वानस्पतिक नाम : Soymida febrifuga (Roxb.) A. Juss. (सॉयमिडा फेब्रीफ्युजा) Syn-Swietenia febrifuga Roxb.
कुल : Meliaceae (मीलिएसी)
अंग्रेज़ी नाम : Red wood tree
(रेड वुड ट्री)
संस्कृत-अग्निरुहा, चंद्रवल्लभा, मांसरोहिणी, अतिरुहा, वृत्ता, वसा, वीरवती, रोहिणी, चर्मकारी; हिन्दी-मांसरोहिणी, रोहण, रोहिनी, रोहन, रोहिना, रक्तरोहन, रोहून, रोहूना; उर्दू-रोहन (Rohan); उड़िया-कारवी (Karwi), सोहन (Sohan), सोनहन (Sonhan); कन्नड़-स्वामीमर (Swamimara), सुमनीमनु (Sumanimanu); गुजराती-रोण (Ron), रोहिणी (Rohini), रोहिना (Rohina); तमिल-शेम्मरम् (Shemmaram), सेम (Sem), शेम (Shem); तैलुगु-सूमि (Sumi), सोमिडमनु (Somidamanu), सोनीडामनु (Sonidamanu); बंगाली-रोहन (Rohan); मराठी-रोहण (Rohan), पोतर (Potar), रूहीन (Ruhin)।
अंग्रेजी-बास्टर्ड सीडर (Bastard cedar), रोहन ट्री (Rohan tree); इण्डियन रेडवुड (Indian redwood)।
परिचय
समस्त भारत के शुष्क पर्णपाती पहाड़ी स्थानों में इसके वृक्ष पाये जाते हैं। इसका प्रयोग व्रण की चिकित्सा में किया जाता है। इसके प्रयोग से मांस को रोहण होता है इसलिए इसे मांसरोहिणी कहते हैं। इसका वृक्ष लगभग 25 मी0 ऊँचा होता है। इसकी काष्ठ को काटने से हल्के रक्त वर्ण का द्रव पदार्थ निकलता है। इसके फल कृष्ण वर्ण के तथा नाशपाती के आकार के होते हैं। चरक संहिता में बल्य तथा सुश्रुत-संहिता के न्यग्रोधादि गणों में इसका उल्लेख प्राप्त होता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
रोहिणी मधुर, तिक्त, कषाय, कटु, शीत, लघु, रूक्ष, त्रिदोषशामक, वृष्य, सर, रुचिकारक, कण्ठशोधक, ग्राही, वर्ण्य, रसायन, बलकारक तथा भग्नसंधानकारक होती है।
यह कास, श्वास, कृमि, संग्रहणी, दाह, मेदोरोग, योनिदोष व्रण तथा रक्तपित्त-नाशक है।
इसकी त्वक् ज्वरहर, कालिक ज्वररोधी, अतिसारघ्न, क्षुधावर्धक तथा रक्तशोधक होती है।
मलेरिया रोग में (विषम ज्वर) इसकी छाल के क्वाथ का प्रयोग एक आउन्स् की मात्रा में दिन में तीन बार दिया गया तथा यह पाया गया कि यह मलेरिया (विषमज्वर) में लाभदायक है, परन्तु इसका प्रभाव सिनकोना के क्षाराभों की अपेक्षा अत्यन्त धीमी गति से तथा निम्न स्तर का होता है।
इसका काण्डत्वक् व्रणरोपक गुण प्रदर्शित करता है।
यह मलेरियारोधी क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
प्रयोज्याङ्ग :काण्ड छाल, पत्र तथा फल।
मात्रा :क्वाथ 10-20 मिली। चूर्ण 1-2 ग्राम या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
विशेष इसका प्रयोग अत्यधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए।
मुक्तवर्चा (कुप्पी)
वानस्पतिक नाम : Acalypha indica Linn. (ऐकेलाइपां इंडिका) Syn-Acalypha chinensis Benth., Acalypha minima H.Keng
कुल : Euphorbiaceae (यूफोर्बियेसी)
अंग्रेज़ी नाम : Indian acalypha
(इण्डियन ऐकेलाइपां)
संस्कृत-हरितमंजरी; हिन्दी-मुक्तवर्चा, खोकिल, कुप्पी; उड़िया-इन्द्रमरीस (Indramaris), नाकाचना (Nakachana); कन्नड़-चलमरी (Chalmari), कप्पामेनी (Kappameni); गुजराती-ददनो-वंछी-कांटों (Dadno-vanchhi-kanto); तमिल-कुप्पामेनी (Kuppameni), पूनमयाक्की (Punmayakki), कुप्पामनी (Kuppamani); तैलुगु-मुरीपीण्डी (Muripindi), कुप्पिन्टकु (Kuppintaku), मुर्काण्डचेट्टु (Murkandachettu); बंगाली-मुक्ताझरी (Muktajari); नेपाली-वर्षी झार (Varshi jhar); मलयालम-कुप्पामेनी (Kuppameni); मराठी-खजोटी (Khajoti), खोकला (Khokla)।
परिचय
भारत के उष्ण प्रदेशों में विशेषत बंगाल तथा बिहार से आसाम तक और दक्षिण में कोंकण से त्रावणकोर तक एवं गुजरात व काठियावाड़ में सड़कों के किनारे या बेकार पड़ी भूमि पर खरपतवार के रूप में उत्पन्न होता है। यह श्वास रोगों में अत्यन्त उपयोगी है। इसकी दो प्रजातियों का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है।
उपरोक्त वर्णित कुप्पी की मुख्य प्रजाति के अतिरिक्त निम्नलिखित प्रजाति का प्रयोग भी चिकित्सा में किया जाता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
यह कटु, तिक्त, उष्ण, लघु, कफवातशामक, श्वासहर, कासहर, मूत्रल, कृमिघ्न, सारक, रेचक, वामक एवं कफनिसारक है।
इसमें बन्ध्यत्वरोधी गुण पाए जाते हैं। पत्तियों के फाण्ट में पेशीप्रेरक एवं सामयिक गति से उत्पन्न होने की दर के प्रति निश्चित प्रभाव दृष्टिगत।
पत्र प्ररोह एवं मूल से प्राप्त मद्यसार में स्टेफीलोकोक्कस औरीयस एवं एस्चरशिया कोलाई के प्रति जीवाणुरोधी प्रभाव दृष्टिगत हुए।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
प्रयोज्याङ्ग :पञ्चाङ्ग, पत्र एवं मूल।
मात्रा :क्वाथ 5-10 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
विशेष :
श्वास कष्ट की चिकित्सा में अत्यधिक लाभकारी है।
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