तेजबल का पौधा दांतों और मुंह के रोगों के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है. आयुर्वेदिक चिकित्सा में तेजबल का इस्तेमाल दांत दर्द की दवा के रूप में किया जाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि तेजबल के कई फायदे हैं, यह दांत से जुड़े रोगों के अलावा आंतों की सूजन कम करने और दस्त रोकने में भी सहायक है. इस लेख में हम आपको तेजबल के फायदे, औषधीय गुणों और उपयोग के तरीकों के बारे में बता रहे हैं.
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तेजबल का पेड़ झाड़ीदार, कांटे युक्त और लगभग 6 मीटर ऊँचा होता है. तेजबल को तुम्बरू, तुमरू आदि कई नामों से जाना जाता है. इसमें कफ, वात को कम करने और पित्त को बढ़ाने वाले गुण होते हैं. तेजबल के पेड़ की लकड़ियाँ बहुत सख्त होती हैं, इसी वजह से इसका उपयोग औषधि पीसने या घोटने वाले खरल के मूसल बनाने में किया जाता है. चरक के अनुसार तेजबल की छाल चबाने से दांत दर्द जल्दी ठीक हो जाता है.
तेजबल का वानस्पतिक नाम Zanthoxylum armatum DC. (जैन्थोजाइलम आरमेटम) Syn- Zanthoxylum arenosum Reeder & S.Y. Cheo है. यह Rutaceae (रूटेसी) कुल का पौधा है. आइये जानते हैं कि अन्य भाषाओं में तेजबल को किन नामों से जाना जाता है.
Toothache Tree in :
तेजबल कटु, तिक्त, उष्ण, लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, कफवातशामक, पित्तवर्धक, दीपन, पाचक, रुचिकारक, कुष्ठघ्न, विषघ्न, हृद्य, विदाही, सुंधित, बलकारक तथा कण्ठशोधक होता है।
यह श्वास, कास, शोथ, हिक्का, अग्निमांद्य, अर्श, मुखरोग, अपतंत्रक, अक्षिरोग, कर्णरोग, कोष्ठशूल, शिरशूल, कुष्ठ, वमन,प्लीहारोग, मूत्रकृच्छ्र, उदररोग, कृमिरोग, आमवात, अरुचि, दौर्गन्ध्य, हृद्रोग, दंतरोग, गुल्म तथा आध्मान नाशक होता है।
इसके फल कटु, तीक्ष्ण, वातकफशामक, सुगन्धि, दीपन, बालकों के लिए हितकर तथा अरुचि नाशक होते हैं।
इसका पञ्चाङ्ग वातानुलोमक, दीपन तथा रक्तशर्करा शामक होता है।
यह जीवाणुरोधी, पूयरोधी, कवकनाशक एवं अल्परक्तशर्कराकारक क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।
आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार तेजबल के औषधीय गुणों के कारण ही यह कई तरह के रोगों के इलाज में बहुत उपयोगी है. दांत से जुड़े रोगों के इलाज में तेजबल एक प्रमुख औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. आइये जानते हैं दांतों से जुड़े रोगों के अलावा और यह किन रोगों में फायदेमंद है.
हिंगू, तेजबल और सोंठ के पेस्ट को सरसों के तेल में पका लें. इसे छानकर 1-2 बूंद तेल को कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।
सरसों के तेल में तेजबल या तुम्बुरु को पकाकर, 1-2 बूंद कान में डालने से कान का दर्द मिटता है।
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पिप्पली, अगुरु, दारुहल्दी, तज, यवक्षार, रसौत, पाठा, तेजबल और हरीतकी का चूर्ण बनाकर 1-2 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर कवल धारण करने से मुखरोगों का शमन होता है।
तुम्बरु, हरीतकी, इलायची आदि के चूर्ण को दांतों एवं मसूढ़ों पर धीरे-धीरे मालिश करने से मसूढ़ों में होने वाली समस्याएं जैसे कि रक्तस्राव, खुजली तथा दर्द से राहत मिलती है।
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दांतों से जुड़े रोग : तेजबल के फल एवं बीज के चूर्ण को दांतों पर रगड़ने से और इसकी शाखाओं से दातून करने से दांतों से जुड़े रोग दूर होते हैं।
तेजबल की छाल का काढ़ा बनाकर गरारा करने से दांतों के दर्द से आराम मिलता है।
श्वास-5 ग्राम तेजोवत्यादि घृत का सेवन करने से हिचकी की समस्या में लाभ मिलता है. हिचकी रोकने के अलावा तेजोवत्यादि घृत का सेवन करने से वातज बवासीर, आंतों के रोग, दिल से जुड़े रोगों आदि में लाभ मिलता है।
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हरीतकी, तीनों नमक, यवक्षार, हींग, पुष्करमूल तथा तेजबल की छाल के चूर्ण का सेवन गर्म पानी के साथ करने से बदहजमी या अपच में लाभ होता है।
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अगर आप आंतों में सूजन की समस्या से पीड़ित हैं तो घरेलू उपाय की मदद से भी आराम पा सकते हैं. 10-20 मिली तेजबल की छाल का काढ़ा या फाण्ट का सेवन करने से आंतों की सूजन कम होती है।
1-2 ग्राम तेजबल की छाल के चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से दस्त रोकने में मदद मिलती है, यह चूर्ण पाचक अग्नि को तीव्र करने में मदद करता है. इसके अलावा पाचक अग्नि को बढ़ाने के लिए तेजबल के बीज के चूर्ण में मिश्री मिलाकर सेवन करें।
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तेजबल, पाठा, कारवी, विडंग, देवदारु तथा चावल को घी में मिलाकर बवासीर के मस्सों का धूपन करने से बवासीर में लाभ होता है।
गजपीपल, पंचकोल, तुम्बरु तथा धनियाँ आदि द्रव्यों को पीसकर, उससे पेया, दाल आदि आहार द्रव्य सिद्ध कर अनारदाना आदि अम्ल पदार्थ मिलाकर घृत, तैल आदि से संस्कृत कर पीने से अथवा उपरोक्त कल्क से घृत का पाक करके सेवन करने से जठराग्नि तीव्र होती है तथा अर्श में लाभ होता है।
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लकवा के मरीजों के लिए तेजबल काफी उपयोगी है. शरीर का जो हिस्सा लकवाग्रस्त हो उसमें तेजबल के पेस्ट का लेप करने से लकवा में फायदा मिलता है.
तुम्बरू या तेजबल की छाल का काढ़ा बनाकर 15-30 मिली मात्रा में पीने से गठिया रोग में लाभ होता है। इसके अलावा तुम्बरू की लकड़ी को पकड़कर (लकड़ी की छड़ी बनाकर) चलने से भी गठिया में फायदा मिलता है।
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त्वचा संबंधी रोगों को ठीक करने में भी तेजबल काफी उपयोगी है. इसके लिए किसी समस्या से जूझ रहे हैं तो तेजबल के पेस्ट का लेप करने से त्वचा रोगों में लाभ होता है।
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दूषित पानी पीने या संक्रमित खाना खाने की वजह से हैजा की समस्या होती है. हैजा के इलाज में आप तेजबल की छाल का उपयोग कर सकते हैं. इसके लिए तेजबल की छाल का काढ़ा बनाकर 15-20 मिली मात्रा में पिएं।
एक समान मात्रा में तेजबल, पुष्करमूल, हींग, अम्लवेतस, हरीतकी तथा तीनों नमक (विड, सौवर्चल, सैंधव) के (1-2 ग्राम) चूर्ण को जौ काढ़े के साथ सेवन करने से हिस्टीरिया में लाभ मिलता है।
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25-30 मिली बेल शर्बत में 1-2 ग्राम तेजबल के बीज के चूर्ण मिलाकर पीने से पित्त से जुड़े रोगों में लाभ मिलता है।
आयुर्वेद के अनुसार तेजबल के निम्न भाग सेहत के लिए उपयोगी हैं.
सामान्य तौर पर तेजबल चूर्ण का सेवन 1-3 ग्राम की मात्रा में और तेजबल का काढ़ा 10-20 मिली की मात्रा में करना चाहिए. अगर आप किसी गंभीर बीमारी के घरेलू इलाज के रूप में तेजबल का उपयोग करना चाहते हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह लें।
यह विश्व में पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार, जापान, कोरिया, वियतनाम, ताइवान, फिलीपीन्स मलाया प्रायद्वीप तथा सुमात्रा में पाया जाता है। भारत में यह उपउष्णकटिबंधीय हिमालय की उष्ण घाटियों में 2000 मी की ऊँचाई पर जम्मू से खासिया के पहाड़ी क्षेत्रों, उत्तराखण्ड, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में पाया जाता है।
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