तिधारा सेहुंड एक वनस्पति है जो कई रोगों के इलाज में उपयोगी है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञों का मानना है कि तिधारा के औषधीय गुणों के कारण ही इसे एक औषधि का दर्जा दिया गया है. इस पौधे का आप घर पर गमलों में उगा सकते हैं. ऐसी मान्यता है कि जिन घरों के छतों पर गमलों में यह पौधा लगा होता है वहां बिजली गिरने की संभावना काफी कम हो जाती है. इस लेख में हम आपको तिधारा के फायदे, नुकसान और उपयोग के तरीकों के बारे में बता रहे हैं.
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तिधारा का पौधा लगभग 9 मी ऊँचा, कंटीला, झाड़ीनुमा होता है. इसके तने लगभग 30 सेमी व्यास के बेलनाकार होते हैं. इसकी हरी पत्तियां गोल आकार की होती हैं जिनके किनारों पर कांटे होते हैं. दिसंबर से अप्रैल के बीच में इसमें फल और फूल उगते हैं. पेट से जुड़े रोगों के इलाज में इस जड़ी बूटी को काफी उपयोगी पाया गया है.
तिधारा सेहुंड का वानस्पतिक नाम Euphorbia antiquorum Linn. (यूफॉर्बिया एण्टीकोरम) Syn-Tithymalus antiquorus (Linn.) Moench है. यह Euphorbiaceae (यूफॉर्बिएसी) कुल का पौधा है. आइये जानते हैं कि अन्य भाषाओं में इसे किन नामों से जाना जाता है.
Triangular spurge in :
तिधारा सेंहुण्ड कटु, तिक्त, उष्ण, लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, कफवातशामक कफघ्न, ज्वरघ्न, रुचिकारक तथा रक्तशोधक होता है।
इसका स्वरस तिक्त तथा शोथरोधी होता है।
इसकी मूल तापजनक, शूलहर, विरेचक, वामक, आमाशयिक क्रियाविधिवर्धक तथा पाचक होती है।
आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार पेट से जुड़े रोगों के अलावा यह कान दर्द और जोड़ों के दर्द के इलाज में भी फायदेमंद है. आइये जानते हैं कि अलग अलग बीमारियों में कैसे तिधारा सेहुंड का उपयोग करें.
अगर आप कान के दर्द से परेशान हैं तो तिधारा के उपयोग से आप इस दर्द से राहत पा सकते हैं. इसके लिए तिधारा सेहुंड की शाखाओं से प्राप्त जूस को 1-2 बूंद कान में डालें. कुछ दिन ऐसा करने से कान दर्द कम होता है।
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तिधारा के रस में अडूसा की पत्तियों को पीसकर 250 मिग्रा की गोलियां बना लें. रोजाना सुबह शाम 1-1 गोली चूसने से खांसी में आराम मिलता है।
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क्या आपको पता है कि तिधारा सेहुंड पेट के रोगों को ठीक करने में उपयोगी है? जी हां, आयुर्वेदिक विशेषज्ञों की मानें तो तिधारा के उपयोग से पेट में कीड़ों की समस्या, अपच, पेट फूलना आदि समस्याओं में फायदा मिलता है. आइये जानते हैं कि इन रोगों में तिधारा का उपयोग कैसे करें :
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सिफलिस एक यौन संचारित रोग है और इसके लक्षण नजर आते ही तुरंत इसका इलाज करवाना चाहिए. तिधारा की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से सिफलिस रोग के इलाज में फायदा मिलता है.
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गोनोरिया भी एक यौन संचारित रोग है. विशेषज्ञों के अनुसार तिधारा के रस में चने का बेसन मिलाकर आग पर पका लें. इसे पकाकर 250 मिग्रा की गोलियां बना लें. नियमित सुबह शाम एक-एक गोली का सेवन करने में गोनोरिया की समस्या में सुधार होता है।
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तिधारा में ऐसे गुण होते हैं जो जोड़ों के दर्द से आराम दिलाते हैं. गठिया या आर्थराइटिस में होने वाले जोड़ों के दर्द और सूजन से राहत पाने के लिए आप कई तरीकों से तिधारा का उपयोग कर सकते हैं. आइये जानते हैं इन बीमारियों में तिधारा सेहुंड का कैसे करें उपयोग :
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कई बार घावों में मौजूद कीड़े, घाव को और सड़ाने लगते हैं जिससे समस्या और बढ़ जाती है. तिधारा के रस में ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो घाव के इन कीड़ों को खत्म करने में मदद करता है. इसके लिए तिधारा सेहुंड के रस को घाव पर लगाएं, इससे घाव जल्दी ठीक होता है। इसके अलावा आप तिधारा के तने को पीसकर गुनगुना कर लें. इसे ऊँगलियों या नाख़ून में होने वाले घावों पर लगाने से घाव जल्दी ठीक हो जाते हैं।
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अगर आप दाद की समस्या से परेशान हैं तो इससे जल्दी छुटकारा पाने के लिए तिधारा सेहुंड का उपयोग करें. इसके लिए तिधारा के तने के रस को दाद वाली जगह पर लगाएं. इससे कुछ ही दिनों में दाद ठीक होने लगता है.
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आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार तिधारा सेहुंड के निम्न भाग बहुत उपयोगी हैं :
आमतौर पर तिधारा के जूस का सेवन 5 मिली की मात्रा में और काढ़े का सेवन 10-20 मिली की मात्रा में करना चाहिए. अगर आप किसी बीमारी के घरेलू इलाज के रूप में तिधारा का उपयोग करना चाहते हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह अनुसार इसका उपयोग करें.
तिधारा सेहुंड का पौधा बिहार, उत्तर प्रदेश, दक्कन प्रायद्वीप, दक्षिण भारत एवं उड़ीसा में पाया जाता है।
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