Categories: जड़ी बूटी

Lobia: बहुत गुणकारी है लोबिया- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम : Vigna unguiculata (Linn.)Walp. (विग्ना अनग्वाईकुलाटा) Syn-Vigna catjang Savi     

कुल : Fabaceae (फैबेसी)

अंग्रेज़ी नाम : Chinese beans (चाइनीज बीन)

संस्कृत-महामाष, राजमाष, चपल, दीर्घबीज; हिन्दी-चौबली, राजमाष, बोड़ा, चौरा, लोबिया; कन्नड़-अलसंदी (Alasandi), तडगुन्नी (Tadgunni); कोंकणी-वेरविल (Vervil); गुजराती-चोला (Chola), चोरप (Chorap); तमिल-करामुन्नीपेयीरा (Karamunnipayira), करामणि (Karamani); तैलुगु-अलसन्दलु (Alsandalu), बोब्बेरुलु (Bobberulu); नेपाली-बोड़ी (Bodi); बंगाली-बरबटी कलाय (Barbati kalaya), बर्बटी (Barbati); मराठी-बबल्या (Bablaya), अलसंदे (Alsande); मलयालम-कोट्टापायुरु (Kottapayaru), अलसेंडी (Alasendi); मराठी-चौली (Chaoli)

अंग्रेजी-बर्बटी कलाय (Barbati kalaya), काऊपीस (Cowpeas), कटजंग बीन (Catjang bean), जेरुसलेम पी (Jerusalem pea); अरबी-लुब्या बलादि (Lubya baladi); फारसी-लोबिया (Lobiya), लावह (Lovah)।

परिचय

समस्त भारत में इसकी खेती की जाती है तथा इसका प्रयोग साग के रूप में किया जाता है।

यह जमीन पर फैलने वाला वल्लरीनुमा शाकीय पौधा होता है। इसके पुष्प गुलाबी अथवा श्वेत वर्ण के होते हैं। इसकी फली अत्यधिक लम्बी होती है तथा बीज संख्या में लगभग 10-20  फली के अनुसार छोटे तथा बड़े, भूरे-हल्के रक्त वर्ण के अथवा हल्के बैंगनी अथवा कृष्ण वर्ण के होते हैं।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

लोबिया मधुर, कषाय, शीत, गुरु, कफपित्तशामक, वातवर्धक, सर, रुचिवर्धक, स्तन्यवर्धक, वृष्य, बलकारक, ग्राही, विशद, विबन्धकारक तथा आध्मानकारक होती है।

यह अम्लपित्त तथा रक्तपित्त शामक है।

इसके बीज मधुर, कषाय, क्षुधावर्धक, विरेचक, कृमिहर, स्वेदक, मूत्रल, स्तन्यजनन तथा यकृत् के लिए बलकारक होते हैं।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. राजमाष के हरे बीजों को गुड़ के साथ सेवन करने से नेत्र रोग व बच्चों के कुपोषण जन्य रोगों में लाभ होता है।
  2. छर्दि (उलटी)-राजमाष के बीजों का क्वाथ बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पीने से उत्क्लेश (मिचली), छर्दि (उलटी) व मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।
  3. युवानपिडका-राजमाष पत्र अर्क को लगाने से युवानपिडका (मुंहासों) का शमन होता है।
  4. शोथ-राजमाष के बीजों को पीसकर लगाने से शोथ का शमन होता है।

प्रयोज्याङ्ग  :पत्र तथा बीज।

मात्रा  :बीज क्वाथ 15-20 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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आचार्य श्री बालकृष्ण

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