Categories: जड़ी बूटी

Nimbu Jambiri: गुणकारी है नींबू जम्बीरी- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम :

Citrus limon (Linn.) Burm.f. (सिट्रस लिमन) Syn- Citrus medica Linn. var. limonum; Citrus pseudolimon Tanaka

कुल : Rutaceae (रूटेसी)

अंग्रेज़ी नाम : Lemon (लैमन)

संस्कृत-जम्बीर; हिन्दी-जमीरीनींबू, बड़ानीबू, पहाड़ी नीबू; उर्दू-निम्बू (Nimbu); कन्नड़-काडलिम्बे (Kadlimbae); गुजराती-गोदडिया (Goddiya), लिंबु दोडिगा (Limbu dodiga); तेलुगु-जांभिर निम्ब (Jambhir nimb); तमिल-पेरिया येलुमिच्चई (Periya yelumichchai); बंगाली-जामीरालेबू (Jamiralebu), गोंडालेंबु (Gondalembu); नेपाली-कागती (Kagti); पंजाबी-गलगल (Galgal), कीमती (Kimti); मराठी-इड लिंबु (Id limbu); मलयालम-मातलम (Matlam), गनपतिनरकम् (Ganpatinarkam)।

अरबी-कलम्बक (Qulambak); फारसी-लीमू कागी (Limoo khagi)।

परिचय

इसका फल नारंगी के समान और बहुत खट्टा होता है। भारत में यह हिमालय पर 1200 मी की ऊंचाई तक तथा उत्तर भारत, कर्नाटक, तमिलनाडू, गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, आसाम एवं पंजाब में पाया जाता है।

यह 3-4 मी ऊँचा, बहुशाखित कंटकित, झाड़ीदार सदाहरित क्षुप है। इसके फल गोलाकार, 7.5-12.5 सेमी व्यास के, चमकीले पीले वर्ण के व रस से युक्त होते हैं।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

इसका फल विरेचक, कृमिनाशक, पूयरोधी; तृष्णा, अजीर्ण, विसूचिका, शीताद, अतिसार, श्वास, आध्मान, आमवात, वातरक्त, आमातिसार, प्रतिश्याय, शूल, विबन्ध, छर्दि तथा भम शामक होता है।

यह अम्ल, मधुर, उष्ण, गुरु, तीक्ष्ण, कफवातशामक तथा पित्तवर्धक होता है।

यह दीपन, रुच्य, सुंधित, पाचन तथा तर्पणकारक, विबन्ध, शूल, कास, क्लेश, छर्दि, तृष्णा, आमदोष, श्वास, हृत्पीड़ा, कृमि, क्लेद तथा शोष-नाशक होता है।

इसके पत्र तीक्ष्ण तथा वातकफशामक होते हैं।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. कर्णशूल-जम्बीर नींबू के स्वरस से सिद्ध तैल को 1-2 बूँद कान में डालने से कर्णशूल का शमन होता है।
  2. अम्लपित्त-पक्व जम्बीर फल-स्वरस (5-10 मिली) का सेवन करने से अम्लपित्त आमातिसार व घृतजन्य अजीर्ण में लाभ होता है।
  3. अजीर्ण-जम्बीर फल-स्वरस में लवण मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण तथा अरुचि का शमन होता है।
  4. मसूरिका-जम्बीरी नींबू के स्वरस में गुड़ मिलाकर सेवन करने से मसूरिका में लाभ होता है।
  5. दद्रु-जम्बीर फल-स्वरस में लवण मिलाकर लगाने से दद्रु का शमन होता है।
  6. 10 मिली जम्बीर फल-स्वरस में 100 मिली पानी मिलाकर गरारा करने से शीताद् आदि त्वचा विकारों में लाभ होता है।
  7. ज्वर-इसके शीतल मधुर स्वरस का सेवन करने से ज्वर का शमन होता है।
  8. ज्वर और अन्य प्रदाहिक पीड़ाओं में इसके रस को शर्बत के साथ पिलाने से लाभ होता है।
  9. शूल-5-15 मिली फल-स्वरस में 65 मिग्रा यवक्षार तथा शहद मिलाकर सेवन करने से पार्श्वशूल, गृध्रसी, कटिशूल तथा नितम्बसंधि की वेदना का शमन होता है।

प्रयोज्याङ्ग  : फल-स्वरस, छिलका, पत्र तथा तैल।

मात्रा  : चिकित्सक के परामर्शानुसार।

और पढ़ेंबच्चों के कब्ज का घरेलू उपचार नींबू से

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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आचार्य श्री बालकृष्ण

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