तथा लू से होने वाली परेशानियां दूर हो जाती है।

विषों का प्रभाव मिटाए नीम का प्रयोग (Neem Reduces Poisson’s Effect in Hindi)

  1. दो भाग निबौली में 1-1 भाग सेंधा नमक तथा काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पीस लें। 1-2 ग्राम चूर्ण में शहद या घी मिलाकर सेवन करने से वनस्पति तथा तीव-जंतु के विष के प्रभाव नष्ट होते हैं।
  2. 8-10 पकी व कच्ची निबौलियों को पीसकर गर्म पानी में मिलाकर पिलाने से उलटी हो जाती है।
  3. इससे अफीम, संखिया, वत्सनाभ आदि के विषों का असर जल्द ही खत्म हो जाता है।
  4. कहा जाता है कि जब सूर्य मेष राशि में हो तब नीम के पत्ते (Benefits of Neem Leaves In Hindi) साग के साथ मसूर की दाल सेवन करने से एक वर्ष तक विष से कोई डर नहीं रहता तथा विषैले जन्तु के काटने पर भी कोई प्रभाव नहीं होता है।

नीम के अन्य विशिष्ट उपयोग (Special Benefits of Neem in Hindi)

  1. सुबह उठते ही नीम की दातुन करने तथा फूलों के काढ़े से कुल्ला करने से दांत और मसूड़े निरोग और मजबूत होते हैं।
  2. दोपहर को इसकी शीतल छाया में आराम करने से शरीर स्वस्थ रहता है।
  3. शाम को इसकी सूखी पत्तियों के धुएँ से मच्छर भाग जाते हैं।
  4. इसकी मुलायम कोंपलों को चबाने से हाजमा ठीक रहता है।
  5. सूखी पत्तियों को अनाज में रखने से उनमें कीड़े नहीं पड़ते।
  6. नीम की पत्तियों को पानी में उबाल कर स्नान करने से अनेक रोगों से छुटकारा मिल जाती है। सिर-स्नान से बालों के जुएं मर जाते हैं।
  7. नीम की जड़ को पानी में घिसकर लगाने से कील-मुंहासे मिट जाते हैं और चेहरा सुन्दर हो जाता है।
  8. नीम के तेल में डुबोकर तैयार पोटली को योनि में रखने से गर्भ नहीं ठहरता। इसलिए यह परिवार नियोजन का अच्छा साधन है।
  9. नीम के पत्तों का रस खून साफ करता है और खून बढ़ाता भी है। इसे 5 से 10 मिली की मात्रा में रोज सेवन करना चाहिए।
  10. रोज नीम के 21 पत्तों को भिगोई हुई मूंग की दाल के साथ पीस लें। बिना मसाला डाले, घी में पकौड़ी तल कर 21 दिन खाने से और खाने में केवल छाछ और अधिक भूख लगने पर भात खाने से बवासीर में लाभ (benefits of neem) हो जाता है। इस दौरान नमक बिल्कुल न खाएं (थोड़ा सेंधा नमक ले सकते हैं)।

नीम के उपयोगी हिस्से (Beneficial Parts of Neem Tree)

नीम के इन भागों का औषधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता हैः-

नीम के तने

जड़ की छाल

लकड़ी

पत्ते (Neem Ke Patte)

फूल

फल

बीज

नीम की तेल

नीम के सेवन की मात्रा एवं सेवन विधि (Uses & Doses of Neem)

चूर्ण – 1-3 ग्राम

काढ़ा – 50-100 मिली

अधिक लाभ के लिए चिकित्सक के परामर्शानुसार नीम का प्रयोग करें।

नीम के नुकसान तथा सावधानियां (Side Effects & Precautions of Neem)

नीम के नुकसान (neem ke nuksan) भी हो सकते हैंः-

  1. नीम कामशक्ति को घटाता है। इसलिए जिनको ऐसी परेशानी हो उन्हें नीम का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  2. सुबह-सवेरे उठकर मद्यपान (शराब का सेवन) करने वालों को भी इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
  3. नीम के खाने से कोई परेशानी हो रही हो तो सेंधा नमक, घी और गाय का दूध इसके दुष्प्रभाव को दूर करते हैं।

नीम कहाँ पाया या उगाया जाता है? (Where is Neem Tree Found or Grown?)

भारत में नीम (neem ka ped) की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है। इसके बाद क्रमशः तमिलनाडू, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब, पश्चिम बंगाल, राजस्थान आदि प्रदेशों में पाया जाता है| यह मुख्यतः मैदानी भागों, सड़कों के किनारे, खेतों की मेड़ों पर, गांवों के आसपास एव खाली जमीन पर प्राकृतिक रूप से ही पैदा हो जाता है। अब सम्पूर्ण भारत में उगाया भी जाने लगा है|

नीम मूलतः भारतवर्ष यानी वर्तमान भारत, पाकिस्तान, बंग्लादेश व म्यांमार का वृक्ष है| इसके बहुउपयोगी गुणों के कारण दक्षिण-पूर्वी एशिया, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, मध्य अमेरिका के राज्यों, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाईलैंड आदि सहित कैरिबियन देशों में भी इसे उगाया जाने लगा है।

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आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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युवाओं के लिए अमृत है पतंजलि दिव्य यौवनामृत वटी, जानिए अन्य फायदे

यौन संबंधी समस्याओं के मामले में अक्सर लोग डॉक्टर के पास जाने में हिचकिचाते हैं और खुद से ही जानकारियां…

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मोटापे से छुटकारा पाने के लिए अपनाएं पतंजलि मेदोहर वटी

पिछले कुछ सालों से मोटापे की समस्या से परेशान लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. डॉक्टरों के…

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पेट से जुड़े रोगों को ठीक करती है पतंजलि दिव्य गोधन अर्क, जानिए सेवन का तरीका

अधिकांश लोगों का मानना है कि गौमूत्र के नियमित सेवन से शरीर निरोग रहता है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञ भी इस बात…

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