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अकरकरा का नाम बहुत कम लोगों को पता होगा। आप ये जानकर आश्चर्य में पड़ जायेंगे कि अकरकरा के औषधीय और आयुर्वेदिक गुण अनगिनत हैं। आयुर्वेद में अकरकरा के पाउडर और चूर्ण का उपयोग दवा के रूप में किया जाता है। अकरकरा को सिर दर्द, दांत दर्द, मुँह के बदबू, दांत संबंधी समस्या, हिचकी जैसे बीमारियों के लिए जादू जैसा काम करता है। चलिये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
आयुर्वेद में अकरकरा का प्रयोग लगभग 400 वर्षों से किया जा रहा है। यद्यपि चरक, सुश्रुत आदि प्राचीन ग्रन्थों में इसका उल्लेख प्राप्त नहीं होता है, तथापि यह नहीं माना जा सकता कि यह बूटी भारतवर्ष में पहले नहीं होती थी।
भारतवर्ष में पायी जाने वाली यह औषधि प्राय: तीन प्रकार की होती है
मुख्यतया आयुर्वेदीय औषधि में Anacyclus pyrethrum (L.) Lagasca का प्रयोग किया जाता है परन्तु इसके अतिरिक्त अकरकरा की दो अन्य प्रजातियाँ प्राप्त होती हैं।
जिनका प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है, अकरकरा में उत्तेजक गुण प्रमाणित में होने से आयुर्वेद में इसे कामोत्तेजक औषधियों में प्रधानता दी गई है। इसे समान गुण वाली अन्य औषधियों के साथ मिलाकर प्रयोग करने से यह वीर्यवर्धक (सीमन बढ़ाने वाला), और सेक्स की इच्छा बढ़ाने में मदद करता है। कफ तथा शीत प्रकृति वाले व्यक्तियों को अकरकरा के प्रयोग से विशेष लाभ होता है।
आकारकरभ – यह शक्ति बढ़ाने वाला, कड़वा, लालास्रावजनक (Sialarrhea), नाड़ी को बल देने वाला, काम को उत्तेजित करने वाला, वेदना कम करने वाला तथा प्रतिश्याय (Coryza) और शोथ या सूजन को नष्ट करता है। इसकी जड़ हृदय को उत्तेजित करने में सहायक होती है। यह सूक्ष्मजीवाणुरोधी (Antimicrobial) कीटनाशक, दंतकृमि, दांत का दर्द, ग्रसनी का सूजन, तुण्डीकेरी शोथ (Tonsillitis), पक्षाघात या लकवा, अर्धांगघात, जीर्ण नेत्ररोग, सिरदर्द, अपस्मार या मिर्गी, विसूचिका (Cholera), आमवात तथा टाइफस (Typhus) बुखार को कम करने वाला होता है।
भारतीय अकरकरा-यह रस में कड़वा; गर्म; रूखा, वात पित्त को कम करने वाला, लालास्राववर्धक, उत्तेजक, कफ कम करने वाला, पाचक, पेट दर्द तथा ज्वरनाशक होती है। इसका फूल कड़वा, शरीर की गर्मी कम करने में सहायक और वेदना हरने वाला होता है।
अकरकरा का वानास्पतिक नाम Anacyclus pyrethrum (L.) Lag. (ऐनासाइक्लस पाइरेथम) Syn-Anacyclus officinarum Hayne होता है। अकरकरा Asteraceae (ऐस्टरेसी) कुल का होता है। अकरकरा को अंग्रेजी में Pellitory Root (पेल्लीटोरी रूट) कहते हैं। लेकिन भारत के भिन्न भिन्न प्रांतों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, जैसे-
अकरकरा के पौधे के फायदों (akarkara benefits in hindi) के बारे में जितना कहेंगे कम ही होगा। अकरकरा के गुणों के कारण ये कई बीमारियों के लिए आयुर्वेद में प्रयोग किया जाता है।
अगर आपको काम के तनाव और भागदौड़ भरी जिंदगी के वजह से सिरदर्द की शिकायत रहती है तो अकरकरा का घरेलू उपाय बहुत लाभकारी (akarkara benefits in hindi) सिद्ध होगा।
अकरकरा की जड़ या फूल को पीसकर, हल्का गर्म करके ललाट (मस्तक) पर लेप करने से मस्तक का दर्द कम होता है। इसके अलावा इसके प्रयोग से मुख की दुर्गंध भी दूर हो जाती है, एक बार के प्रयोग के लिए एक फूल या थोड़ा कम पर्याप्त होता है।
अकरकरा के फूल को चबाने से जुकाम के कारण होने वाला सिर-दर्द तथा मस़ूड़ों की सूजन तथा दांत का दर्द कम होता है।
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अगर दांत दर्द से परेशान हैं तो अकरकरा का इस तरह से सेवन करने पर जल्दी आराम मिलता है। 10 ग्राम अकरकरा की जड़ या पुष्प में 2 ग्राम कपूर तथा 1 ग्राम सेंधानमक मिलाकर, पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण का मंजन करने से सब प्रकार के दंत दर्द से राहत मिलती है।
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अकरकरा, माजुफल, नागरमोथा, भुनी हुई फिटकरी, काली मिर्च तथा सेंधानमक सबको बराबर मिलाकर बारीक पीस लें। इस मिश्रण से प्रतिदिन मंजन करने से दांत और मसूड़ों के सभी रोग ठीक हो जाते हैं तथा मुख की दुर्गन्ध मिट जाती है। इसके अलावा अकरकरा का जड़ा या पुष्प, हल्दी तथा सेंधानमक को बराबर मिलाकर बारीक पीस लें। इस मिश्रण में थोड़ा सरसों का तेल मिलाकर दाँतों पर मलने से दांत का दर्द कम होता है; साथ ही मुख-दुर्गन्ध व मसूढ़ों की समस्या भी दूर होती है। यह एक चमत्कारिक प्रयोग है।
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अकरकरा की मूल को चबाने से अथवा मूल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से कवल एवं गण्डूष धारण करने से दंतकृमि (दांत में कीड़ा लगना), दांत दर्द आदि दंत रोगों वातजन्य मुख-रोगों तालु और गले के रोगों में बहुत लाभ होता है।
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अकरकरा-चूर्ण (akarkara patanjali) को 250-500 मिग्रा की मात्रा में सेवन करने से बच्चों का कंठ स्वर सुरीला हो जाता है। अकरकरा मूल या अकरकरा-फूल को मुंह में रखकर चूस भी सकते हैं यह कण्ठ के लिए बहुत लाभकारी है।
हिचकी आने पर आधा से एक ग्राम अकरकरा-मूल-चूर्ण को शहद के साथ चटाएं। हिचकी पर यह चमत्कारिक असर दिखाता है।
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सांस संबंधी समस्याओं में अकरकरा का औषधीय गुण (akarkara benefits in hindi) काम आता है। अकरकरा के कपड़छन चूर्ण (कपड़े से छाना हुआ) को सूंघने से श्वास में लाभ होता है।
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अगर मौसम के बदलाव के कारण सूखी खांसी से परेशान है और कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है तो अकरकरा से इसका इलाज किया जा सकता है। 2 ग्राम अकरकरा एवं 1 ग्राम सोंठ का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सुबह-शाम पीने से पुरानी खांसी मिटती है तथा अकरकरा चूर्ण को 1-2 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से कफज विकारों में लाभ होता है। इसके अलावा दो भाग अर्जुन की छाल और एक भाग अकरकरा-मूल-चूर्ण, दोनों को मिलाकर, पीसकर दिन में दो बार आधा-आधा चम्मच की मात्रा में खाने से घबराहट, पीड़ा, कम्पन और कमजोरी आदि हृद्-विकारों में लाभ होता है।
अक्सर मसालेदार खाना खाने या असमय खाना खाने से पेट में गैस हो जाने पर पेट दर्द की समस्या होने लगती है। अकरकरा के जड़ का -चूर्ण (akarkara patanjali) और छोटी पिप्पली-चूर्ण को समान मात्रा में लेकर उसमें थोड़ी भुनी हुई सौंफ मिलाकर, आधा चम्मच सुबह शाम भोजनोपरांत (खाना खाने के बाद) खाने से पेट संबंधी समस्या में लाभ होता है
हृदय संबंधी बीमारियों के खतरे को कम करने के लिए हृदय का स्वस्थ होना भी जरूरी होता है। अकरकरा (akarkara benefits in hindi) का इस तरह से सेवन करने पर ह्रदय को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है।
–दो भाग अर्जुन की छाल और एक भाग अकरकरा की जड़ का चूर्ण, दोनों को मिलाकर, पीसकर दिन में दो बार आधा-आधा चम्मच की मात्रा में खाने से घबराहट, दर्द, कम्पन और कमजोरी आदि हृदय संबंधी रोगों में लाभ होता है।
-कुंजन, सोंठ और अकरकरा की 2-5 ग्राम मात्रा को 100 मिली पानी में उबालें, जब चतुर्थांश (1/4 भाग) काढ़ा शेष रह जाए तो इस काढ़े को नियमित रूप से पिलाने से घबराहट, नाड़ीक्षीणता, हृदय की कार्य शिथिलता आदि हृदय संबंधी रोगों में फायदेमंद होता है।
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पेट संबंधी विभिन्न बीमारियों जैसे पेट दर्द,पेट फूलना,अपच, बदहजमी जैसे बीमारियों में अकरकरा का सेवन फायदेमंद होता है।अकरकरा मूल-चूर्ण (akarkara patanjali) और छोटी पिप्पली-चूर्ण को समान मात्रा में लेकर उसमें थोड़ी भुनी हुई सौंफ मिलाकर, आधा चम्मच सुबह शाम भोजनोपरांत (खाना खाने के बाद) खाने से उदररोगों या पेटदर्द में लाभ होता है।
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अगर आपके व्यस्त जीवनशैली के कारण बदहजमी की समस्या हो गई है तो शुंठी-चूर्ण और अकरकरा (akarkara patanjali) दोनों को 1-1 ग्राम की मात्रा में लेकर सेवन करने से मंदाग्नि (Indigestion) और अफारा (Flatulence) में मदद मिलती है।
मासिक धर्म या पीरियड्स होने के दौरान बहुत तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे- मासिक धर्म होने के दौरान दर्द होना, अनियमित मासिक धर्मचक्र, मासिक धर्म के दौरान रक्तस्राव या ब्लीडिंग कम होना या ज्यादा होना आदि। इन सब में अकरकरा का घरेलू उपाय बहुत ही लाभकारी होता है।
अकरकरा-मूल का काढ़ा बनायें। 10 मिली काढ़े में चुटकी भर हींग डालकर कुछ माह सुबह-शाम पीने से मासिकधर्म ठीक होता है। इससे मासिकधर्म के दिनों में होने वाली दर्द से भी छुटकारा मिलती है।
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20 ग्राम अकरकरा-मूल (akarkara patanjali) को लेकर उसका चतुर्थांश क्वाथ बना लें, अब इस क्वाथ के साथ 10 ग्राम अकरकरा मूल को पीसकर पुरुष जननेन्द्रिय (शिश्न) पर लेप करने से, इन्द्रिय शैथिल्यता का शमन होता है। लेप कुछ घण्टों तक लगा रहने दें, लेप लगाते समय शिश्न के ऊपरी भाग (मणी) को छोड़कर लगाएं।
अगर दिन भर बैठकर काम करने के कारण कमर दर्द से परेशान हैं तो अकरकरा (akarkara patanjali) के जड़ के चूर्ण को अखरोट के तेल में मिलाकर मालिश करने से गृध्रसी या साइटिका में लाभ होता है।
आजकल अर्थराइटिस की समस्या उम्र देखकर नहीं होती है। दिन भर एसी में रहने के कारण या बैठकर ज्यादा काम करने के कारण किसी भी उम्र में इस बीमारी का शिकार होने लगे हैं। इससे राहत पाने के लिए अकरकरा (akarkara in hindi) का इस्तेमाल ऐसे कर सकते हैं।
अकरकरा की जड़ का पेस्ट या कल्क तथा काढ़े का लेप लगाने के बाद सिंकाई करने से या उससे धोने से आमवात (एक प्रकार का गठिया), लकवा तथा नसों की कमजोरी में लाभ होता है।
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आजकल के प्रदूषण भरे वातावरण में त्वचा संबंधी रोग होने का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। हर कोई किसी न किसी त्वचा संबंधी परेशानी से ग्रस्त हैं। खुजली ऐसे रोगों में एक है। अकरकरा खुजली के सब परेशानियों को कम करने में मदद करता है। भारतीय अकरकरा के 5 से 7 ग्राम पञ्चाङ्ग का काढ़ा बनाकर प्रभावित स्थान को धोने से खुजली तथा छाजन में लाभ होता है।
अकरकरा के मूलार्क को घावों में या मूल को पाउडर कर घाव के ऊपर लगाने से घाव जल्दी भरता है व संक्रमण होने की सम्भावना भी नहीं रहती है। इसके अतिरिक्त अकरकरा के ताजे पत्ते व फूल को पीसकर लगाने से दाद, खाज तथा खुजली ठीक हो जाती है।
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अकरकरा के फूल या जड़ को सिरके में पीसकर मधु मिलाकर 5-10 मिली की मात्रा में चाटने से या ब्राह्मी के साथ अकरकरा की जड़ का काढ़ा बनाकर पिलाने से मिर्गी का वेग रुकता है।
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2 भाग अकरकरा-मूल-चूर्ण, 1 भाग काली मिर्च व 3 भाग बहेड़ा छिलका लेकर पीसकर रखें, उसे 1-2 ग्राम की मात्रा में दिन में दो से तीन बार शहद के साथ बच्चों को चटाने से टॉन्सिल में लाभ होता है। जिह्वा पर मलने से जीभ का सूखापन और जड़ता दूर होकर हकलाना या तोतलापन कम होता है। 4-6 हफ्ते या कुछ माह तक प्रयोग करें।
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अकरकरा-मूल को बारीक पीसकर महुए के तेल या तिल के तैल में मिलाकर प्रतिदिन मालिश करने से अथवा अकरकरा की जड़ के चूर्ण (500 मिग्रा-1 ग्राम) को मधु के साथ सुबह शाम चटाने से पक्षाघात (लकवा) में लाभ होता है।
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चेहरे के पक्षाघात में फायदेमंद अकरकरा (Akarkara help to treat Mouth Paralysis in hindi)
उशवे के साथ अकरकरा का 10-20 मिली काढ़ा बनाकर पिलाने से अर्दित (मुंह का लकवा) में लाभ होता है।
अगर मौसम के बदलने के वजह से या किसी संक्रमण के कारण बुखार हुआ है तो उसके लक्षणों से राहत दिलाने में अकरकरा (akarkara in hindi) बहुत मदद करता है।
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आजकल की जीवनशैली और आहार का बुरा असर सेक्स लाइफ पर पड़ रहा है जिसके कारण सेक्स संबंधी समस्याएं होने लगी हैं। 1 ग्राम आकारकरभादि चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करने से स्पर्म का काउन्ट बढ़ता है।
आयुर्वेद में अकरकरा के फूल, पञ्चाङ्ग एवं जड़ का प्रयोग औषधि के लिए किया जाता है।
बीमारी के लिए अकरकरा के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए अकरकरा का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
चिकित्सक के परामर्श के अनुसार अकरकरा का 10-20 मिली रस , पुष्प 1-2 ग्राम ले सकते हैं।
प्रशस्त अकरकरा भारी (वजनदार) और तोड़ने पर भीतर से सफेद होती है। यह स्वाद में अत्यन्त तीक्ष्ण होती है। इसको चबाने से मुख और जीभ में बहुत तेज और एक विचित्र ढंग की सनसनाहट होने लगती है तथा मुंह से लार निकलने लग जाती है। कुछ काल के बाद सनसनाहट बंद हो जाती है तथा मुंह का शोधन हो जाता है। जो अकरकरा वजन में हल्की, तोड़ने पर अन्दर कुछ पीला या भूरापन लिए होती है तथा इसकी झनझनाहट कम और थोड़ी-देर तक होती है, वह अकरकरा औषधि-कार्य हेतु अप्रशस्त होती है।
मूल-रूप से अरब का निवासी होने के कारण इसको मोरक्को अकरकरा भी कहते हैं। भारत के कुछ हिस्सों में इसकी खेती की जाती है। वर्षाऋतु की प्रथम फूहार पड़ते ही इसके छोटे-छोटे पौधे निकलने शुरू हो जाते हैं। इसकी जड़ का स्वाद चरपरा होता है तथा इसको चबाने से गर्मी महसूस होती है व जिह्वा जलने लगती है। आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव में अरब से आयातित औषधि अधिक वीर्यवान् मानी जाती है।
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