शुद्ध जल अमृत के समान है। हम सबके जीवित रहने के लिए जल बहुत ही आवश्यक है। यही वजह है कि आयुर्वेद में जल या पानी को पंच महाभूतों में से एक माना गया है। साफ़ पानी पीने से ही शरीर की कई समस्याएँ ठीक हो जाती हैं। आयुर्वेद में जल के अनेक गुणों का वर्णन है- ठंडे, गर्म, उबले और उबाल कर ठण्डे किए हुए पानी सबके अलग अलग फायदे बताए गए हैं. इस लेख में हम आपको बता रहे हैं पानी कब कितनी मात्रा में और कैसे पीना ज्यादा सही माना जाता है।
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बारिश के पानी को जमीन पर गिरने से पहले ही किसी भी तरह साफ़ बर्तन में इकठ्ठा कर लें, यह सबसे अच्छा जल माना जाता है। वर्षाजल में भी दूसरी बार की बारिश का पानी अधिक शुद्ध होता है; क्योंकि पहली वर्षा में वायुमंडल व आकाश में फैले प्रदूषण का असर होता है। जमीन पर गिरने के बाद इस जल में अनेक प्रकार की अशुद्धियाँ मिल जाती हैं।
वर्षा के जल के बाद जमीन से निकले हुए जल (स्प्रिंग वाटर) को सबसे शुद्ध माना गया है। यह भी कहीं-कहीं प्राप्त होता है। इसके बाद प्रदूषण रहित स्थानों में बहने वाले झरने के जल को शुद्ध माना गया है। संसार में सबको प्राकृतिक रूप से शुद्ध पानी मिलना सम्भव नहीं इसलिए पानी को यदि उबाल कर ठण्डा कर लिया जाए तो वह पानी भी उतना ही गुणकारी होता है। उबालने से पानी स्वच्छ हो जाता है। इस प्रकार का पानी वात, पित्त और कफ आदि दोषों को शान्त करता है। यह पाचक व हल्का हो जाता है और जठराग्नि को बढ़ाता है।
यह सच है कि पानी हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है और रोगों से दूर रखता है। लेकिन इसके लिए ज़रुरी है कि आपको यह पता हो कि कितनी मात्रा में और कब पानी पीना चाहिए। आयुर्वेद में पानी पीने के सही तरीके और मात्रा के बारे में बताया गया है। आयुर्वेद के अनुसार बहुत अधिक मात्रा में पानी पीने से पाचक अग्नि (जठराग्नि) कमजोर होती है। जठराग्नि के कमजोर होने से आपके द्वारा खाया हुआ भोजन देर से पचता है।
इसके विपरीत अगर आप बहुत कम मात्रा में पानी पीते हैं तो इससे भी भोजन ठीक से नहीं पचता है। जिसकी वजह से पेट संबंधी कई तरह के रोग हो जाते हैं। शरीर में पानी की कमी होने से मल-मूत्र के विसर्जन में भी कठिनाई होने लगती है। इस वजह से शरीर से विषैले और हानिकारक तत्व (टॉक्सिन) बाहर नहीं निकल पाते हैं।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर आयुर्वेद में निर्देश दिया गया है कि एक बार में बहुत अधिक पानी पीने की बजाय थोड़ी थोड़ी मात्रा में पानी पियें। ऐसा करने से पाचक अग्नि भी बढ़ती है और शरीर में पानी की आवश्यकता की पूर्ति भी हो जाती है। अपच की समस्या होने पर पानी पीना दवा की तरह असर करता है। अगली बार जब भी आप अपच की समस्या से परेशान हों तो पर्याप्त मात्रा में पानी ज़रुर पिएं।
खाना खाने से ठीक पहले पानी नहीं पीना चाहिए। ऐसा करने से पाचन शक्ति कमजोर होती है और शरीर दुर्बल होता है। आयुर्वेद में बताया गया है कि खाना खाने से लगभग आधे घन्टे पहले तक पानी नहीं पीना चाहिए। अगर आप मोटे हैं तो आप खाने के बीच में पानी पी सकते हैं। इसी तरह पतले लोग खाने के आधे घंटे बाद पानी पी सकते हैं।
इनके अलावा बाकी सभी लोगों को खाना खाने के एक घंटे बाद ही पानी पीना चाहिए। यहां यह बात ध्यान रखें कि मोटे और ताकतवर लोगों के लिए भोजन के बीच में जल पीना अमृत के समान है वहीं अंत में पानी पीना बहुत हानिकारक है। दिन में खाना खाने के बाद तुरंत बाद छाछ का सेवन करना चाहिए।
आमतौर पर पानी हर अवस्था में फायदेमंद है, लेकिन कुछ विशेष रोगों के दौरान पानी कम ही मात्रा में पीना चाहिए। जैसे- अरुचि (भोजन करने की इच्छा न होना), पुराना जुकाम, अधिक लार निकलना, सूजन, क्षय रोग, पाचन-शक्ति की कमजोरी, पेट से जुड़े रोग, कोढ़ जैसी चमड़ी की बीमारियाँ, नेत्र-रोग, घाव और मधुमेह में।
अगर आप बिल्कुल भी पानी नहीं पी रहे हैं तो यह भी सेहत के लिए बहुत हानिकारक है. इसलिए रोजाना उचित मात्रा में ही पानी पियें।
गर्म या ठंडा दोनों ही तरह के जल अलग अलग परिस्थितियों में फायदेमंद हैं। मोटापा, वात व कफ रोगों में गर्म किया जल उपयोगी है, तो पित्त की स्थिति में ठण्डा। इसी प्रकार कुछ रोगों में उबला हुआ जल फायदेमंद होता है। ठंडा पानी यदि एक के लिए अमृत के समान है, तो दूसरे के लिए हानिकारक भी हो सकता है। उदाहरण के लिए विदग्धाजीर्ण (अपच के साथ जलन भी होना) में ठंडा पानी पीने से जलन शान्त होने के साथ-साथ भोजन का पाचन भी होता है। परन्तु यदि यही ठण्डा जल खाँसी, दमा आदि के रोगी को पिलाया जाए तो कष्ट बढ़ जाता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए विभिन्न प्रकार के जलों की विशेषताओं को जान लेना उपयोगी रहेगा।
आयुर्वेद में खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीने से मना किया गया है। ऐसा बताया गया है कि इससे कई तरह के रोग हो सकते हैं। जो लोग वात-प्रकोप से होने वाले सिर के रोगों, हिचकी, अस्थमा, खाँसी एवं टीबी से पीड़ित हैं तथा जिन्हें ऊँची आवाज में गाना, भाषण देना एवं अध्ययन करना पड़ता है। उन्हें या किसी भी व्यक्ति को भोजन के तुरन्त बाद जल का सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि सिर के रोगों से पीड़ित होने पर जब मनुष्य भोजन के बाद जल पीता है तो इससे वात और बढ़ जाता है।
सामान्य स्थिति में भोजन में पाए जाने वाले चिकनाई युक्त पदार्थ वात को शांत करने में सहायक होते हैं लेकिन ठंडा पानी पीने से उसके ठंडे प्रभाव के कारण वात असंतुलित हो जाता है। ऊँचे स्वर में गाने, भाषण देने और पढ़ने वालों को खासतौर पर खाने के तुरंत बाद पानी पीने से इसलिए मना किया जाता है क्योंकि पीने के बाद जल का कुछ अंश गले और छाती में ही स्थित रह जाता है और वहाँ से भोजन के साथ लिये गये चिकनाई युक्त पदार्थों को हटा देता है, जिससे गले आदि के रोग में वृद्धि होती है।
कुछ विद्वानों का इस सन्दर्भ में यह कहना है कि भोजन के बाद जल पीने से भोजन में पोषक तत्त्वों का सात्मीकरण (assimilation – शरीर के तत्त्वों के अनुसार ग्रहण) नहीं हो पाता। अतः भोजन के तुरन्त बाद जल नहीं पीना चाहिए।
ठंडे पानी का सेवन बेहोशी, पित्त की अधिकता, जलन, विषैलापन, चक्कर आना, उल्टी होना, शारीरिक थकावट, और रक्तपित्त (अर्थात् शरीर के अंगों से रक्त निकलना) जैसे रोगों में और भोजन के पाचन में लाभकारी होता है।
इसके विपरीत, निम्नलिखित परिस्थितियों में ठण्डा पानी पीने से रोग बढ़ता है :
जब जल को उबाल कर ठण्डा कर लिया जाता है तो यह ’शृतशीत‘ कहलाता है। आयुर्वेद में उबाल कर ठंडा किये गए पानी की भी कई विशेषताएं बताई गयी हैं।
दिन के समय सूर्य की रोशनी में और रात के समय चद्रमा की चाँदनी में रखा गया जल ‘हंसोदक’ या ‘अंशूदक’ कहलाता है। यह जल अमृत के समान उपयोगी होता है। इस प्रकार का जल स्निग्ध (चिकनाई) और तीनों दोषों को शान्त करता है। यह शक्ति और बुद्धि को बढ़ाने वाला, बुढ़ापे के रोगों को रोकने वाला, शीतल और पाचन में हल्का होता है।
रोजाना सुबह खाली पेट पानी पीना सेहत के लिए बहुत लाभकारी है। इससे शरीर की झुर्रियाँ, सफेद बाल, गला बैठना, बिगड़ा जुकाम, दमा, कब्ज तथा सूजन जैसे रोगों में आराम मिलता है।
आयुर्वेद में गर्मियों और शरद ऋतु में पानी को उबालकर जब वह एक चौथाई बचे उसे पीना ज्यादा फायदेमंद बताया गया है। हेमन्त, शिशिर, वर्षा और वसन्त ऋतुओं में उबाल कर आधा शेष बचा हुआ जल उपयोगी होता है।
आयुर्वेद के अनुसार बिना उबाला हुआ जल तीन घण्टे में, उबाल कर ठण्डा किया हुआ डेढ़ घण्टे में तथा उबाल कर गर्म ही पीया गया जल 45 मिनट में पच जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि जो जल उबालने के बाद गर्म ही पीया जाता है, वह सबसे हल्का होता है। इसके विपरीत, बिना उबला जल सबसे भारी होता है। इस आधार पर अपनी अपनी पाचन शक्ति को देख कर जल का सेवन करना उचित है।
जिस जल में मिट्टी कीचड़ काई, तिनके, पत्ते, जीव जन्तुओं व कीट पतंगों के मल-मूत्र, अण्डे व मच्छर, मक्खी तथा विषैले पदार्थ मिले हो वो दूषित जल कहलाता है। इसके अलावा अगर पानी का रंग मटमैला हो या उसमें से किसी तरह की बदबू आ रही हो तो वो भी दूषित या अशुद्ध जल माना जाता है। ऐसे जल को किसी भी परिस्थिति में नहीं पीना चाहिए।
बिना मौसम की वर्षा का तथा वर्षा के एकदम बाद भूमि पर से इकट्ठा किया गया जल दूषित होता है। इस प्रकार के जल का प्रयोग, पीने में तो क्या, नहाने के लिए भी नहीं करना चाहिए। यदि स्वच्छ जल न मिल रहा हो और दूषित जल पीने की विवशता हो, तो इसे शुद्ध कर लेना चाहिए। जल को शुद्ध करने के लिए फ़िल्टर का प्रयोग करें या साफ़ मोटे कपड़े से कई बार छान लें। इसके बाद प्रयोग में लें।
अच्छी सेहत के लिए रोजाना कम से कम 8 गिलास पानी ज़रूर पियें। पानी के सेवन से जुड़े इन नियमों का अपने दैनिक जीवन में पालन करें और स्वस्थ रहें।
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