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शकरकंद को मीठा आलू (sweet potato in hindi) भी कहते हैं। आम तौर पर उपवास के समय शकरकंद को उबालकर खाया जाता है क्योंकि ये एनर्जी या ऊर्जा का स्रोत होता है। शकरकंद (shakarkand) में कई तरह की पौष्टिकताएं होती है जिसके कारण आयुर्वेद में औषधि के रुप में उपयोग किया जाता है। शकरकंद एक ऐसा फल है जो कच्चा या पका दोनों रूपों में सेवन किया जाता है। और उसको उबालकर खाना अच्छा होता है। शायद आपको ये सुनकर आश्चर्य होगा कि शकरकंद मीठा होने के बावजूद डायबिटीज के मरीजों के लिए फायदेमंद (benefits of shakarkandi) होता है। चलिये शकरकंद के बारे में और शकरकंद के फायदों (sweet potato benefits) के बारे में आगे विस्तार से बात करते हैं।
शकरकंद (sweet potato in hindi) विटामिन सी, विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स, आयरन, फॉस्फोरस और बीटा कैरोटीन का स्रोत होता है जिसके कारण पौष्टिकता से भरपूर होता है। शकरकंद मीठा, थोड़ा ठंडा और गरम, वात और पित्त को कम करने वाला, कफ को बढ़ाने वाला, शक्ति को बढ़ाने वाला, कब्ज से राहत दिलाने वाला होता है। इसका कंद विरेचक, वाजीकारक, मूत्रल बलकारक, कवकरोधी, जीवाणुरोधी, विबन्ध, प्रदर, अर्श, मधुमेह, कुष्ठ, पूयमेह तथा मूत्रकृच्छ्र में हितकर होता है। इसके भूमिगत कंद (bulb),लाल, सफेद अथवा पीले रंग का होता है। आम तौर पर शकरकंद बीच में मोटा तथा दोनों किनारों पर पतला होता है।
शकरकंद का वानास्पतिक नाम Ipomoea batatas (Linn.) Lam. (आइपोमिया बटॉटास्) Syn-Convolvulus batatas Linn होता है। ये कुल : Convolvulaceae (कान्वाल्वुलेसी) का होता है। शकरकंद को अंग्रेजी में : Sweet potato (स्वीट पोटैटो) कहते हैं। लेकिन इसके अलावा भारत के अन्य प्रांतों में शकरकंद को दूसरे नामों से भी पुकारा जाता है।
Sweet Potato in-
जैसा कि पहले ही बताया गया है कि शकरकंद के बहुत सारे स्वास्थ्यवर्द्धक गुण (sweet potato benefits in hindi) होते हैं, इसलिए आयुर्वेद में इसको कई तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। शकरकंद किन-किन बीमारियों के लिए और कैसे प्रयोग में लाया जाता है ये जानने के लिए आगे बढ़ते हैं।
अक्सर आहार में फेरबदल होने पर कब्ज की परेशानी होती है या किसी-किसी को लंबे समय तक कब्ज के समस्या से ग्रस्त रहना पड़ता है। शकरकंद को भूनकर सेवन करने से कब्ज के कष्ट से निजात मिलता है।
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खान-पान में समस्या होने पर या इंफेक्शन होने पर दस्त की परेशानी होती है। लंबे समय तक दस्त होने पर शरीर से जल की मात्रा कम हो जाती है। शकरकंद के जड़ को उबालकर सेवन करने से अतिसार या दस्त से राहत मिलती है।
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यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन होने पर मूत्र संबंधी कई तरह की समस्याएं होती है, जैसे- मूत्रमार्ग से स्राव होता है और पेशाब करने से जलन जैसी बहुत तरह की समस्याएं होती है। शकरकंद के जड़ का प्रयोग मूत्रमार्ग से होने वाले स्राव की चिकित्सा में ये होता है। पेशाब करने में जलन होने पर शकरकंद को जड़ का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा शकरकन्दी को काटकर-सुखाकर, उबालकर या काढ़ा बनाकर पीने से मूत्र संबंधी और रोगों तथा मूत्रदाह में लाभ होता है।
अगर लंबे समय से कोई फोड़ा नहीं सूख रहा है तो शकरकन्द को भूनकर पुल्टिस या पोटली की तरह बनाकर बांधने से फोड़ा जल्दी फटकर सूख जाता है।
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आजकल चेहरे पर दाग-धब्बों की समस्या आम हो गई है। कच्ची शकरकन्दी को घिसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की झांईयां मिटती है तथा चेहरे की कान्ति बढ़ती है।
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आजकल तनाव भरी जिंदगी का सीधा असर त्वचा पर पड़ती है, फलस्वरूप चेहरे की कांति खो जाती है। कच्ची शकरकन्दी को गोल काटकर या पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की कान्ति वापस आ जाती है।
अक्सर लंबे समय से बीमार पड़ने से कमजोरी हो जाती है। शकरकंद के मूल या जड़ का सेवन करने से कमजोरी दूर होती है।
अगर बिच्छु ने काटा है तो छाया में सुखाये हुए सूखे कड़वे शकरकंद को घिसकर दंश स्थान पर लेप करने से वृश्चिक या बिच्छु के विष का प्रभाव कम हो जाता है। इसके अलावा जड़ तथा पत्तों से बने काढ़ा को दंशस्थान पर लगाने से भी लाभ मिलता है।
आयुर्वेद में शकरकंद के कंद (bulb) और पत्ते का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। चिकित्सक के परामर्शानुसार इसका सेवन करना चाहिए।
हर बीमारी के लिए शकरकंद का सेवन और इस्तेमाल कैसे करना चाहिए, इसके बारे में पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए शकरकंद का उपयोग कर रहें हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
समस्त भारत में शकरकंद की खेती की जाती है। इसके मीठे कंद को भूनकर या उबालकर व्रत-उपवास में उपयोग किया जाता है।
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