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Taleespatra: बेहद गुणकारी है तालीसपत्र- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

Contents

तालीसपत्र का परिचय (Introduction of Taleespatra)

तालीसपत्र (Talisapatradi) का नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा। वैसे तो तालीसपत्र का वर्णन कई प्राचीन आयुर्वेदीय-संहिताओं एवं निघण्टुओं में प्राप्त होता है। चरक-संहिता में क्षय-चिकित्सा के लिए तालीसादि चूर्ण तथा वटी के प्रयोग का उल्लेख मिलता है। सुश्रुत-संहिता में भी तालीसपत्र का वर्णन है।

Taleespatra

इसलिए लंबे समय से तालीसपत्र के गुणों के आधार पर आयुर्वेद में इसका औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता रहा है। लेकिन इसका सेवन चिकित्सक से सलाह लिये बिना नहीं करना चाहिए, क्योंकि हद से ज्यादा सेवन करने पर चक्कर या उल्टी महसूस हो सकती है।  तो चलिये तालीसपत्र के फायदे (Talispatra Benefits)और नुकसान के बारे में सही और विस्तृत जानकारी लेते हैं।

तालीसपत्र क्या होता है? (What is Taleespatra in Hindi?)

तालीसपत्र मीठा, गर्म तासीर का और तीखा होता है। तालीसपत्र न सिर्फ कफ और वात को कम करने में  सहायता करता है बल्कि खाने में रुचि भी बढ़ाता है। यह खाँसी, हिक्का, सांस संबंधी समस्या, उल्टी, रक्त दोष के उपचार में मदद करने के अलावा वाजीकरण या सेक्स करने की इच्छा बढ़ाने में भी उपयोगी होता है।

वस्तुत: तालीसपत्र के विषय में बहुत मतभेद है। तालीस पत्र के नाम से निम्न तीन पौधों का विवरण मिलता है-

  1. Abies webbiana – इसका प्रयोग बंगाल में किया जाता है। बाजार में भी सामान्यत: यही तालीसपत्र नाम से मिलता है।
  2. Taxus baccata – इसका प्रयोग उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, राजस्थान व गुजरात में किया जाता है।
  3. Rhododendron anthopogon – पंजाब में इसके पत्ते को तालीसपत्र के नाम से प्रयोग किया जाता है।  

यह 50-60 मी ऊँचा, सदाहरित और सख्त या मजबूत वृक्ष होता है। इसके तने की परिधि लगभग 4 मी तक होती है। इसका शीर्ष बेलनाकार, शाखाएँ- चपटी और फैली हुई होती हैं। छाल सफेद अथवा धूसर रंग का होता है। इसके पत्ते दो भागों में विभाजित, विभिन्न लम्बाई के लगभग 2.5 से 5 सेमी तक लम्बे, 8-10 वर्षों तक रहने वाले, चपटे, लगभग 2 मिमी व्यास या डाइमीटर के, नुकीले, गहरे हरे रंग के एवं चमकीले होते है। पत्तों के सूख जाने पर उनमें एक विशेष प्रकार की गन्ध आने लगता है।

इसके फल शंकु के आकार का यानि नुकीला, सीधा, अण्डाकार, नवीन अवस्था में नीला, पूराना हो जाने पर भूरे रंग का हो जाता हैं। बीज 1.25-2.5 सेमी लम्बे, चौड़े, अण्डाकार अथवा आयताकार, कोणीय होते हैं। तालीशपत्र नवम्बर से जून महीने में फलता-फूलता है।

अभी तक जिस तालीशपत्र के बारे में बताया गया उसके अलावा निम्नलिखित प्रजाति का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है। यह प्रजाति तालीश की अपेक्षा अल्प गुणों वाली होती हैं।

Abies densa Griff.   (निविड़ तालीशपत्री)- यह तालीश की तरह दिखने वाला सदाहरित लम्बा वृक्ष होता है। इसके पत्ते चमकीले, हरे रंग के तथा आगे का भाग तालीशपत्र की तरह ही नुकीला होता है।  यह पौधा तालीश पत्र से अल्प गुणों वाला होता है इसके पत्रों की मिलावट तालीश पत्र में की जाती है।

अन्य भाषाओं में तालीश पत्र का नाम (Name of Taleespatra in Different Languages)

तालीश पत्र का वानस्पतिक नाम Abies spectabilis (D. Don) Mirb. (ऐबीज स्पेक्टाबिलिस) Syn-Abies webbiana (Wall. ex D.Don) Lindl है। तालीश पत्र Pinaceae (पाइनेसी) कुल का है। तालीश पत्र को अंग्रेजी में East Himalayan Silver Fir (ईस्ट हिमालयन् सिल्वर पैंर)  कहते हैं। लेकिन तालीश पत्र को भारत के विभिन्न प्रांतों में अन्य नामों से पुकारा जाता है, जैसे-

Taleespatra in-

Sanskrit-पत्राढ्य, धात्रीपत्र, शुकोदर, तालीशपत्र, तालीश, तालीशपत्र;

Hindi-तालीसपत्र, तालीसपत्री; उत्तराखण्ड-राघा (Ragha), रैसाला (Raisalla);

Kannadaतालीसपत्री (Talispatri);

Gujrati-तालीसपत्रा (Talispatra);

Tamil-तालीसपत्री (Talispatri);

Nepali-गोबरैसाल्ला (Gobresalla);

Telegu-तालीसपत्री (Talispatri);

Malayalamतालीसपत्रम् (Talispatram);

English-हिमालयन फर (Himalayan fir);

Arbi-तालीसपैंर (Talisfar);

तालीश पत्र के फायदे (Taleespatra Benefits and Uses in Hindi)

औषधीय उपयोग के दृष्टि से तालीशपत्र (thaleesapathradi choornam) गुणकारी माना जाता है। तालीशपत्र सर्दी-खाँसी जैसे आम बीमारी का इलाज करने के साथ-साथ मिर्गी, रक्तपित्त (नाक-कान जैसे अंगों से खून बहने की बीमारी) जैसे जटिल बीमारी के उपचार में भी सहायता करता है। चलिये जानते है कि तालीशपत्र किन-किन बीमारियों में कैसे काम आता है।

सिर दर्द में फायदेमंद तालीश पत्र (Talispatra Benefits in Headache in Hindi)

headache

आजकल काम के दबाव के कारण या तनाव के कारण सिर दर्द होना जैसे लाजमी हो गया है। अगर सिर दर्द से परेशान हैं तो तालीश पत्र को पीसकर मस्तक पर लगाये इससे सिर दर्द कम होता है।

खाँसी से राहत दिलाये तालीशपत्र का चूर्ण (Talisapatradi Churna Relieve from Cough in Hindi)

मौसम बदला की नहीं सर्दी, खाँसी, बुखार होना शुरू हो जाता है। अगर आपको भी यही परेशानी है तो तालीशपत्र का सेवन इस प्रकार कर सकते हैं-

-3-5 ग्राम की मात्रा में तालीशादि चूर्ण (talisapatradi churnam) का सेवन करने से भूख बढ़ती है तथा खाँसी, साँस फूलना, भूख न लगना, दिल की बीमारियाँ आदि रोगों में लाभ होता है।

-2-4 ग्राम तालीसादि चूर्ण (talisadi churna in hindi)का सेवन करने से खाँसी, साँस फूलना, बुखार, उल्टी, अतिसार या दस्त, पेट फूलना, ग्रहणी (Irritable bowel syndrome)आदि रोगों में लाभ होता है। यह चूर्ण रुचिकारक तथा पाचक दोनों होता है।

तालिसादि चूर्ण चूर्ण खांसी दूर करने में भी फायदेमंद (talisapatradi churna benefits) होता है।  2-4 ग्राम तालीश पत्र चूर्ण में शहद या अदरक-का रस मिलाकर चटाने से खांसी ठीक होता है तथा अपच की समस्या आदि में लाभ मिलता है।

-2-4 ग्राम तालिसादि चूर्ण को गुनगुने जल के साथ सेवन कराने से कुक्कुर खांसी (Whooping cough) में लाभ होता है।

-तालीशपत्र (thaleesapathradi choornam)को पीसकर छाती पर लेप करने से भी कफ की बीमारी दूर होती है।

तपेदिक में फायदेमंद तालीशपत्र (Benefits of Talisapatradi in Tuberculosis in Hindi)

तपेदिक या टीबी के लक्षणों से राहत दिलाने में तालीशपत्र चूर्ण बहुत ही फायदेमंद (talisapatradi churna benefits) होता है।  

2-4 ग्राम तालीशपत्र चूर्ण (thaleesadi churnam) में अडूसा पत्ते का रस 10 मिली मिलाकर खिलाने से ट्यूबरक्लोसिस में लाभ होता है।

आध्मान (पेट फूलने की बीमारी) में लाभकारी तालीशपत्र (Talisapatradi  to Relieves Flatulance in Hindi)

आजकल के असंतुलित जीवनशैली का उपहार, ये बीमारी भी है। पेट फूलने की बीमारी मतलब पेट में खाना अच्छी तरह से हजम नहीं होने पर गैस बनने लगता है। जिसके कारण मरीज डकार लेता है, पेट में बेचैनी होती है आदि। तालीशपत्र का सेवन पेट फूलने की बीमारी से राहत दिलाने में मदद करता है।

तालीशपत्र चूर्ण (thaleesadi churnam) में 2 ग्राम अजवायन चूर्ण मिलाकर खाने से आध्मान (अफारा) में लाभ होता है।

उदरशूल या पेटदर्द से राहत दिलाये तालीशपत्र चूर्ण (Benefits of Talisapatradi Churna in Stomachalgia in Hindi)

अगर अनियमित जीवनशैली होगी तो उसका असर सीधे पेट पर पड़ता है। अक्सर खाना अच्छी तरह से हजम न होने के कारण पेट में दर्द होने लगता है। इस कष्ट का भी निवारण तालीशपत्र के पास है।

-2-4 ग्राम तालीशपत्र चूर्ण (talisadi churna in hindi)में काला नमक मिलाकर खाने से पेटदर्द  में लाभ (talisapatradi churna benefits)होता है।

और पढ़े: पेटदर्द में अगस्त के फायदे

दस्त रोके तालीशपत्र चूर्ण (Talisapatradi Churna Benefits for Diarrhoea in Hindi)

dysentry

अक्सर ज्यादा मसालेदार खाना खाने से या असमय खाने से या किसी बीमारी के दुष्प्रभाव के कारण दस्त की समस्या होने लगती है।  

-2-4 ग्राम तालीशपत्र चूर्ण (talisapatradi churnam) में 2 ग्राम इन्द्रयव मिलाकर खाने से अतिसार या दस्त में लाभ (talisapatradi churna benefits) होता है।

-2-4 ग्राम तालीशपत्र चूर्ण को शर्बत के साथ मिलाकर पीने से अतिसार या दस्त में लाभ होता है।

अपस्मार या मिर्गी में फायदेमंद तालीशपत्र का चूर्ण (Talisapatradi Churna for Epilepsy in Hindi)

मिर्गी तंत्रिकातंत्रीय विकार होता है जिसके कारण मरीज को बार-बार दौरे आते हैं। मिर्गी के कष्ट को कम करने में तालीशपत्र का चूर्ण काम (talisapatradi churna benefits)आता है।

-तालीश पत्र चूर्ण (2-4 ग्राम) में समान मात्रा में वच चूर्ण मिलाकर शहद के साथ सेवन करने से अपस्मार या मिर्गी में लाभ होता है।

अरुची का करे इलाज तालीशपत्र का चूर्ण(Talisapatradi Churna to Fight Anorexia in Hindi)

अक्सर बहुत दिनों तक बीमार रहने  के कारण खाने की इच्छा मर जाती है। ऐसे परेशानी का इलाज भी तालीशपत्र के पास है।  

-खाने में रुचि बढ़ाने के लिए 2 ग्राम कपूर, 20 ग्राम मिश्री तथा 4 ग्राम तालीसपत्र चूर्ण (talisapatradi churna benefits) को मिलाकर 500 मिग्रा की गोलियां बना लें। इस गोली का सुबह शाम 1-1 गोली को मुँह में रखकर चूसने से अरुचि कम होने लगती है।

 

रक्तपित्त (कान-नाक से खून बहने की बीमारी) में फायदेमंद तालीशपत्र का चूर्ण (Uses of Talisapatradi Churna to Treat Hemorrhage in Hindi)

तालीशपत्र चूर्ण अथवा तालीशादि (2-3 ग्राम) चूर्ण को वासा-रस एवं मधु के साथ सेवन करने से कफ एवं पित्त से उत्पन्न विकार, खांसी, दम फूलना, गले की खराश तथा रक्तपित्त का कष्ट कम होता है।

 

ब्रोंकाइटिस के इलाज में तालीसपत्र के फायदे (Taleespatra Benefits in Treatment of Bronchitis in Hindi)

तालीसपत्र में कफ को निकालने का गुण पाया जाता है इसलिए इसका उपयोग ब्रोंकाइटिस में फायदेमंद होता है। तालीसपत्र के चूर्ण का शहद के साथ सेवन करने से कुछ ही दिनों में ब्रोंकाइटिस के लक्षण कम होने लगते हैं। 

 

अस्थमा या सांस की समस्या में तालीसपत्र के फायदे (Uses of Taleespatra in Treatment of Asthma in Hindi) 

दमा या सांस की समस्या होने पर आप तालीसपत्र का उपयोग कर सकते हैं। इसमें एक्सपेक्टोरेन्ट का गुण होता है और यह कफ को बाहर निकालने का काम करता है। खुराक और उपयोग विधि जानने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें।

 

जीभ की जलन और सूजन दूर करता है तालीसपत्र (Taleespatra Helps to reduce Tongue Swelling and Burning Sensation in Hindi)

तालीसपत्र में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होने के कारण आप इसका उपयोग जीभ की जलन और सूजन को कम करने में भी कर सकते हैं। उपयोग संबंधी विस्तृत जानकारी के लिए नजदीकी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें। 

 

तालीशपत्र के उपयोगी भाग (Useful Parts of Taleespatra)

आयुर्वेद में तालीशपत्र के पत्ते का प्रयोग औषधि के रुप में ज्यादा किया जाता है।

 

तालीशपत्र का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए? (How to Use Taleespatra in Hindi?)

बीमारी के लिए तालीशपत्र के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए तालीशपत्र का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।

चिकित्सक के परामर्श के अनुसार-

– 2-4 ग्राम तालीशपत्र के चूर्ण का सेवन कर सकते हैं।

तालीशपत्र के सेवन के दुष्प्रभाव (Side Effects of Taleespatra)

तालीशपत्र के चूर्ण (talish patra) का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से चक्कर आना या उल्टी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अत्यधिक सेवन से गर्भाशय को भी नुकसान पहुँच सकता है।

तालीशपत्र कहां पाया या उगाया जाता है (Where Taleespatra is Found or Grown in Hindi)

तालीशपत्र भारत के शीतोष्णकटिबंधीय एवं उपपर्वतीय हिमालयी क्षेत्रों में मूल रुप से पाया जाता है।  भारत में तालीशपत्र सिक्किम, कश्मीर, आसाम में लगभग 2300 मी 4000 मी की ऊँचाई तक तथा उत्तराखण्ड में 2800-4000 मी की ऊँचाई पर पाया जाता है।