Contents
क्या आप जानते हैं कि अगरु (agarwood in hindi) एक बहुत ही उत्तम जड़ी-बूटी है और आप अगरु के इस्तेमाल से बीमारियों को ठीक कर सकते हैं? प्राचीन काल से ही लोग भारत में अगरु का उपयोग कर रहे हैं। अगरु (agaru)को अगर भी कहा जाता है। इसकी लकड़ी से राल यानी गोंद की तरह का कोमल व सुगन्धित पदार्थ निकलता है, जो अगरबत्ती बनाने व सुगंधित उबटन की तरह शरीर पर मलने के काम आता है। इसके अलावा अगरु (agaru)का उपयोग बीमारियों के इलाज के लिए भी किया जाता है।
अगरु (agarwood in hindi) कड़वा और तीखा, पचने में हल्का और चिकना होता है। यह कफ तथा वात को शान्त करने वाला और पित्त को बढ़ाने वाला होता है। अगरु (agarwood)सुगंधित, लेप लगाने पर शीतल, हृदय के लिए लाभकारी, भोजन के प्रति रुचि बढ़ाने वाला और मोटापा कम करता है। यह त्वचा के रंग को निखारता है। आंख तथा कान के रोगों, कुष्ठ, हिचकी, उल्टी, श्वास फूलना, गुप्त रोगों, पीलिया, खुजली, फुन्सियाँ तथा विष-विकारों की चिकित्सा में इसका औषधीय प्रयोग (aquilaria agallocha medicinal uses) किया जाता है। अगुरु के सार का तेल भी समान गुणों वाला ही होता तथा पुराने घावों को ठीक करता है। पेट के कीड़े और कुष्ठ रोग को ठीक करता है।
अगरु वृक्ष (agaru tree) विशाल तथा सदा हरा-भरा रहने वाला होता है। कृष्णागुरु को पानी में डालने पर (लकड़ी भारी होने के कारण) डूब जाता है। अगरु की अनेक जातियां होती हैं।
(1) कृष्णागुरु
(2) काष्ठागुरु
(3) दाहागुरु
(4) मंगल्यागुरु
सभी प्रजातियों में कृष्णागुरु सबसे अच्छा माना जाता है। रोगों की चिकित्सा में इसका प्रयोग किया जाता है।
अगुरु की लकड़ी (agarwood in hindi) अंदर से एस्कोमाईसीटस मोल्ड (Ascomycetous mold), फेओएक्रीमोनीयम पेरासाईटीका (Phaeoacremonium parasitica) नामक डीमेशीएशस (गहरे वर्ण के कोशिकायुक्त-dark walled) कवक यानी सूक्ष्मजीवों से संक्रमित होती है। इन कवकों से बचाव के लिए अगरु के वृक्ष से एक विशेष प्रकार का द्रव्य निकलता है। अगरु (agaru) की त्वग्स्थूलता (Tylosis) रोग से असंक्रमित लकड़ी हल्के रंग की और संक्रमित लकड़ी इस द्रव्य के कारण गहरे-भूरे अथवा काले रंग की होती है।
प्राचीन समय में यहूदी धर्म-ग्रन्थों में यह अलहोट नाम से प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त ग्रीक व रोमन में इसे अगेलोकन तथा प्राचीन अरब में अधलूखी एवं ऊद हिन्दी नाम से इनका उल्लेख मिलता है। अगरु (aquilaria agallocha) का वानस्पतिक नाम ऐक्वीलेरिया मैलाकैन्सिस (Latin – Aquilaria malaccensis Lam., Syn – Aquilaria agallocha Roxb. Ex DC.) है। यह थाइमीलिएसी (Thymelaeaceae) कुल का पौधा है। विभिन्न भाषाओं में इसके नाम ये हैं –
Agaru (agar agar powder indian name) in –
अगरु (aquilaria agallocha) का औषधीय प्रयोग, प्रयोग की मात्रा और विधियां ये हैंः-
अगुरु की लकड़ी को चन्दन की तरह घिसकर उसमें थोड़ा कपूर मिलाकर मस्तिष्क पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है।
और पढ़े: सिर के दर्द में गम्भारी के फायदे
1-3 ग्राम अगुरु (agar agar powder) के चूर्ण में थोड़ा-सा सोंठ मिलाकर मधु के साथ सेवन करने से कफ के कारण होने वाली खाँसी ठीक होती है। अगुरु के चूर्ण (agar powder in hindi) तथा कपूर को पीसकर वक्ष स्थल पर लेप करने से श्वसनतंत्र-नलिका की सूजन ठीक (agarwood benefits) होती है।
पान के पत्ते में दो बूँद अगुरु (aquilaria agallocha) के तेल को डालकर सेवन करने से सांस फूलने के रोग में शीघ्र लाभ होता है। यह गाढ़े बलगम को पतला करने में भी मदद करता है, जिससे फेफड़ों को साफ़ होने में मदद मिलती है।
सेंधा नमक के साथ अगरु चूर्ण (agar powder in hindi) का सेवन करने से पेट और लीवर सक्रिय होते हैं और भूख बढ़ती है। यह लीवर को ताकत देता है और चयापचय प्रक्रिया को बढ़ाता करता है। अगुरु की लकड़ी को लगभग 10 ग्राम लेकर उसका काढ़ा बना लें। इसे 20-40 मिली मात्रा में नियमित सेवन करने से पेट के कैंसर में लाभ (aquilaria agallocha medicinal uses) होता है।
और पढ़े: पेट के रोगों में मेथी के फायदे
1-2 ग्राम अगुरु की लकड़ी के चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से उल्टी, अपच की समस्या एवं भूख की कमी ठीक होती हैं।
अगरु चूर्ण (agar powder in hindi) को घी में पकाकर शीतल कर लें। इसमें मिश्री मिलाकर सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ (agarwood benefits)होता है।
और पढ़ें – बवासीर में तंदुलीय चौलाई के फायदे
पाठा का पञ्चाङ्ग, अगुरु की लकड़ी तथा हल्दी को समान भाग में लेकर इनका काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से डायबिटीज में लाभ (agarwood benefits)होता है।
और पढ़े: डायबिटीज में गेहूं के फायदे
प्रसव के पहले और बाद में अगुरु की लकड़ी का काढ़ा बनाकर 20-30 मिली की मात्रा में प्रयोग करें। इससे प्रसव होने के बाद के प्रसूति स्त्री कके रोगों में लाभ होता है। इसमें अजवायन तथा सोंठ मिलाने से और जल्दी लाभ (agarwood benefits in hindi) प्राप्त होता है।
अगरु (agarwood) वात विकार को कम करता है। अगुरु की लकड़ी या पत्तों को पीसकर लेप करें। इससे गठिया, आमवात, जोड़ों की सूजन, लकवा आदि रोगों में लाभ होता है।
अगरु (agarwood)की छाल के चूर्ण (2 ग्राम) को पांच ग्राम गाय के घी के साथ लेने से कुष्ठ, खुजली आदि चर्म विकारों में लाभ होता है। यह पित्ती से जुड़े खुजली वाले फोड़े और खुजली को भी कम (aquilaria agallocha medicinal uses) कर देता है।
और पढ़ें – चर्म रोगों में चिचिंडा के फायदे
चोरक तथा अगुरु (agarwood)को पीसकर लेप करने से कफ के कारण होने वाली सूजन (agarwood benefits in hindi)ठीक होती है।
अगरु (agarwood)ठण्ड व थकान को कम करता हैं। यह बुखार को कम करने में मददगार हैं और शरीर को ताकत देता है। बुखार में इसका काढ़ा पीना लाभदायक होता हैं। अगुरु की लकड़ी डाल कर रखे जल का सेवन करने से बुखार में लगने वाली प्यास शान्त होती है। अगरु (agarwood)को गिलोय, अश्वगंधा और शतावरी के साथ लें। इससे बुखार के बाद होने वाली थकान और शारीरिक कमजोरी में फायदा (agarwood benefits in hindi)होता है।
और पढ़े – बुखार में दारुहरिद्रा से फायदा
2-5 ग्राम अगुरु के काढ़े को एक लोहे के बर्तन के भीतर लेप कर, रात भर छोड़ दें। सुबह 375 मिली जल में इस अगुरु लेप को घोल कर पीना चाहिए। ऐसे ही रोज एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुढ़ापे के कारण होने वाली बीमारियों से मुक्ति मिलती है तथा लंबी तथा स्वस्थ आयु की प्राप्ति होती है।
2-5 ग्राम अगुरु के चूर्ण को दूध के साथ रोज एक साल तक पीने से बल, आयुष्य आदि रसायन गुणों की प्राप्ति होती है। 1-2 बूँद अगुरु तेल का नियमित सेवन करने से बल की वृद्धि होती है।
और पढ़े: वीर्य रोग में गुलब्बास के फायदे
पान के पत्ते में 1-2 बूंद पुराने अगुरु तेल (Agaru Oil) को डालकर मुंह में रखने से सेक्सुअल पॉवर या सेक्स की ताकत बढ़ती है।
अगुरु की लकड़ी को पीसकर लेप करें। इससे सांप, बिच्छु आदि विषैले जीवों द्वारा काटे जाने पर चढ़ने वाले विष उतर जाता है। इससे दर्द आदि विषाक्त प्रभाव खत्म होतेा है।
तेल – 1-5 बूँद
चूर्ण – 0.5-3 ग्राम
सार 1-2 ग्राम
काढ़ा – 10-40 मि.ली.
चिकित्सक के परामर्शानुसार सम्पर्क करें।
कवक यानी सूक्ष्मजीवियों से संक्रमित तने के अंदर की लकड़ी।
भारत में अगरु (agarwood)उत्तर-पूर्वी हिमालय, मेघालय, मणिपुर, नागालैण्ड, त्रिपुरा के पर्वतीय क्षेत्र, खासिया पहाड़ियों एवं पश्चिमी बंगाल में लगभग 500 मीटर की ऊंचाई तक प्राप्त होता है। असम में प्राचीन काल से ही अगरु (agarwood)की खेती होती है। इसके अतिरिक्त अगुरु का वृक्ष (agaru tree) मलेशिया तथा फिलीपीन्स में भी मिलता है।
और पढ़ें –
आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार, त्रिफला चूर्ण पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए बेहद फायदेमंद है. जिन लोगों को अपच, बदहजमी…
डायबिटीज की बात की जाए तो भारत में इस बीमारी के मरीजों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही…
मौसम बदलने पर या मानसून सीजन में त्वचा से संबंधित बीमारियाँ काफी बढ़ जाती हैं. आमतौर पर बढ़ते प्रदूषण और…
यौन संबंधी समस्याओं के मामले में अक्सर लोग डॉक्टर के पास जाने में हिचकिचाते हैं और खुद से ही जानकारियां…
पिछले कुछ सालों से मोटापे की समस्या से परेशान लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. डॉक्टरों के…
अधिकांश लोगों का मानना है कि गौमूत्र के नियमित सेवन से शरीर निरोग रहता है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञ भी इस बात…