क्रिएटिनिन हर किसी के ब्लड में और यूरिन में पाये जाने वाला वेस्ट प्रोडक्ट होता है। क्रिएटिनन और क्रिएटिनिन के टेस्ट से मालूम पड़ता है कि हमारी किडनी कितनी अच्छी तरह से काम कर रही है। सामान्य परिस्थितियों में हमारी किडनी खुद ही इन पदार्थों को फिल्टर करने और शरीर से निकाल बाहर करने के काबिल होती है। आमतौर पर क्रिएटिनिन, मेटाबोलिज्म का एक पदार्थ होती है, जो खाद्द पदार्थ को ऊर्जा या एनर्जी में परिवर्तित करने में सहायता करती है।
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आमतौर पर किडनी क्रिएटिनिन को ब्लड में से फिल्टर करने में मदद करती है। बाकी बचा हुआ वेस्ट प्रोडक्ट यूरिन यानि पेशाब के जरिये शरीर से बाहर निकालने में मदद करती है।
हाई क्रिएटिनिन लेवल आपकी किडनी में किसी तरह की प्रॉब्लम होने की संभावना का संकेत हो सकता है। क्रिएटिनिन लेवल बहुत सारे कारणों से शरीर में बढ़ सकता है, जैसे- रोजाना प्रोटीन का सेवन ज्यादा करना,एक्सरसाईज में भाग लेने के कारण भी क्रिएटिनिन का लेवल हाई हो सकता है। क्रिएटिनिन सप्लिमेंट्स भी ब्लड और यूरिन में क्रिएटिनिन के लेवल को बढ़ा सकते हैं।
क्रिएटिनिन का स्तर बढ़ जाना अवश्य ही किसी गंभीर बीमारी का संकेत है। दूसरे शब्दों में कहें तो, जब मेटाबोलिज्म प्रक्रिया द्वारा भोजन ऊर्जा में बदलता है तो एक अन्य पदार्थ क्रिएटिनिन का निर्माण होता है। यह क्रिएटिनिन टूटकर होकर क्रिएटिनिन में बदल जाता है और फिर गुर्दे इसे रक्त में छान कर यूरिन के माध्यम से बाहर निकाल देते हैं। लेकिन यदि क्रिएटिनिन का लेवल हाई हो तो यह प्रक्रिया बाधित हो जाती है और यह किडनी के समस्याग्रस्त होने का संकेत हो सकता है।
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क्रिएटिनिन एक मेटाबॉलिक पदार्थ है, जो आहार को एनर्जी में बदलने के लिये सहायता देते समय टूट कर क्रिएटिनिन में बदल जाता है। वैसे तो किडनी क्रिएटिनिन को छानकर ब्लड से बाहर निकाल देती है, उसके बाद यह वेस्ट पदार्थ यूरीन के साथ शरीर से बाहर निकल जाता है। लेकिन कुछ स्वास्थ्य सम्बन्धित समस्याएं किडनी के इस कार्य में बाधा पहुंचाती है, जिसके कारण क्रिएटिनिन बाहर नहीं निकल पाता है और ब्लड में इसका स्तर बढ़ने लगता है। क्रिएटिनिन का बढ़ा हुआ स्तर किडनी संबंधित बीमारी या समस्याओं की ओर इशारा करता है। आपके अन्दर क्रिएटिनिन लेवल के बढ़ने की बहुत सारी वजह हो सकती है जिनमें से कुछ अवस्थाएं, दूसरों की अपेक्षा कुछ ज्यादा गम्भीर होती है, लेकिन इन सब बातों का यही मतलब निकलता है, कि आपको बस अपने क्रिएटिनिन के लेवल को वापस सामान्य बनाने के लिए कुछ कदम उठाने की जरूरत है।
-यदि आपकी किडनी डैमेज हो चुकी है, तो ऐसे में ये उस तरह से ग्लोमेरुल फिल्ट्रेशन के जरिये क्रिएटिनिन को फिल्टर करके आपके शरीर से बाहर नहीं निकाल सकेगी, जैसे ये आमतौर पर किया करती है। किडनी के जरिये फिल्टर हुए फ्लुइड को बाहर निकालने की क्रिया को ग्लोमर्युलर फिल्ट्रेशन कहते हैं।
-अगर आपकी स्थिति कुछ ऐसी है, जिसकी वजह से आपकी मसल्स खराब या टूट रही है तो टूटे हुए मसल्स टिशू आपके ब्लड स्ट्रीम में मिल जाते हैं और फिर ये आपकी किडनी के साथ जुड़ जाते हैं।
-आपकी डाइट में पके हुए मीट की ज्यादा मात्रा शामिल करने की वजह से भी आपके शरीर में क्रिएटिनिन की मात्रा बढ़ सकती है।
-आपके थायरॉइड ग्लैंड में हुई किसी भी प्रकार की गड़बड़ी आपके किडनी के फंक्शन पर असर डाल सकती है। हाईपोथायरॉयडिज्म आपके किडनी के अवांछित पदार्थों को सुचारु रूप से फिल्टर करके शरीर से बाहर करने की क्षमता को भी घटा सकता है।
जीवनशैली और आहार क्रिएटिनिन लेवल बढ़ने के कारण-
-अपनी डायट में सोडियम के सेवन करने की मात्रा को कम करना चाहिए। ज्यादा सोडियम की वजह से काफी अनहेल्दी फ्लुइड रिटेंशन होता है और जिसकी वजह से हाई ब्लड प्रेशर भी हो सकता है। इन दोनों की वजहों से क्रिएटिन का लेवल हाई हो सकता है। अगर कम नहीं तो आपके सोडियम लेने के रोज के लेवल को रोजाना 2 से 3 ग्राम के बीच तक रखना चाहिए।
-जहां तक हो सके, प्रोटीन से भरपूर फूड्स को खाने से बचना चाहिए। रेड मीट और डेयरी प्रोडक्ट्स आपके लिए खासतौर पर बुरे साबित हो सकते हैं। क्रिएटिन के डाइटरी स्रोत को बहुत आसानी से एनिमल प्रोडक्ट्स से पाये जा सकते है। वैसे तो ये अमाउंट्स आमतौर पर नुकसानदेह नहीं होते हैं, लेकिन ये किसी ऐसे इंसान के लिए जरूर मुसीबत खड़ी कर सकते हैं, जिसका क्रिएटिन पहले से ही असामान्य रूप से हाई होता है।
-जब आप प्रोटीन का सेवन करते हैं, तब जहां तक हो सके, उसे नट्स और दूसरी फलियाँ जैसे प्लांट बेस्ट सोर्स या पेड़-पौधों से प्राप्त स्रोतों से लेने की कोशिश करें।
-अक्सर ही क्रिएटिन के हाई लेवल को कम करने के लिए वेजिटेरियन डायट लेने की सलाह दी जाती है। बेरी, लेमन जूस, गोभी जैसे विटामिन-सी से भरपूर खाद्द खाएं।
-आपकी किडनी को फॉस्फोरस रिच फूड्स को प्रोसेस करने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। विशेषकर तब जब आपका क्रिएटिनिन लेवल पहले से ही बढ़ा हुआ हो। इसी वजह से, आपको इस तरह के फूड्स को लेने से बचना चाहिए।
-आपके द्वारा सेवन किए जाने वाले पोटेशियम के स्तर को भी सीमित करने की कोशिश करनी चाहिए। जब भी किडनी से जुड़ी हुई किसी परेशानी से जुझ रहे हों, तब जहां तक हो सके पोटेशियम के उच्च स्तर वाले फूड्स को लेने से बचना चाहिए, ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आपकी किडनी इसे सही तरह से प्रोसेस नहीं कर पाती है तो ये पोटेशियम आपके शरीर में जमा होना शुरु हो जाता है। ड्राय फ्रूट्स, केले, पालक, आलू, बीन्स और मटर, क्रिएटिन सप्लिमेंट्स से दूर रहना बेहतर होता है।
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क्रिएटिनिन को बढ़ने से रोकने के लिए इन जीवनशैली और आहार में कुछ बदलाव होने चाहिए-
-प्रोटीन की ज्यादा मात्रा से बचें। उन खाद्य पदार्थों से परहेज करें जिनमें प्रोटीन ज्यादा मात्रा में उपलब्ध होता है। जैसे रेड मीट और डेयरी प्रोडक्ट्स आपके लिए विशेष रूप से हानिकारक हो सकते हैं। लेकिन प्राकृतिक स्रोतों जैसे नट्स तथा दालों से इसे प्राप्त किया जा सकता है।
-अधिक मात्रा में सोडियम लेने से शरीर में फ्लूइड और स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाले स्तर तक एकत्रित करने लगता है, जिससे हाई बीपी की समस्या होने लगती है। इन दोनों कारणों से क्रिएटिनिन लेवल बढ़ सकता है। इसलिए कम सोडियम वाला आहार लें।
-डायबिटीज के अलावा हाई ब्लड प्रेशर भी किडनी को नुकसान पहुंचाने वाला एक अन्य कारण होता है। ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने से किडनी को और नुकसान नहीं होता है और इस तरह क्रिएटिनिन के लेवल को कम करने में भी मदद मिलती है।
-नींद के दौरान बहुत से शारीरिक कार्य कम या धीमे पड़ जाते हैं। इससे शरीर की मेटाबॉलिक क्रियाएं भी शामिल हैं। परिणामस्वरूप, क्रिएटिनिन में परिवर्तन की गति धीमी हो जाती है। जिससे ब्लड में पहले से उपस्थित क्रिएटिनिन नये क्रिएटिनिन के एकत्रित होने से पहले ज्यादा मात्रा में फिल्टर होकर बाहर निकल जाता है। इसलिए रोजाना सात से आठ घंटे की पर्याप्त नींद ले।
-जब भी आपका शरीर बहुत जोरदार एक्सरसाइज करता है, तब ये काफी तेजी से फूड को एनर्जी में बदलने लगता है। जिसकी वजह से ज्यादा क्रिएटिनिन बनता है और ब्लड में क्रिएटिनिन की मात्रा बढ़ जाती है। इसलिए रनिंग, वेट लिफ्टिंग करने या बास्केट बॉल खेलने के बजाय, वॉक या योगा प्रैक्टिस करना बेहतर होता है।
-जब आप सोते हैं तब आपके शरीर की कार्यप्रणाली धीमी हो जाती है इसमें शरीर का मेटाबॉलिज्म भी शामिल है। जिसकी वजह से क्रिएटिनिन के क्रिएटिनिन में बदलने की रेट भी धीमी हो जाती है, जिससे कि ब्लड में पहले से ही मौजूद क्रिएटिनिन, एक्सट्रा टॉक्सिन्स के बनने से पहले ही फिल्टर होकर बाहर निकल जाता है। इसलिए रात को कम से कम आठ घंटे की नींद अवश्य लें।
-ऐसी कुछ दवाइयां मौजूद हैं, जिनका सीधा सम्बंध हाई क्रिएटिनिन लेवल से होता है। ऐसी दवाईयों जो किडनी को नुकसान पहुँचा सकती हैं, यह आपके लिए खतरे की निशानी बन सकती है। यहां तक कि किडनी के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयां भी समस्या खड़ी कर सकती हैं।
-अगर आपको पहले से ही किडनी प्रॉब्लम्स हैं तो फिर आइयूप्रुफेन जैसी दवाओं को लेकर सावधान हो जाइए, क्योंकि अगर इन्हें रोजाना लेते हैं तो ये किडनी को और भी ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है।
-किसी भी मेडिसिन को लेना बंद करने से पहले हमेशा अपने डॉक्टर से बात कर लेनी चाहिए। जैसे कि इनमें से कुछ दवाइयां क्रिएटिनिन के लेवल को बढ़ा सकती हैं।
-डायबिटीज, किडनी डैमेज होने और उसकी वजह से क्रिएटिनिन लेवल बढ़ने के पीछे की एक आम वजह होती है। अगर आपको डाइबिटीज है तो ऐसे में और बड़े किडनी डैमेज को रोके रखने के लिए आपको आपके इंसुलिन लेवल को सामान्य रखना बहुत जरूरी हो जाता है। ऐसी कुछ दवाइयां मौजूद हैं जो ऐसा करने में आपकी मदद कर सकती है।
-एक्सर साइज से अभी भी आपकी पूरी सेहत पर काफी खास असर पड़ता है, इसलिए आपको इसे अपने रूटीन में पूरी तरह से बाहर भी नहीं निकालना है। हालांकि आप अभी हाई इंटेन्सिटी एक्सरसाईज की जगह पर लो इंटेन्सिटी एक्सरसाइज चुन सकते हैं। रनिंग, वेटलिफ्टिंग करने या बास्केटबॉल खेलने के बजाय, वॉक या योग प्रैक्टिस करके देख सकते हैं।
-हर रात कम से कम 6 से 9 घंटे की नींद लिया करें, जिसमें 7 या 8 घंटे की नींद एक आइडियल अमाउंट मानी जाती है। इस के अलावा नींद पूरी नहीं होने या नींद की कमी की वजह से आपके पूरे शरीर के ऊपर फिजिकल स्ट्रेस पड़ता है और फिर आपके शरीर के हर एक हिस्से को एक सामान्य-सा काम करने के लिये भी बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। जिसकी वजह से किडनी और ज्यादा स्ट्रेस में आ जाती है, जिसकी वजह से किडनी की क्रिएटिनिन को फिल्टर करके बाहर निकालने की क्षमता कम हो जाती है।
क्रिएटिनिन लेवल को कम करने के लिए सबसे पहले लोग घरेलू नुस्ख़ों पर विश्वास करते हैं। पतंजलि के विशेषज्ञों द्वारा पारित कुछ घरेलू उपायों के बारे में यहां बताया जा रहा है जिससे क्रिएटिनिन के लेवल को कम किया जा सकता है।
–माना जाता है कि कुछ खास तरह की हर्बल चाय ब्लड में उपस्थित क्रिएटिनिन की मात्रा को कम करने में सहायता करती हैं। हर्बल चाय किडनी को अधिक मूत्र उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करती है। इस तरह अधिक मात्रा में क्रिएटिनिन शरीर के बाहर निकल जाता है। इसलिए बढ़े हुए क्रिएटिनिन के स्तर को कम करने के लिए नियमित रूप से हर्बल टी लें। रोजाना लगभग 250 ml तक हर्बल टी जरूर पिया करें।
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नेटल लीफ आपके रेनल एक्सक्रीशन को बढ़ाने में मदद कर सकती है, साथ ही ये ज्यादा मात्रा में मौजूद क्रिएटिनिन को भी बाहर निकालने में मदद कर सकती है। नेटल लीफ को सप्लिमेंट्स के रूप में लिया जा सकता है या फिर इसे चाय के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं। नेटल लीफ भी मूत्र निष्कासन को बढ़ाकर अतिरिक्त क्रिएटिनिन को भी बाहर निकालने में मदद करते हैं। नेटल में हिस्टामिन नामक तत्व होता है जो किडनी में पहुंचकर ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाते हैं। इससे यूरीन फिल्ट्रेशन बढ़ जाता है। नेटल लीफ को आप सप्लीमेंट्स के रूप में या चाय बनाकर पी सकते हैं।
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सैल्विया एक तरह का हर्ब होता है, जो ग्लोगेरुलर फिल्ट्रेशन रेट को बढ़ाने में मदद कर सकती है, जो कि क्रिएटिनिन को बाहर निकालने में मदद कर सकता है। सैल्विया में लिथेस्पर्मेट-बी होता है, जो कि रेनल फंक्शन को बढ़ावा देने में मदद करता है।
शायद आप विश्वास नहीं करेंगे कि डिहाइड्रेशन की वजह से भी आपका क्रिएटिनिन का लेवल बढ़ सकता है। शरीर में पानी की कमी होगी तो मूत्र का निष्कासन भी कम होगा। यूरिन के जरिये ही क्रिएटिनिन शरीर से बाहर निकलता है इसलिए ऐसे में यूरिन में कमी की वजह से इस विषैले पदार्थ का भी बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। दिनभर में सात से आठ ग्लास पानी पीना ही चाहिए। डिहाइड्रेशन की वजह से आपका क्रिएटिनिन लेवल बढ़ सकता है। इसलिए आपको हमेशा हाईड्रेटेड बने रहना बेहद जरूरी होता है।
गाजर के रस के सेवन से गुर्दे के रोगों में आराम मिलता है।
बेल के गूदे के सेवन से भी लाभ होता है परंतु इसका नियमित सेवन जरूरी है।
सेब खाने से गुर्दे के रोग ठीक हो जाते हैं।
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क्रिएटिनिन का बढ़ जाना समस्या नहीं है। क्रिएटिनिन के बढ़ जाने पर तुरन्त डॉक्टर से सम्पर्क करें। निम्नलिखित लक्षण आने पर डॉक्टर से जल्द से जल्द सम्पर्क करना चाहिए-
-मूत्र करने में दिक्कत होना।
-मूत्र का अचानक से कम या ज्यादा आना।
-मूत्र के समय मूत्रनली में दर्द या जलन होना। ऐसा संक्रमण के कारण भी हो सकता है।
-मूत्र के रास्ते खून आना।
-हाथ-पैरों में सूजन आना।
-अधिक थकान, कमजोरी, चिड़चिड़ापन और एकाग्रता में कमी आना।
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