जब आपकी गुदा या गुदा की नलिका में किसी प्रकार का कट या दरार बन जाती है, तो उसे एनल फिशर कहते हैं। एनल फिशर अक्सर तब होता है जब आप मल त्याग के दौरान कठोर और बड़े आकार का मल त्याग करते हैं। फिशर में मल त्याग के समय दर्द होना और मल के साथ खून आना एक सामान्य लक्षण है। फिशर के दौरान आपको अपनी गुदा के अंत में मांसपेशियों में ऐंठन महसूस हो सकती है।
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प्रत्येक व्यक्ति का स्वास्थ्य वात, पित्त और कफ पर निर्भर करता है। मिथ्या आहार-विहार का सेवन करने से बहुत से रोगों की उत्पत्ति होती है। दिनचर्या और ऋतुचर्या का पालन न करने से मनुष्य को कई स्वास्थ्य सम्बन्धी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। इनमें से फिशर एक है। रक्त और पित्त दोष की प्रधानता के कारण फिशर बनता है। यह बहुत ही दर्दनाक स्थिति है।
फिशर किसी भी वर्ग के लोगों में देखा जा सकता है। कईं शिशुओं को उनके जीवन के पहले साल में ही एनल फिशर हो जाता है। वयस्कों में रक्त का आवागमन धीमा हो जाता है, जिससे उनके गुदा क्षेत्र में रक्त प्रवाह में कमी आ जाती है। जिस कारण से उनमें आंशिक रूप से फिशर की समस्या विकसित हो सकती है। गर्भावस्था और प्रसव के दौरान भी एनल फिशर होने की सम्भावना बनी रहती है।
एनल फिशर किसी गम्भीर रोग से जुड़ा नहीं होता। यह एक साधारण बीमारी है। हालांकि कभी-कभी एनल कैंसर कई बार एनल फिशर के रूप में उत्पन्न हो जाता है। एनल फिशर की कुछ जटिलताएं हैं, जैसे-
क्रॉनिक एनल फिशर- एनल फिशर में गुदा क्षेत्र के आस-पास जो दरारें पड़ी होती हैं, वह और भी गम्भीर हो जाती हैं। समय के साथ-साथ इसमें फिशर के स्थान पर एक विस्तृत निशान वाले ऊतक या टिशु पैदा हो सकते हैं।
गुदा नासूर (Anal fistula) – इसमें आस-पास के अंगों से कुछ असामान्य नलिकाएं गुदा नलिका में शामिल हो जाती हैं।
गुदा स्टेनासिस- गुदा स्टेनोसिस में गुदा की नलिका असामान्य तरीके से संकुचित होने लगती है।
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फिशर होने के पीछे बहुत सारे कारण होते हैं जो मूल रूप से रहन-सहन और खान-पान पर निर्भर करता है।
–गुदा व गुदा नलिका की त्वचा में क्षति होना फिशर का सबसे सामान्य कारण होता है। ज्यादातर फिशर उन लोगों को होता है जिनको कब्ज़ की समस्या होती है। विशेष रूप से जब कठोर व बड़े आकार का मल गुदा के अंदर गुज़रता है, तो वह गुदा नलिका की परतों को नुकसान पहुँचा देता है।
-लगातार दस्त रहना।
-इम्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज जैसे क्रोहन रोग, अल्सरेटिव कोलाइटिस।
-लम्बे समय तक कब्ज़ रहना।
-एनल स्फिंटकर की मांसपेशियां असामान्य रूप से टाइट होना, जो आपकी गुदा नलिका में तनाव बढ़ा सकती है। जिसकी वजह से एनल फिशर होने की संभावना बढ़ सकती है।
-फाइबर युक्त आहार का सेवन कम करना।
-गुदा में किसी कारणवश खरोंच लगना।
-गुदा और मलाशय में सूजन होना।
-मलाशय में कैंसर की उत्पत्ति के कारण भी फिशर होने की सम्भावना होती है।
-मलत्याग करने के बाद गुदा को कठोरता या अत्यधिक दबाव से पोंछना या साफ करना।
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गुदा में फिशर के निम्नलिखित लक्षण शामिल हैं-
-मल त्याग के दौरान दर्द या गंभीर दर्द की अनुभूति होना।
-मल त्याग के पश्चात भी दर्द होना जो कई घण्टों तक रह सकता है।
-मल त्याग के बाद मल पर गहरा लाल रंग दिखाई देना। मल त्याग के समय खून का आना सामान्य होता है।
-गुदा के आस-पास जलन या खुजली होना।
-गुदा के आस-पास के क्षेत्र में खुजली होना।
-गुदा के आस-पास के क्षेत्र में तीव्र जलन होना।
-फिशर के पास त्वचा पर स्किन टैग दिखाई देना।
-फिशर से ग्रसित व्यक्ति को कब्ज़ रहती है।
-लगातार दस्त लगे रहना।
-लम्बे समय तक कब्ज़ रहना।
-कभी-कभी यौन संचारित संक्रमण जैसे कि सिफिलिस या हर्पीस, जो गुदा एवं गुदा नलिका को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
-एनल स्फिंक्टर की मांसपेशियां असामान्य रूप से टाईट होना, जो आपकी गुदा नलिका को संक्रमित और नुकसान पहुँचा सकते हैं।
-वृद्ध लोगों में रक्त संचार धीमा हो जाता है, जिससे उनके गुदा नलिका में तनाव बढ़ा सकती है। यह स्थिति एनल फिशर के लिए अति संवेदनशील बना सकती है।
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बवासीर बहुत ही पीड़ादायक रोग है। इसका दर्द असहनीय होता है। बवासीर मलाशय के आस-पास की नसों में सूजन के कारण विकसित होता है। गुदा व गुदा नलिका की त्वचा की त्वचा में क्षति होना फिशर का सबसे सामान्य कारण होता है। ज्यादातर मामलों में यह उन लोगों को होता है जिन्हें कब्ज़ की समस्या रहती है। विशेषत: जब कठिन और बड़े आकार का मल गुदा के अंदर गुजरता है तो वह गुदा नलिका की परतों को नुकसान पहुँचा देता है।
बवासीर दो प्रकार की होती है-
बाहरी बवासीर
अंदरूनी बवासीर
बवासीर को पहचानना बहुत ही आसान है। मलत्याग के समय मलाशय में अत्यधिक पीड़ा और इसके बाद रक्तस्राव, खुजली इसका लक्षण है। इसके कारण गुदा में सूजन हो जाती है। जब आपकी गुदा या गुदा नलिका में किसी प्रकार का कट या दरार बन जाती है तो इसे एनल फिशर कहते हैं। एनल फिशर की समस्या तब होती है जब आप मल त्याग के दौरान कठोर और बड़े आकार का मलत्याग करते हैं। फिशर में भी मल त्याग के समय दर्द होना और खून आना एक सामान्य लक्षण है।
बवासीर और फिशर के लक्षणों में अंतर
-दर्दनाक मल त्याग जिससे मलाशय या गुदा को चोट पहुँच सकती है।
-बवासीर में मल त्याग के दौरान ब्लीडिंग होती है जबकि फिशर में मल त्याग के पश्चात्।
-बवासीर में गुदा से एक बलगम जैसा स्राव निकलता है।
-गुदा के पास एक दर्दनाक सूजन या मस्से का होना।
-बवासीर और फिशर दोनों में ही खुजली होना।
आप कब्ज़ की रोकथाम करके एनल फिशर विकसित होने के जोखिमों को कम कर सकते हैं। कब्ज़ की रोकथाम निम्नलिखित तरीकों से कर सकते हैं-
आहार-
-पर्याप्त में तरल पदार्थों का सेवन करें।
-एक संतुलित आहार का सेवन करें जिसमें अच्छी मात्रा में फाइबर, फल और सब्जियां शामिल होती हैं।
-कैफीन युक्त पदार्थ जैसे चाय और कॉफी का सेवन न करें।
–गेहूँ का चोकर
-दलिया
-साबुत अनाज, जिसमें ब्राउन राईज, ओटमील और ब्रेड आदि शामिल हैं।
-फाइबर वाले सप्लीमेंट्स लें।
-खट्टे फलों का सेवन करें।
-फिशर से ग्रसित रोगी को मांसाहारी भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। यदि फिशर की स्थिति में मांस का सेवन किया जाए तो कब्ज़ होने की संभावना बढ़ सकती है, जिससे स्थिति गंभीर हो सकती है।
-अधिक मात्रा में जल का सेवन करें। इससे आपका मल नरम होगा और एनल फिशर होने की संभावना कम होगी।
जीवनशैली-
-गर्म पानी से स्नान करें।
-धूम्रपान एवं शराब का सेवन करने से इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। इनसे बिमारियां होने की संभावना ज्यादा हो जाती है।
-जब शौचालय जाने की इच्छा महसूस हो तो उसे अनदेखा नहीं करना चाहिए। आंतों को समय में खाली कर देना चाहिए। यदि ऐसा न किया जाए तो आंतों में जमा मल कठोर बन जाता है, जो गुदा के अन्दर से गुजरने के दौरान दर्द व गुदा में दरार पैदा कर सकता है।
-शौचालय में अधिक देर तक न बैठे।
-शौचालय में बैठ कर अधिक जोर ना लगाएं।
-प्रतिदिन योगाभ्यास करें।
ज्यादातर मामलों में फिशर ट्रीटमेंट सर्जरी के बिना किया जा सकता है। ज्यादातर फिशर कुछ घरेलु उपचार द्वारा ठीक किये जा सकते हैं। मल त्याग करने के दौरान होने वाला गुदा का दर्द भी इलाज शुरु होने के कुछ दिन बाद ठीक हो जाता है। कब्ज फिशर को उत्पन्न करने वाले कारणों में से एक मुख्य कारण है, इसलिए कब्ज़ को रोकने के लिए कुछ निम्नलिखित उपायों का पालन करना चाहिए।
-फाईबर युक्त आहार का सेवन करें।
-प्रतिदिन थोड़ा व्यायाम करें।
-खूब मात्रा में तरल पदार्थ पीएं।
-अपने आहार में फल, सब्जियां, सेम और साबुत अनाज आदि शामिल करें।
-मल त्याग के दौरान दर्द को कम करने के लिए मल को नरम करने वाले उत्पाद या लैक्सेटिव आदि का प्रयोग करें।
-एक टब में गर्म पानी डालें और उसमें 20 मिनट तक बैठें। ऐसा प्रतिदिन 2 से 3 बार करें। कुछ हफ्तों तक ऐसा करने से क्षतिग्रस्त ऊतकों के दर्द को कम करता है।
-मल त्याग करने से बचने की कोशिश न करें। लेकिन बिना इच्छा के मल त्याग करने की कोशिश न करें, क्योंकि ऐसा करना स्थिति को और बदतर बना सकता है और दर्दनाक स्थिति पैदा कर सकता है।
-फिशर के सभी मामले घरेलु इलाज से ठीक नहीं हो पाते। यदि एनल फिशर की समस्या 8 से 12 सप्ताह तक रहती है। घरेलु देखभाल के तरीकों से फिशर ठीक न होने पर, उपचार के लिए सर्जरी को शामिल करें।
आमतौर पर फिशर के सभी मामले घरेलु उपचार से ठीक हो जाते हैं। अगर फिशर की समस्या 8 से 12 सप्ताह तक रहती है तो आपको उसके लिए डॉक्टर से मिलना चाहिए। घरेलु देखभाल के तरीकों से फिशर ठीक न होने पर डॉक्टर से जल्द से जल्द सम्पर्क करना चाहिए क्योंकि ऐसे मामलों में सर्जरी करनी पड़ सकती है। वैसे तो एनल फिशर किसी गंभीर रोग से जुड़ा नहीं होता। हालांकि एनल कैंसर कई बार एनल फिशर की नकल कर सकता है।
एनल फिशर की कुछ संभावित जटिलताओं में निम्न शामिल हैं-
-क्रॉनिक एनल फिशर
-गुदा नासूर
-गुदा स्टेनासिस
-मल त्याग के दौरान दर्द होना
-मल त्याग करने के बाद खून दिखाई देना।
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