वानस्पतिक नाम : Mussaenda glabrata (Hook.f.) Hutch. ex Gamble (मसण्डा ग्लैबरेटा)
Syn-Mussaenda frondosa wall. var.glabrata Hook. f.
कुल : Rubiaceae (रूबिएसी)
अंग्रेज़ी नाम : White lady (व्हाईट लेडी)
संस्कृत-श्रीपर्ण, श्रीवती; हिन्दी-बेड़िना, मुसण्डा, मसण्डा; कोंकणी-दासपथरी (Daspathry); गुजराती-मुसेड़ी (Musedi); तमिल-वेलाईयीलाई (Vellaiyilai); तैलुगु-नागवल्ली (Nagvalli); नेपाली-असारी (Asari); मराठी-श्रीबर (Shribar), बेविन (Bevin), भुर्तकाशी (Bhurtkiasi), भुतकेश (Bhutkes); मलयालम-वेल्लिला (Vellila), वेल्लिमायीत्तले (Vellimayittale)।
परिचय
यह भारत तथा मलाया द्वीप में पाया जाता है। भारत में यह उष्णकटिबंधीय भागों में देहरादून, पूर्व की ओर आसाम, मेघालय के खासिया पहाड़ी क्षेत्रों में 1200 मी तक की ऊँचाई पर, दक्षिण एवं पश्चिमी भारतीय प्रायद्वीप, कोंकण, दक्कन, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मालाबार, तीन्नरवेल्ली के पहाड़ी क्षेत्रों एवं अंडमान द्वीप में पाया जाता है। समस्त उष्णकटिबंधीय भागों में कृषि किया जाता है। इसकी कई प्रजातियां होती हैं।
यह सुन्दर, सीधा अथवा फैला हुआ क्षुप अथवा कदाचित् वृक्षक होता है। इसकी शाखाएँ दीर्घ, टेढ़ी-मेढ़ी, बेलनाकार, काण्डत्वक्
धूसर वर्ण की होती हैं। इसके पत्र सरल, विपरीत, 7.5-12.5 सेमी लम्बे, 5-9 सेमी चौड़े, अण्डाकार, ऊर्ध्व पृष्ठ पर अत्यधिक अथवा अल्प रोमश, अधपृष्ठ पर श्वेत मुलायम घन रोमश होते हैं। इसके पुष्प बाह्य-भाग में पीताभ-हरित वर्ण के, अन्त भाग नारंगी रक्त वर्ण के होते हैं। इसके फल गोलाकार, अर्धगोलाकार अथवा अण्डाकार, अरोमश, हरित वर्ण के, मांसल, 1-1.3 सेमी व्यास के तथा बीज संख्या में अनेक व सूक्ष्म होते हैं। इसका पुष्पकाल तथा फलकाल अप्रैल से अगस्त तक होता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
मसण्डा कषाय, पूयरोधी, मधुर, कफनिसारक, ज्वरघ्न, शोथघ्न तथा हृद्य होता है।
इसका मूल नेत्रगत विकार, श्वास, कास, ज्वर, शोथ, व्रण, कुष्ठ, नेत्ररोग, कृमि, कामला तथा कुष्ठ में हितकर होता है।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
प्रयोज्याङ्ग :पुष्प तथा पत्र।
मात्रा :क्वाथ 10-15 मिली। चिकित्सक के परामर्शानुसार।
विशेष :मसण्डा पत्र तथा आडू पत्र-स्वरस को मिलाकर लगाने से पशुओं के शरीर में लगाने से यदि कीड़े पड़ गए हों तो कीड़े बाहर निकल आते हैं।
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