वानस्पतिक नाम : Alocasia indica (Lour.) Koch (एलोकेसिया इंडिका) Syn-Alocasia macrorrhizos (Linn.) G. Don
कुल : Araceae (एरेसी)
अंग्रेज़ी नाम : Giant taro (जाईअन्ट टैरो)
संस्कृत-मानकन्द, महापत्र, माणक, मानक; हिन्दी-मानकन्द; असमिया-मनकाचू (Mankachu); कन्नड़-मानाका (Manaka); कोंकणी-कुरेअस (Cureas); बंगाली-मानकचू (Mankachu); मराठी-कांसालू (Kansalu), अलू (Alu); नेपाली-माने (Mane)।
परिचय
भारत के समस्त उष्णकटिबंधीय प्रान्तों में इसकी खेती की जाती है। मानकन्द में मीठी और कड़वी दो प्रजातियां होती हैं। इनमें से मीठी जाति का उपयोग किया जाता है। मानकन्द में श्वेत-सार और कैल्शियम मिश्रित ऑक्जेलिक क्षार रहता है। ऑक्जेलिक क्षार की उपस्थिति के कारण ही यह अत्यन्त तीक्ष्ण होता है। इसके पत्र बड़े, गोलाकार तथा पंखे के समान दिखने वाले होते हैं। इसके कन्द को घनकन्द कहते है। यह घनकन्द ऊपर से काले रंग का, अन्दर से श्वेत वर्ण का तथा गोल व बड़े आकार का होता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
मानकन्द मधुर, कषाय, कटु, शीत, रूक्ष, गुरु, पित्तशामक, कफवातवर्धक तथा विष्टम्भी होता है।
यह रक्तपित्त, गण्डमाला तथा शोथ नाशक होता है।
इसके पत्र स्तम्भक तथा त्वचा में रक्तिमा उत्पन्न करते हैं।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
प्रयोज्याङ्ग :पत्र तथा कंद।
मात्रा :चूर्ण 1-2 ग्राम। पत्र-स्वरस 5 मिली।
नोट :मानकन्द का प्रयोग चिकित्सकीय परामर्शानुसार करना चाहिए।
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