द्रोणपुष्पी (Dronpushpi) के अनेक नाम हैं। द्रोणपुष्पी को गूमाडलेडोना, गोया, मोरापाती, धुरपीसग भी बोला जाता है। आपने द्रोणपुष्पी के पौधे को अपने घरों के आस-पास या कई स्थानों पर देखा होगा। बारिश के मौसम में यह सभी जगह पैदा हो जाता है। द्रोणपुष्पी के पौधे को रगड़ने पर तुलसी की तरह का गंध निकलता है। क्या आप जानते हैं कि द्रोणपुष्पी एक बहुत ही उत्तम जड़ी-बूटी है, और इसके कई सारे औषधीय गुण हैं। क्या आप यह जानते हैं कि बुखार, वात दोष, टाइफाइड, अनिद्रा में द्रोणपुष्पी के इस्तेमाल से फायदे (Dronpushpi benefits and uses) मिलते हैं। क्या आपका पता है कि न्यूरोलॉजिकल डिसआर्डर, हिस्टीरिया, दाद-खाज-खुजली, आदि में भी द्रोणपुष्पी के औषधीय गुण से लाभ मिलता है।
आयुर्वेद में द्रोणपुष्पी के गुण के बारे में कई सारी अच्छी बातें बताई गई हैं जो आपको जानना जरूरी है, क्योंकि आप रोम छिद्र की सूजन, गठिया, एनीमिया, पीलिया आदि में द्रोणपुष्पी के औषधीय गुण के फायदे ले सकते हैं। इसके अलावा आप बदहजमी, खांसी, सर्दी, आंखों के रोग, सिर दर्द, और बिच्छू के डंक मारने पर भी द्रोणपुष्पी से लाभ ले सकते हैं। आइए यहां एक-एक कर जानते हैं कि द्रोणपुष्पी के सेवन या उपयोग करने से कितनी सारी बीमारियों में फायदा होता है, साथ ही यह भी जानते हैं कि द्रोणपुष्पी से क्या-क्या नुकसान (Dronpushpi side effects) हो सकता है।
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द्रोणपुष्पी के फूल द्रोण (दोना या प्याला) के जैसे होते हैं, इसलिए इसे द्रोणपुष्पी कहा जाता है। द्रोणपुष्पीप का पौधा 60-90 सेमी ऊँचा, सीधा या फैला हुआ होता है। इसके तने और इसकी शाखाएँ चतुष्कोणीय, रोमश होती हैं। इसके पत्ते सीधे 3.8-7.5 सेमी लम्बे, अण्डाकार या अण्डाकार-भालाकार होते हैं। इसके पत्तों में गंध होता है और यह स्वाद में कड़वा होता है।
इसके फूल छोटे, सफेद रंग होते हैं। इसके फल 3 मिमी लम्बे, अण्डाकार, भूरे रंग के और चिकने होते हैं। इसके बीज छोटे, चिकने, भूरे रंग के होते हैं। इसकी जड़ सफेद रंग की और स्वाद में चरपरी होती है। इसके पौधे में फूल और फल अगस्त से दिसम्बर तक होता है।
इसकी कई प्रजातियां होती हैं।
इसका प्रयोग भूख की कमी, पेट फूलना, दर्द, टाइफाइड, बुखार के कारण होने वाली भूख की कमी, और पेट के रोगों के इलाज में किया जाता है। यहां द्रोणपुष्पी के फायदे और नुकसान की जानकारी बहुत ही आसान भाषा (Dronpushpi benefits and side effects in Hindi) में लिखी गई है ताकि आप द्रोणपुष्पी के औषधीय गुण से पूरा-पूरा लाभ ले पाएं।
द्रोणपुष्पी का वानस्पतिक नाम Leucas cephalotus (Roth) Spreng. (ल्युकस सिफॅलोटुस) Syn-Phlomis cephalotes Roth है, और यह Lamiaceae (लेमिएसी) कुल का है। द्रोणपुष्पी के अन्य ये नाम हैंः-
Dronpushpi in –
द्रोणपुष्पी के आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव ये हैंः-
द्रोणपुष्पी मधुर, कटु, लवण, उष्ण, गुरु, लघु, तीक्ष्ण, वातपित्तकारक, कफशामक, पथ्य, भेदन, मेध्य और रुचिकारक होती है। इसके पंचांग में वेदनाशामक एवं शोथहर गुण होता है।
द्रोणपुष्पी के औषधीय गुण, प्रयोग की मात्रा एवं विधियां ये हैंः-
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द्रोणपुष्पी को चावल के धुले हुए पानी से पीस लें। इसे 1-2 बूंद की मात्रा में नाक से लें। इससे आंखों के रोग में लाभ होता है। इसके साथ ही इसे काजल की तरह लगाने से पीलिया रोग में भी लाभ होता है।
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5 मिली द्रोणपुष्पी के पत्ते के रस में बराबर मात्रा में शहद मिला लें। इसे पीने से खांसी और सर्दी-जुकाम में लाभ होता है।
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आप बदहजमी के इलाज के लिए भी द्रोणपुष्पी का सेवन कर सकते हैं। द्रोणपुष्पी के पत्तों की सब्जी बनाकर खाएं। इससे बदहजमी में लाभ होता है, और भूख बढ़ती है।
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लिवर और तिल्ली विकार में द्रोणपुष्पी की जड़ का चूर्ण लें। इसमें एक भाग पिप्पली चूर्ण मिला लें। 1-2 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से लिवर और तिल्ली विकारों में लाभ होता है।
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रोम छिद्र की सूजन के इलाज के लिए द्रोणपुष्पी का उपयोग लाभदायक होता है. द्रोणपुष्पी के पत्ते का भस्म बना लें। इसको घोड़े के मूत्र में मिला लें। इसका लेप करें। इससे रोम छिद्र की सूजन कम होती है।
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आप दाद-खाज-खुजली में भी द्रोणपुष्पी के फायदे ले सकते हैं। द्रोणपुष्पी के पत्ते के रस या पेस्ट से लेप करें। इससे घाव, शरीर की जलन, दाद और खुजली ठीक होता है।
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अनिद्रा की परेशानी में द्रोणपुष्पी का सेवन फायदेमंद होता है। अनेक आयुर्वेदाचार्य इसका इस्तेमाल करते हैं। 10-20 मिली द्रोणपुष्पी के बीज का काढ़ा का सेवन करें। इससे नींद अच्छी आती है।
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हीस्टीरिया के लिए द्रोणपुष्पी फायदेमंद है। द्रोणपुष्पी का काढ़ा बनाकर स्नान करें। इससे हीस्टीरिया का इलाज होता है। बेहतर लाभ के लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर मिलें।
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न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर में द्रोणपुष्पी का सेवन बहुत लाभ पहुंचाता है। आप इसके लिए द्रोणपुष्पी के पत्ते का काढ़ा बना लें। इसका सेवन करने से स्नायविक विकारों (न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर) में लाभ होता है।
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5 मिली द्रोणपुष्पी के पत्ते के रस में 1 ग्राम काली मरिच का चूर्ण मिला लें। इसका सेवन करने से मलेरिया बुखार में फायदा होता है।
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द्रोषपुष्पी वात दोष को भी ठीक करता है। 10 मिली द्रोणपुष्पी रस में मधु मिलाकर पिलाएं। इससे वात दोष से संबंधित विकारों ठीक होता है। उपाय करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लें।
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बिच्छू डंक मारे तो घबराएं नहीं। द्रोणपुष्पी के पत्तों को पीसकर डंक वाले स्थान पर लगाएं। इससे बिच्छू के डंक से होने वाले नुकसान कम हो जाते हैं।
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द्रोणपुष्पी के इन भागों का इस्तेमाल किया जाता हैः-
द्रोणपुष्पी को इतनी मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिएः-
यहां द्रोणपुष्पी के फायदे और नुकसान की जानकारी बहुत ही आसान भाषा (Dronpushpi benefits and side effects in Hindi) में लिखी गई है ताकि आप द्रोणपुष्पी के औषधीय गुण से पूरा-पूरा लाभ ले पाएं, लेकिन किसी बीमारी के लिए द्रोणपुष्पी का सेवन करने या द्रोणपुष्पी का उपयोग करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर सलाह लें।
द्रोणपुष्पी भारत के हिमालय क्षेत्रों में 1800 मीटर की ऊचाँई पर पाया जाता है। यह पंजाब, बंगाल, आसाम, गुजरात एवं चेन्नई में 900 मीटर की ऊँचाई पर खरपतवार के रूप में पाया जाता है। इसके अलावा यह विश्व में भूटान एवं अफगानिस्तान में भी पाया जाता है।
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