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तालीसपत्र (Talisapatradi) का नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा। वैसे तो तालीसपत्र का वर्णन कई प्राचीन आयुर्वेदीय-संहिताओं एवं निघण्टुओं में प्राप्त होता है। चरक-संहिता में क्षय-चिकित्सा के लिए तालीसादि चूर्ण तथा वटी के प्रयोग का उल्लेख मिलता है। सुश्रुत-संहिता में भी तालीसपत्र का वर्णन है।
इसलिए लंबे समय से तालीसपत्र के गुणों के आधार पर आयुर्वेद में इसका औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता रहा है। लेकिन इसका सेवन चिकित्सक से सलाह लिये बिना नहीं करना चाहिए, क्योंकि हद से ज्यादा सेवन करने पर चक्कर या उल्टी महसूस हो सकती है। तो चलिये तालीसपत्र के फायदे (Talispatra Benefits)और नुकसान के बारे में सही और विस्तृत जानकारी लेते हैं।
तालीसपत्र मीठा, गर्म तासीर का और तीखा होता है। तालीसपत्र न सिर्फ कफ और वात को कम करने में सहायता करता है बल्कि खाने में रुचि भी बढ़ाता है। यह खाँसी, हिक्का, सांस संबंधी समस्या, उल्टी, रक्त दोष के उपचार में मदद करने के अलावा वाजीकरण या सेक्स करने की इच्छा बढ़ाने में भी उपयोगी होता है।
वस्तुत: तालीसपत्र के विषय में बहुत मतभेद है। तालीस पत्र के नाम से निम्न तीन पौधों का विवरण मिलता है-
यह 50-60 मी ऊँचा, सदाहरित और सख्त या मजबूत वृक्ष होता है। इसके तने की परिधि लगभग 4 मी तक होती है। इसका शीर्ष बेलनाकार, शाखाएँ- चपटी और फैली हुई होती हैं। छाल सफेद अथवा धूसर रंग का होता है। इसके पत्ते दो भागों में विभाजित, विभिन्न लम्बाई के लगभग 2.5 से 5 सेमी तक लम्बे, 8-10 वर्षों तक रहने वाले, चपटे, लगभग 2 मिमी व्यास या डाइमीटर के, नुकीले, गहरे हरे रंग के एवं चमकीले होते है। पत्तों के सूख जाने पर उनमें एक विशेष प्रकार की गन्ध आने लगता है।
इसके फल शंकु के आकार का यानि नुकीला, सीधा, अण्डाकार, नवीन अवस्था में नीला, पूराना हो जाने पर भूरे रंग का हो जाता हैं। बीज 1.25-2.5 सेमी लम्बे, चौड़े, अण्डाकार अथवा आयताकार, कोणीय होते हैं। तालीशपत्र नवम्बर से जून महीने में फलता-फूलता है।
अभी तक जिस तालीशपत्र के बारे में बताया गया उसके अलावा निम्नलिखित प्रजाति का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है। यह प्रजाति तालीश की अपेक्षा अल्प गुणों वाली होती हैं।
Abies densa Griff. (निविड़ तालीशपत्री)- यह तालीश की तरह दिखने वाला सदाहरित लम्बा वृक्ष होता है। इसके पत्ते चमकीले, हरे रंग के तथा आगे का भाग तालीशपत्र की तरह ही नुकीला होता है। यह पौधा तालीश पत्र से अल्प गुणों वाला होता है इसके पत्रों की मिलावट तालीश पत्र में की जाती है।
तालीश पत्र का वानस्पतिक नाम Abies spectabilis (D. Don) Mirb. (ऐबीज स्पेक्टाबिलिस) Syn-Abies webbiana (Wall. ex D.Don) Lindl है। तालीश पत्र Pinaceae (पाइनेसी) कुल का है। तालीश पत्र को अंग्रेजी में East Himalayan Silver Fir (ईस्ट हिमालयन् सिल्वर पैंर) कहते हैं। लेकिन तालीश पत्र को भारत के विभिन्न प्रांतों में अन्य नामों से पुकारा जाता है, जैसे-
Taleespatra in-
Sanskrit-पत्राढ्य, धात्रीपत्र, शुकोदर, तालीशपत्र, तालीश, तालीशपत्र;
Hindi-तालीसपत्र, तालीसपत्री; उत्तराखण्ड-राघा (Ragha), रैसाला (Raisalla);
Kannada–तालीसपत्री (Talispatri);
Gujrati-तालीसपत्रा (Talispatra);
Tamil-तालीसपत्री (Talispatri);
Nepali-गोबरैसाल्ला (Gobresalla);
Telegu-तालीसपत्री (Talispatri);
Malayalam–तालीसपत्रम् (Talispatram);
English-हिमालयन फर (Himalayan fir);
Arbi-तालीसपैंर (Talisfar);
औषधीय उपयोग के दृष्टि से तालीशपत्र गुणकारी माना जाता है। तालीशपत्र सर्दी-खाँसी जैसे आम बीमारी का इलाज करने के साथ-साथ मिर्गी, रक्तपित्त (नाक-कान जैसे अंगों से खून बहने की बीमारी) जैसे जटिल बीमारी के उपचार में भी सहायता करता है। चलिये जानते है कि तालीशपत्र किन-किन बीमारियों में कैसे काम आता है।
आजकल काम के दबाव के कारण या तनाव के कारण सिर दर्द होना जैसे लाजमी हो गया है। अगर सिर दर्द से परेशान हैं तो तालीश पत्र को पीसकर मस्तक पर लगाये इससे सिर दर्द कम होता है।
मौसम बदला की नहीं सर्दी, खाँसी, बुखार होना शुरू हो जाता है। अगर आपको भी यही परेशानी है तो तालीशपत्र का सेवन इस प्रकार कर सकते हैं-
-3-5 ग्राम की मात्रा में तालीशादि चूर्ण का सेवन करने से भूख बढ़ती है तथा खाँसी, साँस फूलना, भूख न लगना, दिल की बीमारियाँ आदि रोगों में लाभ होता है।
-2-4 ग्राम तालीसादि चूर्ण का सेवन करने से खाँसी, साँस फूलना, बुखार, उल्टी, अतिसार या दस्त, पेट फूलना, ग्रहणी (Irritable bowel syndrome)आदि रोगों में लाभ होता है। यह चूर्ण रुचिकारक तथा पाचक दोनों होता है।
-तालीश पत्र चूर्ण खांसी दूर करने में भी फायदेमंद (talisapatradi churna benefits) होता है। 2-4 ग्राम तालीश पत्र चूर्ण में शहद या अदरक-का रस मिलाकर चटाने से खांसी ठीक होता है तथा अपच की समस्या आदि में लाभ मिलता है।
-2-4 ग्राम तालीश पत्र चूर्ण को गुनगुने जल के साथ सेवन कराने से कुक्कुर खांसी (Whooping cough) में लाभ होता है।
-तालीशपत्र को पीसकर छाती पर लेप करने से भी कफ की बीमारी दूर होती है।
तपेदिक या टीबी के लक्षणों से राहत दिलाने में तालीशपत्र चूर्ण बहुत ही फायदेमंद (talisapatradi churna benefits) होता है।
आजकल के असंतुलित जीवनशैली का उपहार, ये बीमारी भी है। पेट फूलने की बीमारी मतलब पेट में खाना अच्छी तरह से हजम नहीं होने पर गैस बनने लगता है। जिसके कारण मरीज डकार लेता है, पेट में बेचैनी होती है आदि। तालीशपत्र का सेवन पेट फूलने की बीमारी से राहत दिलाने में मदद करता है।
–तालीशपत्र चूर्ण में 2 ग्राम अजवायन चूर्ण मिलाकर खाने से आध्मान (अफारा) में लाभ होता है।
अगर अनियमित जीवनशैली होगी तो उसका असर सीधे पेट पर पड़ता है। अक्सर खाना अच्छी तरह से हजम न होने के कारण पेट में दर्द होने लगता है। इस कष्ट का भी निवारण तालीशपत्र के पास है।
-2-4 ग्राम तालीशपत्र चूर्ण में काला नमक मिलाकर खाने से पेटदर्द में लाभ होता है।
और पढ़े: पेटदर्द में अगस्त के फायदे
अक्सर ज्यादा मसालेदार खाना खाने से या असमय खाने से या किसी बीमारी के दुष्प्रभाव के कारण दस्त की समस्या होने लगती है।
-2-4 ग्राम तालीशपत्र चूर्ण में 2 ग्राम इन्द्रयव मिलाकर खाने से अतिसार या दस्त में लाभ होता है।
-2-4 ग्राम तालीशपत्र चूर्ण को शर्बत के साथ मिलाकर पीने से अतिसार या दस्त में लाभ होता है।
मिर्गी तंत्रिकातंत्रीय विकार होता है जिसके कारण मरीज को बार-बार दौरे आते हैं। मिर्गी के कष्ट को कम करने में तालीशपत्र का चूर्ण काम आता है।
-तालीश पत्र चूर्ण (2-4 ग्राम) में समान मात्रा में वच चूर्ण मिलाकर शहद के साथ सेवन करने से अपस्मार या मिर्गी में लाभ होता है।
अक्सर बहुत दिनों तक बीमार रहने के कारण खाने की इच्छा मर जाती है। ऐसे परेशानी का इलाज भी तालीशपत्र के पास है।
-खाने में रुचि बढ़ाने के लिए 2 ग्राम कपूर, 20 ग्राम मिश्री तथा 4 ग्राम तालीसपत्र चूर्ण (talisapatradi churna benefits) को मिलाकर 500 मिग्रा की गोलियां बना लें। इस गोली का सुबह शाम 1-1 गोली को मुँह में रखकर चूसने से अरुचि कम होने लगती है।
तालीशपत्र चूर्ण अथवा तालीशादि (2-3 ग्राम) चूर्ण को वासा-रस एवं मधु के साथ सेवन करने से कफ एवं पित्त से उत्पन्न विकार, खांसी, दम फूलना, गले की खराश तथा रक्तपित्त का कष्ट कम होता है।
आयुर्वेद में तालीशपत्र के पत्ते का प्रयोग औषधि के रुप में ज्यादा किया जाता है।
बीमारी के लिए तालीशपत्र के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए तालीशपत्र का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
चिकित्सक के परामर्श के अनुसार-
– 2-4 ग्राम तालीशपत्र के चूर्ण का सेवन कर सकते हैं।
तालीशपत्र के चूर्ण का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से चक्कर आना या उल्टी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अत्यधिक सेवन से गर्भाशय को भी नुकसान पहुँच सकता है।
तालीशपत्र भारत के शीतोष्णकटिबंधीय एवं उपपर्वतीय हिमालयी क्षेत्रों में मूल रुप से पाया जाता है। भारत में तालीशपत्र सिक्किम, कश्मीर, आसाम में लगभग 2300 मी 4000 मी की ऊँचाई तक तथा उत्तराखण्ड में 2800-4000 मी की ऊँचाई पर पाया जाता है।
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