वानस्पतिक नाम : Teramnus labialis (Linn.f.) Spreng. (टेरॅम्नस लेबिएलिस) Syn-Glycine labialis
Linn. f
कुल : Fabaceae (फैबेसी)
अंग्रेज़ी नाम : Blue wiss (ब्लू विस)
संस्कृत-माषपर्णी, सूर्यपर्णी, काम्बोजी, पाण्डुलोमशपर्णी, कृष्णवृन्ता, अश्वपुच्छी, आत्मोद्भवा, बहुफला, घना, कल्याणी, महासहा, माङ्गल्या, सिंहमुखी, सिंहपुच्छिका, वज्रमूली, विषम्बिका, पर्णिनी, पाण्डुलोमशा, हयपुच्छी, सिंहपुच्छी, मंगल्या, हटापुच्छिका, माषपर्णिका, विसारपर्णी, स्वयम्भू, सिंहविन्ना, पाण्डुरा, माषपत्रिका; हिन्दी-मषबन, माषोनी, बन उड़दी, जंगली उड़द, बनउर्दी, बनउड़द; उड़िया-बन-कुलथा (Ban kultha); कोंकणी-रानउडीद (Ranudid); कन्नड़-काड्डयु (Kaddyu), काडुंद (Kaduland), अदावी उड्डू (Adavi uddu); गुजराती-जंगली अड़द (Jangli adad); तमिल-कटटु अलदूं (Kattu aladun); तैलुगु-रानो डिंडु (Rano dindu), कारु मिनुरु (Karu minaru); बंगाली-माषानी (Mashani); मराठी-रानउड़ीद (Ranudid); मलयालम-कट्टुलुन्नु (Kattulunnu)।
परिचय
यह उड़द की एक जंगली प्रजाति होती है जो कि समस्त भारत में पायी जाती है। इसकी उड़द के समान फैलने वाली, विस्तृत, रोमश बहुवर्षायु लता होती है। इसकी फली पतली, सीधी अथवा थोड़ी मुड़ी हुई, नवीन अवस्था में रोमश तथा पक्वावस्था में लगभग अरोमश होती है। प्रत्येक फली में 8-12, गोलाकार, चिकने, गहरे भूरे वर्ण के बीज होते हैं। चरक-संहिता के जीवनीय, शुक्रजनन, मधुरस्कन्ध तथा सुश्रुत-संहिता के आकुल्यादि गणों में इसकी गणना की गई है। यह शुक्रवर्धक, वृष्य, स्तन्यवर्धक तथा बलकारक होती है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
माषपर्णी तिक्त, मधुर, शीत, रूक्ष, वातपित्तशामक, कफवर्धक, ग्राही, वृष्य, बलकारक, पुष्टिवर्धक, बृंहण, स्तन्यकारक, केशों के लिए हितकर, जीवनीय तथा शुक्रजनन होती है।
यह शोष, ज्वर, रक्तदोष, रक्तपित्त, वातरोग, क्षय, कास तथा दाहनाशक होती है।
इसका फल तिक्त, शीत, स्वादु, वाजीकर, कषाय, ज्वरघ्न तथा स्तन्यवर्धक होता है।
यह शोथ, पित्ताधिक्य, रक्तविकार, वातरक्त, त्रिदोषजज्वर, श्वसनिकाशोथ, तृष्णा, दाह, पक्षाघात, आमवात तथा तंत्रिकातंत्र विकार शामक होता है।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
प्रयोज्याङ्ग :पत्र तथा बीज।
मात्रा :चूर्ण 5-10 ग्राम। क्वाथ 10-20 मिली। चिकित्सक के परामर्शानुसार।
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