भारत में देवदाली (Devdali) को कई नाम से जानते हैं। देवदाली को सोनैया, बन्दाल, वन्दाल, घघरेल, घसरान, विदाली, धाधरावेला, धुमाराना भी कहा जाता है। यह एक लता है जो हमेशा बढ़ती रहती है। आपने भी देवदाली को जंगल-झाड़ आदि में जरूर देखा होगा, लेकिन बेकार फल समझकर नजरअंदाज कर देते होंगे। आयुर्वेद के अनुसार, देवदाली के कई सारे औषधीय गुण हैं, और इसे जड़ी-बूटी की तरह इस्तेमाल किया जाता है। आप माइग्रेन, आंखों के रोग, कुक्कर खांसी, कब्ज जैसी बीमारियों में देवदाली के इस्तेमाल से फायदे (Devdali benefits and uses) ले सकते हैं। इतना ही नहीं, आंतों के दर्द, सूजन, हैजा, पीलिया आदि रोगों में भी देवदाली के औषधीय गुण से लाभ मिलता है।
इसके अलावा लिवर, ल्यूकोरिया, सामान्य प्रसव के लिए भी देवदाली के औषधीय गुण फायदेमंद होते हैं। कुष्ठ रोग, बुखार के सात-साथ कीड़े-मौके या चूटे के काटने पर भी देवदाली से लाभ ले सकते हैं। आइए आपको यहां बताते हैं कि देवदाली के सेवन या उपयोग करने से कितना फायदा या नुकसान (Devdali side effects) हो सकता है।
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देवदाली की लता विरल खुरदरे रोमों से युक्त होती है। इसकी लता हमेशा बढ़ती रहती है, और अनेक वर्षों तक जीवित रहती है। इसके तने पतले और बिना रोम के होते हैं। इसके पत्ते सीधे, और साधारणतया लम्बाई से अधिक चौड़े, और गहरे कटे किनारे वाले होते हैं। इसके फूल सफेद रंग के होते हैं। इसके फल 2.5-3.8 सेमी लम्बे, 1.3-2 सेमी व्यास के होते हैं।
फल शिरा रहित, मुलायम, नुकीले, अंडाकार, मुलायम कंटकों से ढके हुए होते हैं। फल अधपके अवस्था में हरे रंग के, और पकने के बाद सूखने पर भूरे रंग के हो जाते हैं। देवदाली के बीज भूरे-काले रंग के, चपटे, अंडाकार, खुरदरे होते हैं। इसकी लता में फूल और फल अगस्त एवं नवम्बर तक होता है।
यहां देवदाली के फायदे और नुकसान की जानकारी बहुत ही आसान भाषा (Devdali benefits and side effects in Hindi) में लिखी गई है ताकि आप देवदाली के औषधीय गुण से पूरा-पूरा लाभ ले पाएं।
देवदाली का वानस्पतिक नाम Luffa echinata Roxb. (लूफा इकाइनेटा) है और यह Cucurbitaceae (कुकुरबिटेसी) कुल का है। इसे निम्न नामों से भी जाना जाता हैः-
Devdali in –
देवदाली के आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव ये हैंः-
बन्दाल कटु, तिक्त, उष्ण, लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, कफपित्तशामक तथा वामक होता है। इसका फल दस्तावर, तिक्त, कफवातशामक होता है। फल से प्राप्त जलीय सत् तथा सुरासत् का चूहों पर किए गए परीक्षण में घयकृत् संरक्षकच प्रभाव प्रदर्शित होता है। यह अल्परक्तदाब कारक, हृद् अवसादक, उद्वेष्टरोधी, मूत्रल, कवकरोधी तथा कृमिघ्न होता है।
देवदाली के औषधीय गुण, प्रयोग की मात्रा एवं विधियां ये हैंः-
माइग्रेन में देवदाली के औषधीय गुण से फायदा होता है। वन्दाल फल को पानी में भिगोकर, मसल लें। इसे छानकर 1-2 बूंद नाक में डालें। इससे आधासीसी या माइग्रेन में लाभ होता है।
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आप आंखों के रोग में भी देवदाली के फायदे ले सकते हैं। ताजे देवदाली पत्ते के रस, और देवदाली फल के रस को शहद के साथ मिला लें। इसे आँखों में लगाने से आंखों के रोग में लाभ होता है।
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देवदाली फल का काढ़ा बना लें। इसे 1-2 बूंद नाक में डालें। इससे कुक्कुर खांसी, और पीलिया में लाभ होता है। प्रयोग से पहले चिकित्सक की सलाह जरूर लें।
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आप आंतों के रोग के आयुर्वेदिक दवा को अपनाना चाहते हैं तो देवदाली का सेवन कर सकते हैं। 5-10 मिली देवदाली फल का काढ़ा बना लें। इसका सेवन करने से आंतों के दर्द से आराम मिलता है।
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देवदाली फल, और तने का काढ़ा बना लें। इसे कुछ मात्रा में चिकित्सकीय परामर्श लेकर सेवन करें। इससे जलोदर रोग और कब्ज में लाभ होता है।
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शरीर के किसी भी अंग में सूजन हो जाए, या फिर किसी अंग में पानी भर जाए तो आप देवदाली के गुण से लाभ ले सकते हैं। यह बहुत फायदा पहुंचाता है। उपाय के लिए किसी चिकित्सक की सलाह लें।
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लिवर और तिल्ली विकार के इलाज के लिए विकृति फल का काढ़ा बना लें। 5 मिली काढ़ा में, एक चम्मच नारियल का पानी या ककड़ी का रस मिला लें। इसे पीने से लिवर और तिल्ली विकार में लाभ होता है।
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हैजा के इलाज के लिए भी देवदाली का प्रयोग लाभदायक होता है। देवदाली के फल से काढ़ा बना लें। इसका सेवन करें। इससे हैजा रोग में लाभ होता है।
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बंदाल डोडे के फल और बीज को गोमूत्र के साथ पीस लें। इसे बवासीर के मस्सों पर तीन बार लगाएं। इससे बवासीर का इलाज होता है।
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दूध में पिसे हुए बलामूल और बहेड़े में जीमूत फूल का 1ग्राम चूर्ण मिला लें। इसे गर्भवती महिला द्वारा पीने पर प्रसव में आसानी होती है।
10 ग्राम जीमूतक फूल के चूर्ण को दूध के साथ पीस लें। इसका प्रयोग करने से प्रसव में मदद मिलती है।
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500 मिग्रा जीमूतक जड़ को चावल के धोवन से पीस लें। इसे शहद मिलाकर सेवन करने से ल्यूकोरिया का इलाज होता है।
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देवदाली के फल के चूर्ण को थूहर के दूध और अर्क के दूध को अलग-अलग सात बार भावना दें। इसके बाद 350 से 500/मिग्रा की मात्रा में सेवन करें। इससे कुष्ठ रोग में लाभ होता है। इस अवधि में नमक का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
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बराबर मात्रा में श्योनाक, कड़वी तोरई मूल, मदनफल लें। इसके साथ ही जीमूत फल का 1-2 ग्राम चूर्ण लें। इसे दही के साथ सेवन करने से उल्टी होती है। इससे चूहे के काटने से चढ़ने वाला जहर उल्टी द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है। विष का प्रभाव कम होता है।
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कीड़े-मकौड़े या कीटों ने काट लिया हो तो देवदाली और कटुतुम्बी जड़ या बीजों को पीसकर लेप करें। इससे विषैले कीटों के काटने से होने वाला दर्द कम होता है। इसके साथ ही घाव भी ठीक होता है।
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जीमूतक फल के चूर्ण का सेवन करें। इसके साथ ही जीवक, ऋषभक, ईख या शतावर रस का भी सेवन करने से उल्टी होती है। इससे पित्तज-कफज दोष के कारण होने वाले बुखार में लाभ होता है।
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देवदाली के इन भागों का इस्तेमाल किया जाता हैः-
देवदाली को इतनी मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिएः-
फल का चूर्ण- 1-2 ग्राम
काढ़ा- 5-10 मिली
देवदाली के सेवन से ये नुकसान हो सकते हैंः-
यहां देवदाली के फायदे और नुकसान की जानकारी बहुत ही आसान भाषा (Devdali benefits and side effects in Hindi) में लिखी गई है ताकि आप देवदाली के औषधीय गुण से पूरा-पूरा लाभ ले पाएं, लेकिन किसी बीमारी के लिए देवदाली का सेवन करने या देवदाली का उपयोग करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर सलाह लें।
देवदाली पूरे भारत में पाया जाता है। यह उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश मुख्यत उत्तर एवं पश्चिमी भारत में पाया जाता है। विश्व में टर्की, म्यान्मार, उष्णकटिबंधीय अफ्रिका में पाया जाता है।
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