वानस्पतिक नाम : Vigna radiata (Linn.) Wilczek var. radiata Verdcourt (विग्ना रेडिएटा भेद-रेडिएटा) Syn-Phaseolus radiatus Linn.
कुल : Fabaceae (फैबेसी)
अंग्रेज़ी नाम : Green gram (ग्रीन ग्राम)
संस्कृत-मुद्ग, सूपश्रेष्ठ, रसोत्तम, सुफल; हिन्दी-मूंग, मुंग, वन उड़द; उर्दू-वन उर्द (Van urd), मूंग (Mung); कन्नड़-झेसरु (Jhesru), हेस्रु (Hesaru); गुजराती-मूग (Mug), कच्छी (Kachi); तमिल-पच्चैयमेरु (Pacchayemeru), पासीप्यारू (Pasipyaru); तैलुगु-पच्वापेसलु (Pachapesalu), पेसालु (Pesalu); बंगाली-मुग (Mug); मराठी-मूंग (Mung), हिरवे मूग (Hirave mug); मलयालम-चेरुपायारू (Cherupayaru)।
अंग्रेजी-गोल्डेन ग्राम (Golden gram), मुंगो बीन (Mungo bean); अरबी-मजमाश (Majmash), माष मज (Mash maj) फारसी-वुनुमाष (Vunumash), वनोमाष (Vanomash)।
परिचय
समस्त भारत में इसकी खेती की जाती है। मूंग की दाल समस्त भारत में खाई जाती है। मूंग पचने में हल्की होती है तथा रक्त के दोषों को दूर करने वाली होती है। कृष्ण, अरुण, गौर, हरित तथा रक्त आदि रंगों के आधार पर मूंग कई प्रकार की होती है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
मूंग कषाय, शीत, लघु, रूक्ष, कफपित्तशामक, अल्पवातकारक, चक्षुष्य, ग्राही, वर्ण्य, दीपन, रुचिकारक, विशद, दृष्टिप्रसादन, बलकारक, पुष्टिकर, अभिष्यन्दि, सारक, विबन्धकारक तथा पथ्य होती है।
यह ज्वर, आध्मान, कण्ठरोग, व्रण, वातरक्त, कृमिरोग तथा नेत्ररोगशामक होती है।
मुद्ग यूष श्रेष्ठ, कषाय, मधुर, शीत, रूक्ष, चक्षुष्य, लघु, रक्तशोधक, पित्तज्वर, संताप, विसर्प, अरुचिशामक तथा सेंधानमक मिलाकर सेवन करने से सर्वरोगहर होती है।
इसका शाक तिक्तरसयुक्त एवं श्रेष्ठ होता है।
इसके बीज मधुर, स्भंक, तीक्ष्ण, शीतल, दुग्धजनन, मूत्रल, पाचक तथा बलकारक होते हैं।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
- शिरोरोग-वातज-शिरोरोग से पीड़ित व्यक्ति रात को मूंग, कुलथी तथा उड़द के साथ कटु तथा उष्ण पदार्थ एवं घृत का सेवन करके, हल्का गर्म दूध पिएं अथवा मूंग आदि द्रव्यों के कल्क से दूध एवं तिल तैल को पका कर सेवन करने से शिरोरोग में लाभ होता है।
- नेत्ररोग-छिलका रहित मूंग को भूनकर, मधु तथा शर्करा के साथ घोटकर अंजन बनाकर प्रयोग करने से सव्रण शुक्र में लाभ होता है।
- कास-छोटी कटेरी के क्वाथ से निर्मित मूंग के यूष में पीली सरसों, आँवला तथा अम्ल पदार्थ मिलाकर नियमित सेवन करने से सभी प्रकार की कास में लाभ होता है।
- मूंग-यूष (20-40 मिली) का सेवन तमक श्वास व ज्वर में पथ्य है।
- तृष्णा-शतधौत घृत से स्नेहन कर, अवगाहन कर, फिर मूंग यूष (20-40 मिली) को घी से छौंक कर पीने से पिपासा (तृष्णा) का शमन होता है।
- छर्दि-समभाग मूंग, पिप्पली, खस एवं धनिया चूर्ण को छ गुने जल में भिगोकर रात भर रख कर प्रात छान कर जल पीने से छर्दि का शमन होता है।
- मूंग एवं आँवले के यूष (20-40 मिली) में सेंधानमक एवं घृत मिलाकर पीने से वातज छर्दि रोग में लाभ होता है।
- भुनी हुई मूंग का क्वाथ (10-20 मिली) बनाकर उसमें धान का लावा, मधु एवं शर्करा मिलाकर सेवन करने से छर्दि, अतिसार, पिपासा, दाह तथा ज्वर में लाभ होता है।
- 10-20 मिली मूंग के क्वाथ में नारियल का समभाग दूध मिलाकर सेवन करने से छर्दि में लाभ होता है।
- अतिसार-भुनी हुई मूंग का क्वाथ बनाकर 20 मिली क्वाथ में धान का लावा मिलाकर खाने से अतिसार में लाभ होता है।
- अर्श-अर्श रोग में मूंग का सेवन पथ्य है।
- वीर्यवर्धनार्थ-मूंग को भूनकर पीसकर उसमें मिश्री तथा घृत मिलाकर उसके लड्डू बना लें। प्रात सायं 1 लड्डू को गाय के दुग्ध के साथ सेवन करने से वीर्य की वृद्धि होती है, शरीर पुष्ट होता है तथा वीर्य विकारों का शमन होता है।
- अस्थिभग्न-अस्थिभग्न में मूंग दाल का सेवन करना हितकर है।
- विसर्प-10-20 मिली मूंग के यूष को अनार के रस से खट्टा करके अथवा बिना खट्टा किए ही, परवल तथा आँवला मिलाकर पुराने शालिचावल के भात के साथ सेवन करना विसर्प में पथ्य है।
- मूंग को पीसकर उसमें घी मिलाकर विसर्प पर लगाने से विसर्प में लाभ होता है।
- नाड़ीव्रण-मूंग को पीसकर नाड़ी व्रण पर लगाने से व्रण का रोपण होता है।
- मदात्यय-20-40 मिली मूंग के यूष में मिश्री मिलाकर पीने से मदात्यय में लाभ होता है।
- रक्तपित्त-20-40 मिली मूंग के यूष में समभाग अनार स्वरस तथा शर्करा मिलाकर सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
- पित्तज ज्वर-मूंग तथा मुलेठी का यूष बनाकर 15-25 मिली मात्रा में पीने से पित्तज ज्वर का शमन होता है।
प्रयोज्याङ्ग :बीज।
मात्रा :यूष 20-40 मिली।