आयुर्वेद चिकित्सा में ऐसे हजारों जड़ी-बूटियां मिल जायेंगी जो हमारे आस-पास ही होती हैं लेकिन हमें नहीं पता होता है कि वह हमारे लिए कितने फायदेमंद होती हैं। ऐसी ही एक बूटी होती है धमासा। आयुर्वेद में धमासा का प्रयोग रक्त को रोकने के लिए उपयोग किया जाता है। इसके अलावा किन-किन बीमारियों में इसका इस्तेमाल औषधी के लिए किया जाता है, चलिये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
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प्राचीन आयुर्वेदीय संहिताओं तथा निघण्टुओं में दुरालभा, समुद्रान्ता तथा दुस्पर्शा आदि नामों से इसका वर्णन प्राप्त होता है। चरक-संहिता के तृष्णानिग्रहण तथा अर्शोंघ्न गणों में इसका वर्णन किया गया है। प्रत्येक पत्ते के पास दो नुकीले काँटे निकले हुए होते हैं। इसके कांटे शरीर पर चुभने से बहुत ज्यादा दर्द होता है। इस लेख में आगे हम आपको धमासा के फायदे, नुकसान और औषधीय गुणों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं :
धमासा का वानास्पतिक नाम Fagonia cretica Linn. (फैगोनिआ क्रेटिका) Syn-Fagonia deflexa Moench; Fagonia elongata Salisb होता है। इसका कुल Zygophyllaceae (जाइगोफिलेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Khorasan thorn (खुरासन थॉर्न) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि धमासा और किन-किन नामों से जाना जाता है।
प्रकृति से धमासा मधुर, कड़वा, कषाय, शीतल, लघु, कफवात से आराम दिलाने वाले, रक्त को शुद्ध करने वाला तथा अर्शोघ्न होता है।
यह विषमज्वर (मलेरिाय), तृष्णा या प्यास, छर्दि या उल्टी, प्रमेह या डायबिटीज, मोह, विसर्प या हर्पिज, शूल या दर्द, गुल्म, श्वास, कास, भम, मद तथा कुष्ठ नाशक होता है।
धमासा में पौष्टिकारक गुण होता है, उतना ही औषधी के रूप में कौन-कौन से बीमारियों के लिए फायदेमंद होते है,चलिये इसके बारे में आगे जानते हैं-
तनाव के परेशान रहने के कारण सिर के दर्द से परेशान रहते हैं तो धमासा के पत्तों को पीसकर माथे पर लगाने से सिरदर्द से आराम मिलता है।
धमासा पञ्चाङ्ग का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुखपाक (Stomatitis), गले के दर्द तथा अन्य मुँह संबंधी समस्याओं में लाभ होता है। इसके अलावा धमासा पञ्चाङ्ग को पीसकर गले में लगाने से गले की सूजन से आराम मिलता है।
देवदारु, शटी, रास्ना, कर्कट शृंगी तथा धमासा के समान भाग में चूर्ण (1-2 ग्राम) में मधु तथा तिल तेल मिलाकर सेवन करने से वातदोषयुक्त कफज कास से आराम मिलता है।
धमासा के रस को गन्ने के रस के साथ उबालकर, उसका अवलेह बनाकर सेवन करने से फुफ्फुस रोगों में लाभ होता है।
अगर आप अक्सर हिक्के के कष्ट से परेशान रहते हैं तो 10-30 मिली धमासा काढ़े में शहद मिलाकर पिलाने से हिक्का से आराम मिलता है।
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1-2 ग्राम धमासा चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करने से कफज छर्दि में लाभ होता है। इससे बलगम के कारण जो उल्टी होने लगती है उससे आराम मिलता है।
दुरालभा चूर्ण का सेवन करने से ग्रहणी, खून की कमी, कुष्ठ, प्रमेह या डायबिटीज, रक्तपित्त (कान, नाक के खून बहने की बीमारी) तथा कफज संबंधी बीमारी से आराम मिलने तथा स्वर एवं वर्ण की वृद्धि होती है।
बड़ी आँत के समस्या से परेशान हैं तो 5 मिली धमासा पत्ते के रस को पीने से उदावर्त या बड़ी आँत के समस्याओं से राहत मिलने में आसानी होती है।
धमासा के साथ समान मात्रा में मुनक्का मिलाकर, काढ़ा बनाकर 10-20 मिली काढ़े का सेवन करने से दस्त होने के साथ अगर बुखार हुआ है, उससे जल्दी राहत पाने में आसानी होती है।
अगर पेशाब करते वक्त आपको परेशानी होती है और वह रूक-रूक कर आती है तो धमासा का सेवन इसके इलाज में लाभप्रद होता है।
धमासा रस से पकाए हुए दूध में घी मिलाकर सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी समस्याओं में लाभ होता है।
धमासा पञ्चाङ्ग को पीसकर लगाने से विद्रधि, व्रण या घाव, मसूरिका या चेचक तथा गले की गांठों के इलाज में मदद मिलती है।
-धमासा के रस को घाव पर लगाने से घाव में पाक नहीं होता तथा घाव शीघ्र भर जाता है।
-धमासे का काढ़ा बनाकर व्रण को धोने से घाव में पूय या पीव नहीं बनती तथा घाव जल्दी भर जाता है।
आजकल के प्रदूषण भरे वातावरण में त्वचा संबंधी समस्या होना आम बात हो गया है। धमासा तने की छाल को पीसकर लगाने से पामा में लाभ होता है।
कुष्ठ के लक्षण ठीक होने का नाम नहीं ले रहा है तो धमासा पत्ते को पीसकर लगाने से रोमकूप के सूजन तथा श्वेत कुष्ठ के इलाज में लाभकारी होता है।
10-20 मिली धमासा काढ़े में 5 मिली घी मिलाकर सेवन करने से भ्रम के इलाज में मदद मिलती है।
समान मात्रा में धमासा, पर्पट, कमल-नाल तथा चन्दन से बने (1-2 ग्राम) पेस्ट का सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
मौसम के बदलाव के कारण बार-बार बुखार हो जाता है तो धमासा का इस्तेमाल इस तरह से करने पर जल्दी आराम मिलता है-
-धमासा के पत्तों का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में पीने से बुखार तथा पित्तज संबंधी समस्याओं से आराम मिलता है।
-धमासा से बने काढ़े में जल मिलाकर स्नान करने से बुखार से आराम मिलता है।
-गिलोय, सोंठ, नीम छाल, अडूसा पञ्चाङ्ग, कुटकी, हरड़, पोहकर मूल, भृंगराज तथा धमासा का समान मात्रा में मिलाकर काढ़ा बनायें। 10-20 मिली काढ़े में शहद मिलाकर पीने से सभी प्रकार के बुखार से आराम मिलता है।
सूजन के कष्ट को दूर करने के लिए धमासा को दूध में पकाकर प्रभावित स्थान पर लेप करने से सूजन से आराम मिलता है।
धमासा पञ्चाङ्ग के पेस्ट को सांप के काटे हुए जगह पर लगाने से सांप के विषाक्त प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है।
आयुर्वेद के अनुसार धमासा का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-
-पत्ता
-पञ्चाङ्ग और
-जड़।
यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए धमासा का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 1-2 ग्राम चूर्ण, 5-10 मिली रस और 10-12 मिली काढ़ा ले सकते हैं।
कठोर तना तथा कण्टकों से युक्त यह झाड़ी भारत के रूखे भागों में मुख्यत उत्तर-पश्चिमी भारत, पंजाब, गंगा के ऊपरी मैदानी भागों, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कोंकण एवं पश्चिमी प्रायद्वीप में पाया जाता है।
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