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Vijaysaar: फायदे से भरपूर है विजयसार- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

विजयसार का परिचय

यह प्रायद्वीपीय भारत में लगभग 1400 मी तक की ऊँचाई पर गुजरात से बिहार, अण्डमान द्वीप समूह, दक्षिणी पर्णपाती सदाहरित पहाड़ी वनों से श्रीलंका तक पाया जाता है। चरकसंहिता सूत्रस्थान में दन्तधावन के रूप में असन का उपयोग हितकर कहा गया है। सार-आसव की सूची में विजयसार की गणना की गई है। इन्द्राsक्त रसायन, कुष्ठरोग के अन्तर्गत महाखदिर घृत, खालित्य रोग में महानील तैल और ऊरुस्तम्भ में श्योनाकादि प्रलेप में असन का प्रयोग मिलता है। त्वक् का प्रयोग शिरोविरेचन रूप में किया गया है।

सुश्रुत में बीजक को कफपित्तहर मानकर कुष्ठरोग में बहुलता से इसका प्रयोग किया गया है। रक्तपित्त में इसके पुष्प का प्रयोग बताया गया है। दूषित जल की शुद्धि के लिए असन का प्रयोग बताया है। वाग्भट ने गुदकुट्टक नामक बालरोग में बीजक-त्वचा का लेप एवं भगन्दर-प्रतिषेध में त्रिफला के साथ असन का प्रयोग बतलाया है। बीजक के निर्यास का हीरादक्खन (खूनखराबा) रूप में उपयोग करते हैं। प्राचीन काल में बीजक की लकड़ी से बने पात्रों में अंजन रखने का विधान किया गया है।

इसकी छाल में आघात या क्षत करने से गहरे लाल रंग का गोंद निकलता है, जो सूख कर काला तथा कठोर हो जाता है। इसको उबालकर एवं सुखाकर प्रयोग किया जाता है। यह गाढ़े लाल रंग के चमकीले टुकड़ों में होता है, जो माणिक के समान लाल रंग का दिखाई देता है। इसको तोड़ने से भूरे रंग का चूरा निकलता है तथा चबाने से यह दांतों में चिपक जाता है। इसके पुष्प सुगन्धित, पीत वर्ण के होते हैं। इस लेख में हम आपको विजयसार के फायदों (vijaysar benefits in hindi) के बारे में विस्तार से बता रहे हैं. 

 

वानस्पतिक नाम : Pterocarpus marsupium Roxb. (टेरोकार्पस् मार्सुपियम्)Syn-Pterocarpus marsupium f. var.-acuminata (Prain) Prain      

कुल : Fabaceae (फैबेसी)

अंग्रेज़ी नाम : Indian Kino tree

(इण्डियन् कीनो ट्री)

संस्कृत-बीजक, पीतसार, पीतशालक, बन्धूकपुष्प, प्रियक, सर्जक, असन; हिन्दी-विजयसार, बीजा, बीजासाल, विजैसार; उर्दू-दामुल अरववैन (Damulakhvain); उड़िया-ब्यासा (Byasa), पियासाल (Piasal), पियासालो (Piyasalo);कन्नड़-ओल्ले होन्ने (Olle honne), होन्नेमर बान्गे (Honnemar bange); कोंकणी-अस्सन (Assan), अस्सोन (Asson); गुजराती-बीया (Bia), बीयो (Biyo), बिबला (Bibla); तमिल-पीरासाराम (Pirasaram), वेनगाई (Vengai); तेलुगु-येगि (Yegi), पीड्डागी (Peddagi); बंगाली-पीताशाल (Pitasal), पियाशाल (Piyashal), बीजासाल (Beejasal); नेपाली-विजयपाल (Vijaypal); मराठी-बीब्ला (Bibla), ढोरबेन्ला (Dhorbenla), बीयों (Biyon), असन (Asan); मलयालम-वेना (Venna), मलंटकारा (Malantakara)।

अंग्रेजी-मालाबार कीनो ट्री (Malabar kino tree), बास्टर्ड टीक (Bastard teaks), इण्डियन कीनो (Indian kino); अरबी-दम्मूलकवैन-ए-हिन्दी (Dammulakvain-e-hindi); फारसी-खुनेसिहवस्हम (Khunesiahwasham)।

 

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

विजयसार तिक्त, कटु, कषाय, उष्ण, लघु, रूक्ष तथा कफपित्तशामक होता है।

यह त्वचा के लिए हितकर, केश्य, रसायन, सारक, पाचन, दंत धावन में हितकर तथा कुष्ठघ्न होता है।

यह कुष्ठ, विसर्प, श्वित्र, प्रमेह, ज्वर, कृमिरोग, मेद, रक्तमण्डल तथा कंठरोग नाशक होता है।

इसके पुष्प तिक्त, मधुर, पाचन तथा वातकारक होते हैं।

इसकी त्वक् एवं अंतकाष्ठ स्तम्भक, मूत्रल, शीतल, घुलनशील (Resolvent), शोथघ्न, विशोधक, मूत्रस्तम्भक, रक्तस्तम्भक, कृमिघ्न, कोष्ठबद्धताकारक, वेदनाशामक, परिवर्तक तथा रसायन होती है।

इसका निर्यास स्दंक, शीतल, व्रणरोपक, ज्वरघ्न, कृमिघ्न, यकृत् बलवर्धक, स्भंक तथा उद्वेष्टरोधी उद्वेष्टजन्य उदरशूल, पित्त प्रकोप, दन्तशूल, विचर्चिका, व्रण, जीर्ण व्रण, कृमि, शुक्रमेह, सविरामी ज्वर, यकृत्रोग, नेत्राभिष्यंद, श्वेतप्रदर तथा रक्तप्रदर में लाभप्रद होता है।

इस पौधे में व्रणरोपण क्रिया होती है। काण्डत्वक् में यकृक्षतिरोधक क्रिया पाई जाती है।

विजय सार के फायदे ( Vijaysar Benefits in Hindi) : 

  1. नेत्र बलवर्धनार्थ-समभाग तिल तैल तथा विभीतक तैल में चार गुना भृङ्गराज स्वरस तथा विजयसार का क्वाथ मिलाकर लोहे के पात्र में तैल पाककर, ठंडा करके (1-2 बूंद) नस्य लेने से नेत्रों का बल बढ़ता है।
  2. दन्तशूल-विजयसार की छाल को पीसकर दांतों पर मलने से दन्तशूल (दांत दर्द) का शमन होता है।
  3. पीलिया में लाभदायक है विजयसार (Vijaysar benefits for Jaundice in Hindi) –10-20 मिली बीजकसारारिष्ट के सेवन से रक्ताल्पता, (पीलिया) कामला, प्रमेह, हृद्रोग, वातरक्त (गठिया), विषमज्वर (मलेरिया), अरोचक, कास (खांसी) और श्वास (दमा) में लाभ होता है।
  4. मधुमेह में फायदेमंद है विजयसार (Vijaysar benefits in Diabetes in Hindi) –विजयसार के काष्ठ से प्राप्त शीत जलीय सत्त् का प्रयोग मुधमेह की चिकित्सा में किया जाता है।
  5. 15-20 मिली विजयसार त्वक् क्वाथ का सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है।
  6. उपदंश-परवल, नीम, त्रिफला अथवा चिरायता के क्वाथ में खदिर सार, विजय सार तथा गुग्गुलु मिलाकर पीने से उपदंश में लाभ होता है।
  7. नष्टार्तव (मासिक धर्म का न आना)-ज्योतिष्मती पत्र, सज्जीक्षार, वचा तथा विजयसार को दूध से पीसकर तीन दिन तक पीने से रुका हुआ आर्तव स्रवित होने लगता है।
  8. श्वेतप्रदर (सफेद पानी)-विजयसार की काण्डत्वक् से प्राप्त गोंद में प्रबल स्तम्भक गुण होने से, श्वेत प्रदर (सफेद पानी) में स्थानिक प्रयोग किया जाता है।
  9. उपदंश-खदिर एवं असन का क्वाथ बनाकर आभ्यन्तर प्रयोग करने से एवं इनके कल्क को गुग्गुलु या त्रिफला के साथ मिलाकर स्थानिक प्रयोग से सभी प्रकार के उपदंश का शमन होता है।
  10. फाइलेरिया या हाथी पांव में लाभदायक (Vijaysar Benefits for Filariasis in hindi) –प्रतिदिन प्रात काल खदिर, बीजक तथा शाल कल्क में गोमूत्र तथा मधु मिलाकर पीने से श्लीपद (हाथी पांव) का शीघ्र शमन होता है।
  11. विजयसार पत्र कल्क को लगाने से घाव जल्दी भरता है व रोमकूपशोथ में लाभ होता है।
  12. श्वित्र (सफेद दाग)-लोहे के पात्र में तैल से भूने हुए भृंगराज के पत्तों का शाक खाकर विजयसार क्वाथ के साथ दूध अथवा विजयसार का क्षीरपाक पीना श्वित्र रोग में पथ्य है।
  13. कुष्ठ (कोढ़)-बीजक की अन्तकाष्ठ को पीसकर लगाने से कुष्ठ (कोढ़) में लाभ होता है।
  14. दद्रु (दाद)-विजयसार के काण्ड के काष्ठीय भाग को पीसकर दद्रु प्रभावित स्थान पर लेप करने से लाभ होता है।
  15. विजयसार त्वक् तथा पत्र कल्क को लगाने से कण्डू, पामा, श्वित्र व कुष्ठ का शमन होता है।
  16. स्थौल्य (मोटापा)-विजयसार के  15-30 मिली क्वाथ में मधु मिलाकर प्रतिदिन प्रातकाल सेवन करने से स्थौल्यता (मोटापा) का शमन होता है।
  17. बुखार से आराम दिलाता है विजयसार चूर्ण (Vijaysar benefits in fever in hindi) : 1-2 ग्राम विजयसार पुष्प चूर्ण में शहद मिलाकर खाने से ज्वर का शमन होता है।
  18. रसायनार्थ-प्रतिदिन प्रात काल विजयसार के 2-4 ग्राम कल्क को दूध में घोलकर पीने से अथवा 1-2 ग्राम चूर्ण में मधु , घृत मिलाकर दूध के साथ एक वर्ष तक सेवन करने से रसायन गुणों की वृद्धि होती है।
  19. रसायन-एक वर्ष तक प्रतिदिन 1-2 ग्राम विजयसार के सारभाग को लोहे की कढ़ाई में लेप करके, रात्रिपर्यंत (रातभर) छोड़कर प्रात काल 200 मिली जल में घोलकर पीने से व्याधियों (रोगों) से मुक्ति रसायन गुणों तथा दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
  20. वाजीकरण-बीजक के 15-25 मिली क्वाथ में त्रिफला, शक्कर, शहद तथा घी मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से रसायन गुणों की प्राप्ति होती है।

प्रयोज्याङ्ग  :पुष्प, छाल, पत्र, अन्तकाष्ठ तथा गोंद।

मात्रा  :बीजकारिष्ट 10-20 मिली। त्वक् क्वाथ 15-20 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।

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