नाकुली (Indian birthwort) को ईशरजड़, ईश्वरजड़, इसरॉल भी कहते हैं। भारत में कई स्थानों पर सांप के काटने का इलाज नाकुली के पत्ते जड़ों से किया जाता है। यह एक जड़ी-बूटी है। इसके अलावा भी नाकुली के कई सारे औषधीय गुण हैं। क्या आप यह जानते हैं कि आधासीसी, दांत दर्द, गले की बीमारियों में नाकुली के इस्तेमाल से फायदे (Indian birthwort benefits and uses) मिलते हैं। इतना ही नहीं, पेट के रोग, हैजा, कुष्ठ रोग और जोड़ों के दर्द में भी नाकुली के औषधीय गुण से लाभ मिलता है।
आयुर्वेद में नाकुली के गुण के बारे में कई सारी अच्छी बातें बताई गई हैं जो आपको जानना जरूरी है। सांप के काटने के इलाज की खूबी के अतिरिक्त आप फोड़े, सूजन, टाइफाइड, ब्लड प्रेशर आदि में भी नाकुली के औषधीय गुण के फायदे ले सकते हैं। आइए यहां एक-एक कर जानते हैं कि नाकुली के सेवन या उपयोग करने से कितनी सारी बीमारियों में फायदा होता है, साथ ही यह भी जानते हैं कि नाकुली से क्या-क्या नुकसान (Indian birthwort side effects) हो सकता है।
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नाकुली झाड़ीनुमा लता होती है। इसके तने मोटे, गोल, चिकने होते हैं। तने में कपूर जैसा गंध होता है। इसके तने हरे और सफेद रंग के होते हैं। इसके पत्ते सीधे, हरे रंग के और आगे के भाग पर नुकीले होते हैं। पत्ते पांच शिरा युक्त होते हैं। इसके फूल हरे-सफेद या हल्के बैंगनी रंग के होते हैं। इसके फल गोलाकार होते हैं। नाकुनी के बीज अनेक, त्रिकोणीय या त्रिकोणाकार-अण्डाकार होते हैं। इसकी जड़ गांठदार, शाखायुक्त, हल्के बादामी रंग की और लम्बी होती है। नाकुली के पौधों में फूल जुलाई से अगस्त और फल अगस्त से फरवरी तक होता है।
यहां नाकुली के फायदे और नुकसान की जानकारी बहुत ही आसान भाषा (Indian birthwort benefits and side effects in Hindi) में लिखी गई है ताकि आप नाकुली के औषधीय गुण से पूरा-पूरा लाभ ले पाएं।
नाकुली का वानस्पतिक नाम Aristolochia indica Linn. (ऐरिस्टोलोकिआ इन्डिका) Syn-Aristolochia lanceolata Wight है, और यह Aristolochiaceae (ऐरिस्टोलोकिएसी) कुल का है। इसके अन्य ये भी नाम हैंः-
Indian birthwort in –
नाकुली के आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव ये हैंः-
नाकुली तिक्त, कटु, कषाय, उष्ण, लघु, रूक्ष, कफवातशामक, विषघ्न, लूता (मकड़ा), वृश्चिक (बिच्छू), चूहा, सर्प आदि के विष-प्रभाव को नष्ट करने वाली होती है। यह ज्वर, कृमिरोग, व्रण, कास, ग्रहरोग, वातव्याधि और जालगर्दभ नाशक होती है। इसका पौधा आर्तवस्राववर्धक, गर्भस्रावकर, आमवातरोधी, ज्वरघ्न और मूत्रल होता है। इसके शुष्क जड़ और प्रकन्द उदरोत्तेजक, तिक्त और बलकारक होते हैं। इसके पत्ते क्षुधावर्धक, बलकारक और ज्वरघ्न होते हैं।
नाकुली के फायदे, प्रयोग की मात्रा एवं विधियां ये हैंः-
सर्पगन्धा और नाकुली की जड़ को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। 1-2 ग्राम चूर्ण को दो से तीन सप्ताह तक सेवन करें। इससे आधासीसी (माइग्रेन) में लाभ होता है।
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दांत में दर्द होने पर आप नाकुली के औषधीय गुण से फायदा ले सकते हैं। नाकुली की जड़ लें। इससे दातुन करें या दांतों से चबाएं। इससे दांत का दर्द ठीक होता है।
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घेंघा रोग में भी नाकुली का औषधीय गुण फायदेमंद होता है। इसके लिए आप नाकुली, नमक और सोंठ को पानी में घिस लें। इससे बीमार अंग पर लेप करें। इससे लाभ होता है।
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हैजा में नाकुली के इस्तेमाल से फायदा होता है। इसके लिए नाकुली के पत्ते का रस निकाल लें। इसे पेट पर लेप करें। इससे हैजा में लाभ होता है।
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जोड़ों में दर्द हो तो नाकुली का उपयोग बहुत लाभ पहुंचाता है। इसके लिए आपको ईश्वरी की जड़ को पीस लेना है। इस पेस्ट को दर्द वाले स्थान पर लगाना है। बेहतर परिणाम के लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर परामर्श लें।
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कुष्ठ रोग में भी नाकुली के इस्तेमाल से लाभ होता है। 1-2 ग्राम नाकुली की सूखी जड़ का चूर्ण बना लें। इसमें मधु मिलाकर प्रयोग करें। इससे सफेद दाग आदि कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
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तीन भाग नाकुली के तने की छाल और एक भाग हरिद्रा को मिला लें। इसे पीसकर एलर्जी के कारण होने वाले फफोलों पर लेप करें। इससे लाभ मिलता है।
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लाल पुनर्नवा, कनेर के पत्ते, पलाश, इसरजड़, शालपर्णी, पृश्निपर्णी आदि द्रव्यों को पीसकर गुनगुना कर लें। इसका लेप करने से सूजन में लाभ होता है।
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टाइफाइड बुखार में भी ईसरजड़ के सेवन से लाभ होता है। रोगी 1 ग्राम जड़ के चूर्ण का सेवन करे। इससे टाइफाइड में लाभ होता है।
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हाई ब्लडप्रेशर में ईश्वरजड़ का सेवन करें। इससे बहुत फायदा होता है। 1 से 2 ग्राम नाकुली की जड़ चूर्ण में मधु मिला लें। इसे दो से तीन सप्ताह तक प्रयोग करें। इससे हाई ब्लडप्रेशर में लाभ होता है।
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नाकुली के इन भागों का इस्तेमाल किया जाता हैः-
नाकुली को इतनी मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिएः-
यहां नाकुली के फायदे और नुकसान की जानकारी बहुत ही आसान भाषा (Indian birthwort benefits and side effects in Hindi) में लिखी गई है ताकि आप नाकुली के औषधीय गुण से पूरा-पूरा लाभ ले पाएं, लेकिन किसी बीमारी के लिए नाकुली का सेवन करने या नाकुली का उपयोग करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर सलाह लें।
नाकुली जड़तः भारत में बंगाल से दक्कन प्रायद्वीप एवं कोंकण से दक्षिण की ओर पाया जाता है। विश्व में यह साधारणतया नेपाल की निचली पहाड़ियों पर, बांग्लादेश एवं श्रीलंका में लगभग 900 मीटर की ऊँचाई पर होता है।
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