Categories: आयुर्वेदिक दवाएं

Shukramatrika Vati: अमृत के सामान है शुक्रमातृका वटी- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

गोक्षुरबीजं त्रिफला पत्रमेला रसाञ्जनम्।

धान्यकं चविका जीरं तालीशं टङकदाडिमौ।।।

प्रत्येकार्द्धपलं दत्त्वा गुग्गुलो कर्षमेव च।

रसाभगन्धलौहानां प्रत्येकञ्च पलं क्षिपेत्।।

सर्वमेकीकृं वैद्यो दण्डयोगेन मर्दयेत्।

घृतभाण्डे तु संस्थाप्य माषमेकं तु भक्षयेत्।।

अनुपानं प्रदातव्यं जातिभेदात् पृथक्पृथक्।

दाडिमस्य रसेनैव छागीदुग्धेन वा।़म्भसा।।

प्रमेहान् विशतिं हन्ति वातपित्तकफोद्भवान्।

द्वद्वजान्सन्निपातोत्थान् मूत्रकृच्छ्राश्मरीगदान्।।

बलवर्णाग्निजननी ज्वरदोषनिसूदनी।

चन्द्रनाथेन गदिता वटिका शुक्रमातृका।। भै..37/69-74

क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात

  1. गोक्षुर बीज (Tribulus terrestris Linn.) फल 24 ग्राम
  2. हरीतकी (Terminalia chebula Retz.) फल 24 ग्राम
  3. बिभीतक (Terminalia bellirica Roxb.) फल 24 ग्राम
  4. आमलकी (Emblica officinalis Gaertn.) फल 24 ग्राम
  5. एला (Elettaria cardamomum) बीज 24 ग्राम
  6. रसांजन (दारुहरिद्रा) (Berberis aristata DC.) निर्यास 24 ग्राम
  7. धान्यक (Coriandrum sativum Linn.) फल 24 ग्राम
  8. चव्य (Piper retrofractum Vahl.) तना 24 ग्राम
  9. जीरक (श्वेत) (Cuminum cyminum Linn.) फल 24 ग्राम
  10. तालीस पत्र (Abies webbiana Lindle) पत्र 24 ग्राम
  11. टंकण शुद्ध 24 ग्राम
  12. दाडिम (Punica grantum Linn.) बीज 24 ग्राम
  13. शुद्ध गुग्गुलु निर्यास 12 ग्राम
  14. रस (पारद) शुद्ध 48 ग्राम
  15. गंधक (पारद) शुद्ध 48 ग्राम
  16. अभ्रक (पारद) शुद्ध 48 ग्राम
  17. लौह भस्म 48 ग्राम

मात्रा 500 मिली ग्राम

अनुपान दाडिम स्वरस, जल

गुण और उपयोगइस वटी का प्रभाव मुख्य रूप से वात का और वीर्य का वहन करने वाली नाड़ियों पर और वृक्क (मूत्रपिण्ड) पर होता है। इसके सेवन करने से वीर्य स्राव तथा वातपित्त एवं कफज स्वप्नदोष, मूत्रकृच्छ्र रोग एवं अश्मरी आदि रोगें में बहुत लाभ प्राप्त होता है। यह वटी रक्ताणुओं को बढ़ाकर मांसग्रन्थियों को मजबूत बनाती है और इस वटी से मानसिक शक्ति भी बढ़ती है।

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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आचार्य श्री बालकृष्ण

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