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बरसात के समय भुट्टा या मक्के का मजा सब लेते हैं लेकिन इसके फायदों के बारे में कितने लोगों को पता है। आयुर्वेद में मक्का के औषधीय गुणों के आधार पर यह विभिन्न बीमारियों के उपचार में काम करता है। चलिये मक्का के गुणों और फायदों बारे में विस्तार से जानते हैं।
मक्का बहुत ही पौष्टिक होता है। भुट्टे के कोमल बाल दर्द कम करने वाला और मूत्र को बढ़ाने वाला होता है। इसके अलावा सूजाक या गोनोरिया, सूजन और पथरी में इनका काढ़ा बनाकर पिलाया जाता है।
मक्का प्रकृति से मधुर, ठंडा, रूखा, खाकर मन संतुष्ट करने वाला, पित्त का स्राव बढ़ाने वाला , मूत्र बढ़ाने वाला, पोषक, शक्ति बढ़ाने वाला, खाने की इच्छा बढ़ाने वाला, बलवर्धक, कफ और पित्त कम करने वाला होता है।
कच्चा मक्का पुष्टिकारक तथा रुचिकारक होता है। मक्का हृदय की पेशियों को उत्तेजित करता है, रक्तचाप बढ़ाता है, मूत्र संबंधी बीमारियों में औषधियों की तरह काम करता है एवं पाचन तंत्र को बेहतर करता है। मक्के की रेशमी वर्तिका या बत्ती-स्तम्भक (Styptic), मूत्र कम होने पर बढ़ाने में भी मदद करता है। इसके बीज विलायक (Resolvent), शोथ या सूजन तथा दर्द को कम करने वाला व स्तम्भक होते हैं।
मक्का का वानस्पतिक नाम Zea mays Linn. (जिआ मेज) Syn-Zea curagua Molina है। मक्का Poaceae (पोएसी) कुल का होता है। मक्के को अंग्रेजी में Maize (मेज) कहते हैं। भारत में मक्का को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। जैसे-
आयुर्वेद में भुट्टे या मक्के के कई फायदे बताए गए हैं. उनमें से कुछ प्रमुख फायदे हम आपको यहां बता रहे हैं :
डिप्थीरिया से राहत दिलाने में भुट्टा का सेवन बहुत ही फायदेमंद होता है।
अगर मौसम के बदलाव के कारण खांसी से परेशान है और कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है तो भु्टटे से इसका इलाज किया जा सकता है।भुने मक्के का सेवन करने से खाँसी से राहत मिलती है।
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अगर ज्यादा मसालेदार, तीखा खाने के आदि है तो पाइल्स या बवासीर के बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है। उसमें मक्का का घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। मक्के के दानों का काढ़ा बनाकर, कमर से स्नान करने से बवासीर में लाभ होता है।
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लीवर की बीमारी होने पर लीवर को स्वस्थ करने में मक्का बहुत काम आता है। इसका सेवन इस तरह से करने पर फायदा मिलता है। मक्के की वर्तिका (बत्ती) को पीसकर सेवन करने से यकृत् तथा पाचन संबंधी बीमारी में लाभ होता है।
किसी बीमारी के कारण यदि मूत्राशय में सूजन हुआ है तो मक्के के इस्तेमाल से जल्दी आराम मिलता है। मक्के के बीजों तथा मक्के की रेशमी वर्त्तिका से बने विविध योगों का सेवन करने से गुर्दे या किडनी की सूजन, मूत्राशय में सूजन तथा मूत्र संबंधी बीमारी से जल्दी राहत मिलने में मदद मिलती है।
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आजकल के प्रदूषित खान-पान के कारण किडनी में पथरी होने का खतरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। मक्के की भस्म (65 मिग्रा) को (1 गिलास) जल में घोलकर सेवन करने से वृक्क (किडनी) एवं मूत्राशयगत अश्मरी (पथरी)में लाभ होता है।
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मूत्राशय संबंधी बीमारी में मक्का का सेवन फायदेमंद होता है।
-मक्के की वर्तिका (Style) का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से मूत्राशय संबंधी बीमारी से राहत मिलती है।
-मक्के का काढ़ा बनाकर 15-20 मिली मात्रा में सेवन करने से मूत्रदाह तथा मूत्रत्याग के समय होने वाले दर्द से राहत मिलती है।
टी.बी के कष्ट से राहत दिलाने में मक्का बहुत काम करता है। मक्कों के दानों से बने विविध प्रकार के भक्ष्य का सेवन करने से टी.बी. (राजयक्ष्मा) व रात को बिस्तर पर पेशाब करने की बीमारी में लाभ होता है।
अगर हद से ज्यादा ब्लीडिंग हो रहा है तो मक्के का सेवन बहुत लाभकारी होता है। सूखे वर्तिका से बने भस्म को रक्तस्राव वाले स्थान पर रखने से रक्त रुक जाता है।
अगर लंबे बीमारी के कारण या पौष्टिकता की कमी के वजह से कमजोरी महसूस हो रही है तो मक्का का इस तरह से सेवन करने पर लाभ मिलता है। मक्के को भूनकर या मक्के के विभिन्न भक्ष्य बनाकर सेवन करने से कमजोरी दूर होने के साथ-साथ तथा शरीर पुष्ट होता है।
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सूखा रोग प्रोटीन की कमी के कारण होता है। प्रोटीन की कमी से उत्पन्न सूखा रोग में प्रचुर मात्रा में मक्के का सेवन लाभकारी होता है।
आयुर्वेद में मक्के के दाने और वर्त्तिका (बत्ती) का प्रयोग औषधि के लिए सबसे ज्यादा किया जाता है।
बीमारी के लिए मक्के के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए मक्के का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
चिकित्सक के परामर्श के अनुसार मक्के के दाने का 15-20 मिली काढ़े का सेवन कर सकते हैं।
समस्त भारत में मुख्यत उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-काश्मीर, गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश में इसकी खेती की जाती है।
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