लशुनजीरकसैन्धवगन्धकं त्रिकटुरामठचूर्णमिदं समम्। सपदिनिम्बुरसेन विषूचिकां हरतियोरतिभोगविचक्षणे।। वै.जी. क्षयरोगादिचिकित्सा
क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात
मात्रा– 1 ग्राम
अनुपान– कोष्ण जल
गुण और उपयोग– यह वटी पेट में वायु भर जाने की उत्तम औषध है। अग्नि की मन्दता, उदर वायु, पेट की पीड़ा इस वटी के सेवन से नष्ट हो जाते हैं। यह दीपक–पाचक व वायु को नष्ट करने वाली होती है। यह अजीर्ण एवं विसूचिका रोग में विशेष लाभ प्रदान करती है। अजीर्ण के कारण पेट में वायु भर जाने से डकारें आने लगती हैं, इस वायु का पाचन करने तथा डकारों को रोकने के लिए यह वटी बहुत लाभकारी होती है। पेट में वायु कुपित होकर ऊपर की ओर गति करती है, सामान्य जन इसे गोला बनना कहते हैं। मस्तिष्क का काम करने वाले व्यक्तियों को यह परेशानी अधिक होती है। इसमें जी मिचलना, सिर में भारीपन, ह्य्दय धड़कना, भ्रम, चक्कर आना, खट्टी डकारें आना, पेट–फूलना आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। इस वटी के सेवन से शीघ्र ही ऊर्ध्ववात रोग शान्त हो जाता है।
आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार, त्रिफला चूर्ण पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए बेहद फायदेमंद है. जिन लोगों को अपच, बदहजमी…
डायबिटीज की बात की जाए तो भारत में इस बीमारी के मरीजों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही…
मौसम बदलने पर या मानसून सीजन में त्वचा से संबंधित बीमारियाँ काफी बढ़ जाती हैं. आमतौर पर बढ़ते प्रदूषण और…
यौन संबंधी समस्याओं के मामले में अक्सर लोग डॉक्टर के पास जाने में हिचकिचाते हैं और खुद से ही जानकारियां…
पिछले कुछ सालों से मोटापे की समस्या से परेशान लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. डॉक्टरों के…
अधिकांश लोगों का मानना है कि गौमूत्र के नियमित सेवन से शरीर निरोग रहता है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञ भी इस बात…