दर्भ (Darbh) को दभ, सिरु, डाभ आदि अनेक नामों से जानते हैं। यह एक तरह का घास है। इसकी ख़ासियत यह है कि इसके पौधे आम घास की तुलना में लंबे होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, दर्भ एक जड़ी-बूटी की तरह काम करता है, और दर्भ के अनेक औषधीय गुण भी हैं। क्या आप यह जानते हैं कि दर्भ के इस्तेमाल से गठिया, बवासीर, खांसी और टीबी के रोग में फायदे (Darbh benefits and uses) मिलते हैं। इसके साथ ही सुजाक, आंख-नाक की बीमारियां और अत्यधिक प्यास लगने की समस्या में भी आप दर्भ के औषधीय गुण से लाभ ले सकते हैं।
आयुर्वेदिक किताबों में दर्भ के गुण के बारे में कई सारी अच्छी बातें बताई गई हैं। नीचे उन सभी लाभ के बारे में विस्तार से लिखा गया है। आइए जानते हैं कि दर्भ से क्या-क्या फायदा और नुकसान (Darbh side effects) हो सकता है।
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दर्भ का पौधा 0.6-1.5 मीटर ऊंचा, पुंजमय होता है। यह अनेक सालों तक जीवित रहता है। इसका तना 30-90 सेमी ऊँचा और कठोर होता है। इसके पत्ते सीधा और अधिकांशतः तना से लम्बा होता हैा। इसके फूल गुच्छों में होते हैं। फूल का रंग सफेद होता है। इसकी जड़ हमेशा बढ़ने वाली विसर्पी होती है। इसका प्रकंद शल्क-युक्त, चमड़े के रंग का होता है। यह ऊपर की ओर नुकीला होता है। इसमें फूल और फल सालों भर होता रहता है।
विशेष- वसन्त-ऋतु में दर्भ की जड़, कपूर, खस, शिरीष के बीज, सौंफ के बीज और चावल के आटे से तैयार लेप को मुंह पर लगाया जाता है।
यहां दर्भ के फायदे और नुकसान की जानकारी बहुत ही आसान भाषा (Darbh benefits and side effects in Hindi) में लिखी गई है ताकि आप दर्भ के औषधीय गुण से पूरा-पूरा लाभ ले पाएं।
दर्भ का वानस्पतिक नाम Imperata cylindrica (Linn.) Raeusch. (इम्प्रेटा सिलिन्ड्रिका) Syn-Imperata arundinacea Cirillo., Imperata cylindrica (Linn.) P. Beauv. है, और यह Poaceae (पोएसी) कुल का है। दर्भ के अन्य ये भी नाम हैंः-
Darbh in –
दर्भ के आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव ये हैंः-
दर्भ मधुर, कषाय, शीत, स्निग्ध और त्रिदोषशामक होता है। दर्भ की मूल शीतल, मधुर और रुचिकारक होती है। दर्भ का दुग्ध के साथ सेवन करने से रक्तपित्त और मूत्रविकारों में अत्यन्त लाभ होता है। पौधे से प्राप्त सत् में विषाणुनाशक और कर्कटार्बुदरोधी गुण होता है। इसके पत्तों का एथेनॉल-सार धमनीविस्फारात्मक उच्चरक्तदाबरोधी गुण प्रदर्शित करता है। इसका सार स्कन्दनरोधी-क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।
दर्भ के औषधीय गुण, प्रयोग की मात्रा एवं विधियां ये हैंः-
गठिया में दर्भ के इस्तेमाल से लाभ मिलता है। आप दर्भ की जड़ का काढ़ा बना लें। काढ़ा को 10-30 मिली मात्रा में पीने से गठिया में लाभ होता है।
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दर्भ और गुन्द्रा आदि द्रव्यों को गुन्द्रादि घी में पका लें। इसे नाक से लेने से आंखों के रोग खत्म होते हैं।
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दर्भ की जड़ को पीसकर रस निकाल लें। 1-2 बूंद रस को नाक में डालने से नाक से जुड़ी बीमारी ठीक होती है। उपाय करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर सलाह लें।
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गोक्षुर और दर्भ आदि को श्वदंष्ट्रादि घी में पका लें। इसे मात्रानुसार सेवन करने से ह्रदय की कमजोरी, दर्द, शारीरिक कमजोरी, और किसी बड़ी या छोटी बीमारी के कारण होने वाली शारीरिक कमजोरी में लाभ होता है।
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बला की जड़, एरण्ड की जड़, दर्भ की जड़, देवनल और सोंठ से बने काढ़ा को 10-30 मिली मात्रा में सेवन करें। इससे पेट दर्द, ने से उदरशूल, पीठ दर्द में फायदा होता है।
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बदहजमी हो तो दर्भ का सेवन लाभ दिलाता है। दर्भ की जड़ का काढ़ा बना लें। इसे 10-30 मिली में पिएँ। इससे पाचन-तंत्र विकार और बहहजमी ठीक होती है। इससे दस्त, पेचिस, पेट के कीड़े, डायबिटीज, रक्तस्राव आदि में फायदा मिलता है।
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दर्भ की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में पिएं। इससे सुजाक में लाभ में लाभ होता है। उपाय करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से ज़रूर परामर्श लें।
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पुनर्नवादि योग (दर्भादि युक्त) को दूध, फल, मद्य या गन्ने के रस (किसी एक के साथ) के साथ पीस लें। इसे पीने से पथरी की बीमारी में फायदा होता है।
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घाव को ठीक करने के लिए दर्भ का उपयोग लाभदायक होता है। दर्भ की जड़ को पीसकर घाव पर लगाएं। इससे घाव ठीक होता है।
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आप खांसी के इलाज के लिए भी दर्भ का सेवन कर सकते हैं। गोक्षुर और दर्भ आदि को श्वदंष्ट्रादि घी में पकाएं। इसे सेवन करने से खांसी और टीबी रोग में लाभ होता है।
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सूजन को कम करने के लिए भी दर्भ का इस्तेमाल लाभदायक होता है। 10-30 मिली दर्भ की जड़ का काढ़ा का सेवन करें। इससे सूजन कम होती है।
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बराबर मात्रा में कासमर्द, काण्डेक्षु, दर्भ, पोटगल (वृष विशेष) और ईख लें। इसका काढ़ा बना लें। इसमें दूध और घी मिला लें। इसे गुदा मार्ग से देने से शरीर की जलन ठीक होती है।
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दर्भ आदि द्रव्यों से बने ब्रह्मरसायन को सेवन करने से व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक होता है। उपाय करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर पूछें।
गोक्षुर और दर्भ आदि से बने श्वदंष्ट्रादि घी को मात्रानुसार सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है। बेहतर परिणाम के लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लें।
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दर्भ की जड़ काढ़ा (10-30 मिली) को पीने से एनीमिया और पीलिया में लाभ होता है। एनीमिया और पीलिया के इलाज के लिए यह बहुत ही उत्तम उपाय है।
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दर्भ के इन भागों का इस्तेमाल किया जाता हैः-
दर्भ को इतनी मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिएः-
काढ़ा- 30-50
यहां दर्भ के फायदे और नुकसान की जानकारी बहुत ही आसान भाषा (Darbh benefits and side effects in Hindi) में लिखी गई है ताकि आप दर्भ के औषधीय गुण से पूरा-पूरा लाभ ले पाएं, लेकिन किसी बीमारी के लिए दर्भ का सेवन करने या दर्भ का उपयोग करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर सलाह लें।
भारत में दर्भ उष्ण क्षेत्रों जैसे मुख्यतः पंजाब से दक्षिण एवं पूर्व की ओर प्राप्त होता है। यह दक्षिण पूर्वी एशिया में भी पाया जाता है, इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, फिलीपीन्स, पूर्वी अफ्राप्का, दक्षिण अमेरिका, दक्षिण यूरोप, अफगानिस्तान, श्रीलंका एवं मलाया में भी होता है।
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