वानस्पतिक नाम : Quercus infectoria Oliv. (क्वेर्कस इन्फेक्टोरिया)
Syn-Quercus lusitanica var.infectoria (G. Olivier) A.D.C.
कुल : Fagaceae (फैगेसी)
अंग्रेज़ी नाम : Gall oak (गॉल ओक)
संस्कृत-मायाफल, मायुक, मज्जुफल; हिन्दी-माजूफल, भूकल; उर्दू-माजू (Mazu), बलूट (Baloot); कन्नड़-मचिकाई (Machikai), मासिके (Macike); गुजराती-माजूफल (Majuphal), मायफल (Mayphal); तमिल-मचिकाई (Machikai), मासिक्काई (Masikkai); तैलुगु-मचिकाई (Machikai), मासिकाया (Masikaya); बंगाली-माजूफल (Majuphal); मराठी-मायाफल (Mayaphal); मलयालम-मजकानी (Majkani), मासिक्का (Masikka)।
अंग्रेजी-डायर्स ओक (Dyer’s oak), एशियन हॉली औक (Asian holly-oak); अरबी-अफ्स (Afas) फारसी-माजू (Mazu)।
भारत में उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश आदि क्षेत्रों में इसका वृक्ष पाया जाता है। इसका वृक्ष लगभग 2-5 मी0 ऊँचा होता है। इसकी नवीन शाखाओं में ऐडलीरिआ गैलीटिंकटोरी‘ नामक कीट अन्दर जाकर अण्डे देते हैं। उन अण्डों के आस-पास स्वरस एकत्रित होकर ग्रन्थि बनती है। कीटक सहित इस ग्रन्थि को माजूफल या मायाफल कहते हैं। माजूफल गोलाकर अथवा अंडाकार, 6-50 मिमी व्यास का, चिकना, चमकीला, धूसर, भूरे वर्ण का होता है। इस लेख में हम आपको माजूफल के फायदे (Majuphal ke fayde) और सेवन के तरीकों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं.
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
माजूफल कषाय, कटु, उष्ण, लघु, तीक्ष्ण, रूक्ष, वातशामक, दीपन, ग्राही, स्तम्भक, शिथिलतानाशक तथा केशों को काला करने वाला होता है।
यह योनिसंकोचक होता है।
इसके गाल्स (Galls) स्तम्भक, ऊष्माजनन, लालास्रावरोधक, वेदनाशामक, पित्तसारक, विषघ्न, शोथहर, शीतल, रक्तस्तम्भक, विबंधकारक, व्रणरोपण, कफनिस्सारक, पाचक, ज्वरहर, केशवर्धक तथा बलकारक होते हैं।
माजूफल के फायदे (Majuphal ke fayde) :
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प्रयोज्याङ्ग :कृमिगृह (Galls) तथा पत्र।
मात्रा :क्वाथ 10-20 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
निषेध :
खुले हुए घाव में इसका बाह्य प्रयोग नहीं किया जाता है।
मायाफल का अधिक दिनों तक आभ्यंतर प्रयोग नहीं करना चाहिए।
विशेष :
आंतरिक रक्तस्राव एवं चलदंत में अत्यंत लाभकारी।
वत्सनाभ, धतूरा, कुपीलु एवं एन्टीमनी की विषाक्तता में प्रतिविष की तरह इसका प्रयोग किया जाता है।
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