विजयसार का परिचय
यह प्रायद्वीपीय भारत में लगभग 1400 मी तक की ऊँचाई पर गुजरात से बिहार, अण्डमान द्वीप समूह, दक्षिणी पर्णपाती सदाहरित पहाड़ी वनों से श्रीलंका तक पाया जाता है। चरकसंहिता सूत्रस्थान में दन्तधावन के रूप में असन का उपयोग हितकर कहा गया है। सार-आसव की सूची में विजयसार की गणना की गई है। इन्द्राsक्त रसायन, कुष्ठरोग के अन्तर्गत महाखदिर घृत, खालित्य रोग में महानील तैल और ऊरुस्तम्भ में श्योनाकादि प्रलेप में असन का प्रयोग मिलता है। त्वक् का प्रयोग शिरोविरेचन रूप में किया गया है।
सुश्रुत में बीजक को कफपित्तहर मानकर कुष्ठरोग में बहुलता से इसका प्रयोग किया गया है। रक्तपित्त में इसके पुष्प का प्रयोग बताया गया है। दूषित जल की शुद्धि के लिए असन का प्रयोग बताया है। वाग्भट ने गुदकुट्टक नामक बालरोग में बीजक-त्वचा का लेप एवं भगन्दर-प्रतिषेध में त्रिफला के साथ असन का प्रयोग बतलाया है। बीजक के निर्यास का हीरादक्खन (खूनखराबा) रूप में उपयोग करते हैं। प्राचीन काल में बीजक की लकड़ी से बने पात्रों में अंजन रखने का विधान किया गया है।
इसकी छाल में आघात या क्षत करने से गहरे लाल रंग का गोंद निकलता है, जो सूख कर काला तथा कठोर हो जाता है। इसको उबालकर एवं सुखाकर प्रयोग किया जाता है। यह गाढ़े लाल रंग के चमकीले टुकड़ों में होता है, जो माणिक के समान लाल रंग का दिखाई देता है। इसको तोड़ने से भूरे रंग का चूरा निकलता है तथा चबाने से यह दांतों में चिपक जाता है। इसके पुष्प सुगन्धित, पीत वर्ण के होते हैं। इस लेख में हम आपको विजयसार के फायदों (vijaysar benefits in hindi) के बारे में विस्तार से बता रहे हैं.
वानस्पतिक नाम : Pterocarpus marsupium Roxb. (टेरोकार्पस् मार्सुपियम्)Syn-Pterocarpus marsupium f. var.-acuminata (Prain) Prain
कुल : Fabaceae (फैबेसी)
अंग्रेज़ी नाम : Indian Kino tree
(इण्डियन् कीनो ट्री)
संस्कृत-बीजक, पीतसार, पीतशालक, बन्धूकपुष्प, प्रियक, सर्जक, असन; हिन्दी-विजयसार, बीजा, बीजासाल, विजैसार; उर्दू-दामुल अरववैन (Damulakhvain); उड़िया-ब्यासा (Byasa), पियासाल (Piasal), पियासालो (Piyasalo);कन्नड़-ओल्ले होन्ने (Olle honne), होन्नेमर बान्गे (Honnemar bange); कोंकणी-अस्सन (Assan), अस्सोन (Asson); गुजराती-बीया (Bia), बीयो (Biyo), बिबला (Bibla); तमिल-पीरासाराम (Pirasaram), वेनगाई (Vengai); तेलुगु-येगि (Yegi), पीड्डागी (Peddagi); बंगाली-पीताशाल (Pitasal), पियाशाल (Piyashal), बीजासाल (Beejasal); नेपाली-विजयपाल (Vijaypal); मराठी-बीब्ला (Bibla), ढोरबेन्ला (Dhorbenla), बीयों (Biyon), असन (Asan); मलयालम-वेना (Venna), मलंटकारा (Malantakara)।
अंग्रेजी-मालाबार कीनो ट्री (Malabar kino tree), बास्टर्ड टीक (Bastard teaks), इण्डियन कीनो (Indian kino); अरबी-दम्मूलकवैन-ए-हिन्दी (Dammulakvain-e-hindi); फारसी-खुनेसिहवस्हम (Khunesiahwasham)।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
विजयसार तिक्त, कटु, कषाय, उष्ण, लघु, रूक्ष तथा कफपित्तशामक होता है।
यह त्वचा के लिए हितकर, केश्य, रसायन, सारक, पाचन, दंत धावन में हितकर तथा कुष्ठघ्न होता है।
यह कुष्ठ, विसर्प, श्वित्र, प्रमेह, ज्वर, कृमिरोग, मेद, रक्तमण्डल तथा कंठरोग नाशक होता है।
इसके पुष्प तिक्त, मधुर, पाचन तथा वातकारक होते हैं।
इसकी त्वक् एवं अंतकाष्ठ स्तम्भक, मूत्रल, शीतल, घुलनशील (Resolvent), शोथघ्न, विशोधक, मूत्रस्तम्भक, रक्तस्तम्भक, कृमिघ्न, कोष्ठबद्धताकारक, वेदनाशामक, परिवर्तक तथा रसायन होती है।
इसका निर्यास स्दंक, शीतल, व्रणरोपक, ज्वरघ्न, कृमिघ्न, यकृत् बलवर्धक, स्भंक तथा उद्वेष्टरोधी उद्वेष्टजन्य उदरशूल, पित्त प्रकोप, दन्तशूल, विचर्चिका, व्रण, जीर्ण व्रण, कृमि, शुक्रमेह, सविरामी ज्वर, यकृत्रोग, नेत्राभिष्यंद, श्वेतप्रदर तथा रक्तप्रदर में लाभप्रद होता है।
इस पौधे में व्रणरोपण क्रिया होती है। काण्डत्वक् में यकृक्षतिरोधक क्रिया पाई जाती है।
विजय सार के फायदे ( Vijaysar Benefits in Hindi) :
प्रयोज्याङ्ग :पुष्प, छाल, पत्र, अन्तकाष्ठ तथा गोंद।
मात्रा :बीजकारिष्ट 10-20 मिली। त्वक् क्वाथ 15-20 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
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