ऐसा कौन-सा इंसान हैं जिसने नील फूल नहीं देखा होगा, लेकिन नील फूल को अपराजिता फूल समझकर धोखा मत खाइए। हिन्दी में नील फूल को नीली, गौंथी या गौली भी कहते हैं। भारत में इस फूल की खेती पहले नीला रंग बनाने के लिए किया जाता था। जब से कृत्रिम नीला रंग बनने लगा तब से इसकी खेती प्राय: बन्द-सी हो गयी है; परन्तु अब भी कई स्थानों पर यह जंगली अवस्था में खुद ही पैदा हो जाती है। इस नील फूल के औषधीपरक गुण भी हैं जो अनगिनत बीमारियों के लिए इस्तेमाल की जाती है, चलिये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
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चरक-संहिता के विवेचन एवं सुश्रुत-संहिता के अधोभागहर-गण में इसका उल्लेख मिलता है। नील फूल का इस्तेमाल बाल, पेट संबंधी समस्या, पाइल्स, सिरदर्द, वायु का गोला जैसे बीमारियों में प्रयोग किया जाता है। नील फूल का औषधीय गुण बहुत सारे बीमारियों में कैसे और किन गुणों के कारण उपयोग किया जाता है इसके बारे में जानने के लिए आगे चर्चा करेंगे।
नील का वानास्पतिक नाम Indigofera tinctoria Linn. (इन्डिगोफेरा टिंक्टोरिया) Syn-Indigofera indica Linn होता है। इसका कुल Fabaceae (फैबेसी)) होता है और इसको अंग्रेजी में Indigo (इण्डिगो) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि नील और किन-किन नामों से जाना जाता है।
नील के फायदों के बारे में जानने के लिए इसके औषधीय गुणों के बारे में पहले जानना जरूरी होगा। चलिये इसके बारे में विस्तार से जान लेते हैं-
नील प्रकृति से कड़वा, तीखा, गर्म, लघु, रूखा, तीक्ष्ण, कफवात से आराम दिलाने वाला, तथा बालों के लिए हितकर होता है।
यह पेट संबंधी रोग, वातरक्त, व्यंग (Blemishes), आमवात या गठिया, उदावर्त (vertical disease), मद (alchohol), विष, कटिवात या कमर में वात का दर्द, कृमि, गुल्म (Tumor), ज्वर या बुखार, मोह, सिरदर्द, भम, व्रण या घाव, हृदय रोग तथा व्रण-नाशक होती है।
इसका तेल कड़वा, तीखा, कषाय, कफवातशामक, कुष्ठ, व्रण तथा कृमिनाशक होता है।
यह लीवर संबंधी समस्या, अर्बुदरोधी (Molluscidal), कवकरोधी या फंगस को रोकने वाला, विरेचक, कृमि नाशक, बलकारक, मूत्र संबंधी समस्या, लीवर को स्वस्थ रखने में मददगार होती है। इसके अलावा इसमें शर्करा की मात्रा कम होती है।
नील में पौष्टिकारक गुण होता है, उतना ही औषधी के रूप में कौन-कौन से बीमारियों के लिए फायदेमंद होते है,चलिये इसके बारे में आगे जानते हैं-
असमय बालों का सफेद होना आज एक बड़ी समस्या है। समान मात्रा में त्रिफला (आँवला, हरीतकी, बहेड़ा), नील के पत्ते, लौहभस्म तथा भृङ्गराज चूर्ण को अकेले या इसमें आम की गुठली का चूर्ण मिला कर, आरनाल या भेड़ के मूत्र से पीसकर बालों पर लेप करने से बाल सफेद नहीं होते हैं तथा बालों का झड़ना भी बंद हो जाता है। इसके अलावा कटसरैया, तुलसी, नील बीज, रक्तचन्दन, भल्लातक बीज आदि द्रव्यों को तिल तेल में पकाकर छानकर 1-2 बूंद तेल को नाक से लेने से तथा सिर पर मालिश करने से यह आँखों के लिए हितकर, आयुवर्धक तथा पलित रोग (असमय बाल सफेद होना) में लाभप्रद होता है।
अगर घाव जल्दी ठीक होने का नाम नहीं ले रहा है तो नीली जड़ के पेस्ट का लेप करने से घाव भर जाता है।
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दिन के तनाव से अगर आपको हर दिन सिरदर्द होता है तो नीली जड़, तना तथा पत्ते को पीसकर मस्तक पर लगाने से सिरदर्द से आराम मिलता है।
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बच्चों के लिए दांत में कीड़ा होने की बीमारी सबसे आम होती है। बच्चों को इस बीमारी से राहत दिलाने में नील का औषधीय गुण बहुत उपकारी होता है। नीली जड़ को चबाकर मुख में रखने से दाँत के कीड़े मर जाते हैं।
नीली जड़, पत्ता तथा तने के चूर्ण (1-2 ग्राम) का सेवन करने से कफ का निसरण होकर सांस फूलना तथा जीर्ण (फेफड़ों में सूजन रोग) लंग्स के नलिका में सूजन, कुक्कुर खांसी या हूपिंग कफ, हृदय रोग में लाभ होता है।
अगर ट्यूमर को लेकर कितना भी इलाज किया जा रहा हो और वह ठीक होने का नाम नहीं ले रहा हो तो नील का औषधीय गुण लाभकारी हो सकता है। नील का प्रयोग इस तरह से करने पर फायदा मिल सकता है-
-नीली बीज, जलवेतस, त्रिकटु, यवक्षार, सज्जीक्षार, पाँचों लवण (सैंधव, सामुद्र, सोंचर, विड, सांभर नमक) तथा चित्रकमूल के 2-6 ग्राम चूर्ण को घी में मिलाकर खाने से सभी प्रकार के पेट संबंधी रोग तथा गुल्म रोग से जल्दी आराम मिलता है।
-5 ग्राम नीलिन्यादि घी को यवागू व मण्ड (जौ) के साथ सेवन करने से गुल्म, कोढ़, पेट का रोग, सूजन, खून की कमी, प्लीहा, उन्माद आदि रोगों से आराम मिलता है।
-5 ग्राम त्र्यूषणादि घी में नीली-मूल चूर्ण मिलाकर सेवन करने से कब्ज से पीड़ित गुल्म रोगी के मल को ठीक करने में मदद करते हैं।
-नीली, निशोथ, दंती, हरीतकी, कम्पिल्लक, विड्नमक, यवक्षार तथा सोंठ से बने गाय के घी को 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से गुल्म रोगी का पूरा मलशोधन हो जाता है।
हर दिन सुबह कब्ज के कष्ट से परेशान रहते हैं तो 1-2 ग्राम नीलनी फल व जड़ के चूर्ण के सेवन से मल कोमल होकर कब्ज व लीवर के सूजन को कम करने में फायदेमंद होता है।
पाइल्स से परेशान हैं तो नील का इस तरह से प्रयोग करने पर आराम मिलेगा। बवासीर के मस्सों पर नीलनी पत्ते के पेस्ट को लगाने से अर्श में लाभ होता है।
नीलनी जड़, तना एवं पत्ते से बने पेस्ट (1-2 ग्राम) एवं काढ़े (10-20 मिली) का सेवन करने से प्लीहा-विकारों से आराम मिलता है।
5-10 मिली पत्ते के काढ़े का सेवन करने से तथा पत्ते के काढ़े से योनि को धोने से योनिगत स्राव या वैजाइना के स्राव से आराम मिलता है।
पौधे के सत्त् का प्रयोग तंत्रिकागत विकारों की (नसों से संबंधित बीमारियों) चिकित्सा में किया जाता है।
नील के बीजों को पीसकर जोड़ो पर लगाने से आमवात या गठिया के दर्द से आराम मिलता है।
सुबह 1-2 ग्राम नीली मूल चूर्ण का सेवन दूध के साथ करने से तथा अजा दूध में मूल को घिसकर लेप व सेवन करने से विसर्प व मूत्र संबंधी समस्याओं में लाभ होता है।
5 मिली नीली पत्ते के रस का सेवन करने से अपस्मार या मिर्गी के कष्ट से आराम पाने में मदद मिलती है।
1-2 ग्राम नीली जड़ के पेस्ट को दूध के साथ सेवन करने से क्षयरोग (टी.बी.) में लाभ होता है।
1 ग्राम नीलीमूल चूर्ण को चावल के धोवन से पीसकर पीने से सांप के काटने पर उसके विष को असर को कम करने में मदद मिलती है।
जिस जगह पर बिच्छु ने काटा हो उस स्थान पर पत्ते तथा जड़ के पेस्ट को पीसकर लेप करने से तथा 10-20 मिली काढ़े का सेवन करने से बिच्छु के विष के असर को कम करने में मदद मिलती है।
आयुर्वेद के अनुसार नील का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-
यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए नील का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें।
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