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पट्टशाक नाम सुनकर शायद आप समझ नहीं पायेंगे लेकिन जैसे ही आपको ये नाम बताउंगी कि इसको हिन्दी में पटुआ या पाट कहते हैं। इसको बड़ी जूट भी कहते हैं। आयुर्वेद में पट्टशाक का इस्तेमाल पेट संबंधी समस्याओं के इलाज के लिए सबसे ज्यादा किया जाता है। इसके अलावा और किन-किन बीमारियों में इसको औषधी के रूप में प्रयोग किया जाता है, आगे इस बारे में जानते हैं-
पट्टशाक, बड़ी जूट नाम से भी जाना जाता है। इसके पत्ते पेट संबंधी समस्याओं में हितकर होते हैं। इसकी कई प्रजातियाँ होती हैं जिनका प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है। जूट का औषधीय महत्त्व के साथ ही व्यापारिक महत्त्व भी है। व्यापारिक दृष्टि से रूई के बाद जूट का नम्बर आता है। जूट से बोरे, टाट आदि कई उपयोगी वस्तुं बनाई जाती है।यह 60-120 सेमी ऊँचा, सीधा, तनु वर्षायु, शाकीय पौधा होता है।
कांडीर का वानास्पतिक नाम Corchorus olitorius Linn. (र्कोकोरस् ओलिटोरियस्) Syn-Corchorus longicarpus G.Don Corchorus catharticus Blanco होता है। इसका कुल Tiliaceae (टिलिएसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Celery-leaved crowfoot (सेलेरी लीव्ड क्रोफूट) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि पट्टशाक और किन-किन नामों से जाना जाता है।
Sanskrit-पट्टशाक, नाड़ीच;
Hindi-पटुआ, पटवा, पाट, पटुए का शाक, कोष्ट;
Odia-झोटो (Jhoto), जोतो (Joto);
Gujarati-मोठी छूँछ (Mothe chunch), छुनछो (Chhunchho);
Tamil-पेराट्टी (Peratti), पुनाकु (Punaku);
Telugu-परींटा (Parinta), परींटकुरा (Parintakura);
Bengali-मीठा पाट (Meetha pat), ललिता पाट (Lalita pat), बनपट (Banpat);
Nepali-पतुआ (Patua);
Punjabi-बनफल (Banphal);
Marathi-मोटी चोंचे (Mothi chunche)।
English-इण्डियन जूट (Indian jute), नाल्टा जूट (Nalta jute);
Arbi-मोलुखुयिआ (Molukhyia)।
पट्टशाक के फायदों के बारे में जानने के लिए पट्टशाक के औषधीय गुणों के बारे में जान लेना जरूरी होता है-
पट्टशाल शाक प्रकृति से मधुर, शीतल, पिच्छिल, कफपित्त से आराम दिलाने वाला होता है।
पटुआ रक्तपित्त (नाक और कान से खून बहने की बीमारी, कृमि, कुष्ठ, जलदोष तथा बुखार के कष्ट से आराम दिलाने में होता है।
इसका शाक प्रकृति से तीखा रक्तपित्त, कृमि तथा कुष्ठ से निदान दिलाने में मददगार होता है।
इसके सूखे पत्ते बुखार, विशेषत पित्त तथा कफ से बुखार के कष्ट से आराम दिलाने वाला, जलदोष तथा आमवात से निदान दिलाने में सहायक होता है।
इसके बीज विरेचक गुण वाले होते हैं।
इसके पत्ते शोधक, मूत्रल, ज्वरघ्न, बलकारक तथा स्तम्भक (Styptic) होते हैं।
पट्टशाक या पाट या पटुआ पेट संबंधी समस्याओं के इलाज में इस्तेमाल करने के साथ-साथ कौन-कौन बीमारियों के लिए फायदेमंद है, आगे इस बारे में विस्तार से जानते हैं-
अगर आप निरंतर पेट के अल्सर से हमेशा परेशान रहते हैं और खाना खाते ही कष्ट होने लगता है तो पत्ते का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से आमाशयिक व्रण तथा अर्श या पाइल्स के परेशानी को कम करने में लाभदायक होता है।
सूखे पत्ता का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में प्रवाहिका के रोगी को पिलाने से प्यास तथा शक्ति बढ़ती है।
पट्टशायक के पत्ते को पीसकर लगाने से तथा पत्ते का पेस्ट का सेवन करने से पूयमेह या गोनोरिया व फिरङ्ग में लाभ होता है।
पट्टशाक, चित्रक, निर्गुण्डी आदि द्रव्यों से बने पृथ्वीसारादि तेल का प्रयोग कुष्ठ में लाभप्रद है।
आयुर्वेद के अनुसार पट्टशाक का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-
-पत्ता और
-पञ्चाङ्ग
यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए पट्टशाक का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 10-12 मिली काढ़ा ले सकते हैं।
पट्टशाक का अति-मात्रा में सेवन करने से अरुचि, प्रवाहिका या पेचिश तथा वमन (उल्टी) होने की संभावना रहता है।
समस्त भारत में मुख्यत पश्चिम बंगाल में पट्टशाक की खेती की जाती है।
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