Contents
ऐसा कौन होगा जिसने करौंदा का नाम नहीं सुना होगा। करौंदा का नाम सुनते ही अवश्य ही आपके मुँह में पानी आ जायेगा, क्योंकि आम तौर पर घरों में इससे सब्जी, चटनी, मुरब्बा और अचार बनाया जाता है। करौंदा सिर्फ स्वाद के दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि इसके औषधीय गुण भी अनगिनत हैं।
करमर्द या करौंदा की हमेशा हरी-भरी रहने वाली झाड़ी होती है। इसके कंटक अत्यन्त तीक्ष्ण तथा मजबूत होते हैं। आयुर्वेदीय संहिताओं में दो तरह के (1) करौंदा (2) करौंदी का वर्णन पाया जाता है। करौदें के फल पकने के बाद काले पड़ जाते हैं। इसलिए इसको कृष्णपाक फल कहते हैं।
करौंदा का वानास्पतिक नाम Carissa carandas L. (कैरिसा कैरेन्डास) Syn-Carissa salicina Lam होता है। इसका कुल Apocynaceae (ऐपोसाइनेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Carissa (कैरिसा) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि करौंदा और किन-किन नामों से जाना जाता है।
Sanskrit-करमर्द :, सुषेण, क्षीरफेना;
Hindi-करोंदा, करौंदा, करोना, तीमुखिया;
Odia-कारोंदा (Karonda);
Urdu-करवानाह (Karwanah);
Kannada-करिजिगे (Karijige), करीकायि (Karikayi), हेग्गेरीचीगे (Heggerichige), करन्डे (Karande);
Gujrati-करमदा (Karmada), करमर्द (Karmard), करमदी (Karmadi);
Telegu-वाका (Vaka), करवन्दे (Karvande), पेडडाकलिवे (Peddakliwe);
Tamil-कलक्के (Kalakke), पेरंगला (Perangala);
Bengali-करमच (Karmach), कफरूमीया (Kurumiya);
Nepali-करोधा (Karodha);
Marathi-करवंद (Karvand), करंदी (Karandi);
Malayalam-कारक्का (Karakka), करंट (Karant)।
English-क्राईस्ट थॉर्न (Christ thorn), बेंगाल करंट (Bengal currant)।
करौंदे का पका फल प्रकृति से अम्लीय, तिक्त, गर्म, गुरु, वात को कम करने वाला, खाने में रूची बढ़ाने वाले, कफ को बढ़ाने वाला, और प्यास को बढ़ाने वाला होता है। इसके अलावा यह मधुर, पाचक, पित्त को कम करने वाला होता है।
करोंदे का फल अम्लीय, कड़वा, जलन को कम करने वाला तथा विषनाशक होता है। इसकी जड़ कृमिनाशक होती है। करौंदे के जड़ की छाल प्रकृति से कड़वी और गर्म होती है। यह कफ और वात को कम करने वाली, खांसी कम करने में सहायक, ज्यादा मूत्र होने की समस्या तथा सामान्य दूर्बलता को दूर करने में मदद करती है।
करौंदा खाने में जितना स्वादिष्ट होता है उतना ही औषधी के रूप में कौन-कौन से बीमारियों के लिए फायदेमंद है,चलिये इसके बारे में आगे जानते हैं-
करौंदा का औषधीय गुण दांत के बीमारियों के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। इसके फल की चटनी बनाकर खाने से मसूड़ों संबंधित रोगों से राहत मिलती है।
करौंदा का औषधीय गुण स्कर्वी के लक्षणों से राहत दिलाने में सबसे ज्यादा काम करता है। करौंदे के 1-2 फलों का नियमित सेवन करने से शीतादरोग का इलाज करने में मदद मिलती है।
और पढ़े- खरबूजा स्कर्वी के इलाज में फायदेमंद
मौसम के बदलने के साथ सूखी खांसी की समस्या से सब परेशान रहते हैं। इससे राहत पाने के लिए 5 मिली करौंदा के पत्ते के रस में शहद मिलाकर चटाने से सूखी खांसी के कष्ट से राहत मिलती है।
करौंदे के कच्चे सूखे फल के चूर्ण (1-2 ग्राम) तथा मूल चूर्ण को मिलाकर सेवन करने से अतिसार (दस्त), पेट संबंधी रोगों एवं पेट की कृमियों से छुटकारा मिलने में आसानी होती है।
अगर किसी बीमारी के वजह से आपको हद से ज्यादा प्यास लगती है तो पके फल से बने 1-2 ग्राम चूर्ण का सेवन करने से पित्त एवं कफ विकृति, अतिपिपासा, खाने की रूची तथा अरुचि में लाभ होता है।
और पढ़े- अत्यधिक प्यास लगने पर गंभारी फायदेमंद
अगर ज्यादा खा लेने या एसिडिटी होने के कारण आपके पेट में दर्द की परेशानी है तो करौंदे के फूल के चूर्ण या जड़ के चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से पेट दर्द से राहत मिलती है।
अगर मूत्र करते वक्त जलन आदि की समस्या होती है तो छोटे करौंदे की 1 ग्राम मूल को दूध के साथ पीसकर पीने से मूत्रकृच्छ्र (दर्द सहित मूत्र त्याग) के इलाज में मदद मिलती है।
जलोदर के रोगी को करौंदे के पत्तों का रस पहले दिन 5 मिली, दूसरे दिन 10 मिली, इस तरह प्रतिदिन 5-5 मिली बढ़ाते हुए 50 मिली तक सेवन करें तथा पुन: घटाते हुए 5 मिली तक प्रयोग करें। इस प्रकार रोज सुबह पिलाने से जलोदर में लाभ होता है।
अक्सर महिलाओं को रक्तप्रदर (ज्यादा ब्लीडिंग) और मासिक धर्म संबंधी समस्याएं होती है। 1-2 ग्राम करौंदा के जड़ को दूध के साथ घिसकर पिलाने से रक्तप्रदर तथा मासिक-विकारों में लाभ होता है।
करौंदे के पके फल अथवा जड़ को पीसकर लगाने से पामा, खुजली तथा दाह आदि त्वचा विकारों से आराम मिलता है। इसके अलावा करौंदे की मूल को अश्व मूत्र, नींबू रस तथा कपूर के साथ पीसकर लगाने से कण्डु या खुजली दूर होती है।
अगर बुखार कम होने का नाम नहीं ले रहा है तो करौंदे के पत्तों का काढ़ा बनाकर, 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से अविरामी-ज्वर (नियमित रहने वाला ज्वर) में लाभ होता है। इसके अलावा करौंदे के पत्तों का काढ़ा बनाकर, 15-30 मिली तक पिलाने से ज्वर तथा बुखार से जो जलन या दर्द होता है उससे राहत मिलती है।
अगर किसी भी इलाज से पैरों का फटना ठीक नहीं हो रहा है तो करौंदा का इस्तेमाल बीजों को पीसकर पैरों पर लगाने से विपादिका या पैरों के फटने से जो घाव होता है उसमें लाभ होता है।
5 ग्राम करौदों के पत्तों को पीसकर दही के साथ मिलाकर खिलाने से अपस्मार या मिर्गी के लक्षणों से राहत मिल सकती है।
आयुर्वेद के अनुसार करौंदा का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-
-पत्ता,
-जड़ एवं
-फल।
यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए करौंदा का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 20-40 मिली पत्ते का काढ़ा या क्वाथ ले सकते हैं।
आयुर्वेद में करौंदे के फल का सेवन अर्थराइटिस, गाउट, साइटिका एवं अल्सर में लेना नुकसानदेह होता है।
करौंदा प्राय: भारत के गुजरात, पंजाब, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश व अन्य प्रान्तों में पाया जाता है तथा इसकी खेती की जाती है।
आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार, त्रिफला चूर्ण पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए बेहद फायदेमंद है. जिन लोगों को अपच, बदहजमी…
डायबिटीज की बात की जाए तो भारत में इस बीमारी के मरीजों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही…
मौसम बदलने पर या मानसून सीजन में त्वचा से संबंधित बीमारियाँ काफी बढ़ जाती हैं. आमतौर पर बढ़ते प्रदूषण और…
यौन संबंधी समस्याओं के मामले में अक्सर लोग डॉक्टर के पास जाने में हिचकिचाते हैं और खुद से ही जानकारियां…
पिछले कुछ सालों से मोटापे की समस्या से परेशान लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. डॉक्टरों के…
अधिकांश लोगों का मानना है कि गौमूत्र के नियमित सेवन से शरीर निरोग रहता है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञ भी इस बात…