रजः प्रवर्तनी वटी महिलाओं के लिए बहुत ही फायदेमंद है। महिलाओं की मासिक धर्म संबंधी परेशानी जैसे मासिक धर्म में अनियमितता, सुस्ती और शारीरिक दर्द के इलाज में रजः प्रवर्तनी वटी के फायदे मिलते हैं। इसी तरह आंखों के रोग आदि में भी रजः प्रवर्तनी वटी से लाभ (rajahpravartani vati benefits) मिलता है।
क्या आपको पता है कि रजःप्रवर्तिनी वटी का सेवन कैसे किया जाता है और रजः प्रवर्तिनी वटी को कैसे बनाया जाता है। आयुर्वेद में रजःप्रवर्तिनी वटी के उपयोग (rajahpravartani vati) के बारे में बहुत सारी अच्छी बातें बताई गई हैं। आइए सभी के बारे में जानते हैं।
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रजः प्रवर्तिनी वटी मासिक चक्र (Menstrual Cycle) को नियमित करने और मासिक धर्म विकार (Menstrual Health) को ठीक करने वाली औषधि है। यह मासिक धर्म से जुड़ी समस्याओं के उपचार के लिए पतंजलि की सबसे उपयोगी औषधियों (Patanjali Medicine for Menstrual Health) में से एक है।
आप रजःप्रवर्तिनी वटी का उपयोग इस तरह से कर सकते हैंः-
अनेक महिलाएं अनियमित मासिक धर्म की शिकायत करती हैं। मासिक धर्म के समय रक्त के कम स्राव की शिकायत भी की जाती है। ऐसा गर्भाशय के दूषित होने के कारण होता है। कई स्थूल शरीर वाली स्त्रियों के गर्भाशय और डिम्बाशय कठोर हो जाते हैं, जिससे उनको मासिक स्राव कम में होता है। इस स्थिति में उपचार के लिए यह उत्तम औषधि (rajahpravartani vati for pcos) है। महिलाएं मासिक धर्म संबंधी विकार में रजःप्रवर्तिनी वटी करेंगी तो बहुत लाभ मिलेगा।
यह वटी मासिक धर्म की अनयमितता के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों को भी तुरंत ठीक कर देती है। इस योग के सेवन से गर्भाशय के दोष दूर होते हैं, और मासिक ऋतु स्राव नियमित समय पर सामान्य मात्रा में होने लगता है।
कई महिलाओं को मासिक स्राव के समय बहुत अधिक कष्ट होता है। तबीयत में सुस्ती और थकावट बनी रहती है। इस स्थिति को कष्टार्तव या अल्पार्तव कहा जाता है। मासिक धर्म के समय होने वाली शारीरिक थकावट को दूर करने के लिए रजःप्रवर्तिनी वटी का सेवन लाभदायक होता है।
मासिक धर्म रुकने पर महिलाओं को कमर और पेडू में दर्द होता है। हाथ–पैर के तलुओं तथा शरीर में दर्द की शिकायत रहती है। इन रोगों को दूर करने के लिए, और मासिक धर्म को दोबारा सही करने में रजः प्रवर्तिनी वटी बहुत मदद (raja pravartini vati benefits) पहुंचाती है।
आंखों के रोग जैसे- आंखों में जलन होने आदि परेशानी में भी रजःप्रवर्तिनी वटी का प्रयोग लाभ पहुंचाता है। बेहतर लाभ के लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर परामर्श लें।
आप रजःप्रवर्तिनी वटी का सेवन (rajahpravartani vati uses) इतनी मात्रा में कर सकते हैंः-
250 मिली ग्राम,
अनुपान- गर्म पानी, तिल कषाय, कुलत्थ कषाय के साथ।
रजः प्रवर्तिनी वटी के बारे में आयुर्वेदिक ग्रंथों में कहा गया है –
टङ्कणं हिङ्गु कासीसं कन्यासारं समांशकम्।
कुमारीस्वरसेनैव चणकप्रमिता वटी।।
रजोरोधं कष्टरजो वेदनाश्च तदुद्भवाः।
रजप्रवर्त्तिनी नाम वटी तूर्णं विनाशयेत्।
भाषिता नीलकण्ठेन वह्नि काष्ठचयं यथा।। – भैषज्य रत्नावली – 67/57-58
रजः प्रवर्तिनी वटी को बनाने में निम्न द्रव्यों का प्रयोग किया गया हैं –
क्र.सं. | घटक द्रव्य | उपयोगी हिस्सा | अनुपात |
1. | शुद्ध टंकण | 1 भाग | |
2. | शुद्ध कासीस | 1 भाग | |
3. | मुसब्बर (एलुआ) | पत्ते | 1 भाग |
4. | रामठ (हिंगु) (Ferula narthex Boiss.)निर्यास | 1 भाग | |
5. | कुमारी स्वरस (Aloe vera Tourn.ex Linn.) | पत्ते | Q.S मर्दनार्थ |
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