पिठवन के पौधे आयुर्वेद में औषधी के रूप में काम आते हैं। पिठवन के पौधा किन-किन बीमारियों में कैसे काम करता है इसके लिए आपको पिठवन के बारे में विस्तार से जानने की जरूरत है। चलिये आगे पिठवन के बारे में जानते हैं कि इसके औषधीय गुण और फायदे क्या है।
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पिठवन (Uraria picta) के अतिरिक्त पिठवन की (Uraria lagopoides) तथा (Uraria rufescens) आदि जातियां पाई जाती हैं। दोनों के गुणधर्म समान हैं तथा दोनों ही प्रकार के पिठवन दशमूल में लघुंचमूल के अंग हैं। इन पर वर्षाकाल में फूल तथा शीतकाल में फली आती है। अथर्ववेद में पृश्निपर्णी को जीवाणुनाशक, कमजोरी दूर करने वाला तथा मोटापा को कम करने वाला माना जाता है। बृहत्रयी में रक्तार्श या खूनी बवासीर, वातविकार या गठिया के इलाज में मददगार होता है। चरक-संहिता में सूजन को कम करने वाला माना जाता है।
पिठवन का वानास्पतिक नाम Uraria picta (Jacq.) Desv. ex DC. (युरेरिआ पिक्टा) Syn- Hedysarum pictum Jacq होता है। इसका कुल Fabaceae (फैबेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Dabra (डाब्रा) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि पिठवन और किन-किन नामों से जाना जाता है।
पिठवन के फायदों के बारे में जानने से पहले उसके औषधीय गुणों के बारे में जान लेना सबसे जरूरी होता है। पिठवन वात-पित्त-कफ तीनों दोषो को हरने वाला, वीर्य को बढ़ाने वाला, गर्म, मधुर, और बुखार के जलन और दस्त से खून निकलने, प्यास तथा वमन यानि उल्टी के इलाज में मददगार होता है। पिठवन रसायन, बलकारक व स्तम्भक (Styptic) होता है।
इसके अलावा बुखार, प्रतिश्याय या सर्दी-जुकाम, कफ रोग एवं दुर्बलता को दूर करने के लिए प्रयुक्त होती है। पृश्निपर्णी उल्टी और बुखार के इलाज में फायदेमंद होती है। यह सांस संबंधी समस्या, रक्तगत वात, रक्तार्श या खूनी बवासीर, हड्डियों के टूटने एवं आँख संबंधी समस्या के इलाज में फायदेमंद होती है।
पिठवन में पौष्टिकारक गुण होता है, उतना ही औषधी के रूप में कौन-कौन से बीमारियों के लिए फायदेमंद होते है,चलिये इसके बारे में आगे जानते हैं-
अगर आप हमेशा सर्दी-जुकाम से परेशान रहते हैं तो पिठवन की 10 ग्राम जड़ को 400 मिली पानी में पकाकर चतुर्थांश शेष का काढ़ा बनाकर और काढ़े में मिश्री मिलाकर पिलाने से प्रतिश्याय यानि सर्दी-जुकाम में लाभ होता है।
ताम्र पत्ते में पृश्निपर्णी जड़, सेंधानमक तथा मरिच चूर्ण मिला कर काञ्जी से पीस कर आँखों में काजल की तरह लगाने से पिल्ल रोग से आराम मिलता है।
अगर किसी कारणवश दस्त से खून आना बंद नहीं हो रहा है तो बकरी के दूध में आधा-भाग जल मिला कर समान मात्रा में सुगन्धबाला, नीलकमल, सोंठ तथा पृश्निपर्णी मिलाकर सिद्ध कर 10-20 मिली मात्रा में पीने से रक्तातिसार से आराम मिलता है।
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रक्तार्श और शराब पीने की अधिकता से उत्पन्न शारीरिक समस्या में पिठवन और खिरैटी का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से अत्यन्त लाभ होता है। इसके अलावा बला की जड़ तथा पृश्निपर्णी के काढ़े से बना धान के लावे की पेया को पीने से बवासीर में होने वाले रक्तस्राव से जल्द राहत मिलती है।
अगर भगन्दर या फिस्चुला के कष्ट में कोई भी उपचार काम नहीं आ रहा है तो पिठवन से इस तरह से इलाज करने पर जल्दी आराम मिल सकता है-
-पिठवन के 8-10 पत्तों को पीसकर लेप करने से भगन्दर में लाभ होता है।
-10 मिली पिठवन पत्ते के रस का नियमित रूप से कुछ दिनों तक सेवन करने से भगन्दर रोग में लाभ होता है।
-पिठवन के पत्तों में थोड़ा कत्था मिलाकर, पीसकर लेप करने से या कत्था तथा काली मिर्च समान मात्रा में मिलाकर, पीसकर पिलाने से भगन्दर में लाभ होता है।
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पिठवन का औषधीय गुण स्प्लीन के बढ़ जाने पर उसको सामान्य अवस्था में लाने में बहुत मदद करता है। इसके लिए पिठवन का सेवन इस तरह से करें-
-10-20 मिली पिठवन पत्ता तथा जड़ के रस को पिलाने से प्लीहा विकारों में लाभ होता है।
-पृश्निपर्णी के पञ्चाङ्ग को मोटा-मोटा कूटकर छाया में सुखाकर रखें। सुबह शाम 10 ग्राम की मात्रा में लेकर 400 मिली पानी में पकाएं, जब 100 मिली काढ़ा शेष रहे तब छानकर पिएं। इससे प्लीहावृद्धि, जलोदर, यकृत् व उदर सम्बन्धित रोगों में लाभ होता है।
पिठवन की जड़ों को पीसकर, इसका लेप नाभि, वस्ति(bladder) और योनि पर करने से बच्चा सुख से उत्पन्न हो जाता है, बच्चा होते ही लेप को धो दें।
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5 ग्राम पिठवन मूल के चूर्ण में 2 ग्राम हल्दी चूर्ण मिलाकर 21 दिन तक सेवन करने से लाभ होता है।
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200 मिली बकरी के दूध में 5 ग्राम पिठवन मूल को डालकर, पकाकर, छानकर इसमें मधु एवं शर्करा मिलाकर पीने से वातरक्त या गठिया के दर्द से जल्दी आराम मिलता है।
पृश्निपर्णी, केवाँच बीज, हल्दी, दारुहल्दी, चमेली, मिश्री तथा काकोल्यादि गण की औषधियों से पकाये हुए घी को व्रण पर लगाने से तथा खाने से व्रण या घाव जल्दी ठीक हो जाता है।
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बला और पृश्निपर्णी का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से मदात्ययजन्य तृष्णा (शराब पीने के बाद लगने वाली अत्यधिक प्यास) से आराम मिलता है।
मसूर तथा पृश्निपर्णी के काढ़े से बने यवागु या जूस का सेवन करने से रक्तपित्त के इलाज में लाभ मिलता है।
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अच्छी तरह से फूले फले पिठवन के पौधो की जड़ें को लाल धागे में बांधकर, मस्तक पर धारण करने से बुखार के कष्ट से जल्दी आराम मिलता है।
समान मात्रा में शालपर्णी तथा पृश्निपर्णी को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। 10-20 मिली काढ़े में मधु मिला कर मात्रानुसार सेवन कराने से अतिसार या दस्त से आराम मिलता है।
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10 मिली पिठवन पञ्चाङ्ग के रस में शक्कर मिलाकर देने से वत्सनाभ (monkshood) के विष में लाभ होता है।
आयुर्वेद के अनुसार पिठवन का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-
-पत्ता
-जड़
-फलियाँ और
-पञ्चाङ्ग।
यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए पिठवन का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 50-100 मिली काढ़ा ले सकते हैं।
पिठवन के पौधे पूरे भारत की ऊसर भूमि तथा जंगली प्रदेशों में, लगभग 2000 मी की ऊंचाई तक नैसर्गिक रूप से उत्पन्न होते हैं।
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