गोक्षुरबीजं त्रिफला पत्रमेला रसाञ्जनम्।
धान्यकं चविका जीरं तालीशं टङकदाडिमौ।।।
प्रत्येकार्द्धपलं दत्त्वा गुग्गुलो कर्षमेव च।
रसाभगन्धलौहानां प्रत्येकञ्च पलं क्षिपेत्।।
सर्वमेकीकृं वैद्यो दण्डयोगेन मर्दयेत्।
घृतभाण्डे तु संस्थाप्य माषमेकं तु भक्षयेत्।।
अनुपानं प्रदातव्यं जातिभेदात् पृथक्–पृथक्।
दाडिमस्य रसेनैव छागीदुग्धेन वा।़म्भसा।।
प्रमेहान् विशतिं हन्ति वातपित्तकफोद्भवान्।
द्वद्वजान्सन्निपातोत्थान् मूत्रकृच्छ्राश्मरीगदान्।।
बलवर्णाग्निजननी ज्वरदोषनिसूदनी।
चन्द्रनाथेन गदिता वटिका शुक्रमातृका।। भै.र.37/69-74
क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात
मात्रा– 500 मिली ग्राम
अनुपान– दाडिम स्वरस, जल
गुण और उपयोग– इस वटी का प्रभाव मुख्य रूप से वात का और वीर्य का वहन करने वाली नाड़ियों पर और वृक्क (मूत्र–पिण्ड) पर होता है। इसके सेवन करने से वीर्य स्राव तथा वातपित्त एवं कफज स्वप्नदोष, मूत्रकृच्छ्र रोग एवं अश्मरी आदि रोगें में बहुत लाभ प्राप्त होता है। यह वटी रक्ताणुओं को बढ़ाकर मांस–ग्रन्थियों को मजबूत बनाती है और इस वटी से मानसिक शक्ति भी बढ़ती है।
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