header-logo

AUTHENTIC, READABLE, TRUSTED, HOLISTIC INFORMATION IN AYURVEDA AND YOGA

AUTHENTIC, READABLE, TRUSTED, HOLISTIC INFORMATION IN AYURVEDA AND YOGA

Majufal: माजूफल के हैं अनेक अनसुने फायदे- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम : Quercus infectoria Oliv. (क्वेर्कस इन्फेक्टोरिया)

Syn-Quercus lusitanica var.infectoria (G. Olivier) A.D.C.

कुल : Fagaceae (फैगेसी)

अंग्रेज़ी नाम : Gall oak (गॉल ओक)

संस्कृत-मायाफल, मायुक, मज्जुफल; हिन्दी-माजूफल, भूकल; उर्दू-माजू (Mazu), बलूट (Baloot); कन्नड़-मचिकाई (Machikai), मासिके (Macike); गुजराती-माजूफल (Majuphal), मायफल (Mayphal); तमिल-मचिकाई (Machikai), मासिक्काई (Masikkai); तैलुगु-मचिकाई (Machikai), मासिकाया (Masikaya); बंगाली-माजूफल (Majuphal); मराठी-मायाफल (Mayaphal); मलयालम-मजकानी (Majkani), मासिक्का (Masikka)।

अंग्रेजी-डायर्स ओक (Dyer’s oak), एशियन हॉली औक (Asian holly-oak); अरबी-अफ्स (Afas) फारसी-माजू (Mazu)।

भारत में उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश आदि क्षेत्रों में इसका वृक्ष पाया जाता है। इसका वृक्ष लगभग 2-5 मी0 ऊँचा होता है। इसकी नवीन शाखाओं में ऐडलीरिआ गैलीटिंकटोरी‘ नामक कीट अन्दर जाकर अण्डे देते हैं। उन अण्डों के आस-पास स्वरस एकत्रित होकर ग्रन्थि बनती है। कीटक सहित इस ग्रन्थि को माजूफल या मायाफल कहते हैं। माजूफल गोलाकर अथवा अंडाकार, 6-50 मिमी व्यास का, चिकना, चमकीला, धूसर, भूरे वर्ण का होता है। इस लेख में हम आपको माजूफल के फायदे (Majuphal ke fayde) और सेवन के तरीकों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं. 

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

माजूफल कषाय, कटु, उष्ण, लघु, तीक्ष्ण, रूक्ष, वातशामक, दीपन, ग्राही, स्तम्भक, शिथिलतानाशक तथा केशों को काला करने वाला होता है।

यह योनिसंकोचक होता है।

इसके गाल्स (Galls) स्तम्भक, ऊष्माजनन, लालास्रावरोधक, वेदनाशामक, पित्तसारक, विषघ्न, शोथहर, शीतल, रक्तस्तम्भक, विबंधकारक, व्रणरोपण, कफनिस्सारक, पाचक, ज्वरहर, केशवर्धक तथा बलकारक होते हैं।

माजूफल के फायदे (Majuphal ke fayde) : 

  1. खालित्य-माजूफल को सिरके के साथ पीसकर सिर पर लगाने से खालित्य में लाभ होता है।
  2. नकसीर से आराम दिलाये माजूफल (Majuphal ke fayde for Nose Bleeding) –माजूफल चूर्ण का नस्य लेने से नकसीर में लाभ होता है।
  3. दंतरोग में फायदेमंद है माजूफल (Majuphal ke fayde for Dental Diseases1-1 भाग मंजिष्ठा, खदिर सार, कासीस, रूमीमस्तगी, 1/2 भाग तुत्थ तथा 4 भाग मायाफल के चूर्ण से दाँतों का मंजन करने से दंतरोगों का शमन होता है।
  4. दन्तवेष्ट-माजूफल के क्वाथ का गरारा करने से दन्तवेष्ट, रक्तष्ठीवन तथा दंत रोगों में लाभ होता है।
  5. मुखपाक-  मायाफल क्वाथ या फाण्ट का कवल धारण करने से मुखपाक में लाभ होता है।
  6. माजूफल चूर्ण का दांतों पर मंजन करने से हिलते हुए दांत भी वज्र के समान मजबूत हो जाते हैं।
  7. कंठ शोथ कम करता है माजूफल (Majuphal ke fayde for Throat Inflammation) मायाफल क्वाथ या फाण्ट का कवल धारण करने से कंठ तथा तालुमूलग्रन्थि शोथ में लाभ होता है।
  8. श्वास-कास-मायाफल के क्वाथ का कवल धारण करने तथा वाष्प का नस्य लेने से श्वास कास में लाभ होता है।
  9. आत्रसंबंधी-विकार-मायाफल का प्रयोग आत्रजन्य विकारों की चिकित्सा में किया जाता है।
  10. गुदव्रण-माजूफल चूर्ण का अवचूर्णन करके, माजूफल क्वाथ से गुदा को धोने से गुदभ्रंश, गुदव्रण तथा गुदाशोथ में लाभ होता है।
  11. योनि रोग-समभाग मायाफल तथा कपूर में मधु मिलाकर योनि में लेप करने से योनि शैथिल्य आदि विकारों का शमन होता है। (योनि रोग में रेवंदचीनी से लाभ)
  12. सौजाकोपदंश-समभाग मायाफल, इलायची, खदिर सार (कत्था) तथा वंशलोचन के चूर्ण में चंदन तैल मिलाकर वटी बनाकर गर्मियों में मिश्री जल के साथ तथा शीतकाल में दूध के साथ 2-2 गोली प्रात सायं सेवन करने से सौजाकोपदंश में लाभ होता है।
  13. उपदंश-24 ग्राम श्वेत चंदन चूर्ण, 6-6 ग्राम मायाफल तथा खदिर सार (कत्था) के चूर्ण में 12 ग्राम चंदन तैल मिलाकर, 3-3 ग्राम की गोली बना कर मिश्री जल के साथ सेवन करने से नौ दिनों में ही उपदंश में लाभ होने लगता है। इसके सेवन काल में नमक रहित प्रचुर घृत युक्त गेहूँ एवं चने के आहार का सेवन पथ्य है।
  14. उष्णवात-18 दिनों तक समभाग रसाञ्जन, खदिर सार, पुरानी सुपारी तथा मायाफल के चूर्ण को 9 ग्राम की मात्रा में चने के तुष युक्त मिश्री जल के साथ सेवन करने से तीव्र उष्णवात में भी शीघ्र लाभ होता है।
  15. प्रदर-मायाफल चूर्ण में सिरका मिलाकर योनि में लेप करने से श्वेतप्रदर तथा रक्तप्रदर में फायदा (Majuphal ke fayde) मिलता है।
  16. पूयमेह-माया फल चूर्ण से निर्मित मलहम का लेप करने से तथा क्वाथ से प्रक्षालन करने से जीर्ण पूयमेह में लाभप्रद है।
  17. योनिशैथिल्य-मायाफल चूर्ण का पिचु धारण करने से योनि शैथिल्य का शमन होता है।
  18. अण्डकोषवृद्धि-माजूफल तथा अश्वगंधा को जल से पीसकर गुनगुना करके अण्डकोष में लगाने से लाभ होता है।
  19. शिरा स्फीत-मायाफल के उष्ण फाण्ट को स्फीत शिराओं की चिकित्सा में आभ्यन्तर एवं बाह्य स्वेदन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  20. त्वक् शोथ-पत्र कल्क का लेप करने से त्वक् शोथ में लाभ होता है।
  21. दद्रु-मायाफल चूर्ण को सिरके में मिलाकर लेप करने से दद्रु तथा खालित्य में लाभ होता है।
  22. व्रण-माजूफल की भस्म या चूर्ण तथा अनारफल भित्ति चूर्ण से धूपन करने से व्रण एवं जीर्ण व्रण में लाभ होता है।
  23. झांई- चेहरे की झाइयां दूर करने में भी माजूफल फायदेमंद (Majuphal ke fayde) होता है.माजूफल को सिरके के साथ पीसकर चेहरे पर लगाने से व्यंग, नलिका तथा झांई मिटती है।
  24. स्वेद दौर्गन्ध्य-माजूफल के महीन चूर्ण को शरीर पर मर्दन करके स्नान करने से स्वेदाधिक्य तथा स्वेद दौर्गन्ध्य का शमन होता है।
  25. वाजीकरण-जामुन पत्र-स्वरस से मायाफल की 250 मिग्रा की वटियाँ बनाकर सेवन करने से शुक्रस्राव, योनिस्राव तथा अतिसार का स्तम्भन होता है।

और पढ़ें: दंत रोग में तिल का प्रयोग

प्रयोज्याङ्ग  :कृमिगृह (Galls) तथा पत्र।

मात्रा  :क्वाथ 10-20 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।

निषेध  :

खुले हुए घाव में इसका बाह्य प्रयोग नहीं किया जाता है।

मायाफल का अधिक दिनों तक आभ्यंतर प्रयोग नहीं करना चाहिए।

विशेष  :

आंतरिक रक्तस्राव एवं चलदंत में अत्यंत लाभकारी।

वत्सनाभ, धतूरा, कुपीलु एवं एन्टीमनी की विषाक्तता में प्रतिविष की तरह इसका प्रयोग किया जाता है।