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क्या आपको पता है कि वृद्धिवाधिका वटी क्या (divya vridhivadhika vati benefits in hindi) है और वृद्धिवाधिका वटी का उपयोग किस काम में किया जाता है। नहीं ना! वृद्धिवाधिका वटी एक आयुर्वेदिक औषधि है। वृद्धिवाधिका वटी का प्रयोग कर रोगों का इलाज किया जाता है।
आयुर्वेद में वृद्धिवाधिका वटी के बारे में बहुत सारी अच्छी बातें लिखी हुई हैं। वृद्धिवाधिका वटी के इस्तेमाल से आप एक-दो नहीं बल्कि कई रोगों का इलाज (vridhivadhika vati uses) कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि आप वृद्धिवाधिका वटी का कैसे कर सकते हैं।
वृद्धिवाधिका वटी अन्डकोशों (Testicles) के विकार सम्बन्धी विभिन्न रोगों के उपचार के लिए काम आती है। हर्निया आदि के उपचार के लिए यह पतंजली द्वारा दी जाने वाली यह एक प्रमुख औषधि (Patanjali Medicine For Hernia) है।
आप वृद्धिवाधिका वटी का प्रयोग इस रोग में कर सकते हैंः-
वृद्धिवाधिका वटी अन्डकोशों में नये और पुराने सभी प्रकार की वृद्धि सम्बन्धी रोगों को नष्ट करती है। इस वटी के सेवन से हर्निया (आंत्रवृद्धि) रोग में लाभ मिलता है। अण्डकोश में वायु भर जाना, दर्द होना और नये दूषित रस का उतरना, रक्त व जल भरना आदि रोगों में वृद्धिवाधिका वटी लाभकारी (divya vridhivadhika vati benefits) होती है।
यदि अण्डकोश में भरा हुआ जल अधिक पुराना हो गया हो तो यह वटी उसमें विशेष लाभ नहीं देती है। इस कारण अण्डवृद्धि का अनुभव होते ही इसका सेवन (divya vridhivadhika vati benefits) शुरु कर देना चाहिए जिससे आगे बीमारी और ना बढ़े।
और पढ़ें : हर्निया के लिए घरेलू नुस्खे
वृद्धिवाधिका वटी का उपयोग ऐसे किया जा सकता हैः-
250 मिली ग्राम,
अनुपान – जल, हरड़ का काढ़ा
कदम्ब के पत्तों पर या अरण्ड के पत्तों पर घी का लेप लगा लें। इसे हल्का गरम करके अण्डकोश पर लपेटकर कपड़े से बाँध दें। इससे अंडकोष बढ़ने की शुरुआती अवस्था में ही बहुत अधिक लाभ (vridhivadhika vati uses) मिलता है।
वृद्धिवाधिका वटी के बारे में आयुर्वेदिक ग्रंथों में कहा गया हैः –
शुद्धसूं तथा गन्धं मृतान्येतानि योजयेत्।
लौहं वङ्गं तथा ताम्रं कांस्यञ्चाथ विशोधितम्।।
तालकं तुत्थकञ्चापि तथा शङ्खवराटकम्।
त्रिकटु त्रिफला चव्यं विडङ्गं वृद्धदारकम्।।
कर्चूरं मागधीमूं पाठां सहवुषां वचाम्।
एलाबीजं देवकाष्ठं तथा लवणप ञ्चकम्।।
एतानि समभागानि चूर्णयेदथ कारयेत्।
कषायेण हरीतक्या वटिकां टङकसम्मितम्।।
एकां तां वटिकां यस्तु निर्गिलेद् वारिणा सह।
अत्रवृद्धिरसाध्याsपि तस्य नश्यति सत्वरम्।।
– भैषज्य रत्नावली 43/74-78, भा.प्र.43/29-33
वृद्धिवाधिका (Vridhivadhika vati) वटी में निम्न द्रव्य (Vridhivadhika Vati Ingredients) हैंः-
क्र.सं. | घटक द्रव्य | उपयोगी हिस्सा | अनुपात |
1. | शुद्ध पारद (Mercury) | 1 भाग | |
2. | शुद्ध गन्धक (Sulphur) | 1 भाग | |
3. | लौह भस्म | 1 भाग | |
4. | ताम्र भस्म | 1 भाग | |
5. | कांस्य भस्म | 1 भाग | |
6. | वंग भस्म | 1 भाग | |
7. | शुद्ध हरताल | 1 भाग | |
8. | शुद्ध तूतिया | 1 भाग | |
9. | शंख भस्म | 1 भाग | |
10. | कपर्दक भस्म | 1 भाग | |
11. | शुण्ठी (Zingiber officinale Rosc.) | 1 भाग | |
12. | मरिच (Piper nigrum Linn.) | 1 भाग | |
13. | पिप्पली (Piper longum Linn.) | 1 भाग | |
14. | हरीतकी (Terminalia chebula Retz.) | 1 भाग | |
15. | विभीतकी (Terminalia bellirica Roxb.) | 1 भाग | |
16. | आमलकी (Emblica officinalis Gaertn.) | 1 भाग | |
17. | चव्य (Piper retrofractum Vahl.) | 1 भाग | |
18. | वायविडंङ्ग (Embelia ribes Burm.) | 1 भाग | |
19. | विधारामूल | 1 भाग | |
20. | कचूर (Cinnamomum camphor Nees & Eberm) | 1 भाग | |
21. | पिप्पलीमूल (Piper longum Linn.) | जड़ | 1 भाग |
22. | पाठा (Cissampelos pareria Linn.) | जड़ | 1 भाग |
23. | हपुषा (Juniperus communis Linn.) | 1 भाग | |
24. | वचा (Acorus calamus Linn.) | कन्द | 1 भाग |
25. | इलायची (Elettaria cardamomum Maton.) | बीज | 1 भाग |
26 | देवदारु (Cedrus deodara (Roxb.) Loud.) | सार | 1 भाग |
27. | सैंधव लवण | 1 भाग | |
28 | कालानमक | 1 भाग | |
29. | विड् लवण | 1 भाग | |
30. | सामुद्र लवण | 1 भाग | |
31. | सांभर लवण | 1 भाग | |
32. | हरीतकी क्वाथ (Terminalia chebula Retz.) | Q.S. मर्दनार्थ |
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